Wednesday, April 23, 2008

बहुत कुछ होता है

जिन्दगी के जिस मुकाम पर कुछ कुछ होता है की उम्र समाप्त होती है वहाँ से सब कुछ होने की उम्र प्रारम्भ होकर "बहुत कुछ होता है " की अवस्था व्यक्ति प्राप्त कर लेता है / बहुत कुछ होता है में चिंता ,परेशानी , हताशा ,निराशा ,अवसाद ,दर्द ,महगाई ,बीमारी आदि सब शामिल है /
वो भी क्या दिन थे जब सबक याद न होने पर और हेड मास्साब के हाथ में खजूर की संटी देख कर कुछ कुछ होने लगता था / अब तो खैर स्कूल और कालेज विद्या अर्जन के स्थल न होकर मस्ती करने ,मारधाड़ व हिंसा सीखने के स्थान हो चुके हैं / नए नये आए लघु भ्राताओं को स्नेह ,प्यार ,सौहार्द व मार्गदर्शन देने के बदले रेगिंग का उपहार दिया जा रहा है /पितृ तुल्य ,आदरनीय ,इश्वर से ज़्यादा पूजनीय गुरु जनों को परेशान करने की नई नई विधियां पुष्पित और पल्लवित हो रही हैं /
दफ्तर जाने को घर से निकलो तो रस्ते में सब कुछ होने लगता है /आप सोचेंगे ये गड्ढे की बात करेगा / बिल्कुल नहीं करूंगा साहेब क्योंकि मुझे दिखाई देता है /जिस प्रकार विज्ञापनों के बीच -बीच में कहीं फीचर फ़िल्म दिखाई दे जाती है उसी प्रकार गड्ढों के बीच -बीच में मुझे बाकायदा सड़क दिखाई दे जाती है मगर रास्ता दिखलाई नहीं देता / कभी नहीं से देर भली को ध्यान में रखते हुए जब ,सम्हलकर धीरे धीरे चलता हूँ तो मोपेड पर बैठी हुई पीछे से ये कहतीं हैं इस तरह से तो पहुँच लिए / लोगों का ध्यान मत रखो वे स्वयम अपना ध्यान रखेंगे / ये रास्ता न छोडेंगे इन्हे छोड़ आगे बढ़ चलो "" सागर ख़ुद अपनी राह बना कर निकल चलो ,वरना यहाँ पे किसने किसे रास्ता दिया "" रास्ता देने वालों को स्वयम पता नहीं कि वे कहाँ चल रहे हैं / कब दायें मुड़ जाएं ,कब बाएँ मुड़ जाएं कब चलते चलते रुक जाएं ,किसी पहिचान वाले को आवाज़ लगादें .कभी दार्शनिक की तरह खडे खडे सोचने लग जाएं " में इधर जाऊ या उधर जाऊं " इतना गुस्सा ,झुंझलाहट व चिडचिडाहट होती है की क्या कहें /अत इस बात से इनकार नहीं कि सड़क पर बहुत कुछ होता है /
कार्यालयों में तो बहुत कुछ होता ही है /वहाँ कुछ मालिक होते हैं जिन्हें पब्लिक सर्वेंट कहा जाता है / कार्य बिभाजन सूची की द्रष्टि से एक तो उनके हिस्से में पहले से ही कम काम होता है , दोयम वे काम की अपेक्षा बातों में ज्यादा विस्वास रखते हैं /मैच का मौसम चल रहा हो तो कहना ही क्या है / फिर भी उनका सोच बडा विचित्र होता है कि सारा दफ्तर उनके ही दम पर चल रहा है , वे न होंगे तो क्या होगा / उनका यह भी विचार रहता है कि जब तक हम पुराने लोग हैं तव तक ही ठीक है आज की जनरेशन तो कार्यालय का बेडा गर्क कर देगी क्योंकि इनमें न काम करने की लगन है , न इच्छा है ,न मैनर्स है न जिम्मेदारी /काम तो सीखना ही नहीं चाहते /
दफ्तर से घर लौटे तो यहाँ सब कुछ होने लगता है /सस्ती सब्जी घर वालों को पसंद नहीं और महगी खरीदने की औकात नहीं / कहते हैं कि ज़्यादा कुंठा ग्रस्त रहने से ,सहन करने से , मस्तिष्क पर दवाब देने से शारीरिक रोग घेर लेते हैं , तो चिकित्सालय जाना पड़ता है , मगर यहाँ भी बहुत कुछ होता है सीट पर मिलते नहीं .वार्ड में है नहीं ,इमरजेंसी वार्ड में है नहीं - घर दिखाने लायक आर्थिक स्थिति नहीं / समाचार पत्र ,विज्ञापन , ताजातरीन रिपोर्ट्स आगाह करती हैं कि पचास के बाद नियमित बी पी ,सुगर , बगैरा के साथ छोटी -मोटी शिकायतों की भी नियमित जांच जरूरी है / मगर इनके टेबल पर रक्तचाप का यन्त्र व थर्मामीटर तक होता नहीं
अंग्रेज़ी दबा के साईड इफेक्ट को ध्यान में रख कर होमोपेथिक के पास जाओ तो वे पर्चा नहीं देते क्योंकि अगर बीमार को मालूम पड़ गया कि क्या दबा है तो वह ख़ुद ही खरीद कर खाने लगेगा वैसे आजकल हर घर में होमेओपेथिक तथा वायोकेमिक की हिन्दी में लिखी किताबें रहती ही हैं थोडा दर्द हुआ रसटोक्स खाली , जी घबराया कालीफास खाली -असर नहीं हुआ तो सरकारी अस्पताल चले गए ,भईया पहले ही तो चले जाते -पार तो वही पड़ना है -कुछ लोग जुकाम होने पर आठ दस दिन जुकाम झड़ने का इंतज़ार करते हैं और पानी सर के ऊपर आजाता है तो भागते है डाक्टर के पास /
सब कुछ होने के इस पडाव पर बच्चे भी शादी लायक हो जाते हैं यहाँ भी बहुत कुछ होता है लडकी तेज़ स्वभाव की न आजाये वरना धारा ४९८ बडी खतरनाक होती है जमानत भी नहीं होती और लडकी के वाबत यह कि यहाँ तो प्याज़ लहसन तक नहीं चलता वहाँ मुर्गा न पकता हो , जो तय हो गया उससे ज़्यादा न मांगने लगें , छोड़ जाएं लिवाने न आयें , मारने जलाने की धौंस न दें
अरे बडा मजा आता है जरा इनकी बातें सुनो -तो साब लडकी पसंद आगई कुंडली मिल गई - अब आप शादी किस स्तर की चाहते है ? अरे स्तर काहे का साहब -हम तो अपनी बहू थोड़े ही ,बेटी ले जा रहे है / मगर फिर भी / आपने भी तो कुछ संकल्प किया होगा / हमारा तो पाँच तक का इरादा है / अरे साब पाँच में तो किलार्क -बाबू तक नहीं मिलते - अब क्या बताएं साहब दो और धरी हैं इसके बाद / खैर पाँच और सब सामान / सामान तो अलग रहता ही है / तो फिर आप ऐसा करो दस और सब सामान करदो - ठीक है साहब जैसी आपकी मर्जी / हां एक बात और हम बरात लेकर आयेंगे आपको मेह्गा पडेगा बस का किराया स्वागत _बरात ठहराना आप एक काम करो लडकी को लेकर यही आजाओ अपन मैरिज हाल बुक बुक कर लेंगे एक डेड के आस पास खर्च आएगा वह आप वहन कर लेना और जो रिसेप्शन देंगे वह आधा आधा हो जाएगा /मगर सर आपके तो हजार पांच सौ आदमी होंगे हमारे तो दस बारह लोग ही आएंगे - क्या करे भाई आज कल ऐसा ही होता है
एक खास क्षेत्र और है उसमें भी बहुत कुछ होता है लेकिन मैं नहीं लिखूंगा /कभी लिखा भी नहीं / यह मेरा विषय भी नहीं है /हालांकि लोग कहते हैं कि इसके विना हर बात अधूरी लगती है इसके विना न लेख लिखा जा सकता है न व्यंग्य और न हास्य /मगर में लिखता नहीं क्योंकि ""फुर्सत कहाँ कि बात करें आसमा से हम ,लिपटे पडे हैं लज्ज्तो दर्दे निहां से हम "" इसलिए में इन्हे दूर से ही करता हूँ परनाम क्योंकि ये हैं बडे महान , ये धरती माता जैसे सहनशील हैं -पीडितों और शोषितों के लिए ,,ये सागर की तरह गहरे हैं जिसका पानी खारा होता है ,, इनका दिल दरिया है जो वक्त के साथ सूखता रहता है ,,ये वो फलदार ब्रक्ष हैं जिनके फल अपनों को ही मिलते हैं ,,ये वो बादल है जो बरसते हैं अपनों पर और गरजते हैं गैरों पर ,,ये वो बिजली हैं जो ख़ास घरों में उजाला करके आम घरों को झुलसाती है / ये वो भागीरथ हैं जो प्रयास करके गंगा तो लाते हैं मगर सपरिवार स्वयम ही नहाते हैं और दूसरों को भगाते हैं / इनके वारे में गलत कहो तो मान हानि का दावा करदे और सच इन्हे बर्दाश्त न हो / तो इस क्षेत्र में क्या कुछ होता है ये कहने के वजाय केवल समझा जाए
इसलिए कुछ कुछ होता है , बहुत कुछ्होता है , सब कुछ होता है यह सब देश ,काल , परिस्थितियों पर निर्भर करता है बस साक्षी भाव से देखते चलो

