Saturday, May 10, 2008

rahiye ab aisee jagah chal kar

रहिये अब ऐसी जगह चलकर

रहिये अब ऐसी जगह चल कर जहाँ मच्छर न हों -पत्नी का यह शायराना अंदाज़ भलेही मुझे अच्छा लगा किंतु मेरा कहना यह था की जायें तो जायें कहाँ - उनका कहना यह था की अपने यहाँ जैसे और जितने मच्छर कहीं भी नहीं होंगे इसलिए मकान या मोहल्ला बदलना ही होगा -मेरा सोच यह है की शेर -सांप -बिच्छू -मच्छर से डर कर नहीं वल्कि इंसान -इंसान से डर कर मोहल्लों का परित्याग किया करते हैं
उनकी परेशानी अस्वाभाविक नही थी -औसत मच्छर से बडे और मक्खी के आकार से कुछ छोटे आम मच्छर से हट कर यानी ख़ास मच्छर गोया बहुत ही खतरनाक मच्छर -अगरबत्ती व टीकियों की खुशबू व बदबू को नज़रंदाज़ कर देते है -प्याज काट कर बल्ब के पास लटका दो तो उसके इर्दगिर्द ऐसे मंडराने लगते हैं जैसे प्याज प्याज न होकर कोई फूल हो और वे स्वयम भँवरे हों - घर में धुआं कर दो तो वे यथास्थित रहे और आदमी घर से भागने लगे -किसी की आँख में जलन -किसी को आंसू -किसी को छींक -किसी को खांसी =मेरे द्वारा एक दिन धुआं कर देने पर मेरे बीबी बच्चों का मुझ पर नाराज़ हो जाना तो स्वाभाविक था किंतु आश्चर्य बिल्डिंग के अन्य लोग भी नाराज़ नजर आए -दीवालें काली हो रही हैं -कमरों में बैठना मुश्किल है -अजीब किरायेदार आया है -धुआं कितना घातक होता है जानता ही नहीं है -आक्सीजन की कमी हो गयी आदि
मच्छरदानी कोई अज़नवी चीज़ नहीं मगर दुर्घटना और दुर्भाग्य क्या है इस बाबद मेरे मानना है की मच्छरदानी खरीदना दुर्घटना और उसे बांधना दुर्भाग्य है -खरीद तो ली मगर इसे बंधोगे कहाँ -अव्वल तो मकान मालिक दीबारों में कील ठोकने नहीं देगा -दोयम कीलें स्वयम नहीं ठुकेंगी थोडा सा पलस्तर उखाड़ कर टेडी हो जायेगी और उचट कर ऐसी जगह गिरेंगी की ढूंढते रह जाओगे - और ठोकने वाले का अंगूठा मरहम पटटी का इंतजाम पहले कर लेना चाहिए -वैसे कायदा तो यह है की कील ठोको तो कील पत्नी को पकडाओ
मच्छरदानी बाँध कर सर्ब प्रथम उसके अंदर उपस्थित मच्छरों की समुचित व्यवस्था करने में सब बुद्धिमता विसर्जित हो जाती है -ऐसा मालूम पड़ता है जैसे मच्छर दानी में कोई ताली बजा बजा कर कीर्तन कर रहा हो -इधर ज़ोर की ताली से अपने हाथ लाल और और मच्छर गायब -वह ऊपर मछर दानी के कोने में -और कोने वाले को मारने की कोशिश की तो मच्छर दानी की डोरी टूटी या कील उखडी
चारों तरफ मच्छर दानी गद्दे के नीचे दबाने के बाद समस्या यह की लाईट आफ कैसे करें -लाईट बंद करने गए यानी दो बार मच्छर दानी हटाई और इधर द्रुत वेग से उनकी प्रविष्ठी हुई -फिर रात भर गाते रहिये "जानू जानू री छुपके कौन आया तेरे अंगना " जाली में फंसा वह प्राणी कितना दुर्दांत -खूंखार और आक्रामक हो जाता है -भुक्तभोगी ही जनता है
पत्नी का यह सचोट अनुज्जवल पक्ष है की "नाली बनाने वाले जाने चले जाते हैं कहाँ " और यह भी की " नाली बनाने वाले क्या तेरे मन में समाई -काहे को नाली बनाई ""और अगर बनवाई तो इसे ढकवाते क्यों नहीं - मने समझाना चाहता हूँ "तुम सुनहु ग्रह मंत्री स्वरूपा नाली बनही बजट अनुरूपा "" और बजट आजायेगा तो ढकवा देंगे
तो चलो 'फिर दूसरी जगह चलो -अरे वाह कल को तुम कहोगी की ऐसी जगह चलो जहाँ हत्या बलात्कार चोरी डकेती अपहरण न होते हों दूसरे नालियों में कचरा सब्जी छिलके तुम डालो ऊपर से शिकायत ==इस आग को कैसे कहें ये घर है हमारा -जिस आग को हम सब ने मिलकर हवा दी है

