Monday, July 14, 2008

kavi na houn nahi chatur kahavahun

कवि न होऊ नही चतुर कहाबहूँ

बात पुरानी किंतु सत्य -समाचार पत्रों से प्रमाणित सत्य -पनामा में एक कवि को इसलिए नौकरी से निकल दिया गया था क्योंकि वह कविताये करता था विश्वास न हो टू जनवरी से मार्च ९७ के समाचार पत्र उठा कर देखें -
अब कवि है तो कविताएँ तो करेगा ही- जिसप्रकार किसी जगह नियुक्ती हो जाने पर पुलिस वेरीफीकेशन बुलवाया जाता है उसी तरह पहले यह प्रमाणपत्र भी मगवाया जाना चाहिए की ये सज्जन कहीं कवि तो नहीं हैं या फिर आवेदक से शपथ पत्र लेना चाहिए की वह कवि नहीं है या दौरान सेवा वह कविताएँ नहीं लिखेगा -
कहते है कवि पैदा होता है बनता नहीं है वहीं यह भी कहा गया है की कब कौन कवि बन जाए कहा नहीं जा सकता - मौत -ग्राहक और कवित्व भाव का कोई भरोसा नहीं कब आजाये -तो ऐसी स्थिति में अव्वल तो कवि को नौकरी ही नहीं करना चाहिए और अगर नौकरी में रहते साहब की डाट फटकार -पत्नी की लताड़ -बच्चों की उद्दंडता -महगाई -तंगी -चिंता -तनाव -अशान्ती और बेचेनी गहन निराशा व दुःख इत्यादी से उसमें कवित्व भाव जाग्रत हो जाए तो उसे स्वयम ही तत्काल नौकरी छोड़ देना चाहिए और ==बडे बे आबरू होकर तेरे कूचे से हम निकले =से बच लेना चाहिए
शादी से पहले और नौकरी से पहले व्यक्ति वास्तव में कवि होता ही है वह चाँद -सितारे -बसंत -पुष्प -मोर -चातक -पपीहा सब पर लिखता है और सचोट लिखता है लेकिन शादी के बाद वह लिखता है आधा किलो आलू -सौ ग्राम मिर्च पर =एक किलो तेल पर -राशन की दुकान पर -चाँद सितारे उसके दिमाग में आते ही नहीं वह चाँद देखता है तो उसे रोटी दिखाई देती है -पूनम का चाँद यानी पूरी रोटी और अस्ट्मी का यानी आधी रोटी-
नौकरी तो कवि पुराने जमाने में भी करते थे और राज्य द्वारा उन्हें धन व सत्कार भी दिया जाता था भूषन आदि इसके प्रमाण हैं आम लोग भी कवियों को आमंत्रित करते थे और पारिश्रमिक कहो या कुछ भी कहो -विदाई के वक्त कुछ देते थे -यह इस बात से प्रमाणित होता है की =कवि को देन न चाहे विदाई पूछो केशव की कविताई =
वैसे भी आजकल नौकरी उन्ही की सही सलामत है जो यह सिद्धांत रखते है की =कवि न होऊ नहि चतुर कहावहूँ रुची अनुरूप साहब गुन गावहूँ= जो कवि नौकरी करते हैं वे अक्सर उदास ही रहते हैं कविता का मूड बनते ही बच्चे की फीस याद आने लगती है
मेरी बात सुनने में बडी अटपटी व बेहूदा लगेगी -मगर सत्य मानिए आज दुनिया में सबसे ज़्यादा कवि व शायर हैं मैं तो कवि गोष्टियों में देखता हूँ न -बहुत प्रचार प्रसार के बाद श्रोता तो कोई आते ही नहीं २५-३० कवि आते हैं हाथों में मोटी मोटी डायरियाँ लेकर रोकड़ वही खाता लेकर =अपना नम्बर आया रचना सुनाई वाह वाह सूनी अपना स्थान ग्रहण किया थोड़ी देर बैठे और खिसकने की जुगाड़ जमाने लगते हैं समापन के वक्त रह जाते है ७-८ कवि वो तो अच्छा है की आयोजक चाय नाश्ता सबसे आख़िर में रखता है - वाह वाह क्या बात है क्या तसब्बुर है क्या जज्बात है यह बोलना कवि गोष्ठी में जरूरी होता है तुम नही कहोगे तो तुम्हारी पर कौन कहेगा
पहले लेखक कम थे पाठक ज़्यादा आज लेखक ज़्यादा है पाठक मिलते ही नहीं -मुझे बचपन में किताबें ही नहीं मिली १४ साल का होते होते -किस्सा तोतामेना -सिंहासन बत्तीसी -बैताल पच्चीसी -चंद्रकांता संतति -भूतनाथ ही पढने को मिले जब शहर आया टीबी उपन्यास मिल पाये -आज किताबें है तो बच्चों को साहित्य में रूचि नहीं है
वैसे आचरण संहिता के मुताबिक कोई सेवक कविताएँ व लेख नहीं लिख सकता न प्रकाशित करवा सकता - वह किसी साहित्यिक समारोह दी अध्यक्षता नहि कर सकता =हाँ वह कार्यालय के समय में या समय उपरांत दारू पी सकता है -प्लाट खरीदने के नाम से फर्जी लोन प्राप्त कर सकता है -स्वस्थ पत्नी को बीमार बताकर उसके इलाज के पैसे ले सकता है किसी क्लब का सदस्य हो सकता है डांस बार में नाच गाने देख सकता है मगर कविताये न तो कर सकता है न छपवा कर कुछ पारिश्रमिक प्राप्त कर सकता है
समसामयिक मुद्दे पर संयत भाषा में साचोट कटु सत्य की अभिव्यक्ति कवि को नौकरी से हाथ धुल्वा सकती है- इसीलिए दुष्यंत जी ने ऐसे कर्मी कवियों को सावधान किया था की ==मत कहो आकाश में कुहरा घना है -यह किसी की व्यक्तिगत आलोचना है -एक प्रसिद्ध शायर ने भी सावधान किया था की =मुमकिन हो कल जुबानो कलम पर हों बंदिशे -आंखों को गुफ्तगू का सलीका सिखाइये

No comments: