Tuesday, October 28, 2008

कुछ लिखा है

महानुभाव /आप पधारे स्वागत /मैंने शारदा ब्लॉग पर कुछ लिखा है =सरसरी नजर डालने की कृपा करें

Saturday, October 25, 2008

मैं आलोचक तो नहीं

मैं आलोचक तो नहीं ,जब से देखीं मैंने कवितां ,मुझको आलोचना आगई / एक २०-२२ साल का लड़का कवितायें ,हुस्न ,इश्क ,इंतज़ार ,याद ,दर्द ,हिज्र में मर जाना ,नींद न आना बगैरा / इतना कहा बेटा ओलिम्पिक ,बीजिंग , .हौकी पर ,क्रिकेट पर लिख /हम इंतज़ार करेंगे कयामत तक ,कयामत हो और तू आए , बात ही बेमानी है ,ऐसे आने से फायदा क्या =का वर्षा जब कृषी सुखाने ==उसने कह दिया आप आलोचना कर रहे हैं /

एक गोष्ठी में शायर अपना शेर सुनाने से पहले कहें लगा ""अपने इन शेरों में मुझे अपना ये शेर ख़ास तौर पर पसंद है ""
मेरे मुह से ये निकल गया ""ये तो हुज़ूर की जर्रा नवाजी है वरना शेर किस काविल है ""उसी दिन से गोष्ठियों से बुलावा बंद /एक कवि सम्मलेन में मैंने एक कविता सुनाई ,दूसरी कविता सुनाते वक्त श्रोताओं ने मुझे हूट कर दिया ,मैं अपनी जगह आ बैठा ,दूसरे कवि ने एक कविता सुनाई श्रोताओं ने सुनी, जैसे ही उसने दूसरी सुनानी चाही, श्रोता फिर मुझे हूट करने लगे /उसी दिन से मैंने कवि सम्मलेन में जाना बंद कर दिया /

बडे साहित्य कार अपनी गोष्ठियों में मुझ जैसों को बुलाते नहीं ,और जिन गोष्ठियों में मुझे बुलाया जाता है तो मैं सोचता हूँ कि जो गोष्ठी मुझ जैसों तक को कविता पाठ हेतु बुला सकती है वह किस स्तर की होगी ,अत में जाता नहीं .यह बात मैंने शरदजोशी जी के लेख में पढी थी /लक्ष्मी बाई और दुर्गावती के देश में जब आजकल के कवि और शायरों की नायकाओं के बदन शरद की शीतल चांदनी में तपन से झुलसते हैं ,दस्यु सुंदरियों के देश में जब नायिकाओं के पैर मखमल के गद्दे पर छिलते हैं तो, मुह से कुछ निकल जाता है और लोग बुरा मान जाते है /मान जाते हैं साब/ लम्बी छुट्टी का लाभ उठा कर मेरे दफ्तर की एक मेडम लौटी, तो मैंने पूछ लिया कहिये मेडम कैसी हैं =बोली अच्छी हूँ = मैंने कहा यही बात मैं कह देता तो आप बुरा मान जातीं /

जो बात मुझे पसंद नहीं होती उसका इजहारे ख्याल हो जाता है / कोई भक्त कवि कृष्ण से ,अपनी खोई हुई गेंद तलाशने की खातिर गोपियों की तलाशी दिलवायेगा ,कोई श्रृंगारशतक में नारी अंगों की तुलना स्वर्ण कलश से करेगा तो हम भी तो कुछ विचार व्यक्त कर सकते हैं /

में प्रेम मोहब्बत का दुश्मन नहीं /लेकिन ऐसा प्रेम में उदास रहा ,परेशान रहा तेरे बगैर नींद न आई /जैसे कोई काम्पोज या अल्प्राजोलम से बात कर रहा हो /प्रेम को तो समझ कर भी प्रेम पर नहीं लिखा जासकता /बिना समझे लिखने का तो प्रश्न ही नहीं हां लिखलो प्रफुल्लित ,प्रमुदित, अश्रु की अजस्र धारा बहुत सुंदर और बहुत प्यारे शब्द मगर ऐसा लगेगा जैसे किसी भिखारी को राजा ने हाथी दान में दे दिया हो किसी ने कहा " माँगा हुआ लिवास पहनने से पेश्तर ,अपना मिजाज़ उसके मुताबिक बनाइये "जो प्रेम के समुद्र में डूब गया उसका तो वह स्वम वर्णन नही कर सकता =मिठास का वर्णन कैसे होगा गोस्वामी जी ने कहा है
कहहु सुपेम प्रगट को करई ,कही छाया कवि मति अनुसरई /
कविही अर्थ आखर बलु साँचा, अनुहरि ताल गतिहि नटु नांचा/

प्रेम ,कितना प्यारा शब्द मगर क्या नाश किया है कि क्या कहें /पार्क की बैंच लड़का -तुम न मिली ,तुमसे शादी न हुई तो अपनी जान देदूंगा /एक मिनट को अलग नहीं रह सकता /लडकी बेंच से उठ कर कोल्ड ड्रिंक लेने चली जाती है लड़का बोर ,लडकी का पर्स पलटने लगता है एक चिठ्ठी 'प्रिय शारदा ,जब तक मेरी नौकरी नहीं लग जाती है तब तक बिरजू [बृजमोहन] को यूं ही बेवकूफ बनाती रहो -आजकल तंगी है इससे बहुत आर्थिक मदद मिल रही है / अपन को मेरी नौकरी लगते ही शादी करना है / कोल्ड ड्रिक हॉट ड्रिंक में तब्दील ,जान देनेवाला जान लेने पर उतारू /

राजस्थान एक जमाने में पानी की कमी के लिए प्रसिद्ध- अब तो बहुत नहरें डेम है /बात पुरानी ,कुछ सखियाँ खड़ी देख रही है कि एक हिरन और एक हिरनी मरे पड़े हैं / एक सखी पूछती है "" खड़ो न दीखे पारधी [शिकारी ] लाग्यो न दीखे बाण /मै तेन्यूं पूंछूं सखी किस विध तज्या प्राण / तो दूसरी सखी जवाब देती है ""जल थोड़ो नेहा घन्यो,लागा रे प्रीत रा बाण /तू पी तू पी कहत ही दोन्यूं तजया प्राण /

Thursday, October 16, 2008

papa tum bhee blog banaalo

लगे रहो मुन्नाभाई में जब चार पाँच बुड्ढों ने कहा ""या तो खिट खिट करके मरो या जीने की कोई वजह ढूंढ लो ""तो बेटा बोला पापा जी आप भी लिखने की कोई वजह ढूंढ लो /मैंने कहा लिखने की भी कोई वजह होती है ?बोला क्यों नहीं होती /हर चीज़ की कोई न कोई वजह जरूर होती है /आप बताइये संन्यास लेने की भी कोई वजह होती है ,मैंने कहा बिल्कुल होती है ""नारि मुई ग्रह संपत्ति नासी ,मूड मुड़ाय भये संन्यासी ""बोला वही तो मै कह रहा हूँ /किसी से नजरें लड़ जाएँ ,कोई नजर चुराले ,दोस्ती करले ,धोखा दे दे भाइयों से पिट वादे करने लगो कवितायें /कुछ पत्नी के स्वर्ग वास के बाद कवि हो जाते हैं /मैंने पूछा बेटा तू मुझे अपना समझता है क्या इसकी भी कोई वजह है बोला क्यों नहीं है -अभी मेरी शादी नहीं हुई है ""सुत मानहिं मातु पिता तब लौं ,अबलानन दीख नहीं जब लौं "" आप की तो बात ही क्या मैं तो पूरे कुटुंब से दुश्मनी ले सकता हूँ ""ससुराल पिआरि लगी जब तें ,रिपु रूप कुटुंब भये तब तें "" आप तो लिखने ही लगो /

पुत्र और स्पष्ट करना चाहता था यह कह कर कि ""मै शायर तो नहीं जब से देखा तुमको मुझको शायरी आगई "" और में कहीं कवि न बन जाऊं तेरी याद में ओ कविता ""लेकिन में समझ चुका था ,कुछ बातें मेरी समझ में जल्दी आ ही जाती हैं /बोला आपतो लिखने ही लगो /

बात चिंतनीय थी ,चिंता और चिंतन ,दोनों एक साथ करने की थी ,लेकिन मुझे उलझन ये कि कवि लिखे और न तो उसे कोई सुने न पढ़े तो धिक्कार है बिल्कुल आल्हाखंड की तरह ""जाको बैरी सम्मुख बैठे ताके जीवन को धिक्कार ""/बच्चे एस एम् एस और चेटिंग में व्यस्त ,युवक तोड़ फोड़ में ,प्रौढ़ फेशन चेनल देखने में और बूढे बहुओं की टोकाटाकी करने में =और कुछ लोग इंटरनेट पर ही बैठे रहते हैं /

इंटरनेट की बात सुनते ही बेटा बोला हां पापा आप इंटरनेट पर लिखो /साहित्य को स्वांत सुखाय तक सीमित मत रखो =कवितायें लिखो ,तुकवन्दी लिखो -चाँद पर लिखो ,तारों पर लिखो / मैंने पूछा चाँद पर कैसे लिखूंगा ?बोला आपको चाँद पर बैठ कर उसकी धरती पर कोयला से थोड़े ही लिखना है उनको आधार बनाओ ,शायर इसे जमीन कहते है जैसे लगे रहो मुन्नाभाई में डाक्टर बीमार को "सब्जेक्ट " कह रहा था / आकाश को बस्त्र तारों को डिजाइन जैसे पहले टोपियों पर सलमा सितारे जड दिया जाया करते थी बिल्कुल बोईच /उस बस्त्र को चाँद को पहिनाओ =फिर चन्द्रमुखी उस आकाश के बस्त्र को हटा कर सुखदाई बदन झलकायेगी /मैंने मन में सोचा आज कल कोई बस्त्र पहनता ही कहाँ है -प्रकट में कहा तू मुझसे उस चंद्रमा पर लिखवाना चाहता है जो ""जनम सिन्धु ,पुनि बंधू बिषु ,दिन मलीन ,सकलंक "" है तथा ""घटई ,बढ़ई बिरहन दुःख दाई "" है और "कोक शोक प्रद पंकज द्रोही ""है =उसने ध्यान नहीं दिया और बोला आप तो लिखने ही लगो /

मैंने कहा बेटा मैंने रचना लिखी और मेरी ख़ुद ही समझ न आई तो इंटरनेट पर मेरी कविता कौन समझेगा =उसने कहा इंटरनेट पर समझने की जरूरत ही कहाँ होती है /और कहीं पत्रिका बगैरा में भेजोगे ,या तो सम्पादक उसमें कांट छाँट करेगा या खेद सहित लौटा देगा /यही ऐसी जगह है जो ""स्वरूचि अभिव्यक्ति " का मध्यम है -स्वरूचि भोज की तरह /

बेटा पिछले साल शर्मा जी रिटायर हुए थे उन्होंने ब्लॉग बनाया /तुम तो जानते हो वे कितने बड़े साहित्यकार है -अच्छे स्तर की पत्रिकाओं में उनकी कवितायें छपती थी -तीन संकलन भी प्रकाशित हो चुके है , उन्होंने पत्रिकाओं में प्रकाशित दस कवितायें ब्लॉग पर डालदी ,दो माह में एक कविता पर तीन कमेन्ट आए / पापा -आपको लिखने में दिलचस्पी है या कमेन्ट में / बेटा कमेन्ट तो आना ही चाहिए -बडा सुकून मिलता है -और लिखने को प्रेरणा मिलती है -चेहरे पे खुशी छा जाती है ,आंखों में सुरूर आजाता है / देखो पापा आप अपने नाम से ब्लॉग बनाओगे तो कोई नहीं आएगा -आते ही फोटो देखेगा ,उम्र देखेगा ६६ साल ,सोचेगा इस बूढे खूंसठ कोक्या पढ़ना =बहुओं की बुराई करेगा ,रुपया सेर घी की बात करेगा ,आज की जनरेशन को कोसेगा ,फेशन की बुराई करेगा ,संस्कृति और ज्ञान की बातें करेगा /

और फिर आपको टिप्पणी ,कमेन्ट ,बहुत अच्छा, बहुत सुंदर ,हा हा हा हा का इतना ही शौक है तो किसी काल्पनिक नाम से ब्लॉग बनाओ /काल्पनिक नाम कुछ भी हो सकता है आशा ,गाया ,कुमारा ,पाटाल कुछ भी किसी ग्रामीण बाला का चित्र डालदो इतने कमेन्ट आयेंगे कि आपसे पढ़े नहीं जायेंगे /एक शायर के जूते खो गए बोला मेरे जूते खो गए अब घर कैसे जायेंगे /बोले -शायरी शुरू करदो इतने आयेंगे कि गिने नहीं जायेंगे / नहीं बेटा अपने नाम से ही होना चाहिए =हर साहित्यकार की इच्छा होती है कि उसका नाम हो / तो फिर आप फास्ट फ़ूड की तरह फास्ट भाषा में लिखने लगो /अरे जब यू से काम चल रहा है तो वाय ओ यू का क्या मतलब /अभिव्यक्ति की जो सरल ,बाजारू भाषा अस्तित्व में आरही है उसे अपनाओ /गरीब और अविकसित लोगों की भाषा को कब तक छाती से चिपकाए बैठे रहोगे /कब से सोच रहे थे ये अँगरेज़ हमें गुलाम समझते है =न उन जैसा रहने देते है न उन जैसा बोलने देते है / ये देश से चले जाएँ तो हम इनकी तरह रहें और अंग्रेजी बोलें /अब रहने तो लगे अंग्रेजों की तरह ,मगर अंग्रेजों की तरह बोलें कैसे /बोलना है अंग्रेजी मगर दखल नहीं अभ्यास नहीं ,बोल सकते हैं हिन्दी दखल भी है और अभ्यास भी मगर बोल नहीं सकते हीनता ज़ाहिर होती है/

अब हिन्दी बोलना आता है मगर बोलना नहीं है .अब अंग्रेजी बोलना नहीं आता है मगर बोलना है तो क्या करें =ऐसा करें -सुबह को मय पी शाम तो तौबा कर ली ,रिंद के रिंद रहे हाथ से जन्नत न गई /दोनों को मिलादों /एक नई क्रोस भाषा एक वर्णसंकर भाषा उत्पन्न होगी उसे अपनाओ /आप तो लिखने ही लगो /

Friday, October 3, 2008

शिक्षा - स्तर - और मेरा भाषण

मैं अचानक भाषण देने लगा , कब आयेगा वो दिन जब प्राथमिक शालाओं की छत नही टपकेगी ,बैठने को टाटपट्टी,शुद्ध पानी ,साफ़ सुथरे बच्चे, प्रोपर ड्रेस में होंगे /

सर ,शिक्षक वावत आपने भाषण में कुछ नहीं कहा / भाषण शुरू होने से पहले ही किसी ने टोक दिया / मैंने फिर भाषण शुरू किया , शिक्षक वहां कहाँ होंगे /वे बोटर लिस्ट और फोटो परिचय पत्र बना रहे होंगे ,मर्दुम शुमारी और पशु गणना कर रहे होंगे /वार्डों में नालियां साफ़ हुई या नही देख रहे होंगे और जनसंपर्क का इन्द्राज कर रहे होंगे /पुनरीक्षित वेतनमान और महगाई भत्ते के लिए आन्दोलन कर रहे होंगे / पदनाम बदलवाने मीटिंग कर रहे होंगे , ,टी ऐ बिल ,मेडिकल बिल ,या जी पी ऍफ़ के लिए हेड क्वाटर के चक्कर लगा रहे होंगे या जिला शिक्षा अधिकारी के कार्यालय में अटेच होंगे -कुछ गाव से बापस तबादले की जुगाड़ में होंगे , भाषण के बीचमें फिर व्यवधान ;

फिर शिक्षा का स्तर कैसे सुधरेगा ? मेरा भाषण फिर शुरू , स्तर से शिक्षक का क्या सम्बन्ध / स्तर के लिए कोचिंग है ,ट्यूशन है ,नक़ल है ,कम्पुटर है ,इन्टरनेट है ,सर्फिंग है,चेटिंग है , और इससे भी स्तर न सुधरा तो एक साइड और है =८० प्रतिशत साइबर कैफे इसी के दम पर चल रहे हैं और इसमें कोई बुराई भी नहीं है , आखिर यही तो उम्र है सीखने की ताकि आगे अन्य घातक बीमारियों से बचे रहें /

ऐसे ऐसे शार्टकट हैं कि बालक शीघ्र ही अंग्रेजी बोलने मैं आत्म विश्वास से भर जाए /मोबाइल से पढाई के साधन उपलब्ध हैं ,एस एम् एस द्वारा भी पढाई की जा सकती है / शिक्षा का स्तर सुधारने के लिए संगोष्ठियों के अलावा ऐसे ऐसे मन्त्र हैं कि उनका जाप करते रहें तो विद्यार्थी विद्वान् हो जाए /आजकल तो ऐसे यंत्र भी उपलब्ध हैं वह भी मात्र कुछ हजार रुपयों में /साथ ही ऐसे भी यंत्र कि आदमी धन संपन्न हो जाए /कहीं ऐसे भी मन्त्र तंत्र होते हैं क्या साब अगेन रूकावट

देखिये ,भाषण फिर चालू ==कुछ तथा कथित आधुनिक , अविश्वासी ,प्राचीन ग्रंथों की महत्ता से अनभिग्य ,मेरी नजर में नाजानकार, नावाकिफ लोग कह देते हैं कि यंत्रों से कुछ नहीं होता इससे कहीं आदमी धनवान होता है मेरी द्रष्टि में वे अल्पग्य हैं ,उन्हें अपनी भ्रांतिया दूर कर लेना चाहिए मैंने प्राचीन ग्रंथों का गहन अध्ययन किया है /जो लोग यंत्रों की महत्ता से इनकार करते हैं और कहते हैं कि इनसे धन ब्रद्धि नहीं हो सकती उनको में चेलेंज करता हूँ के कंगाल व्यक्ति निश्चित अमीर बन सकता है "रंक चले सर छत्र धराई ""अजमा कर देख लीजिये -आपको बस इतना करना है कि यंत्र बना कर बेचना हैं /

इसके अलावा बाल दिवस है शिक्षक दिवस है उस दिन शिक्षक का सम्मान होना आवश्यक है क्योंकि वह शिक्षक ही तो होता है जो हमें हमारी दिशा और उनकी दशा बतलाते हैं . इसलिए देखना भर ये है कि बच्चों ने टाई बाँध रखी है या नहीं माँ बाप होम वर्क करबाने लायक शिक्षित हैं या नहीं स्कूल फीस ,स्कूल से मिलने वाली ड्रेस और स्कूल से मिलने वाली कापी किताबों का खर्च वहन करने लायक उनकी आर्थिक स्थिति है या नहीं =स्तर सुधरने वाले तो बहुत /हैं

Saturday, September 27, 2008

ज्यों की त्यों धर दीनी

कबीर दास कहकर चले गए :"ज्यों की त्यों धर दीनी चदरिया " अपने ब्लॉग में, डाक्टर आदित्य शुक्ल ने अपनी कविता ""एसा जीना भी कोई जीना हुआ "" लगभग यही बात कही /

ज्यों की त्यों वापस करने में मुझे दिक्कत ये हो रही है की मानलो आपके बच्चा हुआ मैंने एक अच्छा खिलौना आपको भेंट किया आपने उसे सम्हाल कर सहेजकर रख लिया और पाँच साल बाद मेरे लड़का हुआ { वेसे दो साल बाद भी हो सकता है ऐसी कोई बात नहीं है } तो आपने मुझे वही खिलोना वापस कर दिया ,सोचिये मुझे कैसा लगेगा / दूसरी बात हम त्योहारों पर शुभ दिन की बधाई देते हैं {अंग्रेजी मैं } तो सामने वाला कहता है सेम टू यू =अब क्या होता है कि कोई कोई स को श प्रयोग करते है अब वह सेम टू यू में सेम में शीटी वाला श लगाकर बोलेगा तो आपको कैसा लगेगा /