Tuesday, April 22, 2008

खिचडी भाषा की बात ही कुछ और है

विशुद्ध अंग्रेज़ी कोई बोल नही सकता और विशुद्ध हिन्दी कोई समझ नहीं सकता तो कोई वो क्यों बोले -खिचडी भाषा न बोले -
शासकीय कार्यालय में पत्र टाईप होने के पूर्व उस पत्र का मसौदा यानी ड्राफ्ट तैयार होता है - सरकारी कायदा है नींचे वाला ड्राफ्ट तैयार करता है और ऊपर वाला एप्रूब करता है -वहाँ योग्यता बेमानी है पद की गरिमा की बात है ऊंची कुर्सी की बात है तो ऊपर वाला हर ड्राफ्ट में संशोधन जरूर करता है -वैसा का वैसा ही अप्रूब कर दिया तो एप्रूबल का मतलब ही क्या -आखिर सुपीरअर्टी का भी कोई मतलब होता है = मैंने एक बार उन्ही के तैयार किए गए एक पत्र की तारीख तब्दील की और यथावत हाथ से नकल कर अप्प्रूब्ल के लिए भिजवादिया =वे ड्राफ्ट पढ़ते जा रहे थे -उसमें आवश्यक संशोधन करते जारहे थे और साथ में बड़बडाते भी जा रहे थे ==क्या कमाल का दफ्तर है जरा सा ड्राफ्ट तक सही तयार नहीं कर सकते -भाषा का कार्यकारी ज्ञान तक नहीं है आदि इत्यादी
एक बार मैंने ड्राफ्ट में कुछ साहित्यिक शब्द डाल दिए - शासकीय यानी कार्यालयीन शब्दों की एक सीमा है लगभग सौ सबा सौ शब्द - समस्त कार्यालयीन दुनिया इन्ही शब्दों के इर्द गिर्द घूमती है इन्ही सौ सवा सौ शब्दों से लाखों पत्र -परिपत्र -स्मरण पत्र -अर्ध -शासकीय पत्र रोजाना तैयार होते हैं -इन शब्दों के अलावा एक भी विजातीय शब्द इनमें सम्मिलित हो जाता है तो बात अखरने वाली हो जाती है और चूंकि बात अखरने वाली हो चुकी थी इसलिए उन्होंने मुझे तलब किया -बोले देखिये ये कार्यालय है कोई साहित्यिक संगठन या सभा नहीं है -शब्द वही प्रयोग करो जो शासकीय हों -सामने वाले को भी पता चलना चाहिए की पत्र शासकीय है
अपने गाँव की बोली व लहजा ={काये रे कैसो आओ थो} = मुझे पसंद है और बचपन से लेकर आज तक बोलता हूँ -मगर इधर कुछ वर्षों से जबसे बच्चे बडे हुए - उनके कुछ कोंवेन्टी मित्र मित्रानियों का हमारे ग्रह में पदार्पण प्रारम्भ हुआ है मेरी खड़ी बुन्देल खंडी बोली उन्हें रास नहीं आती -हालांकि वे मुंह से कुछ नहीं कहते पर हाव-भाव से व्यक्त हो ही जाता है "इशारों को अगर समझो "
बोलना ही नहीं मेरा उठाना बैठना तक -जब कभी में चाय पीने बैठक में चला जाता हूँ और दोनों पैर सोफे पर रख कर बैठ जाता हूँ और कप से चाय प्लेट में लेकर पीता हूँ या एकाध बिस्किट उठा कर चाय में डुबो लेता हूँ तो बच्चों की निगाहें एक दूसरे से कुछ कहने लगती हैं
एक दिन पुत्र रत्न ने अत्यन्त सकुचाते हुए कहा -आपकी भाषा और लहजे पर मेरे मित्र हँसते हैं तो मैंने उसी दिन "मूंछें हों तो नत्थूलाल जैसी हो वरना न हो " वाले लहजे में तय किया कि बोलूँगा तो विशुद्ध बोलूँगा नहीं तो नहीं बोलूँगा -एक दिन घर में मित्र मंडली जमी थी -मैंने बैठक में जाकर पुत्र से कहा "भइया मेरे द्विचक्र वाहन के प्रष्ठ चक्र से पवन प्रसारित हो चुका है उसमें शीघ्रतीशीघ्र पवन प्रविष्ट करवा ला ताकि कार्यालय प्रस्थान में मुझे अत्यधिक विलम्ब न हो " में तो कह कर चला आया परन्तु फूसफुसाह्ट मैंने सुनली पुत्र का एक मित्र कह रहा था "क्यों रे तेरे पापा का एकाध पेंच ढीला तो नहीं है
एक बार आफिस जाते वक्त मैंने जैसे ही जेब में हाथ डाला -रूमाल नदारद था मैंने पत्नी को आवाज़ दी 'मेरा मुख मार्जन वस्त्र खंड कमरे में कहीं रह गया है अवलोकन कर मुझे प्रदत्त कर दीजिये -पत्नी तो झल्लाती हुई चली गई मगर गुवाड़ी की अन्य महिलाओं और बच्चों के मध्य मैं हंसी का पात्र बन गया
हमारी गुवाड़ी में एक बहिनजी रहती है ठेठ देहाती परिवार -प्राइमरी स्कूल में बहिनजी की नौकरी लग गई तो परिवार यहाँ आगया एक दिन बहिनजी की सहकर्मी बहिनजियाँ उनके घर आयी तो इन बहिनजी ने बोलने के इस्टाइल -लहजा शब्द सब बदले -यह सब बदला तो बदले में बहिनजी के छोटे भाई बहिन भोंचक्के से होकर बहिनजी के मुंह तरफ ताकने लगे आखिर सबसे छोटी बोल ही उठी " काये री जीजी आज तोये हो का गयो तू आज कैसे बोल रई है "
पूर्व में थोड़ी घणी कालम ध्यान से पढ़ता था -बहुत पहले रेडियो इंदोर पर + राम राम भाई नंदाजी -राम राम भाई कान्हाजी ध्यान से सुनता था एक धारा वाहिक आया था नीम का पेड़ उसका बुधिया मुझे बडा पसंद आया था परन्तु मेरा बोलना किसी को पसंद नहीं =नहीं पसंद आएगा -शेर की दाढ़ से खून नहीं खिचडी लग गयी है अब तो वही पकेगी वही खाई जायेगी वही बोली जायेगी वही सुनी जायेगी

BHANTI BHANTI KE LEKHAK

मैंने एकदिन अपने लेखक मित्र से पूछा "यदि सम्पादक तुम्हारी रचना लौटा दे तो? वे बोले, दूसरी रचना भेजूंगा .मैंने पूछा "वह भी लौटादी तो ?वे सम्हलकर बोले "यथाशक्ति चेष्टापूर्वक दोनों रचनाओं का एकीकरण कर रचना तैयार करूंगा और भेजूँगा -मैंने पूछा मानलो अगर वह भी लौटादी तो ? वे झुंझलाकर बोले यार समझ में नहीं आता तू मेरा दोस्त है या संपादक का ?
लेखक का लेखन और संपादक का खेद इन दोनो तथ्यों को द्रस्तिगत रखते हुए में निसंदेह और द्रढ़ता पूर्वक यह कहने का साहस कर रहा हूँ की इन्द्र ,वायु ,यम ,सूर्य ,अग्नि .वरुण ,चन्द्र ,और कुबेर इन देवताओं के अंश लेकर लेखक धरती पर अवतरित होता है -इन आठों देवताओं के अंश लेखक में होते हैं वह इन्द्र के समान इस बसुधा पर ख्याति प्राप्त करता है ,जैसे वायु सुगंधी को फैलाती है वैसे ही लेखक का यश फैलता है =यमराज को धर्मराज भी कहते हैं जब लेखक नीतिपरक और सुधारक लेख लिखता है तो धर्मराज होता है ,समाज में फैला अज्ञानता रूपी अन्धकार वह सूर्य बनकर दूर करता है अग्नि को अनुकूलता मिले तो वह फैल जाती है
लेखक को भी सम्पादकीय अनुकूलता मिलने पर वह चरमोत्कर्ष पर पहुँच जाता है अन्यथा खेद सहित से उसकी अलमारियां सुसज्जित हो जाती हैं -वरुण जल ब्रष्टि करता है और चन्द्र अपनी छटा से आल्हादित करता है वैसे ही लेखक पाठक को नौ रसों से सराबोर कर देता है -कुछ पलों के लिए अपने लेख के माध्यम से पाठक को संसार की सुधि भुलाकर समाधि की स्थिति में पहुंचा देता है यदि कोई प्रकाशक रायल्टी रूपी द्रष्टि लेखक पर डाल दे तो वह साक्षात् इस धरती का कुबेर है
लेखक कई तरह के होते है -कुछ पत्र के तो कुछ पत्रिका के -कुछ गतिशील होते है तो कुछ प्रगतिशील -कुछ पत्र लेखक होते है तो कुछ गुमनाम पत्र लेखक होते है से वाये हाथ से गुमनाम पत्र लिख कर किसी भी कर्मचारी की शिकायत कर उस पर विभागीय जांच प्रारम्भ करवा सकते है कुछ शीघ्र लेखक होते है तो कुछ आवेदन पत्र लेखक
कुछ इंटरनेट पर ब्लॉग लेखक होते है लोग उन्हें ज़्यादा तादाद में पढ़ते हैं वहाँ विद्वानों का सम्मेलन होता है -दीपक भारतदीप जी का एक आलेख है ""कभी कभी ऐसा भी होता है " उसमें उनका कहना है की ""यह एक मंच है जिस पर हम सब एकत्रित हैं "" यहाँ के लेखक की अपनी भाषा बहुत ही सुसंस्कृत =सभ्य और शिष्टाचार पूर्ण होना चाहिए - दीपक जी ने अपने एक और आलेख ""हित और फ्लॉप का खेल चलने भी दो यारो ""में लिखा है ""अंतर्जाल बहुत व्यापक है और आप यहाँ किसके पास पहुचना चाहते है यह आप तय नहीं कर सकते तय करेंगे आपके "शब्द " =अभी भी इसमें लिखने वालों की संख्या कम ही है =आम तोर पर लेखक पेपर में ही लिखते हैं
लेखक की रचनाएँ छपती नहीं और लौट आती हैं यह बात वह सबसे गुप्त रखना चाहता है -जो कोई उससे पूछे यार -आजकल आप पेपर में बहुत दिन से नजर नहीं आरहे हो तो वह कभी नहीं कहेगा की संपादक रचना लौटा रहा है -वरन चेहरा लटका कर गंभीरता पूर्वक कहेगा "भइया आजकल दीगर कामों में इतने व्यस्त हैं की लिखने को समय ही नही निकाल पाते
आमतोर पर संपादक लेखक की रचना अच्छी बतलाते हुए ही खेद सहित वापस लौटाते हैं -वे यह कभी नहीं लिखते की श्रीमानजी जब आपको कलम पकड़ ने की तमीज़ नहीं है व्यर्थ में क्यों हमारा समय बर्बाद करते हो दूसरा क्षेत्र क्यों नहीं चुनते
एक सज्जन अपने मित्र से कह रहे थे की मैं लिखता भी हूँ और चित्रकारी भी करता हूँ -भविष्य में मुझे दोनों में से एक क्षेत्र मुझे चुनना है मित्र बोले आप चित्रकारी अपना लीजिये -सज्जन ने पूछा आपने मेरे चित्र देखे -मित्र ने कहा चित्र तो नहीं देखे आपकी एक दो रचनाएँ जरूर पढी हैं
लेखक का लेख छपना और किसी की लाटरी निकलना समान रूप से सुखदाई है -जब लेखक का पहला लेख छपता है तो भगवान् को प्रसाद चडाता है मित्रों के घर जा जा कर लेख बतलाता है उस लेख की कटिंग रखता है भलेही उसका लेख "करेले का अचार कैसे डालें ही क्यों न हो - पोस्ट मेन का लिफाफा लेकर घर की तरफ आना प्रेमी -जीव के लिए गंगावतरण है लेकिन लेखक को पोस्टमेन यमदूत नजर आता है क्योंकि वह खेद सहित ही आता है - कुछ लेखक खेद सहित से इतना डरते हैं की वे अपना पता लिखा लिफाफा ही नहीं भेजते -पसंद करो तो छापो नहीं तो फाडो - कुछ लेखक स्वान्त सुखाय लिखते हैं ये वह रचनाएँ होती है जो खेद सहित वापस आती हैं उनका खेद फाड़ दिया जाता है और स्वान्त सुखाय का लेवल चिपका दिया जाता है - कुछ छपने के लिए लिखते है तो कुछ नाम के लिए और कुछ नामा के लिए -कुछ लेखकों का विचार होता है की पारिश्रमिक का क्या वस नाम ही काफी है
लेखक चाहता है की वह कागज़ के दोनों ओर लिखे -संपादक चाहता है वह किसी ओर न लिखे इसलिए एक ओर लिखने का सिलसिला प्रारम्भ हुआ -आम तोर पर लेखक स्वाभिमानी होते है और होना भी चाहिए -कुछ लेखक शादी के पहले स्वाभिमानी होते है और कुछ लेखक तलाक के बाद स्वाभिमानी हो जाते है बीच की अवधी में वे अधबीच में पडे रहते हैं
एक कटु सत्य और =एक ख्याति प्राप्त लेखक द्वारा कही गयी कोई बात महत्त्व पूर्ण है और साधारण लेखक द्वारा कही गई वही बात महत्वहीन है =विषपान शिव का भूषण है और साधारण की म्रत्यु का कारण

