-मस्ती में झूमते बारातियों का शानदार स्वागत वी आय पी कुर्सियाँ -टेंट शामियाना -लाईट डेकोरेशन -मंच व्यवस्था - टीके में ; मांगी गई एक निश्चित धनराशी की प्रथम किश्त के साथ मोटर साइकिल वैसे मोटर साइकिल अब पुरानी बात हो गयी है यह तो अत्यन्त ही दीन हीन विचाराधीन दयनीय बाप के लिए है आजकल तो शिक्षाकर्मी पटवारी और किलार्क कार से नीचे बात नहीं करते -स्वाभाबिक है कार दोगे तो पेट्रोल भी देना पड़ेगा अब लडके वाले पेट्रोल का क्या सदुपयोग करते हैं एग उनके विवेक पर निर्भर है खैर =तो वर के पूरे खानदान के लिए अच्छे व महंगे कपडे -द्वाराचार की रस्म पर दूसरी व अन्तिम किश्त महंगा गर्म सूट रंगीन टी वी पैर पूजने महंगा आइटम लडकी को स्वर्ण के जेवर गृहस्थी के समस्त बर्तन -डबल वेड सोफा आदि इत्यादी - जब भी मेरे मित्र यह सब देखते हैं उनके ह्रदय से एक तीस मिश्रित आह निकलती है -इतना सब तो करना ही पडेगा -सभी कर रहे हैं सब जगह होने लगा है इतना सब कुछ मैं कैसे कर पाऊंगा
इतना सब मैं कैसे कर सकूंगा सोच सोच कर उनका जी घबराने लगता है दिल बैठने लगता है और उनकी तबियत बिगड़ जाती है -डाक्टर आता है नींद का इन्जेक्सन एक दो दीन त्रास शामक औसधियाँ और धीरे धीरे वे नार्मल होने लगते है - न तो उनके स्वजन और ना ही परिवार जन और न ही चिकित्सक जान पाते हैं की उनकी घबराहट की वजह क्या है - शामक औसधियाँ अब उनके लिए प्रतिदिन की खुराक हो चुकी है
मैंने उनकी बीमारी का नाम रखा है डाटर्स मैरिज फोबिया -किसी चिकित्सा शास्त्र या किसी पैथी में ऐसी बीमारी या ऐसे लक्षण नहीं लिखे है यह तो मेरा ही दिया हुआ नाम है -हाइड्रो फोबिया -अल्तो फोबिया - बाथोफोबिया आदि बीमारियों का तो चिकित्सा शास्त्र में उल्लेख भी है और उपचार भी = डाटर्स मैरिज फोबिया देश व्यापी अन्य घातक बीमारियों की तरह जानलेवा तो नहीं है इससे मरीज़ मरता तो नहीं है किंतु वह जीता भी नहीं है अध वीच में लटका रहता है त्रिशंकु की तरह -उसके चेहरे पर दुःख शोक और निराशा के भाव साफ दिखाई देने लगते है -वह अन्यमनस्क व्याकुल व चिडचिडा हो जाता है एकांत की तलाश में रहता है और शोर से घबराता है
मेरे मित्र का इलाज दवा है है मात्र माहोल परिवर्तन ही उनका उपचार है - जिस प्रकार निर्धन का एक मात्र लक्ष होता है की किसी तरह अमीर हो जाय - जिस प्रकार निरक्षर का एक लक्ष्य होता है की कुछ पढ़ लिख जाय कुछ कर दिखाए उसी तरह पुत्री के पिता का जीवन में एक ही लक्ष्य होता है की किसी तरह इसके हाथ पीले हो जायें यहाँ यह भी कहना चाहूंगा की कुछ माता पिता तो हद ही कर देते हैं इधर सोलह सत्रह की हुई नहीं की कहने लगते हैं इसके हाथ पीले हो जायें तो हम गंगा नहा जायें सिर से बोझ उतर जाए कुछ और लोगों ने कहावतें बना रखी हैं की लडकी की