जब चदरिया दी है तो उसका उपयोग करो ,उपभोग करो ,धुलवाओ , दो जने मिला कर ओढो, ठण्ड के मौसम में भी तो दो चादर या दो पतली रजाई मिला लेते है ,उसको मन पसंद रंगवाओ ""ऐसी रंग दे कि रंग नाही छूटे ,धोबिया धोये चाहे सारी उमरिया ,श्याम पिया मोरी रंग दे चुनरिया "" यदि देने वाले की ऐसी इच्छा होती कि मुझे एज ईट इज वापस मिलेगी तो वह देता ही क्यों ,थान के थान अपने पास ही न रखे रहता
एक कवियत्री रश्मि प्रभा ने अपने ब्लॉग में बहुत अच्छी बात कही है आज मेरा नाम सहयात्री है कल मेरा नाम नोनीहाल होगा = यह है आत्मबल जीवन जीने की कला वास्तविक जीवन ,नाते रिश्ते ,मोह माया में तटस्थ ,उत्फुल्लित ,प्रमुदित , न संतों से स्वर्ग का टिकेट कटाना है न ही उनसे लुटना है न जिम्मेदारी से भागना है =कल मेरा नाम नोनीहाल होगा, एक उमंग. एक उत्साह, एक आश्वासन ,एक निश्चितता वरना तो जैसा कहा है तू इसी धुन में रहा मर के मिलेगी जन्नत तुझको ऐ शेख न जीने का सलीका आया "" वरना तो इस उधेड़बुन में फिरते रहो इस शास्त्र से उस शास्त्र तक इस ज्ञानी से उस ज्ञानी तक ""भटकती है प्यास मेरी इस नदी से उस नदी तक ""

एक कवि हैं ,मुंबई के ,हरिवल्लभ श्रीवास्तव उन्होंने अपने गजल संग्रह "पिघलते दर्द "" में लिखा है ""बनाया जो विधाता ने उसे उस काम में ही लो ""बस यहीं तो दिक्कत है ,किस काम के लिए बनाया है ख़ुद जानते नहीं और किसी की मानते नहीं /अरे जब शंकर जी की पत्नी सती ने शंकरजी का उपदेश नहीं माना वह भी बार बार कहने पर भी ""लाग न उर उपदेसू जदपि कहेउ सिब बार बहु "" वहाँ तो एक ही थे यहाँ तो अनेक उपदेश और वे भी परस्पर विरोधी तो ""मति भ्रम तोर प्रकट मैं जाना "वाली स्थिति क्यों नही होगी/

ज्यों की त्यों बिल्कुल सरकारी घोष विक्रय की तरह "" जहाँ है जैसा है नीलाम किया जाना है " बात ही खत्म =चदरिया ज्यों कि त्यों जैसी है वैसी, जरा जीर्ण भी हो सकती है, फटी पुरानी भी हो सकती है, मैली कुचेली भी हो सकती है /यहाँ कृष्ण की बात ठीक लगती है + जैसे व्यक्ति पुराने बस्त्रों को त्याग कर नए वस्त्र धारण करता है /बात एकदम सटीक ,पके बाल ,आंखों से ऊँट भी दिखाई न दे ,दंत नही ,पोपला मुंह ;झुर्रियां , इस वस्त्र के बदले. नए मिलें तो कौन नही लेना चाहेगा /मगर इस बात को सब कहाँ मानते है किसी ने आत्मा को, तो किसी ने ईश्वर को ,तो किसी ने पुनर्जन्म को नकार दिया है. और नकारने वाले भी असाधारण महापुरुष ,भगवान्, तो व्यक्ति का भ्रमित होना स्वाभाबिक है /

आदमी किंकर्तव्यबिमूढ़ हो जाता है क्या सत्य है क्या गलत है /

आदमी बोलने में तो अनिश्चित रहता ही है क्या बोले क्या न बोले / एक महिला कर्मी ने , एक सज्जन का बरसों से उलझा इन्कमटेक्स का निराकरण कर दिया ,लेन-देन की कोई बात नही थी तो शब्दों से ही धन्यबाद देना था / अब वे सोचने लगे क्या कहूं " मैं आपका किसतरह से शुक्रिया अदा करूं ,किस प्रकार अहसान चुकाऊंगा ,किस भांति धन्यवाद दूँ / और सज्जन मैं आपका किस कहकर तरह ,भांति ,प्रकार के सोच में पड़े, इधर महिला देख रही है मेरे सामने खड़ा आदमी मैं आपका किस, कहकर चुपचाप खड़ा हुआ है तो उसने चांटा मार दिया/

तो भ्रमित आदमी डरता है कि कहीं पुराना ले लिया और नया नहीं दिया तो /कुछ बातें छोटी होती हैं मगर भ्रम की स्थिति तो बना देती है, जैसे कबीर ने कहा ,ध्रुब ,प्रहलाद ,सुदामा ने ओढी , अब सुदामा कौन ?,नाम सुनते ही हमें एक दुर्बल ब्रद्ध सिंहासन पर दिखने लगता है जिसके कृष्ण पैर धो रहे हैं "पानी परांत को हाथ छुओ नहीं नैनन के जल सों पग धोये " लेकिन भागवतकार ने तो सुदामा का नाम ही नही लिया , एक गरीब बिप्र कहा है द्वारका जाने से अमीर होकर लौटने तक कहीं सुदामा नाम नहीं आया है तो फ़िर वह बिप्र जिसका जिक्र व्यास जी ने किया है उसका नाम सुदामा किसने रखा / और देखिये हम जानते है कृष्ण ने गोबर्धन उठाया तस्वीर देखिये वाया हाथ और कथा यह कि वाएं हाथ की कनिष्ठा अंगुली से, व्यास जी ने तो वायां दायां हाथ कुछ लिखा ही नही है/

मैं परसाई जी का ब्यंग्य "" अकाल उत्सब "" पढ़ रहा था उन्होंने लिखा "" मैं रामचरितमानस उठा लेता हूँ ,इससे शांती मिलेगी ,यों ही कोई प्रष्ट खोल लेता हूँ , संयोग से लंका काण्ड निकल पड़ता है ,मैं पढता हूँ अशोक वाटिका में त्रिजटा को धीरज बंधाती है ,त्रिजटा को भी मेरी तरह सपना आया था "" अब कोई मुझसे कहे कि सपना तो सुन्दरकाण्ड में आया था , और मैंने रामायण पढी न हो तो मैं तो लंका काण्ड और सुंदर काण्ड में मतिभ्रम हो ही जाउंगा/

फिर प्राचीन ग्रन्थ और आधुनिक साइंस विरोधाभाषी हैं अब शुक्राचार्य शुक्रनीति में कहते है ""एकम्बरा क्र्शादी ...........मह स्त्रयम ""{३६२}एक वस्त्र धारण करे ,कृष और मलिन सी रहकर स्नान अलंकार धारण छोड़ देवे भूमि में सोवे और इसी तरह तीन दिन विता दे -डाक्टर मानेगा इस बात को , पहले के लोग कुछ ज़्यादा ही सोचते थे औरतों के वारे में =भरथरी का श्रंगार देखो वे नारी के अंगों की स्वर्ण कलश से ही तुलना करते रहे ,एक को तो नदी ही लेटी हुई स्त्री दिखाई दे रही है अब दोनों किनारों को ...... क्या बताऊँ अब में आपको =करते भी क्या वेचारे , न फेशन चेनल था ,न रेन टीबी न पी ई एच चेनल तो करते रहते थे कल्पना /खैर /

तो आदमी डरता है कि कही पुराना लेलिया और नया वस्त्र नहीं दिया तो ? कृष्ण ने कहा है, गारंटी तो नही ली यदि यह अस्वासन दिया होता कि जो यह पुराना वस्त्र लिया है उसको फलां शहर के फलां गाँव के पटेल के यहाँ नया देदिया है तो सब भागे जाते वहां और दो परिवारों ,भिन्न जाती, भिन्न सम्प्रदाय ,में प्रेम भाव कितना बढ़ जाता ,सारे दंगे फसाद बंद /

जब मुझे पता है के मेरी बेटी फलां देश में व्याही है वहाँ बेटी के सास ससुर है ,दामाद है ,मेरी बेटी की ननदें है तो मैं कैसे वहां का बुरा सोच सकता हूँ और वहाँ दामाद भी सोचेगा कि यहाँ मेरे सास सुसर ,साले ,ममिया सुसर वगेरा वगेरा है तो यहाँ का अनिष्ट वह क्यों चाहेगा

तो फिर अब कौन बतायेगा कि कबीर का आदेश मान कर ज्यों की त्यों चदरिया कैसे वापस की जाबे/

Sunday, September 21, 2008

व्यंग्य हमारी समझ न आवे

आज से लगभग पचास साल पूर्व जब मैंने कोर्स की पुस्तकों के अतिरिक्त कुछ पढ़ना शुरू किया था तब मेरी समझ में यह नहीं आता था की व्यंग्य क्या है और व्यंग्य कार कौन है ,यह बात आज भी मेरी समझ में नहीं आती है , इतना जरूर समझ में आता है मैंने व्यंग्य पढ़े नहीं , व्यंग्य समझता नहीं और व्यंग्य लिखने की कोशिश करता हूँ यही व्यंग्य है /
लेख में व्यक्तिगत आक्षेप ,द्विअर्थी बात या चुटकुले लेख को व्यंग्य बना देते हैं /चुटकुले और व्यंग्य का अन्तर भी मैं नही समझ पाता, क्या जिस चुटकुले को सुनकर हंसी आजाये वह चुटकुला और जिसे सुन कर हंसी न आए वह व्यंग्य / किसी किसी को चुटकुले देर में समझ में आते है तो क्या जब तक समझ में न आवे तब तक व्यंग्य और समझ में आते ही चुटकुला हो जाता है /
चेनल की बातें हास्य हैं ,व्यंग्य है , हकीकत है , फ़साना है क्या है मसलन ''''कहीं भी मत जाइयेगा , दिल थाम कर बैठिएगा ,आपके दिल दहल जायेंगे, आप देखेंगे एक ऐसी कातिल पिस्टल जो आपने अभी तक नहीं देखी होगी -केवल हम ही पहली बार आपको दिखा रहे हैं -और आप भी पहली बार इसे देखेंगे ,एक ऐसी पिस्तोल जो देखने में तो आम पिस्तोल जैसी है मगर है बहुत मारक, घातक एक ऐसी पिस्तोल जिससे ऐसी गोली निकलती है जो न डाकू को पहिचान्ती है न संत को , बालक को पहिचानती है न ब्रद्ध को, न दोस्त को पहचानती है न दुश्मन को, ऐसी गोली निकलने वाली पिस्तोल आप देखेंगे थोड़े अन्तराल के बाद, कहीं भी मत जाइएगा ,बाथरूम भी नहीं "" और आधा घंटा बाद , डकेती की योजना बनते व्यक्ति से पुलिस द्वारा जप्त पिस्तोल दिखा देंगे, वह भी लाल गोल घेरे में /
"" आप देखेंगे मोबाईल में यमराज ,नाग का पुनर्जन्म , दुनिया नष्ट हो जायेगी ,सब कुछ मिट जाएगा केवल हम बचे रहेंगे आपको बताने के लिए की दुनिया नष्ट हो चुकी है और सब कुछ मिट चुका है ""
वर्तमान समय में में आदमी इतना निराश्रित हो चुका है या यह कहें कि सरकार प्रशासन पर इतना आश्रित हो चुका है कि कुछ मत पूछो ,मिलजुल कर एक दूसरे की मदद करने की वजाय मिलजुल कर सरकार को कोसेंगे / कहीं बरसात में या केले के छिलके से फिसल कर कोई गिर पड़े , तो, वह इस उम्मीद में पड़ा रहेगा कि सरकार उठाने आए / और चेनल "" एक व्यक्ति यहाँ फिसला पड़ा और प्रशासन सोया हुआ है ' पुलिस भी अभी तक मौके पर नहीं आई है ,भीड़ बड़ती चली जारही है और आप देख रहे है लाइव टेलीकास्ट / ग्रतक ( गिरे हुए ) से हमारा संबाददाता बात कर रहा है ग्रतक का कहना है कि मंत्री जी ख़ुद आकर उठाएंगे तो उठूंगा मगर मंत्री जी है कि उन्हें सुरक्षा व्यबस्था की मीटिंग से ही फुर्सत नहीं मिल पारही है, इन्हे इस ग्रतक की बिल्कुल परवाह नहीं है / राष्ट्रीय आपदा प्रबंधन प्रकोष्ठ से भी अभी तक कोई नहीं आया है /जिलाधीश चुनाव की तैयारी और सेना बाढ़ पीडितों की मदद करने में ही लगी हुई है , ग्रतक पर कोई भी बड़ी विपत्ति आ सकती है कोई इसकी चेन छीन सकता है कोई ट्रक इसे कुचल सकता है /
आप देख रहे है लाईव टेलीकास्ट भीड़ बड़ चुकी है बच्चे तालिया बजा रहे हैं ,महिलायें मुह छुपा कर हंस रही है मगर प्रशासन सोया हुआ है न अभी तक केले के छिलके फैकने वाले को पुलिस पकड़ पाई है न ही केले बेचने वाले को ,सुना है स्केच बनवाया जा रहा है / अब हम भीड़ में खड़े लोगों से पूछते हैं कि उनके क्या विचार है , हाँ आपका नाम .....क्या करना चाहिए "" क्या करना चाहिए इसे उठ कर घर चले जाना चाहिए "" अच्छा अब दूसरे से पूछते हैं ,आपकी राय में क्या करना चाहिए "" देखिये कलेक्टर को आकर इसे मुआवजा देना चाहिए , पुलिस द्वारा छिलके वाले को गिरफ्तार करना चाहिए और किसी मिनिस्टर को आकर इसे उठाना चाहिए
देखिये पचास प्रतिशत लोगों की राय ये है ..... और पचास प्रतिशत के राय ...... है , आप भी अपनी राय हमें एस एम् एस कर सकने हैं "" पुराना साहित्य क्या व्यंग्य था या हकीकत थी मसलन रीति काल - भवरे कमल समझ कर चेहरे पर मंडराया करते थे , अब या तो मुख कमल थे या भवरे वेबकूफ थे / राज कुमार नगर से जारहे हैं ऊपर झरोके में बैठी हुई को देखते हैं और बेहोश होकर गिर पड़ते हैं / आज के आयटम सोंग युग में वे होते तो तो न जाने कितनी बार मरते " सौ बार जनम लेंगे ,सौ बार फ़ना होंगे ऐ जाने वफ़ा फ़िर भी हम आयटम सोंग देखेंगे "
व्यंग्य मेरी समझ में बिल्कुल ही न आते हों ऐसी बात भी नहीं है / मैं मुंशी प्रेमचंद जी की कहानी पढ़ रहा था उसमें एक जगह महात्मा के वारे में पढ़ा "" तेजस्वी मूर्ती थी पीताम्बर गले में , जटा सर पर , पीतल का कमंडल हाथ में ,खडाऊ पैर में ,ऐनक आंखों पर , सम्पूर्ण वेष उन महात्माओं का सा था जो रईसों के प्रासादों में तपस्या , हवा गाड़ियों में देव स्थानों की परिक्रमा और योग सिद्धि प्राप्त करने के लिए रूचिकर भोजन करते हैं ""
यह भी मेरी समझ में आया कि सीता हरण में कंचन म्रग एक कारण था और जब सीता को खोजते राम बन में जाते है और उनसे डर कर हिरन भागने लगते है तो हिरनियाँ हिरनों से कहती है ""तुम आनंद करहु म्रग जाए , कंचन म्रग खोजन ये आए ""
मैं तो केवल यह नहीं समझ पाता हूँ कि पूरी रचना या लेख में केवल एक लाइन का व्यंग्य पूरी रचना को व्यंग्य बना देता है या कि जो लेखक व्यंग्य लेखक के रूप में ख्याति अर्जित कर चुका है उसकी कही गई या लिखी गई हर बात व्यंग्य हो जाती है कुछ लोंगों का विचार है कि राजनीति और राजनेताओं के वगैर व्यंग्य लिखा ही नहीं जासकता इन्हे केन्द्र में रखना ही पड़ता है, तो फ़िर टीका टिप्पणी ,आलोचना ,आक्षेप , उन्हें हास्य का केन्द्र विन्दु बनाना क्या व्यंग्य हो जाता है /
व्यंग्य हमेशा से लिखा जाता रहा है और लिखा जाता रहेगा दुनिया बनी यानी सेवफल खाने इत्यादि से लेकर लाल गेहूं खाने तक , बस इतना चाहता हूँ के मेरी समझ में आता रहे / या तो व्यंग्य इतना बड़ा होता है कि मेरे छोटे दिमाग में घुसता नहीं है या फ़िर दिमाग इतना बड़ा और खोखला है कि "" वदन पैठ पुनि बाहेर आवा, माँगा विदा ताहि सर नावा ""/ व्यंग्य हो तो ऐसा हो जैसे हम बचपन में आतिशीशीशा लेकर सूर्य की किरणों से अपने या अपने मित्र के शरीर पर जलन पैदा किया करते थे /

Sunday, September 14, 2008

आखिर वो नक़ल क्यों न करें

परीक्षा भवन में विद्यार्थी परीक्षा देते हैं ,उन्हें देना ही चाहिए =शिक्षक पर्यवेक्षक होते हैं / कभी कभी शिक्षकों को भी परीक्षा देना पड़ती है -शिक्षा का स्तर सुधारने के किए ,क्योंकि उनका ज़्यादा वक्त फोटो परिचय पत्र ,मतदाता सूची ,जनगणना ,पशुगणना में चला जाता है तो उन्हें शिक्षा का स्तर सुधारने के लिए पढ़ना और परीक्षा देना पढता है /
मैं एक समाचार पढ़ रहा था कि कुछ शिक्षक परीक्षा देरहे थे और साथ में नक़ल भी कर रहे थे -उनको पकड़ लिया गया और समाचार अख़बार में छप गया /में आश्चर्य चकित हुआ कि यदि नक़ल करने वाले छात्रों को पकड़ने वाले शिक्षकों ने नक़ल करली तो न तो यह दुःख की बात थी न समाचारपत्र में छपवाने लायक बात थी /इसमें कोई अचम्भे की बात नहीं थी /
अचम्भे की बात तो यह है कि वे पकड़े कैसे गए /यह तो निश्चित है कि उन्होंने पहली बार नक़ल नही की होगी /विधार्थी से शिक्षक बनने तक पचासों अवसर उनकी जिंदगी में आए होंगे और इतने अभ्यास के बाद भी कोई अपने प्रयास में सफल न हो पाये तो मन में दुःख जरूर होता है कि आज की पीडी कितनी निष्क्रिय होती जारही है /इतने अभ्यास के बाद तो इतने अभ्यस्त हो जाना चाहिए विदेशों में भी नक़ल कर आते और पर्यवेक्षक तो क्या गुप्तचर संस्था के बडे से बडे अधकारी भी न पकड़ पाते /
अब प्रश्न यह उपस्थित होता है कि वे पकड़े क्यों गए /क्या उस वक्त उनकी टेबल पर खुला हुआ चाकू नहीं रखा था , बाहर उनका कोई दादा मित्र नही खड़ा था ,क्या चिट इतनी बड़ी थी कि खाई नही जा सकती थी , चिट मोजे के अन्दर क्यों नहीं राखी गई , पकड़ने वाले को चांटा क्यों नहीं मारा गया , उसको बाहर देख लेने , उन पर तेजाब फैंक देने , उनके बच्चो के अपहरण की धौंस क्यों नही दी गई / क्या पकड़े जाने वाले लोग आर्थिक रूप से कमजोर थे ,क्या वे किसी पार्टी को विलोंग नहीं करते थे /
हमारा दुर्भाग्य है कि जहाँ प्रश्नपत्र अखवारों में पहले से ही छप जाते हैं या उसकी फोटो कापियां ५-५ सौ रुपयों में परीक्षा के पूव उपलब्ध हो जाती है वहां भी नक़ल करने की आवश्यकता महसूस होती है / जब तक परीक्षा पद्धति में आमूल -चूल परिवर्तन नहीं होगा यह समस्या विकराल रूप धारण करती ही रहेगी /सीधी सी बात है विद्यार्थी को कापी घर के लिए दे दी जाय और कोई भी पाँच प्रश्नों के उत्तर लिख कर विद्यालय में जमा करने की तिथि निश्चित कर दी जाए /विलंब शुल्क के सहित १५ दिन की एक और तारीख दे दी जाय ,एक तारिख अतिरिक्त विलंब के लिए और एक तारिख अत्यधिक विलंब के लिए /शुल्क प्रति विलंब दुगना चौगुना होते चला जाना चाहिए /इससे यह होगा कि प्रश्नपत्र बनबाने . उनको छपवाने का व्यय , उनकी गोपनीयता की सुरक्षा और गोपनीयता भंग होने पर आलोचना का भय और व्यर्थ की पेपर वाजी से बचा जा सकता है / क्या मतलब पहले शिक्षा जगत पेपर छापे , वही पेपर परीक्षा के पूर्व अखवार वाले छापें फिर आलोचनाएँ छपे ,फ़िर समाधान छपें और फिर दुबारा पेपर छापें , जांचें आदि करवाएं सो अलग /
नक़ल करना हमारा जन्मसिद्ध अधिकार है / अंग्रेजों की नक़ल हम आज तक करते चले आरहे हैं -फिल्मी हीरो गन की हेयर स्टाइल उनके कपडों की नक़ल , उनकी आवाज़ की नक़ल हम कर ही रहे है =अभी पिछडे क्षेत्रों में यह गनीमत है कि आयटम गर्ल की नक़ल अर्थात उनके कपडों की नक़ल विटियें नही कर पारही हैं /इस शर्मो- लिहाज ,बुजुर्गों के प्रति आदर सम्मान को आप कोई भी शब्द स्तेमाल कर सकते है मसलन बैकवर्ड -कूप मंडूक , ढोर ,गवांर , इल मेनर्ड आदि इत्यादि ,खैर
मजेदार बात ये है कि देश की न्याय प्रणाली में भी नक़ल का प्राबधान है /न्याय बिभाग - अदालत में खुले आम नक़ल होती है और इसके लिए उनहोंने एक अलग दफ्तर ही खोल रखा है / नक़ल करने वाले बाबू को सरकार भी पैसा देती है और पक्षकार भी / लेकिन एक बात है अदालत की नक़ल में अक्ल की आवश्यकता होती है फैसलों की यथावत नक़ल करना पढ़ती है , मिलान भी करना होता है जैसा शब्द लिखा है वैसा ही नक़ल करना पड़ता है , एक शब्द का उलट फेर भी गज़ब ढा देता है / अब तो खैरफोटोकोपी ,टाइप,कम्पुटर आदि अनेक साधन उपलब्ध हो चुके हैं मैं तो पुराने ज़माने की बात कर रहा हूँ एक जज साहेब ने फैसले पर दस्तखत करने के बाद फाइल बंद की तो उसमें एक मक्खी दब गई , मर गई बेचारे और क्या करती /फाइल कुछ दिनों के बाद नक़ल विभाग में पहुंची /बाबू साहेब नक़ल करते करते उठे -एक मक्खी मार कर लाये नक़ल के कागज़ के उस शब्द की नक़ल पर चिपकाई = इसे कहते है कापी टू कापी ,मक्खी टू मक्खी