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Monday, April 21, 2008

आपके हाथ से गया

एक दिन श्रीमती जी रोटी बेलते -बेलते अचानक मेरे सामने आकर मेरे लेखन कार्य में व्यवधान उत्पन्न करते हुए कहने लगी "सुनोजी ,मैंने एक रचना लिखी है -मैं हतप्रभ-सा एकटक उनको निहारता रह गया और बगैर मुक़र्रर इरशाद के उन्होंने कहना शुरू कर दिया =अर्ज़ किया है कि -
जो देर रात घर आने लगे , रचनाओं में सर अपना खपाने लगे
पत्र रिश्तेदारों के बदले संपादक को लिखने लगे

दाढी बडा के कवि जैसा दिखने लगे
कभी गीत लिखने लगे ,कभी छंद लिखने लगे
कभी गजल लिखने लगे तो कभी व्यंग्य लिखने लगे
नाम का पती हर काम से गया ,समझ लो वो आपके हाथ से गया

मेरे मुंह से आह या वाह निकले इसके पूर्व ही उन्होंने आदाब अर्ज़ करने की स्टाइल में दो बार अपने सर से हाथ लगाया -मेरा लेखन कार्य उनका प्रेरणा श्रोत भी बन सकता है यह महसूस कर मेरा सर गर्व से ऊंचा हो गया -असल में सर था तो यथा स्थान ही परन्तु मैंने महसूस किया कि वह ऊंचा हो गया है
हो जाता है साहब ,लोगों के कान खडे हो जाते हैं हालांकि वे दिखाई नहीं देते -आदमी खड़ा रहता है और उसका दिल बैठ जाता है -कभी आदमी ऊंचा रहता है और उसकी मूंछ नीची हो जाती है -आदमी तना रहता है और उसकी गर्दन झुक जाती है आदमी लेटा रहता है और उसका दिल बल्लियों उछलने लगता है -कभी १५ दिन से जो आदमी पलंग से हिल नहीं रहा होता है वह चल देता है ""कल तलक सुनते थे वो बिस्तर पे हिल सकते नहीं , आज ये सुनने में आया है कि वो तो चल दिए ""बिना चाकू छुरी के आदमी की नाक कट जाती है -सुर्पनखा की नाक चाकू या छुरी से नहीं काटी गयी थी क्योंकि लक्ष्मण जी तो केवल धनुष बाण लेकर गए थे चाकू छुरी उनके पास थी ही नहीं वो तो शायद यह हुआ होगा कि उस रूपसी का प्रणय निवेदन उन दोनों भ्राताओं ने ठुकरा दिया जिससे उसे मर्मान्तक पीडा हुई और उसकी इन्सल्ट हुई गोया उसकी नाक कट गई -सही भी है यदि किसी को पूर्ण विस्वास हो कि उसकी बात नहीं टाली जायेगी और टाल दी जाती है तो तो उसकी नाक तो कटेगी ही - एक नेताजी ने किसी से कहा फलां अफसर के पास चला जाना तेरा काम हो जाएगा - उस आदमी ने आकर नेताजी को बताया कि उस अफसर ने तो मुझे भगा दिया -नेता ने कहा तूने मेरा नाम नहीं लिया था क्या -तो उस आदमी ने कहा "सर फिर मैंने आपका नाम लिया तो उन्होने मुझे वापस बुलाया और पीट कर भगाया
खैर अपन कहाँ पहुच गए ==हाँ तो एक दिन फिर दुर्घटना घट गई वे कडाही मांजते हुए अचानक पूछ बैठी क्योंजी राजनीतिज्ञों का गावं से कितना ताल्लुक रहता है =मैंने साहित्यिक अंदाज़ में कहा जैसे चंद्र का चकोर से ,मछली का जल से , वे असहमत होकर बोलीं " मगर वे तो वहाँ तभी जाते हैं जब वहाँ कोई घटना घट जाती है "मैंने कहा जाना ही चाहिए उनका कार्यक्षेत्र है - वे बोलीं "कुछ न होगा तो वे वहाँ नहीं जायेंगे "मैंने कहा क्यों जायेंगे तो वे बोली "तो समझ लो वह गाव उनके हाथ से गया " मैंने पूछा क्या मतलब ? तो वे शायराना अंदाज़ में बोलीं =
जो गावं ओलों की बर्बादी से बचा ,जो गावं सूखा ,भुकमरी या बाढ़ से बचा
जिस गावं में कभी न कोई हादसा हुआ ,समझो वह गावं आपके हाथ से गया
इस बार मेरे मुंह से "वाह क्या बात है " निकल ही गया और वे सरिता पत्रिका के "हाय में शर्म से लाल हुई " वाले अंदाज़ में गुलाबी होने लगीं फिर साग्रह बोलीं इसे टाइम्स में छपने भेज दीजिये ना -मैंने रूखे स्वर में कहा "उसमें कविताएँ नहीं छपती " वे बूथ केप्चर करने वाले की तरह बिल्कुल हतोत्साहित नहीं हुई और नारी सुलभ लज्जा से लज्जित होकर बोली तो इसे इंटरनेट पर छपवा दीजिये न -मैंने कहा वह समुद्र है करोडों कविताएँ पडी है किस किस का ई मेल तलाश कर लिखोगी की मेरी कविता पढो नक्कार खाने में तूती की आवाज़ कोई नहीं सुनता है
वे बोलीं तो फिर आप ग्वालियर के प्रसिद्ध साहित्यकार व्यंगकार एवम कवि श्री दीपक भारतदीप जी के "अनंत शब्दकोष " भारतदीप का चिंतन "भारतदीप शब्दजाल पत्रिका " शब्द योग पत्रिका " "या उनकी शब्द्लेख पत्रिका "में ही भिजवा दो -मैंने कहा सोचेंगे -निराश होकर बोलीं तो फिर किसी अखवार में भेज दो वहाँ समाचारों का पिष्ट पेषण ज़्यादा होता है साथ में बहुत विज्ञापन होते है और समय पास करने वाले वर्ग पहेलियाँ भरते रहते हैं उठावना और पप्स उपलब्ध हैं पढ़ते रहते हैं कोई तो मेरी कविता पढ़ ही लेगा "आपके हाथ से गया "शीर्षक से भेज दो –
मैंने कहा भेज तो दूँगा मगर रचना बहुत छोटी है - वे बोलीं बडा दूंगी -चार लाईने वकील के लिए लिख दूंगी
नकलें कहाँ पे मिलती हैं ,तल्वाने कौन लेता है
मन चाही पेशियों के पैसे कौन लेता है
तामील कहाँ पे दबती है ,फाइल कहाँ पे रुकती है

वारंट कहाँ पे दबता है ,रिकार्ड कहाँ पे गुमता है
गर आपका फरीक बातें ये सब जान गया ,समझो मुवक्किल आपके हाथ से गया
निराशा जब घेरती है तो व्यक्ति डूबता चला जाता है और उत्साह बढ़ता है तो हवा से बातें होने लगती है वे अतिउत्साहित होकर बोली डाक्टर के लिए अर्ज़ किया है की
क्रोसीन में क्या गुन है बुखार क्यों आता है ,नमक न खाओ तो बी पी घट जाता है
योग करने से टेंशन मिट जाता है ,पैदल चलने से पेट घट जाता है
पानी बहुत पीने से पिंडली दर्द जाता है और मसूर के उबटन से चेहरा निखर जाता है
आपका रोगी ये बातें सब जान गया , नकली बीमार आपके हाथ से गया