नल से आता नीर

एक निश्चित स्थान पर नट बोल्ट से जकडा होने के बावजूद जो चला जाता है तथा जिसकी लोग महबूबा की तरह प्रतीक्षा करें व बकौल एक शायर "न उनके आने का वादा न यकीं , न कोई उम्मीद /मगर क्या करें गर न इंतज़ार करें -की तर्ज़ पर जो वर्ताव करे उसे नल कहते हैं / आके न जाए उसे मेहमान कहते हैं और जाके न आए उसे नल कहते हैं / जिसके घर में हो उसके यहाँ पानी न आए और जिसके घर न हो उसके यहाँ बिल आजाये उसी को नल कहते हैं
वह जमाना गया जब कहानियाँ इस प्रकार से शुरू होती थीं की -एक राजा था -आज सारी कहानियां ,कविता ,गजल ,दास्ताने दफ्तर इस वाक्य से शुरू होते हैं कि नल नहीं आया /गोया नल -नल न हुआ जवानी हो गई जो लौट कर नहीं आती /किसी को नल से पानी भरते देखो , पूछो ,कहिये जनाब -पानी भरा जा रहा है ,झुंझलाहट भरा जवाब मिलेगा "नहीं जी बूँदें गिनी जा रही हैं /
अब जमाना बदल गया है -आज कोई किसी की खातिर रोता नहीं है ""कौन रोता है किसी की खातिर अय दोस्त ,सबको अपने अपने नलों पर ही रोना आया /
कुछ भी हो नल जल के लिए तो प्रसिद्ध हैं ही / जैसे यह पशु वैज्ञानिकों ने सिद्ध कर दिया है कि मगर मच्छ की आंखों में अश्रु ग्रंथियां होती ही नहीं है इस लिए वह आंसू वहा ही नहीं सकता मगर लोक में मगरमच्छी आंसू प्रसिद्ध है इसी प्रकार नल में जल ग्रंथियां न होते हुए भी जल के लिए नल लोक में प्रसिद्ध हैं ही /
यह भी एक बिडम्बना है कि अपने घरेलू नलों में डायरेक्ट मोटर लगा कर पानी खींच लेने वाले मोहल्ले के संभ्रांत नागरिकों को यह कतई गवारा नहीं होता कि घरेलू नल विहीन मोहल्ले के वाशिंदे सार्वजनिक नल पर तू -तू =मैं-मैं करें मगर होती है क्योंकी नल का बूँद बूँद टपकना उसका स्वभाव है और पानी भरने वालों की तू -तू= मैं- मैं करना उनकी आदत है =स्वभाव और आदत में हमेशा से तकरार चली आरही हैं / यह तकरार उस जमाने में भी थी जब नल नहीं थे और उस जमाने मैं भी रहेगी जब नलों का जाल बिछा दिया जायेगा /
तू तू मैं मैं से बचने का एक ही तरीका है कि नल से लाइन लगा कर पानी भरना / किंतु जबसे हमारे देश में फिल्मी हीरोगन ने यह परिपाटी डाली है कि ""हम जहाँ खड़े होंगे लाइन बहाँ से शुरू होगी "" तव से लाइन प्रथा कुछ प्रजातियों की तरह लुप्त प्राय है क्योंकि हर मोहल्ले में तीन चार हीरो का होगा आवश्यक है तो लाइनें भी चार से कम क्या लगेंगी
लाइन के बाद समस्या होती है बर्तन की जो कि शक्ल और किस्मत की तरह नाना आकार प्रकार के होते है और जिसका जितना आंचल होता है उतनी ही उसको सौगात मिलती है और लाइन में जब एक ही बर्तन में पानी भर कर हटना है तो क्यों न बडे बडे बर्तनों का प्रयोग हो , तो फिर तू तू मैं मैं इस बात पर कि "उसकी बाल्टी मेरी बाल्टी से बडी कैसे ""
नल ने बहुत सी बांते सिद्ध करदी हैं -यह सिद्ध कर दिया है कि बूँद बूँद से घट भर जाता है -यह सिद्ध कर दिया है कि सब्र का फल मीठा होता है /जिसका नम्बर लग जाए वह ऐसे जमा रहना चाहे जैसे जैसे लोग कुर्सी पर जमे रहना चाहते हैं और और शेष पानी भरने वाले भावी प्र्यत्याशी उसे ऐसे देखते रहें जैसे भावी वर्तमान की डगमगाती कुर्सी को देखता है
नल तो रहीम जी के जमाने मैं भी थे और उन्होंने हिदायत दी थी कि नल बहुत गहरे लगवाना चाहिए तो आजकल लोग उन्ही के आदेश का पालन करने में लगे रहते है जहाँ देखो नल गहरे हो रहे है और मिल मिला कर फेरूल में से गोली निकल वाई जा रही है आदमी मतलब की बात ज्यादा मानता है उन्होंने कहा था ""जेतो नीचो है चले त्यों त्यों ऊँचो होय "" नल और आदमी की गती बतलाई थी =नल के वारे में याद रहा ख़ुद नीचा होकर चलने की बात भूल गया / उन्होंने तो ये भी कहा था रहिमन पानी राखिये बिन पानी सब सून ""घर में दो चार मटके पानी भर कर रखे ही रहना चाहिए " क्या पता कब विजली चली जाए और नल न आयें /
नल का जल ही जीवन है और जल ही जीवन का उद्देश्य है नल की और बढ़ता ठोस कदम ,दृढ संकल्प ,अवसर का लाभ , अपनी शक्ती का पूर्ण प्रदर्शन व प्रयोग देशी व विदेशी गालियों का सतत निरंतर अभ्यास साथ में जूडो कराते का ज्ञान सार्वजनिक नल से पानी भरने में सहायक होते हैं