Saturday, September 13, 2008

बरसात का मौसम लिखने का मौसम

आदि कल से जितने कवि शायर ,गीतकार हुए सभी ने ग्रीष्म और शीत ऋतू पर कम वर्षा ऋतू पर कुछ ज़्यादा ही लिखा है /किसी ने बदल डरावने बताये ,किसी ने उन्हें जुल्फें बताया , किसी ने हरियाली पर ,रिमझिम फुआरों पर मोर पपीहे पर सब पर लिखा /
सम्ब्हब है यह मौसम उन्हें रास आया हो , यह भी सम्ब्हब है उनके पास छाता रहता हो या पड़ोसी से उधार मिल जाता हो /यह भी हो सकता है की उनके बच्चे कापी किताब ,एडमीशन फीस आदि को परेशान नहीं करते होंगे या उनकी पत्नियों की ओर से आचार के लिए कैरी और सरसों के तेल की फरमाइश न की जाती होगी - हो सकता है वे कमरे से निकल बाथरूम तक प्लास्टिक या बोरी ओढ़ कर चले जाते होंगे /हो सकता है उनके मकान में सीलन न रहती हो और यह भी सम्भव है की कमरा उनका इतना बड़ा हो कि कि उसमें डोरी बाँध कर कपडे सुखा सकते होंगे और मकान मालिक डोरी बाँधने कील ठोक लेने देता होगा /यह भी सम्भव है कि उनके चड्डी बनियान सुखाने के लिए उनके घर में बिजली कि प्रेस रहती होगी /
किंतु यह तो सत्य है ही कि लिखने का मौसम तो बरसात का ही होता है / क्योंकि इन्ही दिनों कीडे पतंगे रोशनी के चारों ओर ऐसे चक्कर लगाते हैं जैसे किसी दफ्तर में एकाध पोस्ट निकलने पर शिक्षित बेरोजगार अपने अपने प्रमाण पत्रों का बण्डल लिए हुए चक्कर लगाने लगते हैं /उन बंडलों में मूल निवासी का प्रमाण पत्र भी होता है वह कैसे मिलता है लेने वाला जनता है वैसे देने वाला भी क्या पता जनता होगा या नहीं ,पता नही, क्योंकि वहां तो इकट्ठे दस्तखतों के लिए कागज जाते है -किसने क्या किया उसे कहाँ पता चल पाता है =है दुष्यंत कुमारजी को पता चल गया था तो उनहोंने कह दिया कि ""यहाँ तक आते आते सूख जाती है सभी नदियाँ ,हमें मालूम है पानी कहाँ ठहरा हुआ होगा ""/बरसात के मौसम में जगह जगह पानी गड्ढों में ऐसे एकत्रित हो जाता है जैसे साहित्यकार कर्मचारी के टेबल पर फाइलें जमा हो जाती हैं/ बिजली ऐसे चमक जाती है जैसे किसी शोकसभा में नेताजी मुस्करा रहे हों , बदल ऐसे गरजने लगते है जैसे कोई क्रोधी व्यक्ति पूजा पाठ कर रहा हो / कभी कभी पानी बॉस के गुस्से की तरह बडी बडी बूंदों से गिरता है /धूप के दरसन दुर्लभ हो जाते है जैसे वार्ड मेम्बर के वार्ड में और चिकित्सक के अस्पताल में / कपडे सुखाने लोग ऐसे तरस जाते है जैसे कर्मचारी महगाई भत्ते को / मक्खी मच्छर जनसँख्या की मानिंद बड़ते चले जाते है और छितराए बदल इधर उधर ऐसे भाग ने लगते है जैसे जुए के अड्डे पर पुलिस की रेड पडी हो/
इस मौसम में बरसात की बूंदों के साथ आदमी वैसे ही नाचने लगता है जैसे पड़ोसी का बच्चा फ़ैल हो जाए ,लडकी कहीं चली जाए या मियां बीबी में झगडा होजाए ,देख कर पड़ोसी नाचता है / पक्षियों के साथ वह ऐसे गाने -गुनगुनाने लगता है जैसे शोर पोलुशन के प्रभाव को न जानने वाले किंतु शिक्षित लोग मोहल्ले में माइक लगा कर रात भर कीर्तन करते है / बादलों के साथ वह ऐसे उड़ने लगता है जैसे चुनाव जीत कर लोग हवाई जहाज़ में उड़ते हैं /मोरों के साथ वह ऐसे झूमने लगता है जैसे अपराधी लोग उनके बॉस के वरी होने पर शेम्पेन खोल कर झूमते हैं/
कभी कभी बदल इतने नीचे आजाते है जैसे एयर कंडीशन कार से उतर कर कोई मोहल्ले मोहल्ले वोट मांग रहा हो /बादलों के कारण निस्तेज तारे -बादलों को हटाने हेतु हवा से गटबंधन करते है ताकि हवा बादलों को उड़ा लेजाये और फिर वे अपनी छवि जनता को दिखा सकें और डरते भी है कि कहीं ऐसा न हो जाए कि बदल और हवा का ही कहीं गठबंधन न हो जाए /
जैसे कारण ,कर्ता और कर्म इन तीनो चीजों से ही कर्म पूर्ण माना जाता है वैसे ही एडमीशन फीस .कापी किताबों और छाता रेन कोट से मानसून सत्र पूर्ण होता है /जैसे ज्ञान ज्ञेय और परिजाता से कर्म की प्रेरणा होती है वैसे ही फीस किताबें छाता आदि से प्रोविडेंट फंड से एडवांस लेने की प्रेरणा होती है / कोई अपने बच्चे का मुंडन , तो कोई कर्णछेदन कराता है तो कोई अपनी पत्नी को ही बीमार कर देता है / वे कह रहे थे कि पत्नी का वास्तविक उपयोग यही है कि कर्मचारी वक्तन फ वक्तन पत्नी को बीमार करता रहे और प्रोविडेंट फंड से कभी टेम्परेरी ,कभी पार्ट फाईनल निकलता रहे /
इस मौसम में सबसे बड़ी परेशानी का सवव होता है छाता /क्योंकि भीगते तो छाता में भी है मगर शराफत से / अब आप बताइये जब छाता एक आदमी को भी नहीं बचा पाता बरसात से, तो ऐसे में यह गाने की क्या जरूरत है कि ""मेरी छतरी के नीचे आजा क्यों भीगे .......खड़ी खड़ी /एक तो दिक्कत यह है कि छाते खोते बहुत है /दफ्तर ले गए ,खोला ,सूखने रख दिया ,शाम को पानी बंद हो गया भूल आए /असल में कर्मचारी साडे पाँच बजते ही ऐसे भागते है कि दस मिनट भी रुक गए तो अनर्थ हो जाएगा / अगर बॉस छुट्टी पर हो तो पाँच बजने का भी क्या मतलब / दूसरे दिन तलाशेंगे -फिर मिलता है क्या / एक दिन वे छाते पर अपना नाम लिखवा रहे थे = बोले खोयेगा नहीं /मैंने कहा जब कोई तेरा छाता उठा कर ले जाएगा तो तेरा नाम,चिल्लाएगा क्या कि यह मुझे ले जा रहा है /मगर नहीं माने नाम लिखवा ही लिया /
सच है बरसात किसी के लिए मुसीवत है ,किसी के लिए मसर्रत है ,किसी के लिए हकीकत है तो कवियों और लेखकों को प्रेरणा प्रदान करने वाली है

कवि गोष्ठी

ऐसा लगता है कि कवि गोष्ठीयों में दिलचस्पी रखने वाला साहित्य प्रेमी आज वंचित हो गया है या यह भी कह सकते हैं कि वंचित कर दिया गया है /महत्त्व पूर्ण कवि साथी लगातार ऐसे कार्यक्रमों का आयोजन करते रहते हैं क्यों कि कवि अपनी बात कहना चाहता है वोह उत्सुक है अपनी सुनाने को अपनी छपाने को साथ ही उसकी यह शिकायत कि उसकी रूचि अनुकूल श्रोता नहीं मिल पाते हैं /कवियों के पास विपुल सामग्री है नगर में साहित्यकारों की कमी नहीं फिर भी कवि गोष्ठियों में श्रोता दिखाई नहीं देते /अब या तो वे आते नहीं या बुलाए जाते नहीं "हमसे आया न गया तुमसे बुलाया न गया "

मानवीय मनोब्रत्ति कि सच्चाई छूकर साहित्य सृजन कर कवि उसे अभिव्यक्त करना चाहे और उसे उपयुक्त पात्र न मिले या मिलने पर उसके सराहना न करे तो साहित्यकार को म्रत्यु तुल्य पीड़ा ( वह जैसी भी होती हो ) होना स्वाभाविक है -यही पीड़ा सम्पादकीय अनुकूलता न मिलने पर भी होती है तो ऐसे कवियों या लेखकों को यह कहने पर विवश होना पढता है कि हम तो ""स्वांत सुखाय " लिख रहे हैं /मैं भी पहले लेख लिख कर भेजता था और खेद सहित वापस आजाता था तो उसे स्वांत सुखाय के पेड़ में बाँध दिया करता था /१५ साल पुराने स्वांत सुखाय वाले लेख जब आज पढता हूँ तो लगता है कि सम्पादक सही थे वे लेख पाठक दुखाय ही थे / कमोवेश हर कवि कि इच्छा होती है कि वह अपने यहाँ गोष्ठी आयोजित करे मगर या तो वह किराये के मकान में रहता है या पुराने पुश्तैनी मकान में - जिनमें बड़े हाल का अभाव रहता है = हालाँकि वोह चाय पानी फूल माला सब की व्यवस्था अपनी आर्थिक तंगी के वावजूद करना चाहता है मगर उसके बच्चे बच्चियां इसे व्यर्थ का हुल्लड़ कहकर उसकी इच्छा को दवा देते हैं/
पत्नियाँ तो खैर पतियों से नाराज़ रहती ही हैं क्योंकि वे गोष्ठियों से देर रात घर लौट ते हैं /पत्नी आर्थिक 'मानसिक 'शारीरिक सब कष्ट वर्दाश्त कर सकती है -किंतु पती का देर रात लौटना उसकी वर्दाश्त से बाहर है क्योंकि उधर कवि ज्ञान बघारते रहते है और इधर ये सब्जी बघारती रहती है /
अब कवि को गोष्ठी में बुलाया है और वह दोराहे पर खड़ा है " मैं इधर जाऊं या उधर जाऊं " और कविता का नशा उसे गोष्ठी की ओर खींच ले जाता है / आयोजक समय देता है ८ बजे कवि एकत्रित होते हैं दस बजे तक / कुछ कवि तो इतनी देर से पहुँचते हैं के तब तक आधे से ज़्यादा कवि पढ़ चुके होते हैं /इसमे एक फायदा भी है की उन्हें ज़्यादा देर इंतज़ार नहीं करना पड़ता और जाते ही सुनाने का नंबर लग जाता है /
गोष्ठियों में अब जो अपनी सुना चुके है बे वहाँ से खिसकने के मूड में होते है /सबसे सुगम रास्ता कान पर जनेऊ चढाया और उठ खड़े हुए गोया आते हैं अभी / कुछ लोग जनेऊ पहनते ही इसलिए हैं की वक्त वेवक्त काम आता रहे /अब जो बड़ी बड़ी डायरिया और बही खाते लेकर पहुँचते है उनको खिसकने में दिक्कत होती है अध्यक्ष बेचारा फंस जाता है भाग भी नही सकता और उसे सब से अंत में पढ़वाया जाता है जब तक चार -पाँच लोग ही रह जाते है / मैंने देखा है अखंड रामायण का पाठ -१२ बजे रात तक ढोलक मंजीरे हारमोनियम =दो बजे तक तीन चार लोग रह जाते है एक जो व्यक्ति तीन बजे फंस गया सो फंस गया सुनसान सब सो गए इधर इधर देखता रहता है और पढता रहता है काश कोई दिख जाए तो उससे पञ्च मिनट बैठने का कहकर खिसक जाऊँ -मगर कोई नहीं =न बीडी पी सकता है न तम्बाखू खा सकता है /तीन से पाँच का वक्त बडा कष्ट दाई होता है /सच है भगवान् जिससे प्रेम करते है उसी को कष्ट देते हैं इससे सिद्ध हो जाता है की तीन बजे से पाँच बजे तक पाठ करने वाले और गोष्ठियों के अध्यक्ष से ही भगवान् प्रेम करते हैं /
कवि की कविता पूर्ण होने पर दूसरे कवि तालियाँ बजाते है और बीच बीच में बाह बाह करते रहते है -आह कोई करताइच नई -क्योंकि उन्हें भी सुनना है /वास्तव में तालिया इस बात का द्योतक होती है कि प्रभु माइक छोड़ अपनी सिंहासन पर विराजमान होजाइये मगर जब वह वहीं बैठ कर डायरी के पन्ने पलट कर सुनाने हेतु और कविताये ढूढने लगता है तो शेष कवियों के दिल की धड़कन बढ़ जाती है चेहरे की रोनक विगड़ने लगती है / उधर कवि भी तो कहता है कि एक छोटी सी रचना सुनाता हूँ और फ़िर शुरू होजाता है -शेष कवियों कि भी कोई गलती नही वर्दाश्त कि भी हद होती है /क्योंकि कवि का जब तक नम्बर नही आता सुनाने का तब तक उसे गोष्ठी में बड़ा आनंद मिलता है और ज्यों ही उसने अपनी सुनाई उसे संसार नीरस प्रतीत होने लगता है बोर होने लगता है सोचता है माया मोह के बंधन सब झूंठे है वह स्थित प्रज्ञ सन्यासी की भांति निर्वाक और निस्पंद /
कुछ श्रोता है जो वाकई गोष्टी का आनंद लेना चाहते है उनको तो बेचारों को टीबी पता चलता है जब दूसरे दिन लोकल समाचार पत्र में छपता है कि किसने क्या कहा /पेपर में नहीं छापा तो गोष्ठी का मतलब ही क्या /सबसे पहले कवि उसमें अपना नाम देखता है इत्तेफाकन किसी कवि का नाम छूट जाए तो आयोजक और सचालक की खैर नहीं

Tuesday, July 15, 2008

सवाल पहले और बाद का

कहते हैं की माल पहले मिले और चोरी बाद में पकडी जाए तो समाचार पात्र में प्रकाशित योग्य समाचार बनता है =वास्तव में होना तो यह चाहिए कि चोरी कि रिपोर्ट के वाद इत्तेफाकन माल कि बरामदगी हो जाए तो मुख प्रष्ट पर प्रकाशित होने योग्य समाचार बनता है
माल का पकड़ा जाना अपने आप में एक महत्त्व पूर्ण घटना होतीहै =एक अधिकारी दौरे पर गए =उन्होंने तीन तहसील मुख्यालयों का मुआयना किया -दौरा करके लौटे तो पाया कि महगी रिस्टवाच कहीं फ्रेश होते समय रह गई =पी ऐ ने तीनों जगह फोन कर दिया -घड़ी की मेक हुलिया आदि बतला दिया =कहते है कि दूसरे दिन साहिब सुबह बाथरूम गए तो घड़ी बात रूम में मिल गई =कहते है कि तीनो जगह फोन लगाया गया कि घड़ी मिल गई है तलाश न की जाए =यह भी कहते हैं कि तीनों जगह से जवाब आया =यह आप क्या कह रहे है सर -घड़ी जप्त की जा चुकी है =मुलजिम कोगिरफ्तार किया जा चुका है और मुलजिम ने अपना इक्वालिया बयान देकर जुर्म कुबूल भी कर लिया है
ऐसी बहुत सी बातें हैं किपहले क्या होना चाहिए और बाद में क्या होना चाहिए और लगभग सभी बातें अनुत्तरित हैं -पहले मुलजिम को गिरफ्तार किया जाना चाहिए फिर माल बरामद करना चाहिए या पहले माल बरामद करना चाहिए =पंचनामा बना कर माल बरामद करना चाहिए या माल बरामद करके पंचनामा बनाना चाहिए =पहले शादी होना चाहिए फिर प्यार होना चाहिए या पहले प्यार होना चाहिए =पहले एन्कौन्टर होना चाहिए फिर अपराधी को गोली मरना चाहिए या पहले गोले मार देना चाहिए फिर एनकाउंटर दिखाया जन चाहिए =पहले क्षमा याचना करना चाहिए या पहले अभद्रता करके फिर मुआफी मांगना चाहिए =किसी को टक्कर मार कर पहले गाली देना चाहिए फिर क्षमा मांगना चाहिए या पहले सॉरी बोल देना चाहिए फिर गाली देना चाहिए =आजकल के लड़के करते हैं न -तेज़ गाड़ी चलाएंगे टकरायेंगे और सॉरी बोल देंगे यदि टक्कर खाने वाला कुछ फिर भी कहता है तो कहते है अबे साले सॉरी बोल तो दिया और क्या तेरे पैर पड़ने लगें -अब सीधी तरह से चला जा बरना ........
क्या हुआ कि किसी ने युद्दसिंह जी को गधा कह दिया -क़ानून के जानकर थे -दफा ५०० का अर्थ बखूबी समझते थे सो मान हानी का दावा कर दिया =हालाँकि ऐसे मुक़दमे बमुश्किल तमाम साबित होते है लेकिन युध्य सिंह जी रसूखदार इज्जत दार थे सो जुर्म सिद्ध हो गया नेक चलनी कि जमानत हो गई भविष्य में ऐसा न करने कि हिदायत मिल गई =अपराधी बोला हुज़ूर में कान पकड़ता हूँ अब कभी इन्हे गधा नहीं कहूंगा -मगर सरकार एक बात बता दीजिये कि किसी गधे को तो युध्यसिंह कह सकता हूँ -अदालत ने आई पी सी की दफा ४९९ का आद्योपांत अध्ययन करके कहा कि भाई इसमें तो ऐसा लिखा है कि किसी व्यक्ति को बोल कर -लिखकर -पढ़कर छाप कर अपमानित करेगा =और चूंकि गधा व्यक्ति नहीं है तो उसे आप जो चाहे कह सकते हैं =अदालत को धन्यबाद देकर जाते वक्त अपराधी ज़ोर से बोला ++नमस्ते युध्यसिंह जी
पहले बोलना चाहिए फिर सोचना चाहिए या पहले सोचना चाहिए फिर बोलना चाहिए क्योंकिअगर सोच कर बोला तो सुनने वाला एक किलोमीटर तक जा चुका होगातब बोलना शुरू होगा =कहते है कि पति नामक प्राणी सोच कर बोलता है और पत्नी बोल कर सोचती है =झगडा हुआ तो पति गुस्से में बोला -हे प्रभु =तेरी दुनिया में दिल लगता नही बापस बुलाले हे मालिक उठाले =पत्नी भी रोते हुए कहने लगी प्रभु मुझे भी उठाले -सुन कर पति बोला प्रभु ऐसी बात है तो में अपनी प्रार्थना बापस लेता हूँ और गाने लगा -जीना यहाँ मरना यहाँ इसके सिवा जाना कहाँ =खैर -शादी से पहले अपने सारे अफेयर्स बता देना चाहिए या शादी के बाद धीरे धीरे बतलाना चाहिए =पहले विरोध करना चाहिए फ़िर समझोते का अर्थ समझना चाहिए या पहले अर्थ समझना चाहिए फिर विरोध करना चाहिए = मुशायरे या कविसम्मेलन में पहले शेर समझना चाहिए फिर दाद देनी चाहिए या पहले दाद दे देना चाहिए फिर अर्थ समझना चाहिए -एक कवि सम्मलेन में कविकी दाढ़ में दर्द हो रहा था बेचारा परेशां था कि नाम पुकार लिया गया -माइक पकड़ते ही बेचारे ने कहा " आज मेरी दाढ़ में दर्द है " श्रोताओं में से आवाज़ आई "वाह वाह क्या बात है -क्या तसब्बुर है क्या जज्वात है साथ ही मुक़र्रर की आवाजें भी
पहले चूहों को गिन कर किसी अस्पताल में मौजूद चूहों कि संख्या बतलाना चाहिए या पहले संख्या बतला देना चाहिए फिर गिनती करना चाहिए और भी बहुत सी बातें हैं मसलन सब कुछ लुटा का होश में आना चाहिए या होश में आकर सब कुछ लुटा देना चाहिए =पुत्र कुपुत्र हो तो धन संचय करना चाहिए या धन संचय करके सुपुत्र को कुपुत्र बना देने में सहायक होना चाहिए / एक बात और कोई रचना लौटा कर लेखक के प्रति खेद व्यक्त कर देना चाहिए या उसे प्रकाशित करके पाठक के प्रति खेद प्रकट क्र देना चाहिए और यह भी कि किसी के जख्मों पर नमक छिड़क क्र हसना चाहिए या किसी के ज़ख्मों पर हंस हंस कर नमक छिड़कना चाहिए