मैंने उनसे चुनावी वादा किया अच्छा भेज देते हैं ,मगर साथ ही शराबी फ़िल्म की अमिताभी स्टाइल में कहा "या तो प्रसिद्ध लेखक छपे या संपादक जिसको चांस दे ,वरना अखवार में आजकल छप भला सकता है कौन " साथ ही यह मशविरा भी दिया कि =छापने वाले अक्सर नये में नहीं पुराने में विश्वास रखते हैं , सिल्वर में नहीं गोल्ड में विस्वास रखते है "
छापने में कम फाड़ फेकने में विस्वास रखते है ,खेद सहित वापस में विस्वास रखते हैं
यदि यह बात सच है तो समझलो मेडम ,यह लेख भी आपके हाथ से गया

Sunday, April 20, 2008

कहाँ खो गया कवि मतवारा

दीपक भारतदीप जी का एक लेख है "नाम ,छद्म नाम और अनाम " छद्म नाम से किसी लेख पर अश्लील टिप्पणी करने का जिक्र है
साहित्य और संस्कृति पर विविध प्रकार से प्रहार होता रहा है और वह निरंतर बढ़ता जा रहा है =अश्लील चित्रों ने संस्कृति पर और अश्लील भाषा ने साहित्य पर अपने प्रहार बढा दिए हैं व्यक्ति को वाक एवम लेखन की स्वंत्रता है -जब स्वतंत्रता निरपेक्ष और दायित्वहीन हो जाती है तो स्वेच्छाचारिता हो जाती है वहा यह बात ध्यान में नहीं रखी जाती है की यह स्वतंत्रता विधि सम्मत नहीं है और किसी दूसरे की स्वन्त्न्त्र्ता में बाधक तो नहीं है =ज्ञान और भावों का भण्डार ,समाज का दर्पण -ज्ञान राशी का संचित कोष यदि मानव कल्याणकारी नहीं है तो उसे में साहित्य कैसे कहूं मेरी समझ से बाहर है जीवन के सूक्ष्म और यथार्थ चिंतन सामाजिक चरित्र का प्रतिपादन करती रचनाओं पर प्रतिकूल या अश्लील टिप्पणियाँ कहाँ तक स्वागत योग्य है मेरी समझ से बाहर हैं
कितनी हास्यास्पद बात है एक सज्जन कह रहे थे की चाहे जमाने भर में साहित्य का स्तर गिर जाए हमारे जिले में नहीं गिर सकता पूछा क्यों ? तो बडी सादगी से बोले हमारे जिले में साहित्यकार कोई है ही नहीं = जहाँ तक में समझता हूँ आमतौर पर कवि छपने के लिए ही रचनाएं लिखता है -चाहता है कविता के साथ उसका नाम अखवार में छपे फोटो साथ में छपे तो और भी मज़ा -कवि सम्मेलनों में भी कवि चाहता है की उसका नाम पुकारा जाए मगर एक तो सबसे पहले नहीं और दूसरे किसी अच्छे कवि के बाद नहीं
आश्चर्य तब होता है जब कवि कविताएँ लिख कर गुमनाम हो जाता है -जमाना बडे शौक से सुन रहा था -हमी खो गए दास्तान कहते कहते -हाँ कुछ रचनाएं गुमनाम जरूर होती हैं परन्तु वे होते हैं देवी देवताओं के नाम लिखे पत्र -उनमे पाने वाले का पता होता है और लेखक गुमनाम होता है -साथ ही प्रतिवंध होता है की अमुक मात्रा में पत्र की नकल भेजना अनिवार्य है -पत्र डालने पर अमुक फायदा और न डालने पर अमुक नुकसान होगा -फलां ने डाला तो लाटरी खुल गई और फलां ने नही डाला तो उसकी भैंस मर गयी - ऐसी रचनाओं से लेखक और पाठक के बीच कोई सुद्रढ़ सम्बन्ध निर्मित हों या विकसित हों इसके पूर्व ही लेखक गुम हो जाता है -साहित्य के द्वारा आत्मीय और आध्यात्मिक सम्बन्ध घनिष्ट हों तो आनंद की बात है -और यदि सम्बन्ध विकृत हों तो ?
जिस तरह किसी देश की राजनेतिक प्रणाली से भ्रष्टाचार के उन्मूलन में वहाँ की व्यवस्था असफल हो जाती है उसी तरह विद्रूप साहित्य के रचयिता को ढूढने में जासूस तक असफल हो जाते हैं और साहित्यकार अपनी विद्रूपता का दर्शन जन मानस को करा ही देता है -और लोग हैं की विद्रूपता पसंद कर रहे हैं =जो अश्रेष्ठ है -जो अपरिमार्जित है ,वह लोगों की आत्मा को तृप्त कर रहा है और रचनाकार भ्रम में है की कीर्तिमानों की लम्बी श्रख्ला में उसने एक कड़ी और जोड़ दी -अश्लील तुकवन्दी फूहड़ हास्य नेताओं को गलियां परोसकर कवि समझता है की उसने बडा तीर मार लिया -वाणी और स्वंत्रता का दुरूपयोग नहीं होना चाहिए -इजहारे ख्याल बुरा नहीं होता -उसकी अभिव्यक्ति ऐलानियाँ और खुल्लम खुल्ला की जा सकती है बशर्ते की ख्याल गरिमामय हो भाषा सुसंस्कृत और परिमार्जित हो बात दुशाले में लपेट कर भी कही जा सकती है
जोश मलीहाबादी ने कहा था की "अज्राह -ऐ -करम मुझ नीम जां को भी खबर कर दें ,अगर इस कूचागर्दी में कोई इंसान मिल जाए " हमारे यहाँ की सुप्रसिद्ध शायरा अंजुम रहबर ने कहा है =आदमी तो बहुत हैं जहाँ में ,ऐसा लगता है इंसान कम हैं "इसी प्रकार मेरा भी यही कहना है की कवि तो बहुत हैं जहाँ में -ऐसा लगता है साहित्यकार कम हैं

Friday, April 18, 2008

साहित्यिक चोरी की रपट थाने में नहीं होती

एक सम्पादक ने 'एक साहित्यकार की रचना ,इस टीप के साथ वापस कर दी की "चूँकि इसी रचना पूर्व में मुंशी प्रेमचंद लिख चुके हैं इसलिए वे इसे प्रकाशित नहीं कर सकेंगे -इस बात का उन्हें खेद है - वे साहित्यकार अभी तक यह नहीं समझ पाये की सम्पादक के खेद की वजह ==नहीं छाप सकना था =या ==मुंशी जी द्वारा लिखा जाना था
चोरियाँ नाना प्रकार की होती है और चोरी के तरीके भी भिन्न भिन्न प्रकार के होते हैं -रुपया पैसा जेवर आदि की चोरी के नए नए तरीके सिनेमा विभिन्न चेनल और सत्यकथाओं ने प्रचारित व प्रसारित कर दिए हैं -चैन चुराना दिल चुराना आदि पर जबसे फिल्मी दुनिया का एकाधिकार हुआ है -आम आदमी इस प्रकार की चोरियों से महरूम हो गया है
एक कवि ने एक कविता लिखी -उन्होंने प्रकाशनार्थ भेजने के पूर्व अपने मित्र को बतलाया -मित्र ने पूछा छप तो जायेगी -कवि बोले =यदि संपादक ने मेघदूत न पढा होगा तो छप जायेगी और अगर मेरे दुर्भाग्य से उन्होंने पढा होगा तो संपादक को बहुत खेद होगा
सम्पादक का स्वभाव ही होता है खेद करना -दिनभर में के से कम सौ दो सौ बार खेद करना ही पड़ता है -जब किसी बात की पुनराब्रत्ति होती है तो वैसा स्वभाव बन जाता है जैसे हर किसी पर शंका करते करते पुलिस को भे शंका करने दी आदत बन जाती है -किसी बारदात की रिपोर्ट कराने जाओ यही सवाल -तुम्हे किस पर शक है =बात बाद में सुनते है पहले यही पूछते है तुम्हे किस पर शक है
एक दिन एक मित्र मुझसे पूछने लगे -यार इन संपादकों को कैसे मालूम हो जाता है की रचना चोरी की हुई है क्या जरूरी है की सम्पादक ने कालिदास -कीट्स- शेक्सपीयर प्रेमचन्द- शरद आदि सभी को पढा हो हमें कहा =जरूरी तो नही है मगर वे लेख देख कर ताड़ जरूर जाते हैं --रचना का लिखा कोई वाक्यांश चतुरसेन के सोना और खून से है या नहीं यह भलेही संपादक न बता पाएं मगर यह जरूर बतला देंगे की यह वाक्यांश इस लेखक का नही हो सकता -सच है दाई से पेट नही छुप सकता =
किसी जमाने में जब हम विधार्थी हुआ करते थे टीबी हमसे पूछा जाता था की वह कौनसा अपराध है जिसके प्रयास करने पर सजा का प्रब्धान है और घटित कर देने पर कोई सजा नही होती है और हम उत्तर दिया करते थे धारा ३०९ यानी आत्महत्या =साहित्य चोरी का अपराध इसके जस्ट विपरीत है यानी प्रयास करने पर कोई अपराध नही और घटित कर देने पर अपराध बनता है
चोरी के मुकदमे में चोर के वकील अक्सर यह प्रश्न पूछा करते हैं की इस प्रकार के जेवरात ग्रामीण अंचलों में पहने जाते है इससे यह सिद्ध करने का प्रयास किया जाता है की जेवर फरियादी के नहीं वल्कि चोर के है -जेवरात की तरह साहित्यिक विचार एक दूसरे से मेल खा सकते है -बात वही रहती है और अंदाजे बयाँ बदल जाता है -दूसरों के साथ बुरा व्यबहार न करने की बात हजारों साल पहले विदुर जी ने कही अत्म्प्रतिकूलानी ......समाचरेत फ़िर वही बात अंग्रेज़ी में डू नोट डू ......कही गयी बात वही थी भाषा बदल गयी अंदाजे बयाँ बदल गया क्या मुज़्तर खैराबादी और बहादुरशाह जफर के खयालात मिलते जुलते नहीं थे दोनों के कहे हुए शेर पढ़ कर देख लीजिये क्या फैज़ अहमद फैज़ और मजरूह सुल्तानपुरी की रचनाओं में समानता नहीं है आदमी कन्फ्यूज्ड हो जाता है की ये लिखा किसने है
आम तौर पर चोर चोर मौसेरे भाई होते है और दिल के चोर आपस में रकीब होते है क्योंकी दिल एक चुराने वाले दो तो दुश्मनी स्वाभाबिक है -ऐसी बात साहित्य के मामले में नहीं है वे न तो आपस में मौसेरे भाई होते है न दुश्मन होते है वे तो आपस में प्रतिद्वंदी होते है -तूने हजार साल पहले की में से चुराया तो में ईसा पूर्व की में से चुराउगा
इसीलिए कहा गया है ==यदि नहीं कहा गया हो तो अब में कह देता हूँ ==साहित्यिक चोरी चोरी न भवति