putr daan kyon nahin

पुत्र दान क्यों नहीं

मेरे एक "शर्मनाक "नामक लेख में यह बात आई है की अगर पुत्री का दान किया जाता है तो पुत्र का दान भी किया जाना चाहिए
जीवन का एक महत्वपूर्ण अंग है विवाह और विवाह का एक महत्वपूर्ण अंग है कन्यादान / पाणिग्रहण ,सप्तपदी ,पांच और सात वचन तो समझ में आते हैं क्योंकि वह वर -वधु दोनों का मिला जुला कार्यक्रम है ,किंतु कन्यादान का रिवाज़ कब व कैसे प्रचलित हुआ यह विचारणीय मुद्दा है /
क्या वेदों में कन्यादान का विधान है ? हो सकता है /पुराणों में दस महादान का वर्णन है उनमें से कन्यादान भी एक दान है /मानस में गोस्वामीजी ने दो विवाह कर वाये हैं / एक तो शंकरजी का "" गहि गिरीश कुस कन्या पानी ,भवहि समर्पी जानि भाबानी "" दूसरे विवाह में सीताजी का कन्यादान कराया है ""करि लोक वेद विधानु कन्यादान नृप भूषण कियो ""स्वाभाविक है गोस्वामीजी की स्वयम की जैसी शादी हुई होगी वैसा ही उन्होंने वर्णन किया होगा -पुराणों में दस महादानो का वर्णन है इनमें से एक तो हुआ कन्यादान वाकी नौ है --स्वर्ण ,अश्व ,तिल , हाथी ,दासी ,रथ ,भूमी ,ग्रह और कपिला गौ /ध्यान रहे यह सब सम्पत्ती है /स्त्री हमेंशा से संपत्ति मानी जाती रही थी / उसका क्रय विक्रय होता था , उसे गिरवी रखा जाता था , जुए में हारा जीता जाता था तो अन्य संपत्ति के दानो की तरह इस कन्या रूपी संपत्ति के दान की परिपाटी प्रचलित हुई होगी /दान के साथ दान की हुई संपत्ति की स्थिरता के लिए अतिरिक्त द्रव्य समर्पित करने का प्रावधान शास्त्रों में था ताकि दान में दी हुई संपत्ति का रख रखाव {मेनटेनेंश} आदि किया जाता रहे /इसने कन्यादान मे दहेज़ का रूप धारण कर लिया
दहेज़ का दूसरा पहलू यह भी रहा होगा कि चूंकि कन्या संपत्ति होती थी पराया धन होती थी इसलिए पिता की जायदाद मे उसका हक नही होता था और चूंकि पुत्र जो कि संपत्ति नहीं होता था उसके हिस्से मे बाप की जायदाद आजाती थी / किंतु फिर भी पुत्री होती तोथी माँ बाप के जिगर का टुकडा -इसलिए पिता अपनी जायदाद से प्राप्त आय मे से एक बडा हिस्सा पुत्रों