Monday, July 14, 2008

kavi na houn nahi chatur kahavahun

कवि न होऊ नही चतुर कहाबहूँ

बात पुरानी किंतु सत्य -समाचार पत्रों से प्रमाणित सत्य -पनामा में एक कवि को इसलिए नौकरी से निकल दिया गया था क्योंकि वह कविताये करता था विश्वास न हो टू जनवरी से मार्च ९७ के समाचार पत्र उठा कर देखें -
अब कवि है तो कविताएँ तो करेगा ही- जिसप्रकार किसी जगह नियुक्ती हो जाने पर पुलिस वेरीफीकेशन बुलवाया जाता है उसी तरह पहले यह प्रमाणपत्र भी मगवाया जाना चाहिए की ये सज्जन कहीं कवि तो नहीं हैं या फिर आवेदक से शपथ पत्र लेना चाहिए की वह कवि नहीं है या दौरान सेवा वह कविताएँ नहीं लिखेगा -
कहते है कवि पैदा होता है बनता नहीं है वहीं यह भी कहा गया है की कब कौन कवि बन जाए कहा नहीं जा सकता - मौत -ग्राहक और कवित्व भाव का कोई भरोसा नहीं कब आजाये -तो ऐसी स्थिति में अव्वल तो कवि को नौकरी ही नहीं करना चाहिए और अगर नौकरी में रहते साहब की डाट फटकार -पत्नी की लताड़ -बच्चों की उद्दंडता -महगाई -तंगी -चिंता -तनाव -अशान्ती और बेचेनी गहन निराशा व दुःख इत्यादी से उसमें कवित्व भाव जाग्रत हो जाए तो उसे स्वयम ही तत्काल नौकरी छोड़ देना चाहिए और ==बडे बे आबरू होकर तेरे कूचे से हम निकले =से बच लेना चाहिए
शादी से पहले और नौकरी से पहले व्यक्ति वास्तव में कवि होता ही है वह चाँद -सितारे -बसंत -पुष्प -मोर -चातक -पपीहा सब पर लिखता है और सचोट लिखता है लेकिन शादी के बाद वह लिखता है आधा किलो आलू -सौ ग्राम मिर्च पर =एक किलो तेल पर -राशन की दुकान पर -चाँद सितारे उसके दिमाग में आते ही नहीं वह चाँद देखता है तो उसे रोटी दिखाई देती है -पूनम का चाँद यानी पूरी रोटी और अस्ट्मी का यानी आधी रोटी-
नौकरी तो कवि पुराने जमाने में भी करते थे और राज्य द्वारा उन्हें धन व सत्कार भी दिया जाता था भूषन आदि इसके प्रमाण हैं आम लोग भी कवियों को आमंत्रित करते थे और पारिश्रमिक कहो या कुछ भी कहो -विदाई के वक्त कुछ देते थे -यह इस बात से प्रमाणित होता है की =कवि को देन न चाहे विदाई पूछो केशव की कविताई =
वैसे भी आजकल नौकरी उन्ही की सही सलामत है जो यह सिद्धांत रखते है की =कवि न होऊ नहि चतुर कहावहूँ रुची अनुरूप साहब गुन गावहूँ= जो कवि नौकरी करते हैं वे अक्सर उदास ही रहते हैं कविता का मूड बनते ही बच्चे की फीस याद आने लगती है
मेरी बात सुनने में बडी अटपटी व बेहूदा लगेगी -मगर सत्य मानिए आज दुनिया में सबसे ज़्यादा कवि व शायर हैं मैं तो कवि गोष्टियों में देखता हूँ न -बहुत प्रचार प्रसार के बाद श्रोता तो कोई आते ही नहीं २५-३० कवि आते हैं हाथों में मोटी मोटी डायरियाँ लेकर रोकड़ वही खाता लेकर =अपना नम्बर आया रचना सुनाई वाह वाह सूनी अपना स्थान ग्रहण किया थोड़ी देर बैठे और खिसकने की जुगाड़ जमाने लगते हैं समापन के वक्त रह जाते है ७-८ कवि वो तो अच्छा है की आयोजक चाय नाश्ता सबसे आख़िर में रखता है - वाह वाह क्या बात है क्या तसब्बुर है क्या जज्बात है यह बोलना कवि गोष्ठी में जरूरी होता है तुम नही कहोगे तो तुम्हारी पर कौन कहेगा
पहले लेखक कम थे पाठक ज़्यादा आज लेखक ज़्यादा है पाठक मिलते ही नहीं -मुझे बचपन में किताबें ही नहीं मिली १४ साल का होते होते -किस्सा तोतामेना -सिंहासन बत्तीसी -बैताल पच्चीसी -चंद्रकांता संतति -भूतनाथ ही पढने को मिले जब शहर आया टीबी उपन्यास मिल पाये -आज किताबें है तो बच्चों को साहित्य में रूचि नहीं है
वैसे आचरण संहिता के मुताबिक कोई सेवक कविताएँ व लेख नहीं लिख सकता न प्रकाशित करवा सकता - वह किसी साहित्यिक समारोह दी अध्यक्षता नहि कर सकता =हाँ वह कार्यालय के समय में या समय उपरांत दारू पी सकता है -प्लाट खरीदने के नाम से फर्जी लोन प्राप्त कर सकता है -स्वस्थ पत्नी को बीमार बताकर उसके इलाज के पैसे ले सकता है किसी क्लब का सदस्य हो सकता है डांस बार में नाच गाने देख सकता है मगर कविताये न तो कर सकता है न छपवा कर कुछ पारिश्रमिक प्राप्त कर सकता है
समसामयिक मुद्दे पर संयत भाषा में साचोट कटु सत्य की अभिव्यक्ति कवि को नौकरी से हाथ धुल्वा सकती है- इसीलिए दुष्यंत जी ने ऐसे कर्मी कवियों को सावधान किया था की ==मत कहो आकाश में कुहरा घना है -यह किसी की व्यक्तिगत आलोचना है -एक प्रसिद्ध शायर ने भी सावधान किया था की =मुमकिन हो कल जुबानो कलम पर हों बंदिशे -आंखों को गुफ्तगू का सलीका सिखाइये

Yog se badh kar hai yogaa

योग से बढकर है योगा

योग तो पुरानी बात है अत उन्होंने योगा करने की ठानी -वैसे भी कुछ लोगों के लिए योगा लाभ की बजाय फेशन की बस्तु ज़्यादा है उनके आधे मोहल्ले और जान पहचान वालों को विदित हो चुका है की श्री मान जी योगा करते हैं फिर भी उनके बच्चों की यही इच्छा रह्ती है की दोराने योगा कोई आए उनसे पापा के वारे में पूछे और वे फक्र से बताएं की पापा इस वक्त योगा कर रहे हैं
इसके लिए उन्होंने २५ मिनट का समय चुना घर के सब सदस्यों को निर्देश था की इस अवधि में सब चुप रहें - पापाजी डिस्टर्ब न हों इसलिए बडी लडकी कमरे के किवाड़ बंद करके अंदर से सांकल चढा देती और बाहर से छोटी लडकी किवाड़ ठोकती रहती रोटी चिल्लाती रहती पत्नी झुंझलाती रहती और लड़का आवाज़ बंद करके किरकेट मैच देखता रहता - जब वे योगा करने बैठते तो घड़ी सामने रख लेते -शांती से बैठने में इन पच्चीस मिनट में वे ३५ बार आसन बदलते और ७५ मरतबा घड़ी देखले की कब पच्चीस मिनट पूरे हों और वे शबासन में लेटें
जैसे साल में दो बार नौ दिन तक पारायण करने वाले पहले से ही विश्राम पर निशान लगा देते हैं और आधे घंटे बाद ही शेष बचे प्रष्ठ गिनने लगते हैं फिर बचे हुए दोहे गिनने लगते हैं और जैसे जैसे विश्राम नजदीक आने लगता है उन्हें विश्राम मिलने लगता है -ठीक वैसे ही जैसे जैसे सुई पच्चीस मिनट की और बढ़ती इनकी प्रसन्नता बढ़ने लगती -इनके चेहरे की प्रसन्नता देख कर बच्चे समझते की पापाजी को योगा से ब्लेसनेस प्राप्त हो रही है
` शबासन उन्हें अत्यन्त प्रिय लगा जैसे अजगर से कह दिया जाए की तुम १५ मिनट चुपचाप पडे रहो या उन शंकर जी से जो "शंकर सहज सुरूप तुम्हारा -लगी समधी अखंड अपारा और =बीते संबत सहस सतासी -तजी समधी संभु अविनासी से कहा जाए तुम दस मिनट का मेडी टेशन 'क्या फर्क पढेगा वैसे ही तो वे यूँ ही दिनरात पलंग पर डले रहते है अब तो शब आसन है -पहले तो पत्नी की टोकाटाकी थी सब्जी ले आते -चक्की पर चले जाते -एकाध बाल्टी पानी भरवा देते आदि इत्त्यादी -अब तो योगा है कोई रोक टोक ही नहीं
किताबी निर्देशों के मुताबिक वे कमर सीधी करके बैठते मगर आदत के मुताबिक आधा मिनट में ही कमर झुकजाती -ध्यान के क्षेत्र में इसे सुबह लक्ष्ण माना जाता है - बशर्ते कमर ध्यान में डूबने पर झुके मगर यहाँ तो आदतन झुक रही है -शायद दुश्यन्त्जी ने ऐसे ही मोकों के लिए कहा होगा =ये जिस्म बोझ से दबकर दुहरा हुआ होगा -में सजदे में नहीं था आपको धोका हुआ होगा =
आज उनके पास योगा का सचित्र और विचित्र -प्राचीन और नवीन हिन्दी और अंग्रेज़ी भाषा में बहुत सा साहित्य एकत्रित हो गया है -पतंजली जी ने जितने आसन बताए होंगे उनसे ज़्यादा ये जानने लगे हैं -योगी वशिष्ठ ने योग से जितने लाभ बताए होंगे उनसे ज़्यादा योगा से होने वाले लाभ इन्हें याद हैं
एक दिन मैंने उनसे पूछा की तुम मेरे अज़ीज़ हो -ये किताबी ज्ञान मुझे मत बतलाना -ये तो सब मैंने भी पढ़ सुन रखे हैं -तुम तो यह बतलाओ की तुम्हे हासिल क्या हुआ -क्या उपलब्धी हुई =तो उन्होंने शेर के गले में फंसी हड्डी का किस्सा सुना दिया की अगर शेर के गले में फंसी हड्डी लम्बी चोंच वाला सारस निकाल दे और शेर से पारिश्रमिक या ईनाम मांगे -तो भइया सबसे बडा ईनाम तो यही है की चोंच साबुत बाहर निकल आई इसी प्रकार सबसे बडी उपलब्धी तो यही है की वर्तमान शोर प्रदूषण के युग में हमारा परिवार आधा घंटा चुप रहकर विश्व की सेवा कर रहा है
शोर से होने वाली हानी के बारे में आम लोगों को जानकार नहीं है -जिनको जानकारी है वे खामोश है -हवाई जहाज -मोटर -ट्रक -रेल फेक्टरी आतिश्वाज़ी पठाके लाउड इस्पीकर फुल आवाज़ में अपने घर में रेडियो या टी वी चलाना इनसे दिल के रोगी को -नवजात शिशु को -अशक्त ब्रद्धों को -गर्भवती महिला को क्या क्या नुकसान होते है हम नहीं जानते =रेलवे लाइन के निकट वाशिंदों को क्या क्या रोग घेर लेते है यह भी हमको पता नहीं है =दीवाली पर पठाके चलाने वाबत सुप्रीम कोर्ट ने क्या निर्देश दिए थे हमने उन्हें कितना माना =बोलने से कितना नुकसान होता है हमें पता नहीं =गंभीर रोगी को डाक्टर बोलने से क्यों मना करता है सोचा नहीं
उनकी बात मुझे सटीक लगी काश हम भी थोड़ा थोड़ा चुप रहकर वातावरण में फैल रहे शोर प्रदूषण को कम करने में सहायक बनें

Sunday, July 13, 2008

दुखडा कासे कहूं

स्कूल और कालेज शासकीय काम काज की तरह धीरे धीरे खुलने लगे -बच्चे कामकाजी महिलाओं की तरह व्यस्त होने लगे -घरों में योगी के मन की तरह शान्ति और विद्यालयों में संसद की तरह अशांति का वातावरण निर्मित होने लगा - माँ-बाप को ऑडियो और बीडियो केसेट के शोरगुल से रहत मिली - जगह जगह कामिक्स किराये पर देने वाले अन्य व्यवसाय की तलाश करने लगे और विद्यार्थी रूपी पुत्र -पुत्री के स्कूल कालेज चले जाने और कर्मचारी रूपी पति के ऑफिस चले जाने से पत्नियाँ अकेले बोर होने लगी =उन्होंने पडोसिन को आवाज़ दी बहन क्या कर रही हो -झाडू लगा रहीं हूँ -यहीं आकर लगालो न में अकेले बोर हो रही हूँ =
कुछ पिता गण अपने पुत्र के भविष्य के साथ अपने भविष्य के प्रति चिंतित होने लगे =भविष्य के प्रति चिंतित होना मानव स्वभाव है और कुछ दुकाने हजारों सालों से आदमी की इसी मनोवृत्ति के कारण चल रही हैं =हर व्यक्ति अपना भविष्य जानना चाहता है =हाथ दिखता है जन्म कुंडली दिखता हैवे कह रहे थे ==अपने हाथों की लकीरें तो दिखादूं लेकिन -क्या पढेगा कोई किस्मत में लिखा ही क्या है == खैर -एक नव विवाहित जोड़ा एक ज्योतिषी के पास पहुंचा =ज्योतिषी ने पत्नी से पूछा क्या आप अपने पति का भविष्य जानना चाहती हैं - वह बोली आप तो इनका अतीत बतला दीजिये इनका भविष्य तो अब मेरे हाथ में है
ग्रामीण अंचलों के गुरुकुल रूपी विद्यालयों के मास्साब एक दूसरे से संपर्क करने लगे क्योंकि दोनों को मिल कर एक एक हफ्ता ड्यूटी देना है और ६-६ दिन के आकस्मिक अवकाश की दरखास्तें एक दूसरे को प्रदान करना है =शासकीय नियम के वावजूद वहाँ केजुअल लीव का रजिस्टर मेंटेन नहीं होता है क्यों किकोई केजुअल लीव का लाभ उठता ही नहीं है
रेगिंग प्रथा से जूझने के लिए विद्यार्थी किसी टायसन जैसे गुरु से शिक्षा लेने को बैचेन हैं और डोनेशन प्रथा से जूझने के लिए पिता श्री किसी मेहता जैसे गुरु से शिक्षा लेने दो वेताब है =वैसे वर्तमान छोटे छोटे स्कूलों की फीस वही से मिलने वाली किताबें और कॉपियाँ और ड्रेस वस्ते की कीमत किसी बड़े स्कूल के डोनेशन से कम नहीं बैठती
मैं अपना दुःख किसी से नहीं कहता -मगर सोचता हूँ की इस रेगिंग प्रथा को इस देश में प्रचलित करने वालों ने खेवर और बोलन के दर्रे से प्रवेश किया अथवा वे जल या वायु मार्ग से आए =क्यों कि इस प्रथा को चालू करने में विदेशी ताकतों के हाथ होने की संभावनाएं इसलिए भी बलवती हैं क्योंकि इतिहासवेत्ता बतलाते हैं कि सिन्धुकालीन सभ्यता में कोई चिन्ह उन्हें इस प्रथा के नहीं मिले और पुरातत्ववेत्ता बतलाते हैं कि मोहन जोद्रो और हरप्पा की खुदाई में उन्हें इस प्रथा के कोई अवशेष नहीं मिले =प्राचीन ग्रंथों के अनुसार गुरुकुलों में भी यह प्रथा नहीं थी
प्रथाये दो तरह की होती हैं अच्छी व् बुरी -यदि यह प्रथा अच्छी है तो इसका व्यापक प्रचार व् प्रसार होना चाहिए -प्राईमरी स्कूलों में भी यह प्रथा डाली जाना चाहिए -शासकीय और अर्धशासकीय कार्यालयों में भी इसे लागो करना चाहिए दूर दर्शन और समाचार पत्रों में शाश्कीय विज्ञापन देने चाहिए =और यदि प्रथा बुरी है और इसकी वजह से किसी जूनियर की जान भी जा सकती है और शिक्षा जगत पर लगा हुआ यह एक धव्वा है तो शिक्षित बनने -बच्चियों को शिक्षित बनने कि प्रेरणा वाले विज्ञापन टीबी पर बतलाने चाहिए क्योंकि विधार्थी और बच्चे टीबी से बहुत ज़ल्दी सीखते है =वे सीख जाते हैं कि कैसे कक्षाओं की कार्यवाही नहीं चलने देंगे -सब एक साथ बोलेंगे -कोई किसी कि नहीं सुनेगा -शिक्षक के बार बार अनुरोध करने पर भी शांती से अपनी शीट पर नहीं बैठेंगे -शिक्षक का घेराव करेंगे आदि इत्यादि -यह सब वे लाइव टेलीकास्ट से मार्गदर्शन प्राप्त कर रहें हैं
डोनेशन वाला दुःख भी में किसी से नहीं कहना चाहता -क्योंकि यह एक अंग्रेज़ी शब्द है और अंग्रेजी शब्द की बुराई करने पर सारे विश्व के अंग्रेज़ी प्रेमियों पर प्रतिकूल प्रभाव पड़ सकता है - इसका हिन्दी शाब्दिक अर्थ है अनुदान =दान की बुराई और इस देश में -गज़ब हो जाएगा-यहाँ गाय का दान इसलिए होता क्योंकि उसकी पुँछ पकड़ क्र बैतरनी पार की जाती है =गाय न हो तो गाय के पैसे भी दान में गाय के नाम पर दिए जा सकते हैं मज़ा देखिये ११ रुपे में भी गाय आ सकती है =सब दानों में श्रेष्ठ विद्यादान है और विद्यादान का स्थल शाला है और शाला का विकास आवश्यक है तो शाला के विकास के लिए अनुदान आवश्यक है = जब शिक्षकों का विकास होगा तो विद्यार्थियों का विकास होगा और विद्यार्थी देश का भविष्य हैं तो देश का विकास भी होगा -गोया शाला विकास के लिए दिया जाने वाला डोनेशन देश के विकास के लिए सहायक है
दूसरी बात यह भी है की डोनेशन से पुत्र का विकास भी होता है =दान की हुई राशिः कई गुना होकर वापस मिलती है -जब दान के रूप में पुत्र का विकास होगा तो दान की हुई राशी कई गुना होकर दहेज़ के रूप में वापस मिलेगी
सार बात यह है की आपको किसी घोटाले में ही क्यों न शामिल होना पड़े पुत्र के भविष्य के लिए डोनेशन और पुत्री के भविष्य के लिए दहेज़ की जुगाड़ तो जमाना ही होगी जुगत तो लगानी ही होगी