Thursday, April 17, 2008

शर्मनाक

एक दस वर्षीय वालिका मिनी इस्कर्ट और टॉप पहने नृत्य कर रही है -उसके माता पिता अपनी होनहार बालिका का नृत्य देख कर आनंद मग्न हो रहे हैं -डेक पर केसेट बज रहा है =तू चीज़ बडी है मस्त मस्त = गाने के बोल के अनुसार ही बालिका का अंग संचालन हो रहा है - देश की इस भावी कर्णधार -समाज में नारी समुदाय का नेतृत्व करने वाली बालिका की भाव भंगिमा ने पिता का सर गर्व से ऊंचा उठा दिया है - और पिता की प्रसन्नता देख माताजी भी भाव विभोर हो रही हैं
यह सुना ही था की साहित्य समाज का दर्पण है आज प्रत्यक्ष देख भी लिया -वस्त्रों और अंगों पर लिखा जा रहा फिल्मी साहित्य अब गर्व की वस्तु होने लगी है -
प्रगतिशील कहते हैं नारी वस्तु नहीं है और ज़्यादा प्रगतिशील कहते हैं कन्यादान नहीं होना चाहिए क्यों की दान सम्पति का होता है और कन्या सम्पति नहीं है =अगर दान कन्या का होता है तो पुत्र का भी होना चाहिए -दूसरी और यह बालिका अपने आप को चीज़ कह रही है =
साहित्य और संस्कृति पर विविध रूपों में प्रहार होता रहा है चाहे वह अश्लील गीत हो या द्विअर्थी संबाद हो -पहले द्विअर्थी संबाद का अर्थ व्यंग्य होता था अब वे अश्लीलता का पर्याय है -सवाल यह नहीं है की वे किसने लिखे सवाल ये है की वे चले क्यों
कुछ वर्ष पूर्व दूरदर्शन से सुरैया जी पर प्रोग्राम प्रसारित किया जा रहा था =जब सुरैयाजी ने कहा की एक बार शूटिंग के दौरान उनका दुपट्टा गिर गया थी तो डायरेक्टर ने उस सीन को दुबारा फिल्माया था और दुपट्टा फ़िर न गिर जाए इसलिए पिन लगाई थी =यह घटना सुनकर समस्त श्रोतागन प्रसन्नता से झूम उठे थे और हाल तालियों की आवाज़ से गूँज गया था =मतलव साफ है अधिकांश लोन आज भी शालीन द्रश्य पसंद करते हैं = कुछ वर्षों बाद फूहड़पन और अश्लीलता देख लोग उबकाई लेंगे और शालीन तरीके से धारण किए गए वस्त्रों वाली फिल्में हॉउस फुल होंगी
किसी लडकी या नारी को देख कर चीज़ कहना कुत्सित मानसिकता का प्रतीक है -फूहड़ और अश्लील नाच पर सीटी बजा कर हुल्लड मचाने वालों की भाषा संस्कार में आरही है लडके आज उस धुन पर गा रहे हैं और लडकियां उस धुन पर झूम रही हैं -इससे ज़्यादा शर्मनाक क्या हो सकता है
नारी चाहे पत्नी हो -माँ हो बहिन हो पुत्री हो या कोई भी हो उसे तेजस्वनी दामिनी बनाया जासकता है उसे प्रतिभासंपन्न तेजपुंज युक्त और सामर्थ वान बन ने की प्रेरणा दी जा सकती है =अत्याचार और अन्याय -शोषण और उत्पीड़न के विरोध में खडा होना सिखाया जा सकता है -उसे मंत्री से लेकर सरपंच और पंच बन ने तक की प्रेरणा देना चाहिए मगर नारी के प्रति अशोभनीय वाक्यांशों का प्रतिकार होना चाहिए

Sunday, April 13, 2008

बधू माला क्यों नहीं
अपनी आर्थिक स्थिति से अधिक खर्च करके बनवाये गए विशाल मंच पर दो सिंहासन नुमा कुर्सियों के सामने सजा दूल्हा और ब्यूटी पार्लर से सुसज्जित करा कर लाई गई दुल्हन अत्यन्त सुंदर बडे बडे हार लिए खड़े हैं =बर अपने निजी और ख़ास मित्रों की सलाह पर हार डलवाने हेतु झुकने को तैयार नहीं =दोस्त कहते है बेटा आज झुक गया तो जिंदगी भर झुकना पडेगा = भला पत्नी के सामने कौन जिन्दगी भर झुका रहना चाहेगा =तो वह और भी तन कर खडा हो जाता है - बधू की परेशानी स्वभाबिक है =मालायें ड्लती हैं तालियाँ बजती हैं कैमरा मेन ठीक वक्त पर तस्वीर नहीं ले पाता =कैमरा मैन के यह बतलाने पर की वह चित्र नहीं ले पाया है पुन मालायें उतारी जाती हैं पहनाई जाती हैं कैमरा का फ्लश चमकता है -अबकी बार तालियाँ नहीं बजती हैं =
कैमरा मैन की खातिर हार उतार कर दोबारा डाले जाने पर मुझे एक नाटक का वह द्रश्य याद आजाता है जिसमें नायिका को खलनायक गोली मारता है एन मौके पर हीरोइन को बचाने उसके सामने सह अभिनेत्री आजाती है पर्दे के पीछे से पठाका चलता है -यानी गोली सह अभिनेत्री को लग जाती है = वह गिर कर मर जाती है या मर कर गिर जाती है जो भी हो वह गिर जाती है तालियाँ बजाते दर्शकों में से किसी ने शरारत करते हुए ख दिया =वंसमोर=सह अभिनेत्री तत्काल उठ कर हीरोइन के सामने खडी हो गई =
दूल्हा दुल्हन कुर्सियों पर बैठ जाते हैं एक महिला आकर कहती है गलत बैठ गए लडकी को बायीं और बिठाओ -पोजीशन बदल जाती है =लडकी का चाचा आजाता है कहता है ठीक बैठे थे बायीं तरफ लडकी फेरों के बाद बैठती है - कुर्सियों पर दूल्हा दुल्हन फिर बदल जाती हैं - मैं अपने आप से कहता हूँ ठीक है कैसे भी बैठ जाओ क्या फर्क पड़ता है क्यों फिजूल में नाटक कर रहे हो =
मंच पर वर माला का कार्यक्रम समाप्त हो गया में जिज्ञासा प्रकट करता हूँ इस कार्यक्रम का नाम वरमाला क्यों है बधू माला क्यों नहीं है दोनों ही तो एक दूसरे को माला पहनाते हैं तो वरमाला ही क्यों दहते कहते हैं हमारे जमाने में तो यह कार्यक्रम नहीं होता था - पास की कुर्सी पर एक ब्रद्ध सज्जन पान की जुगाली करते हुए बोले =अजी जनाब यह दस्तूर बहुत पुराना है राजा रामचंद्र के जमाने से वरमाला का कार्यक्रम होता चला आरहा है सीता जी ने राम को वरमाला डाली थी =हमने कहा श्रीमान वह वरमाला नही थी वो तो जय माला थी = इस माला का पाँच वार जिक्र आया है और कहीं भी बाबाजी ने वरमाला शब्द का प्रयोग नहीं किया है सुनिए ==कर सरोज जैमाल सुहाई =फिर =पहिरावाहू जयमाल सुहाई == और ==सिय जयमाल राम उर मेली = तथा रघुवर उर जयमाल =तथा ससिहि सभीत देत जयमाला = बताइये इसमें वरमाला शब्द कहाँ है =
वे पान चवाने में मशगूल थे में चालू रहता हूँ =राम ने तो वीरता का काम किया था =बल शोर्य और पराक्रम की पूजा होती आयी है जयमाला ऐसे ही लोगों के हिस्से में आती है विवेकानंद कहते थे जिस युवक में लडकी को गोद में उठा कर एक मील दौड़ लगाने की क्षमता हो उसी को शादी करना चाहिए =इन दूल्हा दुल्हन को देखो -कपडों से पहिचाने जा रहे हैं =एक से कपडे पहिना दिए जायें तो पता ही न चले की कौन दूल्हा कौन दुल्हन =और यह लड़का जरा हालत देखो इसकी शादी के तीन साल बाद खिलौना फ़िल्म का गाना गायेगा =की में चल भी नहीं सकता हूँ और तुम दोडे जाते हो = और यह लडकी हाँ याद आया बी ऐ फईनल में एक लडकी फर्स्ट क्लास आई तो कालेज ने पेरेंट्स को बुलाया पिताजी बाहर गए थे तो माँ को कालेज अकेले लडकी के साथ जाना पडा कालेज स्टाफ ने देखा तो माँ से कहा आप दोनों माँ बेटी जैसी लगती ही नहीं है माँ को अपने रख रखाव पर गर्व होना स्वाभाबिक था शर्मा कर बोली क्या में बेटी के बराबर दिखती हूँ स्टाफ ने कहा नहीं आपकी बेटी आपके बराबर दिखती है –
यह कुछ नहीं है एग जो स्लिम दिखने का फैशन चला है यह फैशन नहीं है खुराफात की जड़ है =ठीक है ज़्यादा वजन होना या बढ़ना अच्छी बात नहीं है लेकिन वजन और तंदुरुस्ती में अंतर होता है एक बाल्टी पानी लेकर दूसरी मंजिल पर जाना पडे तो साँस फूल जाए जियरा धक् धक् करने लगे =कहन लगे साब हम जिन्दगी का बोझ उठाएंगे = जो ख़ुद बैसाखी के सहारे चलता हो वह दूसरों को क्या सहारा देगा =और आजकल जो ये घटनाएं हो रही है =हाथ पैरों में इतना दम हो की लडके का हाथ पकडले तो छुडाने के लिए तड़पता रहे ==जब से लैला ने धुन्यो मजनू चलती राह -गाय मरकही जान के कोऊ न छेड़े ताहि =
वे शायद बोर हो रहे थे सो लिफाफा निकाल दूल्हा दुल्हन को आशीर्वाद देने बड़गए में भी लिफाफा टटोलने लगा जिसमें बड़े अहत्यात से एक सो एक रुपे रखे थे बार बार दिमाग में यही विचार आ रहा था की इनसे पांच छे किलो गेहूं आजाता तो आठ दस दिन निकल जाते =पंडितों को पन्द्रह तारीख के बाद व्याह की लग्न निकालना ही नहीं चाहिए =क्या ही अच्छा होता की चार माह तक लगातार सोने की वजाय देव हर माह की पन्द्रह से तीस तारीख तक सोते तो उन्हें भी दो माह का अतिरिक्त विश्राम मिल जाता और हमें लिफाफा रूपी आशीर्वाद देने के लिए अपने मित्रों से आजीवन रिनी रहने के लिए कर्ज़ न लेना पड़ता =यह नितांत सत्य है की पहली तारीख को शादी होगी तो दूल्हा दुल्हन को अधिक आशीर्वाद मिलेगा =
जैसे देव याचक अग्नि की -योगी एकांत की -रोगी चिकित्सक की -जमाखोर भाव ब्रद्धि की -भयभीत रक्षक की खोज में निरंतर रहता है उसी प्रकार सयानी लडकी का बाप वर की तलाश में निरंतर रहता है =वर यानी दूल्हा उस शादी वाले दिन राजा होता है तभी उसे दूल्हा राजा कहा जाता है =मेरा मानना है की बरात निकल रही हो और आप सायकल या मोटर सायकल पर हों तो उतरकर उसके सम्मान में खडे हो जाइए तो दूल्हा राजा होता है = पुराने जमाने में राजा दूसरे कमजोर राज्य पर आक्रमण करता था और राजकुमारी से विवाह करता था आज भी दूल्हा राजा है आक्रामक है बाराती उसके सैनिक है सब वोही रस्मो रिवाज़ वह हथियार रखता है कटार के रूप में -तोरन मारता है -आक्रमण और लूट का सीधा सम्बन्ध है वह दहेज़ लूटता है -लडकी का बाप दुर्वल राज्य का प्रतीक है -पहले रणभेरी तुरही शंख बजते थे आज डिस्को बजता है -पहले युद्ध जीतने के पश्तात सेनिक जश्न मनाते थे आज बाराती नाचते गाते पहले जश्न मनाते है क्योंकि यह तो तय है की युद्ध जीत लिया गया है लडकी के बाप ने पहले ही आत्मसमर्पण कर दिया है अपनी पगड़ी लडके के बाप के चरणों में रख दी है
जबतक पुरानी प्रथाएं रूप बदल बदल कर कायम रहेंगी बधू कितनी ही पढ़ लिख जाय आत्म निर्भर हो जाय -शराबी पती से शादी नकार दे -बरात लोटादे मगर वर माला वर माला ही कहलायेगी शायद वह बधू माला कभी नहीं कहला पाएगी

