Sunday, April 20, 2008

कहाँ खो गया कवि मतवारा

दीपक भारतदीप जी का एक लेख है "नाम ,छद्म नाम और अनाम " छद्म नाम से किसी लेख पर अश्लील टिप्पणी करने का जिक्र है
साहित्य और संस्कृति पर विविध प्रकार से प्रहार होता रहा है और वह निरंतर बढ़ता जा रहा है =अश्लील चित्रों ने संस्कृति पर और अश्लील भाषा ने साहित्य पर अपने प्रहार बढा दिए हैं व्यक्ति को वाक एवम लेखन की स्वंत्रता है -जब स्वतंत्रता निरपेक्ष और दायित्वहीन हो जाती है तो स्वेच्छाचारिता हो जाती है वहा यह बात ध्यान में नहीं रखी जाती है की यह स्वतंत्रता विधि सम्मत नहीं है और किसी दूसरे की स्वन्त्न्त्र्ता में बाधक तो नहीं है =ज्ञान और भावों का भण्डार ,समाज का दर्पण -ज्ञान राशी का संचित कोष यदि मानव कल्याणकारी नहीं है तो उसे में साहित्य कैसे कहूं मेरी समझ से बाहर है जीवन के सूक्ष्म और यथार्थ चिंतन सामाजिक चरित्र का प्रतिपादन करती रचनाओं पर प्रतिकूल या अश्लील टिप्पणियाँ कहाँ तक स्वागत योग्य है मेरी समझ से बाहर हैं
कितनी हास्यास्पद बात है एक सज्जन कह रहे थे की चाहे जमाने भर में साहित्य का स्तर गिर जाए हमारे जिले में नहीं गिर सकता पूछा क्यों ? तो बडी सादगी से बोले हमारे जिले में साहित्यकार कोई है ही नहीं = जहाँ तक में समझता हूँ आमतौर पर कवि छपने के लिए ही रचनाएं लिखता है -चाहता है कविता के साथ उसका नाम अखवार में छपे फोटो साथ में छपे तो और भी मज़ा -कवि सम्मेलनों में भी कवि चाहता है की उसका नाम पुकारा जाए मगर एक तो सबसे पहले नहीं और दूसरे किसी अच्छे कवि के बाद नहीं
आश्चर्य तब होता है जब कवि कविताएँ लिख कर गुमनाम हो जाता है -जमाना बडे शौक से सुन रहा था -हमी खो गए दास्तान कहते कहते -हाँ कुछ रचनाएं गुमनाम जरूर होती हैं परन्तु वे होते हैं देवी देवताओं के नाम लिखे पत्र -उनमे पाने वाले का पता होता है और लेखक गुमनाम होता है -साथ ही प्रतिवंध होता है की अमुक मात्रा में पत्र की नकल भेजना अनिवार्य है -पत्र डालने पर अमुक फायदा और न डालने पर अमुक नुकसान होगा -फलां ने डाला तो लाटरी खुल गई और फलां ने नही डाला तो उसकी भैंस मर गयी - ऐसी रचनाओं से लेखक और पाठक के बीच कोई सुद्रढ़ सम्बन्ध निर्मित हों या विकसित हों इसके पूर्व ही लेखक गुम हो जाता है -साहित्य के द्वारा आत्मीय और आध्यात्मिक सम्बन्ध घनिष्ट हों तो आनंद की बात है -और यदि सम्बन्ध विकृत हों तो ?
जिस तरह किसी देश की राजनेतिक प्रणाली से भ्रष्टाचार के उन्मूलन में वहाँ की व्यवस्था असफल हो जाती है उसी तरह विद्रूप साहित्य के रचयिता को ढूढने में जासूस तक असफल हो जाते हैं और साहित्यकार अपनी विद्रूपता का दर्शन जन मानस को करा ही देता है -और लोग हैं की विद्रूपता पसंद कर रहे हैं =जो अश्रेष्ठ है -जो अपरिमार्जित है ,वह लोगों की आत्मा को तृप्त कर रहा है और रचनाकार भ्रम में है की कीर्तिमानों की लम्बी श्रख्ला में उसने एक कड़ी और जोड़ दी -अश्लील तुकवन्दी फूहड़ हास्य नेताओं को गलियां परोसकर कवि समझता है की उसने बडा तीर मार लिया -वाणी और स्वंत्रता का दुरूपयोग नहीं होना चाहिए -इजहारे ख्याल बुरा नहीं होता -उसकी अभिव्यक्ति ऐलानियाँ और खुल्लम खुल्ला की जा सकती है बशर्ते की ख्याल गरिमामय हो भाषा सुसंस्कृत और परिमार्जित हो बात दुशाले में लपेट कर भी कही जा सकती है
जोश मलीहाबादी ने कहा था की "अज्राह -ऐ -करम मुझ नीम जां को भी खबर कर दें ,अगर इस कूचागर्दी में कोई इंसान मिल जाए " हमारे यहाँ की सुप्रसिद्ध शायरा अंजुम रहबर ने कहा है =आदमी तो बहुत हैं जहाँ में ,ऐसा लगता है इंसान कम हैं "इसी प्रकार मेरा भी यही कहना है की कवि तो बहुत हैं जहाँ में -ऐसा लगता है साहित्यकार कम हैं

2 comments:

दीपक भारतदीप said...

आप बहुत अच्छा लिखते हैं इसमें संदेह नहीं है। मैं तो आपके मुकाबले कुछ भी नहीं लिख पाता। इतनी गहराई से लिखना मेरे बूते का नहीं है। सच तो यह है कि अब मैं आपका ब्लाग रोज शाम को खोलकर देखूंगा। बस आप मुझे एक बात बताईये कि आप इसे ब्लागवाणी और चिट्ठाजगत पर ले गये हैं कि नहीं। वहां बहुत पाठक मिलेंगे। अरे, आप चिंता न करें आप कहें तो मैं ईमेल कर दूं उनको। कहें तो एक पोस्ट डाल दूं समीक्षा के रूप में। अगर आपने ध्यान किया हो तो मै दूसरे ब्लागरों की भी समीक्षा कर चुका हूं।
आपसे पिछली बार भी मैने पूछा था आपने जवाब नहीं दिया। मैं तो अब आपका ब्लाग रोज खोलकर देखूंगा। आपने सारे ब्लाग पर इसको लिंक देता जाउंगा। वहां से पाठक आपके पास आयेंगे। आप इसका त्वरित उत्तर देना तो मैं आप ही ईमेल कर दूंगा।
दीपक भारतदीप
yah vardverifikashan to hataayen

BrijmohanShrivastava said...

आजके लेख में आपका नाम आगया है अगर आप अनुचित समझते हो तो हटा देंगे
आपके पसंदीदा ब्लॉग में मेरा नाम देख कर बहुत खुशी हुई
मेरे पास आपका ई मेल नहीं है
मुझे ब्लॉग वाणी या चिट्ठाजगत पर अपने को ले जाना नहीं आता है
आप अपना समझ कर जितनी कृपा कर सकते हो करदें पोस्ट डाल दें समीक्षा के रूप में या मित्रों को ई मेल करदें मुझे आप अपना आश्रित समझ लीजिये -आपके लेखों से आपकी भावना जान कर लिख रहा हूँ