की सहमति से पुत्री को दे दिया करता था और चूंकि बात भी वाजिव थी इसलिए पुत्र को भी क्यों आपत्ति होने लगी / फिर लडकी चली जाती थी पराये घर और जमीन जायदाद ,खेती बाड़ी-रहती थी पुत्रों के पास /इसलिए बहन को बिभिन्न त्योहारों पर ,भाई दूज , उसके पुत्र पुत्रियों की शादी मे मामा भात , पहरावनी, मंडप आदि के रूप मे संपत्ति की आय मे से कुछ हिस्सा लडकी को पहुंचता रहता था /अब उसका रूप लालची धन्लोलुपों ने विकृत कर दिया है / लडकी के पिता की स्वेच्छा अब लडके के पिता की आवश्यकता हो गई /एक स्द्भाविक परम्परा कुरीति हो गई /यह कुरीति गरीब पिता के लिए अभिशाप हो गई /जो स्वं किराए के मकानों मे रहकर ,मामूली -सी नौकरी करके ,अपना पेट काट कर बच्चों को पालता पढाता रहा हो जिसके बेटे बेरोजगार हों और बेटी सयानी उसकी क्या तो संपत्ति होगी और क्या लडकियां हिस्सा लेंगी
अब सवाल उठता है पुत्र दान का -कल्पना कीजिए चलो किसी ने कर ही दिया पुत्र दान तो फिर क्या ? लडकी तो लडके के घर आजाती है =कई समाज मे तो यह भी है कि लडकी का बाप या बडा भाई -लडकी की ससुराल मे पानी भी नहीं पीता है -संभवत दान की वजह -दान कीहुई संपत्ति का थोडा सा भी उपयोग वर्जित है -आपको तो पता है कि एक हजार गाय दान मे दी और धोके से एक गाय वापस आगई और उसका पुन दान हो गया तो नरक के दरवाजे खुल गए थे /खैर तो लडकी तो लडके के घर आजाती है अब मानलो लडके का भी दान हो गया तो वह कहाँ रहेगा अपनी ससुराल में यानी घर जवाई - और कन्या का दान कर दिया तो वह मायके में कैसे रहेगी -और यदि लड़का अपने ही घर में रहता है तो उसके माँ बाप उसकी कमाई कैसे खाएँगे -दान किए हुए पुत्र की कमाई घोर अनर्थ हो जाएगा =बडी दिक्कत हो जायेगी

तो फिर लडकी का भी दान करदो पुत्र का भी दान करदो दोनों को अलग करदो बहुत बढ़िया -पहले ही तो औलाद बूढे माँ बाप को रखना नहीं चाहती अब तो धार्मिक ,सामाजिक, आधुनिकता .,महिला स्वातंत्र्य ,समानता ,महिला प्रभुत्व ,रीतिरिवाज़ सब ही समर्थन कर रहे है =सोचिये -मनन कीजिये तब तक में दूसरे लेख के बारे में मनन करता हूँ