Thursday, April 10, 2008

डाटर्स मैरिज फोबिया

-मस्ती में झूमते बारातियों का शानदार स्वागत वी आय पी कुर्सियाँ -टेंट शामियाना -लाईट डेकोरेशन -मंच व्यवस्था - टीके में ; मांगी गई एक निश्चित धनराशी की प्रथम किश्त के साथ मोटर साइकिल वैसे मोटर साइकिल अब पुरानी बात हो गयी है यह तो अत्यन्त ही दीन हीन विचाराधीन दयनीय बाप के लिए है आजकल तो शिक्षाकर्मी पटवारी और किलार्क कार से नीचे बात नहीं करते -स्वाभाबिक है कार दोगे तो पेट्रोल भी देना पड़ेगा अब लडके वाले पेट्रोल का क्या सदुपयोग करते हैं एग उनके विवेक पर निर्भर है खैर =तो वर के पूरे खानदान के लिए अच्छे व महंगे कपडे -द्वाराचार की रस्म पर दूसरी व अन्तिम किश्त महंगा गर्म सूट रंगीन टी वी पैर पूजने महंगा आइटम लडकी को स्वर्ण के जेवर गृहस्थी के समस्त बर्तन -डबल वेड सोफा आदि इत्यादी - जब भी मेरे मित्र यह सब देखते हैं उनके ह्रदय से एक तीस मिश्रित आह निकलती है -इतना सब तो करना ही पडेगा -सभी कर रहे हैं सब जगह होने लगा है इतना सब कुछ मैं कैसे कर पाऊंगा
इतना सब मैं कैसे कर सकूंगा सोच सोच कर उनका जी घबराने लगता है दिल बैठने लगता है और उनकी तबियत बिगड़ जाती है -डाक्टर आता है नींद का इन्जेक्सन एक दो दीन त्रास शामक औसधियाँ और धीरे धीरे वे नार्मल होने लगते है - न तो उनके स्वजन और ना ही परिवार जन और न ही चिकित्सक जान पाते हैं की उनकी घबराहट की वजह क्या है - शामक औसधियाँ अब उनके लिए प्रतिदिन की खुराक हो चुकी है
मैंने उनकी बीमारी का नाम रखा है डाटर्स मैरिज फोबिया -किसी चिकित्सा शास्त्र या किसी पैथी में ऐसी बीमारी या ऐसे लक्षण नहीं लिखे है यह तो मेरा ही दिया हुआ नाम है -हाइड्रो फोबिया -अल्तो फोबिया - बाथोफोबिया आदि बीमारियों का तो चिकित्सा शास्त्र में उल्लेख भी है और उपचार भी = डाटर्स मैरिज फोबिया देश व्यापी अन्य घातक बीमारियों की तरह जानलेवा तो नहीं है इससे मरीज़ मरता तो नहीं है किंतु वह जीता भी नहीं है अध वीच में लटका रहता है त्रिशंकु की तरह -उसके चेहरे पर दुःख शोक और निराशा के भाव साफ दिखाई देने लगते है -वह अन्यमनस्क व्याकुल व चिडचिडा हो जाता है एकांत की तलाश में रहता है और शोर से घबराता है
मेरे मित्र का इलाज दवा है है मात्र माहोल परिवर्तन ही उनका उपचार है - जिस प्रकार निर्धन का एक मात्र लक्ष होता है की किसी तरह अमीर हो जाय - जिस प्रकार निरक्षर का एक लक्ष्य होता है की कुछ पढ़ लिख जाय कुछ कर दिखाए उसी तरह पुत्री के पिता का जीवन में एक ही लक्ष्य होता है की किसी तरह इसके हाथ पीले हो जायें यहाँ यह भी कहना चाहूंगा की कुछ माता पिता तो हद ही कर देते हैं इधर सोलह सत्रह की हुई नहीं की कहने लगते हैं इसके हाथ पीले हो जायें तो हम गंगा नहा जायें सिर से बोझ उतर जाए कुछ और लोगों ने कहावतें बना रखी हैं की लडकी की डोली और मुर्दा की अर्थी जितनी जल्दी उठ जाए उतना ही अच्छा होता है =अर्थी वाली बात तो समझ में आती है की तबतक घर में भयंकर कुहराम मचा रहता है लेकिन लडकी की डोली -और इन्हे शर्म भी नहीं आती लडकी के भावी जीवन से कोई लेनादेना नहीं है इनका - रोज़गार बेरोजगार कम पढ़ा लिखा कैसा भी हो लडकी का पेट तो भर ही देगा मतलब लडकियां मात्र पेट भरने के लिए ही पैदा होती हैं
जहाँ विबाह योग्य वर दिखता है या उसके वारे में पढा सुना जाता है तो कन्यायों के पिता उस पर मुग्ध होकर दौड़ने लगते हैं जिस तरह पतंगे अग्नी की ओर दौड़ते हैं फिर वर की आर्थिक मांगें पूरी न कर सकने के कारण उन्हें वापस लौटना पड़ता है किंतु फिर भी वे उसी के लिए तड़पते रहते हैं और जब वर अन्यत्र बिक जाता है तो दुःख से अत्यन्त व्याकुल रहते हैं जैसे संसार के सबसे बडे लाभ से उन्हें बंचित कर दिया गया हो -जिस तरह सारी नदियाँ द्रुत गती व प्रबाह से समुद्र की ओर दौड़ती हैं उसी तरह चारों तरफ से कन्यायों के पिता वर की ओर दौड़ते हैं --पूर्ती कम और मांग ज़्यादा तो मूल्य ब्रद्धि स्वाभाविक है अर्थ शास्त्र का यही नियम है - पुराने जमाने में इस सिद्धांत को आधार मान कर गोदामों में रुई भर कर नकली अभाव पैदा किया जाता था आजकल अनाज भर कर पैदा किया जाता है - हर लडके का पिता इस सिद्धांत का चतुर चितेरा होता है -
ऐसे में -इन परिस्थियों के मोजूद रहते माहोल परिवर्तन द्वारा मेरे मित्र का इलाज कैसे हो यह कठिन समस्या है किंतु उनका इलाज तो करना ही है-
जहाँ बिना दहेज के शादी हो रही हो -जहाँ लड़का कार और लडके की माँ नकदी व जेवर न मांग रही हो - बिध्युत सज्जा से दूर दिन के उजाले में सादगी पूर्ण तरीके से विवाह सम्पन्न हो रहा हो वहाँ मेरे मित्र को पहुचाना है –
जहाँ लडकी की शादी के लिए मकान व जेवर रहन नहीं रखे जा रहे हों -जहाँ पुश्तेनी खेती की जमीन विक्रय न की जारही हो -जहाँ लडकी के बाप पर दबाव न डाला जा रहा हो की =बरात के स्वागत में कोई कमी रही तो हमसे बुरा कोई न होगा =अमुक राशी या सामान देने पर ही लडकी को ले जाया जायेगा अथवा लडके लो फेरों पर भेजा जाएगा वह जगह मेरे मित्र को बताना है –