Saturday, May 10, 2008

rahiye ab aisee jagah chal kar

रहिये अब ऐसी जगह चलकर

रहिये अब ऐसी जगह चल कर जहाँ मच्छर न हों -पत्नी का यह शायराना अंदाज़ भलेही मुझे अच्छा लगा किंतु मेरा कहना यह था की जायें तो जायें कहाँ - उनका कहना यह था की अपने यहाँ जैसे और जितने मच्छर कहीं भी नहीं होंगे इसलिए मकान या मोहल्ला बदलना ही होगा -मेरा सोच यह है की शेर -सांप -बिच्छू -मच्छर से डर कर नहीं वल्कि इंसान -इंसान से डर कर मोहल्लों का परित्याग किया करते हैं
उनकी परेशानी अस्वाभाविक नही थी -औसत मच्छर से बडे और मक्खी के आकार से कुछ छोटे आम मच्छर से हट कर यानी ख़ास मच्छर गोया बहुत ही खतरनाक मच्छर -अगरबत्ती व टीकियों की खुशबू व बदबू को नज़रंदाज़ कर देते है -प्याज काट कर बल्ब के पास लटका दो तो उसके इर्दगिर्द ऐसे मंडराने लगते हैं जैसे प्याज प्याज न होकर कोई फूल हो और वे स्वयम भँवरे हों - घर में धुआं कर दो तो वे यथास्थित रहे और आदमी घर से भागने लगे -किसी की आँख में जलन -किसी को आंसू -किसी को छींक -किसी को खांसी =मेरे द्वारा एक दिन धुआं कर देने पर मेरे बीबी बच्चों का मुझ पर नाराज़ हो जाना तो स्वाभाविक था किंतु आश्चर्य बिल्डिंग के अन्य लोग भी नाराज़ नजर आए -दीवालें काली हो रही हैं -कमरों में बैठना मुश्किल है -अजीब किरायेदार आया है -धुआं कितना घातक होता है जानता ही नहीं है -आक्सीजन की कमी हो गयी आदि
मच्छरदानी कोई अज़नवी चीज़ नहीं मगर दुर्घटना और दुर्भाग्य क्या है इस बाबद मेरे मानना है की मच्छरदानी खरीदना दुर्घटना और उसे बांधना दुर्भाग्य है -खरीद तो ली मगर इसे बंधोगे कहाँ -अव्वल तो मकान मालिक दीबारों में कील ठोकने नहीं देगा -दोयम कीलें स्वयम नहीं ठुकेंगी थोडा सा पलस्तर उखाड़ कर टेडी हो जायेगी और उचट कर ऐसी जगह गिरेंगी की ढूंढते रह जाओगे - और ठोकने वाले का अंगूठा मरहम पटटी का इंतजाम पहले कर लेना चाहिए -वैसे कायदा तो यह है की कील ठोको तो कील पत्नी को पकडाओ
मच्छरदानी बाँध कर सर्ब प्रथम उसके अंदर उपस्थित मच्छरों की समुचित व्यवस्था करने में सब बुद्धिमता विसर्जित हो जाती है -ऐसा मालूम पड़ता है जैसे मच्छर दानी में कोई ताली बजा बजा कर कीर्तन कर रहा हो -इधर ज़ोर की ताली से अपने हाथ लाल और और मच्छर गायब -वह ऊपर मछर दानी के कोने में -और कोने वाले को मारने की कोशिश की तो मच्छर दानी की डोरी टूटी या कील उखडी
चारों तरफ मच्छर दानी गद्दे के नीचे दबाने के बाद समस्या यह की लाईट आफ कैसे करें -लाईट बंद करने गए यानी दो बार मच्छर दानी हटाई और इधर द्रुत वेग से उनकी प्रविष्ठी हुई -फिर रात भर गाते रहिये "जानू जानू री छुपके कौन आया तेरे अंगना " जाली में फंसा वह प्राणी कितना दुर्दांत -खूंखार और आक्रामक हो जाता है -भुक्तभोगी ही जनता है
पत्नी का यह सचोट अनुज्जवल पक्ष है की "नाली बनाने वाले जाने चले जाते हैं कहाँ " और यह भी की " नाली बनाने वाले क्या तेरे मन में समाई -काहे को नाली बनाई ""और अगर बनवाई तो इसे ढकवाते क्यों नहीं - मने समझाना चाहता हूँ "तुम सुनहु ग्रह मंत्री स्वरूपा नाली बनही बजट अनुरूपा "" और बजट आजायेगा तो ढकवा देंगे
तो चलो 'फिर दूसरी जगह चलो -अरे वाह कल को तुम कहोगी की ऐसी जगह चलो जहाँ हत्या बलात्कार चोरी डकेती अपहरण न होते हों दूसरे नालियों में कचरा सब्जी छिलके तुम डालो ऊपर से शिकायत ==इस आग को कैसे कहें ये घर है हमारा -जिस आग को हम सब ने मिलकर हवा दी है

नल से आता नीर

एक निश्चित स्थान पर नट बोल्ट से जकडा होने के बावजूद जो चला जाता है तथा जिसकी लोग महबूबा की तरह प्रतीक्षा करें व बकौल एक शायर "न उनके आने का वादा न यकीं , न कोई उम्मीद /मगर क्या करें गर न इंतज़ार करें -की तर्ज़ पर जो वर्ताव करे उसे नल कहते हैं / आके न जाए उसे मेहमान कहते हैं और जाके न आए उसे नल कहते हैं / जिसके घर में हो उसके यहाँ पानी न आए और जिसके घर न हो उसके यहाँ बिल आजाये उसी को नल कहते हैं
वह जमाना गया जब कहानियाँ इस प्रकार से शुरू होती थीं की -एक राजा था -आज सारी कहानियां ,कविता ,गजल ,दास्ताने दफ्तर इस वाक्य से शुरू होते हैं कि नल नहीं आया /गोया नल -नल न हुआ जवानी हो गई जो लौट कर नहीं आती /किसी को नल से पानी भरते देखो , पूछो ,कहिये जनाब -पानी भरा जा रहा है ,झुंझलाहट भरा जवाब मिलेगा "नहीं जी बूँदें गिनी जा रही हैं /
अब जमाना बदल गया है -आज कोई किसी की खातिर रोता नहीं है ""कौन रोता है किसी की खातिर अय दोस्त ,सबको अपने अपने नलों पर ही रोना आया /
कुछ भी हो नल जल के लिए तो प्रसिद्ध हैं ही / जैसे यह पशु वैज्ञानिकों ने सिद्ध कर दिया है कि मगर मच्छ की आंखों में अश्रु ग्रंथियां होती ही नहीं है इस लिए वह आंसू वहा ही नहीं सकता मगर लोक में मगरमच्छी आंसू प्रसिद्ध है इसी प्रकार नल में जल ग्रंथियां न होते हुए भी जल के लिए नल लोक में प्रसिद्ध हैं ही /
यह भी एक बिडम्बना है कि अपने घरेलू नलों में डायरेक्ट मोटर लगा कर पानी खींच लेने वाले मोहल्ले के संभ्रांत नागरिकों को यह कतई गवारा नहीं होता कि घरेलू नल विहीन मोहल्ले के वाशिंदे सार्वजनिक नल पर तू -तू =मैं-मैं करें मगर होती है क्योंकी नल का बूँद बूँद टपकना उसका स्वभाव है और पानी भरने वालों की तू -तू= मैं- मैं करना उनकी आदत है =स्वभाव और आदत में हमेशा से तकरार चली आरही हैं / यह तकरार उस जमाने में भी थी जब नल नहीं थे और उस जमाने मैं भी रहेगी जब नलों का जाल बिछा दिया जायेगा /
तू तू मैं मैं से बचने का एक ही तरीका है कि नल से लाइन लगा कर पानी भरना / किंतु जबसे हमारे देश में फिल्मी हीरोगन ने यह परिपाटी डाली है कि ""हम जहाँ खड़े होंगे लाइन बहाँ से शुरू होगी "" तव से लाइन प्रथा कुछ प्रजातियों की तरह लुप्त प्राय है क्योंकि हर मोहल्ले में तीन चार हीरो का होगा आवश्यक है तो लाइनें भी चार से कम क्या लगेंगी
लाइन के बाद समस्या होती है बर्तन की जो कि शक्ल और किस्मत की तरह नाना आकार प्रकार के होते है और जिसका जितना आंचल होता है उतनी ही उसको सौगात मिलती है और लाइन में जब एक ही बर्तन में पानी भर कर हटना है तो क्यों न बडे बडे बर्तनों का प्रयोग हो , तो फिर तू तू मैं मैं इस बात पर कि "उसकी बाल्टी मेरी बाल्टी से बडी कैसे ""
नल ने बहुत सी बांते सिद्ध करदी हैं -यह सिद्ध कर दिया है कि बूँद बूँद से घट भर जाता है -यह सिद्ध कर दिया है कि सब्र का फल मीठा होता है /जिसका नम्बर लग जाए वह ऐसे जमा रहना चाहे जैसे जैसे लोग कुर्सी पर जमे रहना चाहते हैं और और शेष पानी भरने वाले भावी प्र्यत्याशी उसे ऐसे देखते रहें जैसे भावी वर्तमान की डगमगाती कुर्सी को देखता है
नल तो रहीम जी के जमाने मैं भी थे और उन्होंने हिदायत दी थी कि नल बहुत गहरे लगवाना चाहिए तो आजकल लोग उन्ही के आदेश का पालन करने में लगे रहते है जहाँ देखो नल गहरे हो रहे है और मिल मिला कर फेरूल में से गोली निकल वाई जा रही है आदमी मतलब की बात ज्यादा मानता है उन्होंने कहा था ""जेतो नीचो है चले त्यों त्यों ऊँचो होय "" नल और आदमी की गती बतलाई थी =नल के वारे में याद रहा ख़ुद नीचा होकर चलने की बात भूल गया / उन्होंने तो ये भी कहा था रहिमन पानी राखिये बिन पानी सब सून ""घर में दो चार मटके पानी भर कर रखे ही रहना चाहिए " क्या पता कब विजली चली जाए और नल न आयें /
नल का जल ही जीवन है और जल ही जीवन का उद्देश्य है नल की और बढ़ता ठोस कदम ,दृढ संकल्प ,अवसर का लाभ , अपनी शक्ती का पूर्ण प्रदर्शन व प्रयोग देशी व विदेशी गालियों का सतत निरंतर अभ्यास साथ में जूडो कराते का ज्ञान सार्वजनिक नल से पानी भरने में सहायक होते हैं

putr daan kyon nahin

पुत्र दान क्यों नहीं

मेरे एक "शर्मनाक "नामक लेख में यह बात आई है की अगर पुत्री का दान किया जाता है तो पुत्र का दान भी किया जाना चाहिए
जीवन का एक महत्वपूर्ण अंग है विवाह और विवाह का एक महत्वपूर्ण अंग है कन्यादान / पाणिग्रहण ,सप्तपदी ,पांच और सात वचन तो समझ में आते हैं क्योंकि वह वर -वधु दोनों का मिला जुला कार्यक्रम है ,किंतु कन्यादान का रिवाज़ कब व कैसे प्रचलित हुआ यह विचारणीय मुद्दा है /
क्या वेदों में कन्यादान का विधान है ? हो सकता है /पुराणों में दस महादान का वर्णन है उनमें से कन्यादान भी एक दान है /मानस में गोस्वामीजी ने दो विवाह कर वाये हैं / एक तो शंकरजी का "" गहि गिरीश कुस कन्या पानी ,भवहि समर्पी जानि भाबानी "" दूसरे विवाह में सीताजी का कन्यादान कराया है ""करि लोक वेद विधानु कन्यादान नृप भूषण कियो ""स्वाभाविक है गोस्वामीजी की स्वयम की जैसी शादी हुई होगी वैसा ही उन्होंने वर्णन किया होगा -पुराणों में दस महादानो का वर्णन है इनमें से एक तो हुआ कन्यादान वाकी नौ है --स्वर्ण ,अश्व ,तिल , हाथी ,दासी ,रथ ,भूमी ,ग्रह और कपिला गौ /ध्यान रहे यह सब सम्पत्ती है /स्त्री हमेंशा से संपत्ति मानी जाती रही थी / उसका क्रय विक्रय होता था , उसे गिरवी रखा जाता था , जुए में हारा जीता जाता था तो अन्य संपत्ति के दानो की तरह इस कन्या रूपी संपत्ति के दान की परिपाटी प्रचलित हुई होगी /दान के साथ दान की हुई संपत्ति की स्थिरता के लिए अतिरिक्त द्रव्य समर्पित करने का प्रावधान शास्त्रों में था ताकि दान में दी हुई संपत्ति का रख रखाव {मेनटेनेंश} आदि किया जाता रहे /इसने कन्यादान मे दहेज़ का रूप धारण कर लिया
दहेज़ का दूसरा पहलू यह भी रहा होगा कि चूंकि कन्या संपत्ति होती थी पराया धन होती थी इसलिए पिता की जायदाद मे उसका हक नही होता था और चूंकि पुत्र जो कि संपत्ति नहीं होता था उसके हिस्से मे बाप की जायदाद आजाती थी / किंतु फिर भी पुत्री होती तोथी माँ बाप के जिगर का टुकडा -इसलिए पिता अपनी जायदाद से प्राप्त आय मे से एक बडा हिस्सा पुत्रों की सहमति से पुत्री को दे दिया करता था और चूंकि बात भी वाजिव थी इसलिए पुत्र को भी क्यों आपत्ति होने लगी / फिर लडकी चली जाती थी पराये घर और जमीन जायदाद ,खेती बाड़ी-रहती थी पुत्रों के पास /इसलिए बहन को बिभिन्न त्योहारों पर ,भाई दूज , उसके पुत्र पुत्रियों की शादी मे मामा भात , पहरावनी, मंडप आदि के रूप मे संपत्ति की आय मे से कुछ हिस्सा लडकी को पहुंचता रहता था /अब उसका रूप लालची धन्लोलुपों ने विकृत कर दिया है / लडकी के पिता की स्वेच्छा अब लडके के पिता की आवश्यकता हो गई /एक स्द्भाविक परम्परा कुरीति हो गई /यह कुरीति गरीब पिता के लिए अभिशाप हो गई /जो स्वं किराए के मकानों मे रहकर ,मामूली -सी नौकरी करके ,अपना पेट काट कर बच्चों को पालता पढाता रहा हो जिसके बेटे बेरोजगार हों और बेटी सयानी उसकी क्या तो संपत्ति होगी और क्या लडकियां हिस्सा लेंगी
अब सवाल उठता है पुत्र दान का -कल्पना कीजिए चलो किसी ने कर ही दिया पुत्र दान तो फिर क्या ? लडकी तो लडके के घर आजाती है =कई समाज मे तो यह भी है कि लडकी का बाप या बडा भाई -लडकी की ससुराल मे पानी भी नहीं पीता है -संभवत दान की वजह -दान कीहुई संपत्ति का थोडा सा भी उपयोग वर्जित है -आपको तो पता है कि एक हजार गाय दान मे दी और धोके से एक गाय वापस आगई और उसका पुन दान हो गया तो नरक के दरवाजे खुल गए थे /खैर तो लडकी तो लडके के घर आजाती है अब मानलो लडके का भी दान हो गया तो वह कहाँ रहेगा अपनी ससुराल में यानी घर जवाई - और कन्या का दान कर दिया तो वह मायके में कैसे रहेगी -और यदि लड़का अपने ही घर में रहता है तो उसके माँ बाप उसकी कमाई कैसे खाएँगे -दान किए हुए पुत्र की कमाई घोर अनर्थ हो जाएगा =बडी दिक्कत हो जायेगी

तो फिर लडकी का भी दान करदो पुत्र का भी दान करदो दोनों को अलग करदो बहुत बढ़िया -पहले ही तो औलाद बूढे माँ बाप को रखना नहीं चाहती अब तो धार्मिक ,सामाजिक, आधुनिकता .,महिला स्वातंत्र्य ,समानता ,महिला प्रभुत्व ,रीतिरिवाज़ सब ही समर्थन कर रहे है =सोचिये -मनन कीजिये तब तक में दूसरे लेख के बारे में मनन करता हूँ

Wednesday, April 23, 2008

बहुत कुछ होता है

जिन्दगी के जिस मुकाम पर कुछ कुछ होता है की उम्र समाप्त होती है वहाँ से सब कुछ होने की उम्र प्रारम्भ होकर "बहुत कुछ होता है " की अवस्था व्यक्ति प्राप्त कर लेता है / बहुत कुछ होता है में चिंता ,परेशानी , हताशा ,निराशा ,अवसाद ,दर्द ,महगाई ,बीमारी आदि सब शामिल है /
वो भी क्या दिन थे जब सबक याद न होने पर और हेड मास्साब के हाथ में खजूर की संटी देख कर कुछ कुछ होने लगता था / अब तो खैर स्कूल और कालेज विद्या अर्जन के स्थल न होकर मस्ती करने ,मारधाड़ व हिंसा सीखने के स्थान हो चुके हैं / नए नये आए लघु भ्राताओं को स्नेह ,प्यार ,सौहार्द व मार्गदर्शन देने के बदले रेगिंग का उपहार दिया जा रहा है /पितृ तुल्य ,आदरनीय ,इश्वर से ज़्यादा पूजनीय गुरु जनों को परेशान करने की नई नई विधियां पुष्पित और पल्लवित हो रही हैं /
दफ्तर जाने को घर से निकलो तो रस्ते में सब कुछ होने लगता है /आप सोचेंगे ये गड्ढे की बात करेगा / बिल्कुल नहीं करूंगा साहेब क्योंकि मुझे दिखाई देता है /जिस प्रकार विज्ञापनों के बीच -बीच में कहीं फीचर फ़िल्म दिखाई दे जाती है उसी प्रकार गड्ढों के बीच -बीच में मुझे बाकायदा सड़क दिखाई दे जाती है मगर रास्ता दिखलाई नहीं देता / कभी नहीं से देर भली को ध्यान में रखते हुए जब ,सम्हलकर धीरे धीरे चलता हूँ तो मोपेड पर बैठी हुई पीछे से ये कहतीं हैं इस तरह से तो पहुँच लिए / लोगों का ध्यान मत रखो वे स्वयम अपना ध्यान रखेंगे / ये रास्ता न छोडेंगे इन्हे छोड़ आगे बढ़ चलो "" सागर ख़ुद अपनी राह बना कर निकल चलो ,वरना यहाँ पे किसने किसे रास्ता दिया "" रास्ता देने वालों को स्वयम पता नहीं कि वे कहाँ चल रहे हैं / कब दायें मुड़ जाएं ,कब बाएँ मुड़ जाएं कब चलते चलते रुक जाएं ,किसी पहिचान वाले को आवाज़ लगादें .कभी दार्शनिक की तरह खडे खडे सोचने लग जाएं " में इधर जाऊ या उधर जाऊं " इतना गुस्सा ,झुंझलाहट व चिडचिडाहट होती है की क्या कहें /अत इस बात से इनकार नहीं कि सड़क पर बहुत कुछ होता है /
कार्यालयों में तो बहुत कुछ होता ही है /वहाँ कुछ मालिक होते हैं जिन्हें पब्लिक सर्वेंट कहा जाता है / कार्य बिभाजन सूची की द्रष्टि से एक तो उनके हिस्से में पहले से ही कम काम होता है , दोयम वे काम की अपेक्षा बातों में ज्यादा विस्वास रखते हैं /मैच का मौसम चल रहा हो तो कहना ही क्या है / फिर भी उनका सोच बडा विचित्र होता है कि सारा दफ्तर उनके ही दम पर चल रहा है , वे न होंगे तो क्या होगा / उनका यह भी विचार रहता है कि जब तक हम पुराने लोग हैं तव तक ही ठीक है आज की जनरेशन तो कार्यालय का बेडा गर्क कर देगी क्योंकि इनमें न काम करने की लगन है , न इच्छा है ,न मैनर्स है न जिम्मेदारी /काम तो सीखना ही नहीं चाहते /
दफ्तर से घर लौटे तो यहाँ सब कुछ होने लगता है /सस्ती सब्जी घर वालों को पसंद नहीं और महगी खरीदने की औकात नहीं / कहते हैं कि ज़्यादा कुंठा ग्रस्त रहने से ,सहन करने से , मस्तिष्क पर दवाब देने से शारीरिक रोग घेर लेते हैं , तो चिकित्सालय जाना पड़ता है , मगर यहाँ भी बहुत कुछ होता है सीट पर मिलते नहीं .वार्ड में है नहीं ,इमरजेंसी वार्ड में है नहीं - घर दिखाने लायक आर्थिक स्थिति नहीं / समाचार पत्र ,विज्ञापन , ताजातरीन रिपोर्ट्स आगाह करती हैं कि पचास के बाद नियमित बी पी ,सुगर , बगैरा के साथ छोटी -मोटी शिकायतों की भी नियमित जांच जरूरी है / मगर इनके टेबल पर रक्तचाप का यन्त्र व थर्मामीटर तक होता नहीं
अंग्रेज़ी दबा के साईड इफेक्ट को ध्यान में रख कर होमोपेथिक के पास जाओ तो वे पर्चा नहीं देते क्योंकि अगर बीमार को मालूम पड़ गया कि क्या दबा है तो वह ख़ुद ही खरीद कर खाने लगेगा वैसे आजकल हर घर में होमेओपेथिक तथा वायोकेमिक की हिन्दी में लिखी किताबें रहती ही हैं थोडा दर्द हुआ रसटोक्स खाली , जी घबराया कालीफास खाली -असर नहीं हुआ तो सरकारी अस्पताल चले गए ,भईया पहले ही तो चले जाते -पार तो वही पड़ना है -कुछ लोग जुकाम होने पर आठ दस दिन जुकाम झड़ने का इंतज़ार करते हैं और पानी सर के ऊपर आजाता है तो भागते है डाक्टर के पास /
सब कुछ होने के इस पडाव पर बच्चे भी शादी लायक हो जाते हैं यहाँ भी बहुत कुछ होता है लडकी तेज़ स्वभाव की न आजाये वरना धारा ४९८ बडी खतरनाक होती है जमानत भी नहीं होती और लडकी के वाबत यह कि यहाँ तो प्याज़ लहसन तक नहीं चलता वहाँ मुर्गा न पकता हो , जो तय हो गया उससे ज़्यादा न मांगने लगें , छोड़ जाएं लिवाने न आयें , मारने जलाने की धौंस न दें
अरे बडा मजा आता है जरा इनकी बातें सुनो -तो साब लडकी पसंद आगई कुंडली मिल गई - अब आप शादी किस स्तर की चाहते है ? अरे स्तर काहे का साहब -हम तो अपनी बहू थोड़े ही ,बेटी ले जा रहे है / मगर फिर भी / आपने भी तो कुछ संकल्प किया होगा / हमारा तो पाँच तक का इरादा है / अरे साब पाँच में तो किलार्क -बाबू तक नहीं मिलते - अब क्या बताएं साहब दो और धरी हैं इसके बाद / खैर पाँच और सब सामान / सामान तो अलग रहता ही है / तो फिर आप ऐसा करो दस और सब सामान करदो - ठीक है साहब जैसी आपकी मर्जी / हां एक बात और हम बरात लेकर आयेंगे आपको मेह्गा पडेगा बस का किराया स्वागत _बरात ठहराना आप एक काम करो लडकी को लेकर यही आजाओ अपन मैरिज हाल बुक बुक कर लेंगे एक डेड के आस पास खर्च आएगा वह आप वहन कर लेना और जो रिसेप्शन देंगे वह आधा आधा हो जाएगा /मगर सर आपके तो हजार पांच सौ आदमी होंगे हमारे तो दस बारह लोग ही आएंगे - क्या करे भाई आज कल ऐसा ही होता है
एक खास क्षेत्र और है उसमें भी बहुत कुछ होता है लेकिन मैं नहीं लिखूंगा /कभी लिखा भी नहीं / यह मेरा विषय भी नहीं है /हालांकि लोग कहते हैं कि इसके विना हर बात अधूरी लगती है इसके विना न लेख लिखा जा सकता है न व्यंग्य और न हास्य /मगर में लिखता नहीं क्योंकि ""फुर्सत कहाँ कि बात करें आसमा से हम ,लिपटे पडे हैं लज्ज्तो दर्दे निहां से हम "" इसलिए में इन्हे दूर से ही करता हूँ परनाम क्योंकि ये हैं बडे महान , ये धरती माता जैसे सहनशील हैं -पीडितों और शोषितों के लिए ,,ये सागर की तरह गहरे हैं जिसका पानी खारा होता है ,, इनका दिल दरिया है जो वक्त के साथ सूखता रहता है ,,ये वो फलदार ब्रक्ष हैं जिनके फल अपनों को ही मिलते हैं ,,ये वो बादल है जो बरसते हैं अपनों पर और गरजते हैं गैरों पर ,,ये वो बिजली हैं जो ख़ास घरों में उजाला करके आम घरों को झुलसाती है / ये वो भागीरथ हैं जो प्रयास करके गंगा तो लाते हैं मगर सपरिवार स्वयम ही नहाते हैं और दूसरों को भगाते हैं / इनके वारे में गलत कहो तो मान हानि का दावा करदे और सच इन्हे बर्दाश्त न हो / तो इस क्षेत्र में क्या कुछ होता है ये कहने के वजाय केवल समझा जाए
इसलिए कुछ कुछ होता है , बहुत कुछ्होता है , सब कुछ होता है यह सब देश ,काल , परिस्थितियों पर निर्भर करता है बस साक्षी भाव से देखते चलो