डोली और मुर्दा की अर्थी जितनी जल्दी उठ जाए उतना ही अच्छा होता है =अर्थी वाली बात तो समझ में आती है की तबतक घर में भयंकर कुहराम मचा रहता है लेकिन लडकी की डोली -और इन्हे शर्म भी नहीं आती लडकी के भावी जीवन से कोई लेनादेना नहीं है इनका - रोज़गार बेरोजगार कम पढ़ा लिखा कैसा भी हो लडकी का पेट तो भर ही देगा मतलब लडकियां मात्र पेट भरने के लिए ही पैदा होती हैं
जहाँ विबाह योग्य वर दिखता है या उसके वारे में पढा सुना जाता है तो कन्यायों के पिता उस पर मुग्ध होकर दौड़ने लगते हैं जिस तरह पतंगे अग्नी की ओर दौड़ते हैं फिर वर की आर्थिक मांगें पूरी न कर सकने के कारण उन्हें वापस लौटना पड़ता है किंतु फिर भी वे उसी के लिए तड़पते रहते हैं और जब वर अन्यत्र बिक जाता है तो दुःख से अत्यन्त व्याकुल रहते हैं जैसे संसार के सबसे बडे लाभ से उन्हें बंचित कर दिया गया हो -जिस तरह सारी नदियाँ द्रुत गती व प्रबाह से समुद्र की ओर दौड़ती हैं उसी तरह चारों तरफ से कन्यायों के पिता वर की ओर दौड़ते हैं --पूर्ती कम और मांग ज़्यादा तो मूल्य ब्रद्धि स्वाभाविक है अर्थ शास्त्र का यही नियम है - पुराने जमाने में इस सिद्धांत को आधार मान कर गोदामों में रुई भर कर नकली अभाव पैदा किया जाता था आजकल अनाज भर कर पैदा किया जाता है - हर लडके का पिता इस सिद्धांत का चतुर चितेरा होता है -
ऐसे में -इन परिस्थियों के मोजूद रहते माहोल परिवर्तन द्वारा मेरे मित्र का इलाज कैसे हो यह कठिन समस्या है किंतु उनका इलाज तो करना ही है-
जहाँ बिना दहेज के शादी हो रही हो -जहाँ लड़का कार और लडके की माँ नकदी व जेवर न मांग रही हो - बिध्युत सज्जा से दूर दिन के उजाले में सादगी पूर्ण तरीके से विवाह सम्पन्न हो रहा हो वहाँ मेरे मित्र को पहुचाना है –
जहाँ लडकी की शादी के लिए मकान व जेवर रहन नहीं रखे जा रहे हों -जहाँ पुश्तेनी खेती की जमीन विक्रय न की जारही हो -जहाँ लडकी के बाप पर दबाव न डाला जा रहा हो की =बरात के स्वागत में कोई कमी रही तो हमसे बुरा कोई न होगा =अमुक राशी या सामान देने पर ही लडकी को ले जाया जायेगा अथवा लडके लो फेरों पर भेजा जाएगा वह जगह मेरे मित्र को बताना है –
जहाँ लडके के बाप के सर पर इतना लोभ सवार न हो रहा हो की प्रसूतिकाल में खिलाये गए हरीला और पिलाए गए दशमूल काड़े से लेकर उच्च शिक्षा पर मय डोनेशन व केपी टेशन फीस पर हुआ व्यय मय व्याज के लडके के बाप से वसूल करना चाहता हो उनसे मेरे मित्र को मिलवाना है –
पाठक ब्रंद आपको कहीं ऐसा माहोल दिखे तो मेरे मित्र को जरूर बताना और उनसे कहना की अब ऐसा भी होने लगा है क्योंकि में चाहता हूँ की उनके जीवन की वाकी बची सांसें वे चैन से ले सकें
पूज्य माँ
11 years ago
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