जहाँ लडके के बाप के सर पर इतना लोभ सवार न हो रहा हो की प्रसूतिकाल में खिलाये गए हरीला और पिलाए गए दशमूल काड़े से लेकर उच्च शिक्षा पर मय डोनेशन व केपी टेशन फीस पर हुआ व्यय मय व्याज के लडके के बाप से वसूल करना चाहता हो उनसे मेरे मित्र को मिलवाना है –
पाठक ब्रंद आपको कहीं ऐसा माहोल दिखे तो मेरे मित्र को जरूर बताना और उनसे कहना की अब ऐसा भी होने लगा है क्योंकि में चाहता हूँ की उनके जीवन की वाकी बची सांसें वे चैन से ले सकें

Monday, April 7, 2008

उल्लुओं की तलाश

आपको याद होगा सन १९९८ में अमेरिका के लोग भारत में उल्लू तलाशने आए थे /
में उल्लुओं की तलाश में हूँ या उल्लू तलाशने वाले मुझे तलाश रहे हैं एग बाद की बात है मुख्य बात यह है की अमेरिका के लोन उल्लू तलाशने यहाँ आए /वैसे उन्हें यहाँ आने की जरूरत नहीं थी विज्ञापन दे देते बिभिन्न प्रजाती के उल्लू अपने अपने बायो डाटा फोटो और बैंक ड्राफ्ट लेकर वहाँ पहुँच जाते /उल्लू कौन -जो एक ही काम बार बार करना चाहे और हर बार बिभिन्न परिणामों की अपेक्षा रखे वोही तो उल्लू है हम सब यही तो रोज़ कर रहे हैं
वैसे उनका यहाँ आना ठीक ही है क्यों की यहाँ उल्लू बहुत हैं और जो नहीं है उनको बनाया जारहा है / उल्लुओं के बारे में बहुत भ्रांतियाँ किम्ब्दंतियाँ प्रचलित हैं मगर में उन सब से सहमत नहीं हूँ ख़ास तौर पर इस बात से के उल्लू जिस ब्रक्ष पर बैठता है वोग वार्बाद हो जाता है भले ही इस बात के समर्थन में यह कहा गया हो की वार्बाद गुलिस्तान करने को एक ही उल्लू काफी था हर शाख पे उल्लू बैठे हैं अंजाम गुलिस्तान क्या होगा / अगर एग सच होता तो आज एक भी बगीचा नज़र नहीं आता
दूसरी बात उल्लू का बोलना अशुभ माना जाता है /असल में उल्लू के बोलने से कुछ अशुभ नहीं होता - बात असल में ये है की वह अशुभ मोंकों पर बोलने लगता है -कहीं युद्ध आदि हो रहा हो तो वह ज़रूर बोलेगा ==जनु कालदूत उलूक बोलहिं वचन परम भयावने ==कब कहाँ कैसे बोलना यह तो आदमी तक नहीं जनता है वह तो उल्लू है तो युद्ध में सियार गीध कौए कुत्ते सब बोल रहे थे - उसने यह तो देखा नहीं की मौके की नजाकत क्या है उनके ही साथ बोलने लगा चूंकि एग पेड़ पर था तो इसकी आवाज़ दूर तक गई ==हम तो मुलजिम नहीं थे गवाहों में थे -मुलजिमों के ही संग में पुकारे गए =वाली बात होगई और कहाजाने लगा की इसका बोलना अशुभ होता है /
कहा जाता है की उल्लू अपने बच्चों की आँखें खोलने के लिए कहीं से पारस पत्थर लाता है /सच है आँखें पारस ही खोल सकते हैं -परन्तु -=चलता हूँ थोडी दूर हर इक राह रो के साथ -पहिचान्ता नहीं हूँ अभी राह्वर को मैं =की मानिंद उन पारस को कोई पहिचंता नहीं है दोयम वे स्वयम अंतर्मुखी होकर आत्म साधना में तल्लीन हो जाते हैं गुफाओं और कन्दराओं में चले जाते है और उल्लुओं की आँखें बंद की बंद रह जाती हैं / यह भी कहते हैं की उल्लू को दिन में दिखाई नहीं देता है -ऐसी बात नहीं है दिन में वह स्वयम नहीं देखना चाहता /जो काम रात के अंधेरे में हो सकते हैं चोरी -डकेती-अपहरण -अन्याय -अत्याचार -बलात्कार -वे दिन के उजाले में हो रहे है -डंके की चोट हो रहे है मूँछो पर ताव दे कर हो रहे है /ऐसे में तटस्थ भाव से देखते रहने और कुछ न कर पाने या कुछ न कर सकने से वह यही उचित समझता है की दिन में देखा ही न जाए और हम यह समझते हैं की उल्लू को दिन में दिखाई नहीं देता है
उल्लू बनाने के सैंकडों तरीके सदियों से प्रचलित हैं और उन्ही की पुन्राब्रत्ति हो रही है और लोग अभी भी बनते चले जारहे हैं /ऐसे समाचार प्रकाशित होने के बाद भी की लोग सोना दोगुना करवाने के चक्कर में लुट गए इसके बाद भी वे दोगुना करवा ही रहे हैं /यात्रा में अपरिचितों के हाथ का प्रसाद खा रहे है बिस्कुट खा रहे है -कोई ग्रामीण अशिक्षित खाए तो ठीक परन्तु कलेक्टर खा रहे है -वस्तुओं की कीमत बड़ा कर छूट का लाभ दिया जारहा है एक किलो शकर खरीदो तो उसके साथ एक किलो फ्री भाई कमाल है /भूखंड इनामों के साथ किश्तों में बिक रहे है इनाम वाकायदा मिल रहा है जमीन का पता ही नहीं है /स्वर्ग नरक बैतरनी से क्या कम लोग बन रहे हैं /तुम्हारा नरक किसी प्लेनेट पर है तो वहाँ के निवासियों को यह प्रथ्वी नरक होगी /वहाँ के धर्म ग्रंथों में नरक वाले चैप्टर में हमारी प्रथ्वी का वर्णन होगा /
कुछ लोग कहते हैं की उल्लू बने रहने में फायदे बहुत है आपकी कोमल काया काम के कष्टों से महफूज़ रहती है फिर चाहे वह ऑफिस हो या घर /==जो सुख चाहो आपनो तो उल्लू बन कर रेओ-जो कोई पूछे बात तो आधो उत्तर देओ /अक्सर उल्लू प्रकृति के व्यक्ति पागल होने से बचे रहते है क्योंकि उनका पागल पन थोड़ा थोड़ा निकलता रहता है हर व्यक्ति में पागलपन के जर्म्स रहते है उन्हें थोड़ा थोड़ा निकलते रहना चाहिए / सार बात यह है की जब तक एक भी उल्लू मोजूद है उसका भर पूर उपयोग व उपभोग होता रहेगा वह समझेगा उसे मालिक बनाया जारहा है माई बाप बनाया जारहा है

Friday, April 4, 2008

ढूंढो ढूंढो रे सजना

इस संसार में चर अचर सचराचर जितने भी प्राणी होते हैं उनमें एक जीव ऐसा भी होता है जिसे सजन कहा जाता है /यह सजन इस संसार में कुछ न कुछ ढूँढने के लिए ही अवतरित होता है /अब से चालीस पचास साल पहले उससे कहा गया = ढूंढो ढूंढो रे साजना मेरे कान का बाला = अपनी इस खोज में वह सफल हो ही नहीं पाया था तव तक दूसरा आदेश प्रसारित हो गया = कहाँ गिर गया ढूंढो सजन बटन मेरे कुरते का =सिद्ध बात है उसमें भी वह असफल रहा तभी तो लगभग सभी म्यूजिक चेनल उनकी पुन्राब्रत्ति कर रहे है बिल्कुल पत्र -स्मरण पत्र -परिपत्र और अर्ध शासकीय पत्र की तरह /आप ही बताइए कान का बाला और बटन यदि सजन को मिल गया होता तो वह टीबी पर क्यों बार बार लगातार गाती =क्या पागल हुई है /इसे ही में एक औरत को देखता हूँ चिल्लाती है =हाय मेरी कमर -दबाई लगती है मुस्कराती है मगर एक घंटे बाद फिर =हाय मेरी कमर =आखिर इसी कैसी दबाई है -दस साल से देख रहा हूँ =इलाज परमानेंट होना चाहिए /