Tuesday, April 22, 2008

खिचडी भाषा की बात ही कुछ और है

विशुद्ध अंग्रेज़ी कोई बोल नही सकता और विशुद्ध हिन्दी कोई समझ नहीं सकता तो कोई वो क्यों बोले -खिचडी भाषा न बोले -
शासकीय कार्यालय में पत्र टाईप होने के पूर्व उस पत्र का मसौदा यानी ड्राफ्ट तैयार होता है - सरकारी कायदा है नींचे वाला ड्राफ्ट तैयार करता है और ऊपर वाला एप्रूब करता है -वहाँ योग्यता बेमानी है पद की गरिमा की बात है ऊंची कुर्सी की बात है तो ऊपर वाला हर ड्राफ्ट में संशोधन जरूर करता है -वैसा का वैसा ही अप्रूब कर दिया तो एप्रूबल का मतलब ही क्या -आखिर सुपीरअर्टी का भी कोई मतलब होता है = मैंने एक बार उन्ही के तैयार किए गए एक पत्र की तारीख तब्दील की और यथावत हाथ से नकल कर अप्प्रूब्ल के लिए भिजवादिया =वे ड्राफ्ट पढ़ते जा रहे थे -उसमें आवश्यक संशोधन करते जारहे थे और साथ में बड़बडाते भी जा रहे थे ==क्या कमाल का दफ्तर है जरा सा ड्राफ्ट तक सही तयार नहीं कर सकते -भाषा का कार्यकारी ज्ञान तक नहीं है आदि इत्यादी
एक बार मैंने ड्राफ्ट में कुछ साहित्यिक शब्द डाल दिए - शासकीय यानी कार्यालयीन शब्दों की एक सीमा है लगभग सौ सबा सौ शब्द - समस्त कार्यालयीन दुनिया इन्ही शब्दों के इर्द गिर्द घूमती है इन्ही सौ सवा सौ शब्दों से लाखों पत्र -परिपत्र -स्मरण पत्र -अर्ध -शासकीय पत्र रोजाना तैयार होते हैं -इन शब्दों के अलावा एक भी विजातीय शब्द इनमें सम्मिलित हो जाता है तो बात अखरने वाली हो जाती है और चूंकि बात अखरने वाली हो चुकी थी इसलिए उन्होंने मुझे तलब किया -बोले देखिये ये कार्यालय है कोई साहित्यिक संगठन या सभा नहीं है -शब्द वही प्रयोग करो जो शासकीय हों -सामने वाले को भी पता चलना चाहिए की पत्र शासकीय है
अपने गाँव की बोली व लहजा ={काये रे कैसो आओ थो} = मुझे पसंद है और बचपन से लेकर आज तक बोलता हूँ -मगर इधर कुछ वर्षों से जबसे बच्चे बडे हुए - उनके कुछ कोंवेन्टी मित्र मित्रानियों का हमारे ग्रह में पदार्पण प्रारम्भ हुआ है मेरी खड़ी बुन्देल खंडी बोली उन्हें रास नहीं आती -हालांकि वे मुंह से कुछ नहीं कहते पर हाव-भाव से व्यक्त हो ही जाता है "इशारों को अगर समझो "
बोलना ही नहीं मेरा उठाना बैठना तक -जब कभी में चाय पीने बैठक में चला जाता हूँ और दोनों पैर सोफे पर रख कर बैठ जाता हूँ और कप से चाय प्लेट में लेकर पीता हूँ या एकाध बिस्किट उठा कर चाय में डुबो लेता हूँ तो बच्चों की निगाहें एक दूसरे से कुछ कहने लगती हैं
एक दिन पुत्र रत्न ने अत्यन्त सकुचाते हुए कहा -आपकी भाषा और लहजे पर मेरे मित्र हँसते हैं तो मैंने उसी दिन "मूंछें हों तो नत्थूलाल जैसी हो वरना न हो " वाले लहजे में तय किया कि बोलूँगा तो विशुद्ध बोलूँगा नहीं तो नहीं बोलूँगा -एक दिन घर में मित्र मंडली जमी थी -मैंने बैठक में जाकर पुत्र से कहा "भइया मेरे द्विचक्र वाहन के प्रष्ठ चक्र से पवन प्रसारित हो चुका है उसमें शीघ्रतीशीघ्र पवन प्रविष्ट करवा ला ताकि कार्यालय प्रस्थान में मुझे अत्यधिक विलम्ब न हो " में तो कह कर चला आया परन्तु फूसफुसाह्ट मैंने सुनली पुत्र का एक मित्र कह रहा था "क्यों रे तेरे पापा का एकाध पेंच ढीला तो नहीं है
एक बार आफिस जाते वक्त मैंने जैसे ही जेब में हाथ डाला -रूमाल नदारद था मैंने पत्नी को आवाज़ दी 'मेरा मुख मार्जन वस्त्र खंड कमरे में कहीं रह गया है अवलोकन कर मुझे प्रदत्त कर दीजिये -पत्नी तो झल्लाती हुई चली गई मगर गुवाड़ी की अन्य महिलाओं और बच्चों के मध्य मैं हंसी का पात्र बन गया
हमारी गुवाड़ी में एक बहिनजी रहती है ठेठ देहाती परिवार -प्राइमरी स्कूल में बहिनजी की नौकरी लग गई तो परिवार यहाँ आगया एक दिन बहिनजी की सहकर्मी बहिनजियाँ उनके घर आयी तो इन बहिनजी ने बोलने के इस्टाइल -लहजा शब्द सब बदले -यह सब बदला तो बदले में बहिनजी के छोटे भाई बहिन भोंचक्के से होकर बहिनजी के मुंह तरफ ताकने लगे आखिर सबसे छोटी बोल ही उठी " काये री जीजी आज तोये हो का गयो तू आज कैसे बोल रई है "
पूर्व में थोड़ी घणी कालम ध्यान से पढ़ता था -बहुत पहले रेडियो इंदोर पर + राम राम भाई नंदाजी -राम राम भाई कान्हाजी ध्यान से सुनता था एक धारा वाहिक आया था नीम का पेड़ उसका बुधिया मुझे बडा पसंद आया था परन्तु मेरा बोलना किसी को पसंद नहीं =नहीं पसंद आएगा -शेर की दाढ़ से खून नहीं खिचडी लग गयी है अब तो वही पकेगी वही खाई जायेगी वही बोली जायेगी वही सुनी जायेगी

BHANTI BHANTI KE LEKHAK

मैंने एकदिन अपने लेखक मित्र से पूछा "यदि सम्पादक तुम्हारी रचना लौटा दे तो? वे बोले, दूसरी रचना भेजूंगा .मैंने पूछा "वह भी लौटादी तो ?वे सम्हलकर बोले "यथाशक्ति चेष्टापूर्वक दोनों रचनाओं का एकीकरण कर रचना तैयार करूंगा और भेजूँगा -मैंने पूछा मानलो अगर वह भी लौटादी तो ? वे झुंझलाकर बोले यार समझ में नहीं आता तू मेरा दोस्त है या संपादक का ?
लेखक का लेखन और संपादक का खेद इन दोनो तथ्यों को द्रस्तिगत रखते हुए में निसंदेह और द्रढ़ता पूर्वक यह कहने का साहस कर रहा हूँ की इन्द्र ,वायु ,यम ,सूर्य ,अग्नि .वरुण ,चन्द्र ,और कुबेर इन देवताओं के अंश लेकर लेखक धरती पर अवतरित होता है -इन आठों देवताओं के अंश लेखक में होते हैं वह इन्द्र के समान इस बसुधा पर ख्याति प्राप्त करता है ,जैसे वायु सुगंधी को फैलाती है वैसे ही लेखक का यश फैलता है =यमराज को धर्मराज भी कहते हैं जब लेखक नीतिपरक और सुधारक लेख लिखता है तो धर्मराज होता है ,समाज में फैला अज्ञानता रूपी अन्धकार वह सूर्य बनकर दूर करता है अग्नि को अनुकूलता मिले तो वह फैल जाती है
लेखक को भी सम्पादकीय अनुकूलता मिलने पर वह चरमोत्कर्ष पर पहुँच जाता है अन्यथा खेद सहित से उसकी अलमारियां सुसज्जित हो जाती हैं -वरुण जल ब्रष्टि करता है और चन्द्र अपनी छटा से आल्हादित करता है वैसे ही लेखक पाठक को नौ रसों से सराबोर कर देता है -कुछ पलों के लिए अपने लेख के माध्यम से पाठक को संसार की सुधि भुलाकर समाधि की स्थिति में पहुंचा देता है यदि कोई प्रकाशक रायल्टी रूपी द्रष्टि लेखक पर डाल दे तो वह साक्षात् इस धरती का कुबेर है
लेखक कई तरह के होते है -कुछ पत्र के तो कुछ पत्रिका के -कुछ गतिशील होते है तो कुछ प्रगतिशील -कुछ पत्र लेखक होते है तो कुछ गुमनाम पत्र लेखक होते है से वाये हाथ से गुमनाम पत्र लिख कर किसी भी कर्मचारी की शिकायत कर उस पर विभागीय जांच प्रारम्भ करवा सकते है कुछ शीघ्र लेखक होते है तो कुछ आवेदन पत्र लेखक
कुछ इंटरनेट पर ब्लॉग लेखक होते है लोग उन्हें ज़्यादा तादाद में पढ़ते हैं वहाँ विद्वानों का सम्मेलन होता है -दीपक भारतदीप जी का एक आलेख है ""कभी कभी ऐसा भी होता है " उसमें उनका कहना है की ""यह एक मंच है जिस पर हम सब एकत्रित हैं "" यहाँ के लेखक की अपनी भाषा बहुत ही सुसंस्कृत =सभ्य और शिष्टाचार पूर्ण होना चाहिए - दीपक जी ने अपने एक और आलेख ""हित और फ्लॉप का खेल चलने भी दो यारो ""में लिखा है ""अंतर्जाल बहुत व्यापक है और आप यहाँ किसके पास पहुचना चाहते है यह आप तय नहीं कर सकते तय करेंगे आपके "शब्द " =अभी भी इसमें लिखने वालों की संख्या कम ही है =आम तोर पर लेखक पेपर में ही लिखते हैं
लेखक की रचनाएँ छपती नहीं और लौट आती हैं यह बात वह सबसे गुप्त रखना चाहता है -जो कोई उससे पूछे यार -आजकल आप पेपर में बहुत दिन से नजर नहीं आरहे हो तो वह कभी नहीं कहेगा की संपादक रचना लौटा रहा है -वरन चेहरा लटका कर गंभीरता पूर्वक कहेगा "भइया आजकल दीगर कामों में इतने व्यस्त हैं की लिखने को समय ही नही निकाल पाते
आमतोर पर संपादक लेखक की रचना अच्छी बतलाते हुए ही खेद सहित वापस लौटाते हैं -वे यह कभी नहीं लिखते की श्रीमानजी जब आपको कलम पकड़ ने की तमीज़ नहीं है व्यर्थ में क्यों हमारा समय बर्बाद करते हो दूसरा क्षेत्र क्यों नहीं चुनते
एक सज्जन अपने मित्र से कह रहे थे की मैं लिखता भी हूँ और चित्रकारी भी करता हूँ -भविष्य में मुझे दोनों में से एक क्षेत्र मुझे चुनना है मित्र बोले आप चित्रकारी अपना लीजिये -सज्जन ने पूछा आपने मेरे चित्र देखे -मित्र ने कहा चित्र तो नहीं देखे आपकी एक दो रचनाएँ जरूर पढी हैं
लेखक का लेख छपना और किसी की लाटरी निकलना समान रूप से सुखदाई है -जब लेखक का पहला लेख छपता है तो भगवान् को प्रसाद चडाता है मित्रों के घर जा जा कर लेख बतलाता है उस लेख की कटिंग रखता है भलेही उसका लेख "करेले का अचार कैसे डालें ही क्यों न हो - पोस्ट मेन का लिफाफा लेकर घर की तरफ आना प्रेमी -जीव के लिए गंगावतरण है लेकिन लेखक को पोस्टमेन यमदूत नजर आता है क्योंकि वह खेद सहित ही आता है - कुछ लेखक खेद सहित से इतना डरते हैं की वे अपना पता लिखा लिफाफा ही नहीं भेजते -पसंद करो तो छापो नहीं तो फाडो - कुछ लेखक स्वान्त सुखाय लिखते हैं ये वह रचनाएँ होती है जो खेद सहित वापस आती हैं उनका खेद फाड़ दिया जाता है और स्वान्त सुखाय का लेवल चिपका दिया जाता है - कुछ छपने के लिए लिखते है तो कुछ नाम के लिए और कुछ नामा के लिए -कुछ लेखकों का विचार होता है की पारिश्रमिक का क्या वस नाम ही काफी है
लेखक चाहता है की वह कागज़ के दोनों ओर लिखे -संपादक चाहता है वह किसी ओर न लिखे इसलिए एक ओर लिखने का सिलसिला प्रारम्भ हुआ -आम तोर पर लेखक स्वाभिमानी होते है और होना भी चाहिए -कुछ लेखक शादी के पहले स्वाभिमानी होते है और कुछ लेखक तलाक के बाद स्वाभिमानी हो जाते है बीच की अवधी में वे अधबीच में पडे रहते हैं
एक कटु सत्य और =एक ख्याति प्राप्त लेखक द्वारा कही गयी कोई बात महत्त्व पूर्ण है और साधारण लेखक द्वारा कही गई वही बात महत्वहीन है =विषपान शिव का भूषण है और साधारण की म्रत्यु का कारण

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Monday, April 21, 2008

आपके हाथ से गया

एक दिन श्रीमती जी रोटी बेलते -बेलते अचानक मेरे सामने आकर मेरे लेखन कार्य में व्यवधान उत्पन्न करते हुए कहने लगी "सुनोजी ,मैंने एक रचना लिखी है -मैं हतप्रभ-सा एकटक उनको निहारता रह गया और बगैर मुक़र्रर इरशाद के उन्होंने कहना शुरू कर दिया =अर्ज़ किया है कि -
जो देर रात घर आने लगे , रचनाओं में सर अपना खपाने लगे
पत्र रिश्तेदारों के बदले संपादक को लिखने लगे

दाढी बडा के कवि जैसा दिखने लगे
कभी गीत लिखने लगे ,कभी छंद लिखने लगे
कभी गजल लिखने लगे तो कभी व्यंग्य लिखने लगे
नाम का पती हर काम से गया ,समझ लो वो आपके हाथ से गया