यह तो तय हो गया की सजन नामक प्राणी बाला और बटन जैसी तुच्छ चीजों को नहीं ढूँढ पाया तो किसी ख़ास हत्याकांड या किसी ख़ास समझोते का रहस्य क्या ढूँढ पायेगा /
ऐसा नहीं रे भाई / ढूँढता तो है बेचारा पर कभी कभी हार भी जाता है / अब वह आधुनिक संगीत में सुर ताल लय गाना किस राग पर आधारित है तथा गाने के बोल के अर्थ ढूँढता है -हस्त रेखाओं में भविष्य और जन्मपत्री में भाग्य ढूँढता है -राजनीती में चरित्र और आधुनिक पीढ़ी में संस्कार ढूँढता है -वर्तमान समस्याओं का समाधान हजारों साल पुराने ग्रंथों में ढूँढता है /कुछ लोगों की आदत होती है की वे कुछ न कुछ ढूंढते ही रहते है -कहते है ढूँढने में हर्ज़ ही क्या है /
कुछ लोग अपनी दैनिक दिनचर्या को त्याग कर जीवन का उद्देश्य ढूंढते है / हम कौन हैं क्या हैं कहाँ से आए है क्या लाये थे क्या ले जायेंगे इत्यादी इत्यादी और इस चक्कर में या तो वे कार्यालय देर से पहुँचते हैं या उनकी टेबिल पर फाइलों का अम्बार लग जाता है /उनकी पत्नियां सब्जी और आटे के पीपे का इंतज़ार करती रहती हैं / में कौन हूँ -कहाँ से आया हूँ क्यों आया हूँ ==अरे तू तू है घर से दफ्तर आया है काम करने आया है -बात ही ख़त्म /
कुछ लेखक लेख लिखकर डाक में डालकर चौथे दिन से पेपर में अपना नाम ढूढने लगते हैं उधर संपादक महोदय उस लेख को पढ़ते हैं तो टेबिल की दराज़ में सरदर्द की गोली ढूँढने लगते हैं और अगर छाप दिया तो पाठक क्या ढूडेगा कुआ या खाई /
इस धरती पर स्वर्ग और नरक ढूँढने वाले हजारों हैं जिनको यहाँ उपलब्ध नहीं हो पता है -वे ऊपर है इसी कल्पना करके जीवन जैसा जीना चाहिए वेसा जी नहीं पाते किसी ने कहा है =तू इसी धुन में रहा मर के मिलेगी जन्नत -तुझ को ऐ दोस्त न जीने का सलीका आया = इससे अच्छे तो कार्यालय के कर्मचारी होते हैं जिनका बॉस जब गुस्सा होता है और कहता है -गो टू हेल -तो वे सीधे अपने घर चले आते हैं /
कुछ लोग प्राप्त की उपेक्षा करके अप्राप्त को प्राप्त करके सुख ढूँढने की चाह रखते हैं तो कोई तनाव ग्रस्त -हताश -उदास -निराश -चिंतित व्यक्ति परिश्रम खेल व्यायाम मित्र मंडली हँसी मजाक को नज़र अंदाज़ कर नींद की गोलियां ढूंढते है /कुछ युवक खेलना बंद करके जवानी में बुढापा और कुछ बुजुर्ग मनोरंजन को अपना साधन बना कर युवावस्था ढूंढते है /
कुछ लोग मूड ठीक करने और गम ग़लत करने क्या ढूँढ़ते है आप सब को पता है =मधुशाला= गन्ने के रस वाली नहीं -हरिबंश जी की किताब भी नहीं बल्कि मधुशाला याने मयखाना =मुझे पीने का शौक नहीं पीता हूँ गम भुलाने को =मगर होता इसके बिल्कुल विपरीत है ==आए थे हँसते खेलते मयखाने की तरफ़ -जब पी चुके शराब तो संजीदा हो गए =
मजे की बात देखिये कुछ लोग मधुशाला में अपनी गुज़री उम्र ढूदते हैं = कहते हैं उम्ररफ्ता कभी लोटती नहीं जा मयकदे से मेरी जवानी उठा के ला = मयकदे से उठाई जवानी का तू क्या कर लेगा एक जवानी और कहीं नाली में पडी रहेगी /
हद की इन्तहा देखिये एक सज्जन विगत २५ साल से हाथ में लाठी लिए हुए उस ज्योतिषी को ढूँढ रहे हैं जिसने उनके और उनकी पत्नी के ३६ गुन मिलाये थे /कहते हैं मुझे पत्नी या उसके मायके वालों से कुछ नहीं कहना है मुझे तो उस पंडित को देखना है / इसलिए सज्नो सज्जनो नहीं -वेसे भी सजन और सज्जन में कोई बुनियादी फर्क नहीं है क्योंकि जो सज्जन हैं वे ही सफल सजन होते हैं और जो सजन हैं वे तो
अपन बात कर रहे थे डेडी की / परेशानियों की इस साकार मूर्ति के प्रति उसकी संतान सदैब ही सम्बेदंनशील रही है अन्तर सिर्फ़ अंदाजे वयां का हो गया है / भाव वदल गए विचार वदल गए -भाषा वदल गई / पहले बेटी कहती थी मेरी शादी को लेकर आजकल पापा बहुत परेशान रहते है और बेटा कहता था मेरे रोज़गार -मेरी शिक्षा -मेरे भविष्य को लेकर डैडी चिंतित रहते हैं / ये बात वे बड़े ही दुखी मन से सीरियस होकर कहते थे - और आज बेटा हाथों में इलैक्ट्रिक गिटार लिए नाचते हुए गले में थोडी सी डाले हुए डिस्को करते हुए गाता है "डेडी मेरा बड़ा परेशान "
आज का डैडी इसलिए परेशान है क्योंकि उसका मुंडा बिगड़ रहा है / यह शिकायत पहले अम्मा से की गई थी - ओ अम्मा देख अम्मा देख तेरा मुंडा बिगड़ा जाए -मगर अम्मा दया वात्सल्य करुना की मूर्ति होती है /उसने तो हर माँ की तरह कोई ध्यान नहीं दिया मगर यह सुनकर डैडी हर डैडी की तरह परेशान हो गया /
हमारे देश में घर का कर्ता -मुखिया डैडी होता है तनखा उसी की जेब में रहती है /बच्चों को हर चीज़ मुहैया कराने का दायित्व डैडी का होता है जब बच्चों द्वारा कोई मांग माँ से दी जाती है तो जवाब मिलता है डैडी को आने दो मंगवा देंगे / इसीलिए स्कूल में गाय पर निवंध लिखते समय बच्चा आपत्ति कर्ता है की गाय दूध कहाँ देती है दूध तो डैडी लाकर देतें हैं / उएह दुर्भाग्य है की कृषि प्रधान देश के महानगरों के छोटे बच्चों ने गाय केवल तस्वीर या दूरदर्शन पर ही देखी होती है /
कुछ डैडी अपने बच्चों को कठोर परिश्रम और दृढ संकल्प की शिक्षा देते है और कुछ डैडी कहते है माना की कठोर परिश्रम से आज तक कोई नहीं मरा फिर भी रिस्क क्यों ली जाए /कुछ डैडी अपनी सारी सफलता अपने बच्चों की झोली में डालकर उनको सफलता की ऊँची चोटी पर बिठा देते हैं / आज यह कहना ग़लत है की हर सफल व्यक्ति के पीछे एक औरत होती है अथवा हर सफल फ़िल्म लेखक के पीछे एक सुंदर बाला और उस सुंदर बाला के पीछे उसका पति होता है /आज यह कहना बिल्कुल सही है की हर सफल व्यक्ति के पीछे उसका डैडी होता है चाहे वह राजनीती हो या फ़िल्म /
यह बात भी नितांत सत्य है की डैडी सुख चंद उँगलियों पर गिने जाने वाले भाग्यावानो को ही प्राप्त है शेष दुनिया वालों में यदि दुःख का कोई कारण है तो वह है डैडी / जो उपलब्ध है किंतु कम मालूम पड़ता है उसकी वज़ह है डैडी / दूसरों के पास हमसे अधिक सम्पन्नता तो उसका कारन है डैडी हमारे पास कोठी बंगला कर नहीं है -कारण डैडी / बच्चे कहते हैं आपने जैसी जिंदगी गुजार दी वैसी हम नहीं गुजार सकते / जिंदगी में आपने एकाध नेता की ही चमचा गिरी की होती तो आज हमें यह बेरोजगारी का मुह नहीं देखना पड़ता /आपने हमें इंग्लिश स्कूल में क्यों नहीं पढाया / सस्ते ज़माने में दो चार प्लाट ही खरीद कर पटक लिए होते /अब कौन समझाए सस्ता ज़माना था तो पैसे भी कहाँ थे /सरकारी बाबू को नब्बे रूपये वेतन मिलता था /
डैडी कौन होता है इसकी में व्याख्या करता हूँ -लड़के द्वारा की गई बद्तमीजियों पर दूसरों से माफ़ी मांगने वाला और लड़की के ससुर और लड़की के पति के चरणों में सर रखकर नाक रगड़ने वाला डैडी होता है /डैडी की नाक प्रकृति ने रगड़ने के लिए ही बनाई है /
जो आने वाली भयाभय भोर से डर कर रातें जग कर काटे उसे डैडी कहते हैं / जो स्वयं मास्टर या बाबू होकर लड़के को कलेक्टर बनने की सोचे और लड़की के लिए इंजीनियर वर ढूंढे वह डैडी होता है / जो लड़की की शादी में सारा प्रोविडेंट फंड निकाल ले और लड़के की नोकरी के लिए पुश्तेनी मकान बेच कर किराये के घर में रहने लगे / जो शिष्य की तरह बेटे और बेटी का आज्ञाकारी हो उनकी चिंता तो करे मगर उनके व्यक्तिगत मामलों में दखल न दे /जो स्वयं सबकी चिंता करे और जिसकी चिंता किसी को न हो उसे डैडी कहते हैं /
इसलिए यह सिद्ध है की डैडी नामक प्राणी संसार में परेशान होने आया है परेशान हो रहा है और होता रहेगा / हिन्दी शब्दकोष में जहाँ परेशानी के माने लिखे हैं वहाँ डैडी शब्द लिखा

Thursday, April 3, 2008

डेडी मेरा बड़ा परेशान

डेडी इस धरती पर शायद परेशान होने के लिए ही अवतरित होता है में फ़िल्म डेडी की बात नहीं कर रहा हूँ बल्कि उस की बात कर रहा हूँ जो पिता से पापा होकर डेडी होता हुआ डेड हो गया है / वैसे तों माताजी भी ममी होकर मोम हो गई है /क्या बताएं जब गांव में रहता था तब बड़े भाई से दादा कहता था जब शहर आया तो मालूम हुआ की दादा का मतलब तो कुछ और ही होता मेरे पड़ोसी के बच्चे को में भइया कहता था जब वह मुम्बई से लोटा तो आपत्ति करने लगा ;क्या में दूध वाला हूँ /भाई शब्द कितना प्यारा है "देखि कृपा निधि मुनि चतुराई ;लिए संग बिहँसे दोउ भाई " तथा "श्याम गौर सुंदर दोउ भाई ;शबरी परी चरण लपटाई " लेकिन आज देखो भाई शब्द का क्या अर्थ हो गया है /इसी तरह एक प्यारा शब्द माँ का भाई मामा /बच्चे कहते थे चन्दा मामा /मामा को मामू भी बोलते हैं /आज किसी को मामू कह्दो तो लड़ने को तैयार हो जाय /ख़ैर /