मेरे मुंह से आह या वाह निकले इसके पूर्व ही उन्होंने आदाब अर्ज़ करने की स्टाइल में दो बार अपने सर से हाथ लगाया -मेरा लेखन कार्य उनका प्रेरणा श्रोत भी बन सकता है यह महसूस कर मेरा सर गर्व से ऊंचा हो गया -असल में सर था तो यथा स्थान ही परन्तु मैंने महसूस किया कि वह ऊंचा हो गया है
हो जाता है साहब ,लोगों के कान खडे हो जाते हैं हालांकि वे दिखाई नहीं देते -आदमी खड़ा रहता है और उसका दिल बैठ जाता है -कभी आदमी ऊंचा रहता है और उसकी मूंछ नीची हो जाती है -आदमी तना रहता है और उसकी गर्दन झुक जाती है आदमी लेटा रहता है और उसका दिल बल्लियों उछलने लगता है -कभी १५ दिन से जो आदमी पलंग से हिल नहीं रहा होता है वह चल देता है ""कल तलक सुनते थे वो बिस्तर पे हिल सकते नहीं , आज ये सुनने में आया है कि वो तो चल दिए ""बिना चाकू छुरी के आदमी की नाक कट जाती है -सुर्पनखा की नाक चाकू या छुरी से नहीं काटी गयी थी क्योंकि लक्ष्मण जी तो केवल धनुष बाण लेकर गए थे चाकू छुरी उनके पास थी ही नहीं वो तो शायद यह हुआ होगा कि उस रूपसी का प्रणय निवेदन उन दोनों भ्राताओं ने ठुकरा दिया जिससे उसे मर्मान्तक पीडा हुई और उसकी इन्सल्ट हुई गोया उसकी नाक कट गई -सही भी है यदि किसी को पूर्ण विस्वास हो कि उसकी बात नहीं टाली जायेगी और टाल दी जाती है तो तो उसकी नाक तो कटेगी ही - एक नेताजी ने किसी से कहा फलां अफसर के पास चला जाना तेरा काम हो जाएगा - उस आदमी ने आकर नेताजी को बताया कि उस अफसर ने तो मुझे भगा दिया -नेता ने कहा तूने मेरा नाम नहीं लिया था क्या -तो उस आदमी ने कहा "सर फिर मैंने आपका नाम लिया तो उन्होने मुझे वापस बुलाया और पीट कर भगाया
खैर अपन कहाँ पहुच गए ==हाँ तो एक दिन फिर दुर्घटना घट गई वे कडाही मांजते हुए अचानक पूछ बैठी क्योंजी राजनीतिज्ञों का गावं से कितना ताल्लुक रहता है =मैंने साहित्यिक अंदाज़ में कहा जैसे चंद्र का चकोर से ,मछली का जल से , वे असहमत होकर बोलीं " मगर वे तो वहाँ तभी जाते हैं जब वहाँ कोई घटना घट जाती है "मैंने कहा जाना ही चाहिए उनका कार्यक्षेत्र है - वे बोलीं "कुछ न होगा तो वे वहाँ नहीं जायेंगे "मैंने कहा क्यों जायेंगे तो वे बोली "तो समझ लो वह गाव उनके हाथ से गया " मैंने पूछा क्या मतलब ? तो वे शायराना अंदाज़ में बोलीं =
जो गावं ओलों की बर्बादी से बचा ,जो गावं सूखा ,भुकमरी या बाढ़ से बचा
जिस गावं में कभी न कोई हादसा हुआ ,समझो वह गावं आपके हाथ से गया
इस बार मेरे मुंह से "वाह क्या बात है " निकल ही गया और वे सरिता पत्रिका के "हाय में शर्म से लाल हुई " वाले अंदाज़ में गुलाबी होने लगीं फिर साग्रह बोलीं इसे टाइम्स में छपने भेज दीजिये ना -मैंने रूखे स्वर में कहा "उसमें कविताएँ नहीं छपती " वे बूथ केप्चर करने वाले की तरह बिल्कुल हतोत्साहित नहीं हुई और नारी सुलभ लज्जा से लज्जित होकर बोली तो इसे इंटरनेट पर छपवा दीजिये न -मैंने कहा वह समुद्र है करोडों कविताएँ पडी है किस किस का ई मेल तलाश कर लिखोगी की मेरी कविता पढो नक्कार खाने में तूती की आवाज़ कोई नहीं सुनता है
वे बोलीं तो फिर आप ग्वालियर के प्रसिद्ध साहित्यकार व्यंगकार एवम कवि श्री दीपक भारतदीप जी के "अनंत शब्दकोष " भारतदीप का चिंतन "भारतदीप शब्दजाल पत्रिका " शब्द योग पत्रिका " "या उनकी शब्द्लेख पत्रिका "में ही भिजवा दो -मैंने कहा सोचेंगे -निराश होकर बोलीं तो फिर किसी अखवार में भेज दो वहाँ समाचारों का पिष्ट पेषण ज़्यादा होता है साथ में बहुत विज्ञापन होते है और समय पास करने वाले वर्ग पहेलियाँ भरते रहते हैं उठावना और पप्स उपलब्ध हैं पढ़ते रहते हैं कोई तो मेरी कविता पढ़ ही लेगा "आपके हाथ से गया "शीर्षक से भेज दो –
मैंने कहा भेज तो दूँगा मगर रचना बहुत छोटी है - वे बोलीं बडा दूंगी -चार लाईने वकील के लिए लिख दूंगी
नकलें कहाँ पे मिलती हैं ,तल्वाने कौन लेता है
मन चाही पेशियों के पैसे कौन लेता है
तामील कहाँ पे दबती है ,फाइल कहाँ पे रुकती है

वारंट कहाँ पे दबता है ,रिकार्ड कहाँ पे गुमता है
गर आपका फरीक बातें ये सब जान गया ,समझो मुवक्किल आपके हाथ से गया
निराशा जब घेरती है तो व्यक्ति डूबता चला जाता है और उत्साह बढ़ता है तो हवा से बातें होने लगती है वे अतिउत्साहित होकर बोली डाक्टर के लिए अर्ज़ किया है की
क्रोसीन में क्या गुन है बुखार क्यों आता है ,नमक न खाओ तो बी पी घट जाता है
योग करने से टेंशन मिट जाता है ,पैदल चलने से पेट घट जाता है
पानी बहुत पीने से पिंडली दर्द जाता है और मसूर के उबटन से चेहरा निखर जाता है
आपका रोगी ये बातें सब जान गया , नकली बीमार आपके हाथ से गया

मैंने उनसे चुनावी वादा किया अच्छा भेज देते हैं ,मगर साथ ही शराबी फ़िल्म की अमिताभी स्टाइल में कहा "या तो प्रसिद्ध लेखक छपे या संपादक जिसको चांस दे ,वरना अखवार में आजकल छप भला सकता है कौन " साथ ही यह मशविरा भी दिया कि =छापने वाले अक्सर नये में नहीं पुराने में विश्वास रखते हैं , सिल्वर में नहीं गोल्ड में विस्वास रखते है "
छापने में कम फाड़ फेकने में विस्वास रखते है ,खेद सहित वापस में विस्वास रखते हैं
यदि यह बात सच है तो समझलो मेडम ,यह लेख भी आपके हाथ से गया

Sunday, April 20, 2008

कहाँ खो गया कवि मतवारा

दीपक भारतदीप जी का एक लेख है "नाम ,छद्म नाम और अनाम " छद्म नाम से किसी लेख पर अश्लील टिप्पणी करने का जिक्र है
साहित्य और संस्कृति पर विविध प्रकार से प्रहार होता रहा है और वह निरंतर बढ़ता जा रहा है =अश्लील चित्रों ने संस्कृति पर और अश्लील भाषा ने साहित्य पर अपने प्रहार बढा दिए हैं व्यक्ति को वाक एवम लेखन की स्वंत्रता है -जब स्वतंत्रता निरपेक्ष और दायित्वहीन हो जाती है तो स्वेच्छाचारिता हो जाती है वहा यह बात ध्यान में नहीं रखी जाती है की यह स्वतंत्रता विधि सम्मत नहीं है और किसी दूसरे की स्वन्त्न्त्र्ता में बाधक तो नहीं है =ज्ञान और भावों का भण्डार ,समाज का दर्पण -ज्ञान राशी का संचित कोष यदि मानव कल्याणकारी नहीं है तो उसे में साहित्य कैसे कहूं मेरी समझ से बाहर है जीवन के सूक्ष्म और यथार्थ चिंतन सामाजिक चरित्र का प्रतिपादन करती रचनाओं पर प्रतिकूल या अश्लील टिप्पणियाँ कहाँ तक स्वागत योग्य है मेरी समझ से बाहर हैं
कितनी हास्यास्पद बात है एक सज्जन कह रहे थे की चाहे जमाने भर में साहित्य का स्तर गिर जाए हमारे जिले में नहीं गिर सकता पूछा क्यों ? तो बडी सादगी से बोले हमारे जिले में साहित्यकार कोई है ही नहीं = जहाँ तक में समझता हूँ आमतौर पर कवि छपने के लिए ही रचनाएं लिखता है -चाहता है कविता के साथ उसका नाम अखवार में छपे फोटो साथ में छपे तो और भी मज़ा -कवि सम्मेलनों में भी कवि चाहता है की उसका नाम पुकारा जाए मगर एक तो सबसे पहले नहीं और दूसरे किसी अच्छे कवि के बाद नहीं
आश्चर्य तब होता है जब कवि कविताएँ लिख कर गुमनाम हो जाता है -जमाना बडे शौक से सुन रहा था -हमी खो गए दास्तान कहते कहते -हाँ कुछ रचनाएं गुमनाम जरूर होती हैं परन्तु वे होते हैं देवी देवताओं के नाम लिखे पत्र -उनमे पाने वाले का पता होता है और लेखक गुमनाम होता है -साथ ही प्रतिवंध होता है की अमुक मात्रा में पत्र की नकल भेजना अनिवार्य है -पत्र डालने पर अमुक फायदा और न डालने पर अमुक नुकसान होगा -फलां ने डाला तो लाटरी खुल गई और फलां ने नही डाला तो उसकी भैंस मर गयी - ऐसी रचनाओं से लेखक और पाठक के बीच कोई सुद्रढ़ सम्बन्ध निर्मित हों या विकसित हों इसके पूर्व ही लेखक गुम हो जाता है -साहित्य के द्वारा आत्मीय और आध्यात्मिक सम्बन्ध घनिष्ट हों तो आनंद की बात है -और यदि सम्बन्ध विकृत हों तो ?
जिस तरह किसी देश की राजनेतिक प्रणाली से भ्रष्टाचार के उन्मूलन में वहाँ की व्यवस्था असफल हो जाती है उसी तरह विद्रूप साहित्य के रचयिता को ढूढने में जासूस तक असफल हो जाते हैं और साहित्यकार अपनी विद्रूपता का दर्शन जन मानस को करा ही देता है -और लोग हैं की विद्रूपता पसंद कर रहे हैं =जो अश्रेष्ठ है -जो अपरिमार्जित है ,वह लोगों की आत्मा को तृप्त कर रहा है और रचनाकार भ्रम में है की कीर्तिमानों की लम्बी श्रख्ला में उसने एक कड़ी और जोड़ दी -अश्लील तुकवन्दी फूहड़ हास्य नेताओं को गलियां परोसकर कवि समझता है की उसने बडा तीर मार लिया -वाणी और स्वंत्रता का दुरूपयोग नहीं होना चाहिए -इजहारे ख्याल बुरा नहीं होता -उसकी अभिव्यक्ति ऐलानियाँ और खुल्लम खुल्ला की जा सकती है बशर्ते की ख्याल गरिमामय हो भाषा सुसंस्कृत और परिमार्जित हो बात दुशाले में लपेट कर भी कही जा सकती है
जोश मलीहाबादी ने कहा था की "अज्राह -ऐ -करम मुझ नीम जां को भी खबर कर दें ,अगर इस कूचागर्दी में कोई इंसान मिल जाए " हमारे यहाँ की सुप्रसिद्ध शायरा अंजुम रहबर ने कहा है =आदमी तो बहुत हैं जहाँ में ,ऐसा लगता है इंसान कम हैं "इसी प्रकार मेरा भी यही कहना है की कवि तो बहुत हैं जहाँ में -ऐसा लगता है साहित्यकार कम हैं

Friday, April 18, 2008

साहित्यिक चोरी की रपट थाने में नहीं होती

एक सम्पादक ने 'एक साहित्यकार की रचना ,इस टीप के साथ वापस कर दी की "चूँकि इसी रचना पूर्व में मुंशी प्रेमचंद लिख चुके हैं इसलिए वे इसे प्रकाशित नहीं कर सकेंगे -इस बात का उन्हें खेद है - वे साहित्यकार अभी तक यह नहीं समझ पाये की सम्पादक के खेद की वजह ==नहीं छाप सकना था =या ==मुंशी जी द्वारा लिखा जाना था
चोरियाँ नाना प्रकार की होती है और चोरी के तरीके भी भिन्न भिन्न प्रकार के होते हैं -रुपया पैसा जेवर आदि की चोरी के नए नए तरीके सिनेमा विभिन्न चेनल और सत्यकथाओं ने प्रचारित व प्रसारित कर दिए हैं -चैन चुराना दिल चुराना आदि पर जबसे फिल्मी दुनिया का एकाधिकार हुआ है -आम आदमी इस प्रकार की चोरियों से महरूम हो गया है
एक कवि ने एक कविता लिखी -उन्होंने प्रकाशनार्थ भेजने के पूर्व अपने मित्र को बतलाया -मित्र ने पूछा छप तो जायेगी -कवि बोले =यदि संपादक ने मेघदूत न पढा होगा तो छप जायेगी और अगर मेरे दुर्भाग्य से उन्होंने पढा होगा तो संपादक को बहुत खेद होगा
सम्पादक का स्वभाव ही होता है खेद करना -दिनभर में के से कम सौ दो सौ बार खेद करना ही पड़ता है -जब किसी बात की पुनराब्रत्ति होती है तो वैसा स्वभाव बन जाता है जैसे हर किसी पर शंका करते करते पुलिस को भे शंका करने दी आदत बन जाती है -किसी बारदात की रिपोर्ट कराने जाओ यही सवाल -तुम्हे किस पर शक है =बात बाद में सुनते है पहले यही पूछते है तुम्हे किस पर शक है
एक दिन एक मित्र मुझसे पूछने लगे -यार इन संपादकों को कैसे मालूम हो जाता है की रचना चोरी की हुई है क्या जरूरी है की सम्पादक ने कालिदास -कीट्स- शेक्सपीयर प्रेमचन्द- शरद आदि सभी को पढा हो हमें कहा =जरूरी तो नही है मगर वे लेख देख कर ताड़ जरूर जाते हैं --रचना का लिखा कोई वाक्यांश चतुरसेन के सोना और खून से है या नहीं यह भलेही संपादक न बता पाएं मगर यह जरूर बतला देंगे की यह वाक्यांश इस लेखक का नही हो सकता -सच है दाई से पेट नही छुप सकता =
किसी जमाने में जब हम विधार्थी हुआ करते थे टीबी हमसे पूछा जाता था की वह कौनसा अपराध है जिसके प्रयास करने पर सजा का प्रब्धान है और घटित कर देने पर कोई सजा नही होती है और हम उत्तर दिया करते थे धारा ३०९ यानी आत्महत्या =साहित्य चोरी का अपराध इसके जस्ट विपरीत है यानी प्रयास करने पर कोई अपराध नही और घटित कर देने पर अपराध बनता है
चोरी के मुकदमे में चोर के वकील अक्सर यह प्रश्न पूछा करते हैं की इस प्रकार के जेवरात ग्रामीण अंचलों में पहने जाते है इससे यह सिद्ध करने का प्रयास किया जाता है की जेवर फरियादी के नहीं वल्कि चोर के है -जेवरात की तरह साहित्यिक विचार एक दूसरे से मेल खा सकते है -बात वही रहती है और अंदाजे बयाँ बदल जाता है -दूसरों के साथ बुरा व्यबहार न करने की बात हजारों साल पहले विदुर जी ने कही अत्म्प्रतिकूलानी ......समाचरेत फ़िर वही बात अंग्रेज़ी में डू नोट डू ......कही गयी बात वही थी भाषा बदल गयी अंदाजे बयाँ बदल गया क्या मुज़्तर खैराबादी और बहादुरशाह जफर के खयालात मिलते जुलते नहीं थे दोनों के कहे हुए शेर पढ़ कर देख लीजिये क्या फैज़ अहमद फैज़ और मजरूह सुल्तानपुरी की रचनाओं में समानता नहीं है आदमी कन्फ्यूज्ड हो जाता है की ये लिखा किसने है
आम तौर पर चोर चोर मौसेरे भाई होते है और दिल के चोर आपस में रकीब होते है क्योंकी दिल एक चुराने वाले दो तो दुश्मनी स्वाभाबिक है -ऐसी बात साहित्य के मामले में नहीं है वे न तो आपस में मौसेरे भाई होते है न दुश्मन होते है वे तो आपस में प्रतिद्वंदी होते है -तूने हजार साल पहले की में से चुराया तो में ईसा पूर्व की में से चुराउगा
इसीलिए कहा गया है ==यदि नहीं कहा गया हो तो अब में कह देता हूँ ==साहित्यिक चोरी चोरी न भवति

Thursday, April 17, 2008

शर्मनाक

एक दस वर्षीय वालिका मिनी इस्कर्ट और टॉप पहने नृत्य कर रही है -उसके माता पिता अपनी होनहार बालिका का नृत्य देख कर आनंद मग्न हो रहे हैं -डेक पर केसेट बज रहा है =तू चीज़ बडी है मस्त मस्त = गाने के बोल के अनुसार ही बालिका का अंग संचालन हो रहा है - देश की इस भावी कर्णधार -समाज में नारी समुदाय का नेतृत्व करने वाली बालिका की भाव भंगिमा ने पिता का सर गर्व से ऊंचा उठा दिया है - और पिता की प्रसन्नता देख माताजी भी भाव विभोर हो रही हैं
यह सुना ही था की साहित्य समाज का दर्पण है आज प्रत्यक्ष देख भी लिया -वस्त्रों और अंगों पर लिखा जा रहा फिल्मी साहित्य अब गर्व की वस्तु होने लगी है -
प्रगतिशील कहते हैं नारी वस्तु नहीं है और ज़्यादा प्रगतिशील कहते हैं कन्यादान नहीं होना चाहिए क्यों की दान सम्पति का होता है और कन्या सम्पति नहीं है =अगर दान कन्या का होता है तो पुत्र का भी होना चाहिए -दूसरी और यह बालिका अपने आप को चीज़ कह रही है =
साहित्य और संस्कृति पर विविध रूपों में प्रहार होता रहा है चाहे वह अश्लील गीत हो या द्विअर्थी संबाद हो -पहले द्विअर्थी संबाद का अर्थ व्यंग्य होता था अब वे अश्लीलता का पर्याय है -सवाल यह नहीं है की वे किसने लिखे सवाल ये है की वे चले क्यों
कुछ वर्ष पूर्व दूरदर्शन से सुरैया जी पर प्रोग्राम प्रसारित किया जा रहा था =जब सुरैयाजी ने कहा की एक बार शूटिंग के दौरान उनका दुपट्टा गिर गया थी तो डायरेक्टर ने उस सीन को दुबारा फिल्माया था और दुपट्टा फ़िर न गिर जाए इसलिए पिन लगाई थी =यह घटना सुनकर समस्त श्रोतागन प्रसन्नता से झूम उठे थे और हाल तालियों की आवाज़ से गूँज गया था =मतलव साफ है अधिकांश लोन आज भी शालीन द्रश्य पसंद करते हैं = कुछ वर्षों बाद फूहड़पन और अश्लीलता देख लोग उबकाई लेंगे और शालीन तरीके से धारण किए गए वस्त्रों वाली फिल्में हॉउस फुल होंगी
किसी लडकी या नारी को देख कर चीज़ कहना कुत्सित मानसिकता का प्रतीक है -फूहड़ और अश्लील नाच पर सीटी बजा कर हुल्लड मचाने वालों की भाषा संस्कार में आरही है लडके आज उस धुन पर गा रहे हैं और लडकियां उस धुन पर झूम रही हैं -इससे ज़्यादा शर्मनाक क्या हो सकता है
नारी चाहे पत्नी हो -माँ हो बहिन हो पुत्री हो या कोई भी हो उसे तेजस्वनी दामिनी बनाया जासकता है उसे प्रतिभासंपन्न तेजपुंज युक्त और सामर्थ वान बन ने की प्रेरणा दी जा सकती है =अत्याचार और अन्याय -शोषण और उत्पीड़न के विरोध में खडा होना सिखाया जा सकता है -उसे मंत्री से लेकर सरपंच और पंच बन ने तक की प्रेरणा देना चाहिए मगर नारी के प्रति अशोभनीय वाक्यांशों का प्रतिकार होना चाहिए

Sunday, April 13, 2008

बधू माला क्यों नहीं
अपनी आर्थिक स्थिति से अधिक खर्च करके बनवाये गए विशाल मंच पर दो सिंहासन नुमा कुर्सियों के सामने सजा दूल्हा और ब्यूटी पार्लर से सुसज्जित करा कर लाई गई दुल्हन अत्यन्त सुंदर बडे बडे हार लिए खड़े हैं =बर अपने निजी और ख़ास मित्रों की सलाह पर हार डलवाने हेतु झुकने को तैयार नहीं =दोस्त कहते है बेटा आज झुक गया तो जिंदगी भर झुकना पडेगा = भला पत्नी के सामने कौन जिन्दगी भर झुका रहना चाहेगा =तो वह और भी तन कर खडा हो जाता है - बधू की परेशानी स्वभाबिक है =मालायें ड्लती हैं तालियाँ बजती हैं कैमरा मेन ठीक वक्त पर तस्वीर नहीं ले पाता =कैमरा मैन के यह बतलाने पर की वह चित्र नहीं ले पाया है पुन मालायें उतारी जाती हैं पहनाई जाती हैं कैमरा का फ्लश चमकता है -अबकी बार तालियाँ नहीं बजती हैं =
कैमरा मैन की खातिर हार उतार कर दोबारा डाले जाने पर मुझे एक नाटक का वह द्रश्य याद आजाता है जिसमें नायिका को खलनायक गोली मारता है एन मौके पर हीरोइन को बचाने उसके सामने सह अभिनेत्री आजाती है पर्दे के पीछे से पठाका चलता है -यानी गोली सह अभिनेत्री को लग जाती है = वह गिर कर मर जाती है या मर कर गिर जाती है जो भी हो वह गिर जाती है तालियाँ बजाते दर्शकों में से किसी ने शरारत करते हुए ख दिया =वंसमोर=सह अभिनेत्री तत्काल उठ कर हीरोइन के सामने खडी हो गई =
दूल्हा दुल्हन कुर्सियों पर बैठ जाते हैं एक महिला आकर कहती है गलत बैठ गए लडकी को बायीं और बिठाओ -पोजीशन बदल जाती है =लडकी का चाचा आजाता है कहता है ठीक बैठे थे बायीं तरफ लडकी फेरों के बाद बैठती है - कुर्सियों पर दूल्हा दुल्हन फिर बदल जाती हैं - मैं अपने आप से कहता हूँ ठीक है कैसे भी बैठ जाओ क्या फर्क पड़ता है क्यों फिजूल में नाटक कर रहे हो =
मंच पर वर माला का कार्यक्रम समाप्त हो गया में जिज्ञासा प्रकट करता हूँ इस कार्यक्रम का नाम वरमाला क्यों है बधू माला क्यों नहीं है दोनों ही तो एक दूसरे को माला पहनाते हैं तो वरमाला ही क्यों दहते कहते हैं हमारे जमाने में तो यह कार्यक्रम नहीं होता था - पास की कुर्सी पर एक ब्रद्ध सज्जन पान की जुगाली करते हुए बोले =अजी जनाब यह दस्तूर बहुत पुराना है राजा रामचंद्र के जमाने से वरमाला का कार्यक्रम होता चला आरहा है सीता जी ने राम को वरमाला डाली थी =हमने कहा श्रीमान वह वरमाला नही थी वो तो जय माला थी = इस माला का पाँच वार जिक्र आया है और कहीं भी बाबाजी ने वरमाला शब्द का प्रयोग नहीं किया है सुनिए ==कर सरोज जैमाल सुहाई =फिर =पहिरावाहू जयमाल सुहाई == और ==सिय जयमाल राम उर मेली = तथा रघुवर उर जयमाल =तथा ससिहि सभीत देत जयमाला = बताइये इसमें वरमाला शब्द कहाँ है =
वे पान चवाने में मशगूल थे में चालू रहता हूँ =राम ने तो वीरता का काम किया था =बल शोर्य और पराक्रम की पूजा होती आयी है जयमाला ऐसे ही लोगों के हिस्से में आती है विवेकानंद कहते थे जिस युवक में लडकी को गोद में उठा कर एक मील दौड़ लगाने की क्षमता हो उसी को शादी करना चाहिए =इन दूल्हा दुल्हन को देखो -कपडों से पहिचाने जा रहे हैं =एक से कपडे पहिना दिए जायें तो पता ही न चले की कौन दूल्हा कौन दुल्हन =और यह लड़का जरा हालत देखो इसकी शादी के तीन साल बाद खिलौना फ़िल्म का गाना गायेगा =की में चल भी नहीं सकता हूँ और तुम दोडे जाते हो = और यह लडकी हाँ याद आया बी ऐ फईनल में एक लडकी फर्स्ट क्लास आई तो कालेज ने पेरेंट्स को बुलाया पिताजी बाहर गए थे तो माँ को कालेज अकेले लडकी के साथ जाना पडा कालेज स्टाफ ने देखा तो माँ से कहा आप दोनों माँ बेटी जैसी लगती ही नहीं है माँ को अपने रख रखाव पर गर्व होना स्वाभाबिक था शर्मा कर बोली क्या में बेटी के बराबर दिखती हूँ स्टाफ ने कहा नहीं आपकी बेटी आपके बराबर दिखती है –
यह कुछ नहीं है एग जो स्लिम दिखने का फैशन चला है यह फैशन नहीं है खुराफात की जड़ है =ठीक है ज़्यादा वजन होना या बढ़ना अच्छी बात नहीं है लेकिन वजन और तंदुरुस्ती में अंतर होता है एक बाल्टी पानी लेकर दूसरी मंजिल पर जाना पडे तो साँस फूल जाए जियरा धक् धक् करने लगे =कहन लगे साब हम जिन्दगी का बोझ उठाएंगे = जो ख़ुद बैसाखी के सहारे चलता हो वह दूसरों को क्या सहारा देगा =और आजकल जो ये घटनाएं हो रही है =हाथ पैरों में इतना दम हो की लडके का हाथ पकडले तो छुडाने के लिए तड़पता रहे ==जब से लैला ने धुन्यो मजनू चलती राह -गाय मरकही जान के कोऊ न छेड़े ताहि =
वे शायद बोर हो रहे थे सो लिफाफा निकाल दूल्हा दुल्हन को आशीर्वाद देने बड़गए में भी लिफाफा टटोलने लगा जिसमें बड़े अहत्यात से एक सो एक रुपे रखे थे बार बार दिमाग में यही विचार आ रहा था की इनसे पांच छे किलो गेहूं आजाता तो आठ दस दिन निकल जाते =पंडितों को पन्द्रह तारीख के बाद व्याह की लग्न निकालना ही नहीं चाहिए =क्या ही अच्छा होता की चार माह तक लगातार सोने की वजाय देव हर माह की पन्द्रह से तीस तारीख तक सोते तो उन्हें भी दो माह का अतिरिक्त विश्राम मिल जाता और हमें लिफाफा रूपी आशीर्वाद देने के लिए अपने मित्रों से आजीवन रिनी रहने के लिए कर्ज़ न लेना पड़ता =यह नितांत सत्य है की पहली तारीख को शादी होगी तो दूल्हा दुल्हन को अधिक आशीर्वाद मिलेगा =
जैसे देव याचक अग्नि की -योगी एकांत की -रोगी चिकित्सक की -जमाखोर भाव ब्रद्धि की -भयभीत रक्षक की खोज में निरंतर रहता है उसी प्रकार सयानी लडकी का बाप वर की तलाश में निरंतर रहता है =वर यानी दूल्हा उस शादी वाले दिन राजा होता है तभी उसे दूल्हा राजा कहा जाता है =मेरा मानना है की बरात निकल रही हो और आप सायकल या मोटर सायकल पर हों तो उतरकर उसके सम्मान में खडे हो जाइए तो दूल्हा राजा होता है = पुराने जमाने में राजा दूसरे कमजोर राज्य पर आक्रमण करता था और राजकुमारी से विवाह करता था आज भी दूल्हा राजा है आक्रामक है बाराती उसके सैनिक है सब वोही रस्मो रिवाज़ वह हथियार रखता है कटार के रूप में -तोरन मारता है -आक्रमण और लूट का सीधा सम्बन्ध है वह दहेज़ लूटता है -लडकी का बाप दुर्वल राज्य का प्रतीक है -पहले रणभेरी तुरही शंख बजते थे आज डिस्को बजता है -पहले युद्ध जीतने के पश्तात सेनिक जश्न मनाते थे आज बाराती नाचते गाते पहले जश्न मनाते है क्योंकि यह तो तय है की युद्ध जीत लिया गया है लडकी के बाप ने पहले ही आत्मसमर्पण कर दिया है अपनी पगड़ी लडके के बाप के चरणों में रख दी है
जबतक पुरानी प्रथाएं रूप बदल बदल कर कायम रहेंगी बधू कितनी ही पढ़ लिख जाय आत्म निर्भर हो जाय -शराबी पती से शादी नकार दे -बरात लोटादे मगर वर माला वर माला ही कहलायेगी शायद वह बधू माला कभी नहीं कहला पाएगी

Thursday, April 10, 2008

डाटर्स मैरिज फोबिया

-मस्ती में झूमते बारातियों का शानदार स्वागत वी आय पी कुर्सियाँ -टेंट शामियाना -लाईट डेकोरेशन -मंच व्यवस्था - टीके में ; मांगी गई एक निश्चित धनराशी की प्रथम किश्त के साथ मोटर साइकिल वैसे मोटर साइकिल अब पुरानी बात हो गयी है यह तो अत्यन्त ही दीन हीन विचाराधीन दयनीय बाप के लिए है आजकल तो शिक्षाकर्मी पटवारी और किलार्क कार से नीचे बात नहीं करते -स्वाभाबिक है कार दोगे तो पेट्रोल भी देना पड़ेगा अब लडके वाले पेट्रोल का क्या सदुपयोग करते हैं एग उनके विवेक पर निर्भर है खैर =तो वर के पूरे खानदान के लिए अच्छे व महंगे कपडे -द्वाराचार की रस्म पर दूसरी व अन्तिम किश्त महंगा गर्म सूट रंगीन टी वी पैर पूजने महंगा आइटम लडकी को स्वर्ण के जेवर गृहस्थी के समस्त बर्तन -डबल वेड सोफा आदि इत्यादी - जब भी मेरे मित्र यह सब देखते हैं उनके ह्रदय से एक तीस मिश्रित आह निकलती है -इतना सब तो करना ही पडेगा -सभी कर रहे हैं सब जगह होने लगा है इतना सब कुछ मैं कैसे कर पाऊंगा
इतना सब मैं कैसे कर सकूंगा सोच सोच कर उनका जी घबराने लगता है दिल बैठने लगता है और उनकी तबियत बिगड़ जाती है -डाक्टर आता है नींद का इन्जेक्सन एक दो दीन त्रास शामक औसधियाँ और धीरे धीरे वे नार्मल होने लगते है - न तो उनके स्वजन और ना ही परिवार जन और न ही चिकित्सक जान पाते हैं की उनकी घबराहट की वजह क्या है - शामक औसधियाँ अब उनके लिए प्रतिदिन की खुराक हो चुकी है
मैंने उनकी बीमारी का नाम रखा है डाटर्स मैरिज फोबिया -किसी चिकित्सा शास्त्र या किसी पैथी में ऐसी बीमारी या ऐसे लक्षण नहीं लिखे है यह तो मेरा ही दिया हुआ नाम है -हाइड्रो फोबिया -अल्तो फोबिया - बाथोफोबिया आदि बीमारियों का तो चिकित्सा शास्त्र में उल्लेख भी है और उपचार भी = डाटर्स मैरिज फोबिया देश व्यापी अन्य घातक बीमारियों की तरह जानलेवा तो नहीं है इससे मरीज़ मरता तो नहीं है किंतु वह जीता भी नहीं है अध वीच में लटका रहता है त्रिशंकु की तरह -उसके चेहरे पर दुःख शोक और निराशा के भाव साफ दिखाई देने लगते है -वह अन्यमनस्क व्याकुल व चिडचिडा हो जाता है एकांत की तलाश में रहता है और शोर से घबराता है
मेरे मित्र का इलाज दवा है है मात्र माहोल परिवर्तन ही उनका उपचार है - जिस प्रकार निर्धन का एक मात्र लक्ष होता है की किसी तरह अमीर हो जाय - जिस प्रकार निरक्षर का एक लक्ष्य होता है की कुछ पढ़ लिख जाय कुछ कर दिखाए उसी तरह पुत्री के पिता का जीवन में एक ही लक्ष्य होता है की किसी तरह इसके हाथ पीले हो जायें यहाँ यह भी कहना चाहूंगा की कुछ माता पिता तो हद ही कर देते हैं इधर सोलह सत्रह की हुई नहीं की कहने लगते हैं इसके हाथ पीले हो जायें तो हम गंगा नहा जायें सिर से बोझ उतर जाए कुछ और लोगों ने कहावतें बना रखी हैं की लडकी की डोली और मुर्दा की अर्थी जितनी जल्दी उठ जाए उतना ही अच्छा होता है =अर्थी वाली बात तो समझ में आती है की तबतक घर में भयंकर कुहराम मचा रहता है लेकिन लडकी की डोली -और इन्हे शर्म भी नहीं आती लडकी के भावी जीवन से कोई लेनादेना नहीं है इनका - रोज़गार बेरोजगार कम पढ़ा लिखा कैसा भी हो लडकी का पेट तो भर ही देगा मतलब लडकियां मात्र पेट भरने के लिए ही पैदा होती हैं
जहाँ विबाह योग्य वर दिखता है या उसके वारे में पढा सुना जाता है तो कन्यायों के पिता उस पर मुग्ध होकर दौड़ने लगते हैं जिस तरह पतंगे अग्नी की ओर दौड़ते हैं फिर वर की आर्थिक मांगें पूरी न कर सकने के कारण उन्हें वापस लौटना पड़ता है किंतु फिर भी वे उसी के लिए तड़पते रहते हैं और जब वर अन्यत्र बिक जाता है तो दुःख से अत्यन्त व्याकुल रहते हैं जैसे संसार के सबसे बडे लाभ से उन्हें बंचित कर दिया गया हो -जिस तरह सारी नदियाँ द्रुत गती व प्रबाह से समुद्र की ओर दौड़ती हैं उसी तरह चारों तरफ से कन्यायों के पिता वर की ओर दौड़ते हैं --पूर्ती कम और मांग ज़्यादा तो मूल्य ब्रद्धि स्वाभाविक है अर्थ शास्त्र का यही नियम है - पुराने जमाने में इस सिद्धांत को आधार मान कर गोदामों में रुई भर कर नकली अभाव पैदा किया जाता था आजकल अनाज भर कर पैदा किया जाता है - हर लडके का पिता इस सिद्धांत का चतुर चितेरा होता है -
ऐसे में -इन परिस्थियों के मोजूद रहते माहोल परिवर्तन द्वारा मेरे मित्र का इलाज कैसे हो यह कठिन समस्या है किंतु उनका इलाज तो करना ही है-
जहाँ बिना दहेज के शादी हो रही हो -जहाँ लड़का कार और लडके की माँ नकदी व जेवर न मांग रही हो - बिध्युत सज्जा से दूर दिन के उजाले में सादगी पूर्ण तरीके से विवाह सम्पन्न हो रहा हो वहाँ मेरे मित्र को पहुचाना है –
जहाँ लडकी की शादी के लिए मकान व जेवर रहन नहीं रखे जा रहे हों -जहाँ पुश्तेनी खेती की जमीन विक्रय न की जारही हो -जहाँ लडकी के बाप पर दबाव न डाला जा रहा हो की =बरात के स्वागत में कोई कमी रही तो हमसे बुरा कोई न होगा =अमुक राशी या सामान देने पर ही लडकी को ले जाया जायेगा अथवा लडके लो फेरों पर भेजा जाएगा वह जगह मेरे मित्र को बताना है –

जहाँ लडके के बाप के सर पर इतना लोभ सवार न हो रहा हो की प्रसूतिकाल में खिलाये गए हरीला और पिलाए गए दशमूल काड़े से लेकर उच्च शिक्षा पर मय डोनेशन व केपी टेशन फीस पर हुआ व्यय मय व्याज के लडके के बाप से वसूल करना चाहता हो उनसे मेरे मित्र को मिलवाना है –
पाठक ब्रंद आपको कहीं ऐसा माहोल दिखे तो मेरे मित्र को जरूर बताना और उनसे कहना की अब ऐसा भी होने लगा है क्योंकि में चाहता हूँ की उनके जीवन की वाकी बची सांसें वे चैन से ले सकें

Monday, April 7, 2008

उल्लुओं की तलाश

आपको याद होगा सन १९९८ में अमेरिका के लोग भारत में उल्लू तलाशने आए थे /
में उल्लुओं की तलाश में हूँ या उल्लू तलाशने वाले मुझे तलाश रहे हैं एग बाद की बात है मुख्य बात यह है की अमेरिका के लोन उल्लू तलाशने यहाँ आए /वैसे उन्हें यहाँ आने की जरूरत नहीं थी विज्ञापन दे देते बिभिन्न प्रजाती के उल्लू अपने अपने बायो डाटा फोटो और बैंक ड्राफ्ट लेकर वहाँ पहुँच जाते /उल्लू कौन -जो एक ही काम बार बार करना चाहे और हर बार बिभिन्न परिणामों की अपेक्षा रखे वोही तो उल्लू है हम सब यही तो रोज़ कर रहे हैं
वैसे उनका यहाँ आना ठीक ही है क्यों की यहाँ उल्लू बहुत हैं और जो नहीं है उनको बनाया जारहा है / उल्लुओं के बारे में बहुत भ्रांतियाँ किम्ब्दंतियाँ प्रचलित हैं मगर में उन सब से सहमत नहीं हूँ ख़ास तौर पर इस बात से के उल्लू जिस ब्रक्ष पर बैठता है वोग वार्बाद हो जाता है भले ही इस बात के समर्थन में यह कहा गया हो की वार्बाद गुलिस्तान करने को एक ही उल्लू काफी था हर शाख पे उल्लू बैठे हैं अंजाम गुलिस्तान क्या होगा / अगर एग सच होता तो आज एक भी बगीचा नज़र नहीं आता
दूसरी बात उल्लू का बोलना अशुभ माना जाता है /असल में उल्लू के बोलने से कुछ अशुभ नहीं होता - बात असल में ये है की वह अशुभ मोंकों पर बोलने लगता है -कहीं युद्ध आदि हो रहा हो तो वह ज़रूर बोलेगा ==जनु कालदूत उलूक बोलहिं वचन परम भयावने ==कब कहाँ कैसे बोलना यह तो आदमी तक नहीं जनता है वह तो उल्लू है तो युद्ध में सियार गीध कौए कुत्ते सब बोल रहे थे - उसने यह तो देखा नहीं की मौके की नजाकत क्या है उनके ही साथ बोलने लगा चूंकि एग पेड़ पर था तो इसकी आवाज़ दूर तक गई ==हम तो मुलजिम नहीं थे गवाहों में थे -मुलजिमों के ही संग में पुकारे गए =वाली बात होगई और कहाजाने लगा की इसका बोलना अशुभ होता है /
कहा जाता है की उल्लू अपने बच्चों की आँखें खोलने के लिए कहीं से पारस पत्थर लाता है /सच है आँखें पारस ही खोल सकते हैं -परन्तु -=चलता हूँ थोडी दूर हर इक राह रो के साथ -पहिचान्ता नहीं हूँ अभी राह्वर को मैं =की मानिंद उन पारस को कोई पहिचंता नहीं है दोयम वे स्वयम अंतर्मुखी होकर आत्म साधना में तल्लीन हो जाते हैं गुफाओं और कन्दराओं में चले जाते है और उल्लुओं की आँखें बंद की बंद रह जाती हैं / यह भी कहते हैं की उल्लू को दिन में दिखाई नहीं देता है -ऐसी बात नहीं है दिन में वह स्वयम नहीं देखना चाहता /जो काम रात के अंधेरे में हो सकते हैं चोरी -डकेती-अपहरण -अन्याय -अत्याचार -बलात्कार -वे दिन के उजाले में हो रहे है -डंके की चोट हो रहे है मूँछो पर ताव दे कर हो रहे है /ऐसे में तटस्थ भाव से देखते रहने और कुछ न कर पाने या कुछ न कर सकने से वह यही उचित समझता है की दिन में देखा ही न जाए और हम यह समझते हैं की उल्लू को दिन में दिखाई नहीं देता है
उल्लू बनाने के सैंकडों तरीके सदियों से प्रचलित हैं और उन्ही की पुन्राब्रत्ति हो रही है और लोग अभी भी बनते चले जारहे हैं /ऐसे समाचार प्रकाशित होने के बाद भी की लोग सोना दोगुना करवाने के चक्कर में लुट गए इसके बाद भी वे दोगुना करवा ही रहे हैं /यात्रा में अपरिचितों के हाथ का प्रसाद खा रहे है बिस्कुट खा रहे है -कोई ग्रामीण अशिक्षित खाए तो ठीक परन्तु कलेक्टर खा रहे है -वस्तुओं की कीमत बड़ा कर छूट का लाभ दिया जारहा है एक किलो शकर खरीदो तो उसके साथ एक किलो फ्री भाई कमाल है /भूखंड इनामों के साथ किश्तों में बिक रहे है इनाम वाकायदा मिल रहा है जमीन का पता ही नहीं है /स्वर्ग नरक बैतरनी से क्या कम लोग बन रहे हैं /तुम्हारा नरक किसी प्लेनेट पर है तो वहाँ के निवासियों को यह प्रथ्वी नरक होगी /वहाँ के धर्म ग्रंथों में नरक वाले चैप्टर में हमारी प्रथ्वी का वर्णन होगा /
कुछ लोग कहते हैं की उल्लू बने रहने में फायदे बहुत है आपकी कोमल काया काम के कष्टों से महफूज़ रहती है फिर चाहे वह ऑफिस हो या घर /==जो सुख चाहो आपनो तो उल्लू बन कर रेओ-जो कोई पूछे बात तो आधो उत्तर देओ /अक्सर उल्लू प्रकृति के व्यक्ति पागल होने से बचे रहते है क्योंकि उनका पागल पन थोड़ा थोड़ा निकलता रहता है हर व्यक्ति में पागलपन के जर्म्स रहते है उन्हें थोड़ा थोड़ा निकलते रहना चाहिए / सार बात यह है की जब तक एक भी उल्लू मोजूद है उसका भर पूर उपयोग व उपभोग होता रहेगा वह समझेगा उसे मालिक बनाया जारहा है माई बाप बनाया जारहा है