Tuesday, October 28, 2008

कुछ लिखा है

महानुभाव /आप पधारे स्वागत /मैंने शारदा ब्लॉग पर कुछ लिखा है =सरसरी नजर डालने की कृपा करें

Saturday, October 25, 2008

मैं आलोचक तो नहीं

मैं आलोचक तो नहीं ,जब से देखीं मैंने कवितां ,मुझको आलोचना आगई / एक २०-२२ साल का लड़का कवितायें ,हुस्न ,इश्क ,इंतज़ार ,याद ,दर्द ,हिज्र में मर जाना ,नींद न आना बगैरा / इतना कहा बेटा ओलिम्पिक ,बीजिंग , .हौकी पर ,क्रिकेट पर लिख /हम इंतज़ार करेंगे कयामत तक ,कयामत हो और तू आए , बात ही बेमानी है ,ऐसे आने से फायदा क्या =का वर्षा जब कृषी सुखाने ==उसने कह दिया आप आलोचना कर रहे हैं /

एक गोष्ठी में शायर अपना शेर सुनाने से पहले कहें लगा ""अपने इन शेरों में मुझे अपना ये शेर ख़ास तौर पर पसंद है ""
मेरे मुह से ये निकल गया ""ये तो हुज़ूर की जर्रा नवाजी है वरना शेर किस काविल है ""उसी दिन से गोष्ठियों से बुलावा बंद /एक कवि सम्मलेन में मैंने एक कविता सुनाई ,दूसरी कविता सुनाते वक्त श्रोताओं ने मुझे हूट कर दिया ,मैं अपनी जगह आ बैठा ,दूसरे कवि ने एक कविता सुनाई श्रोताओं ने सुनी, जैसे ही उसने दूसरी सुनानी चाही, श्रोता फिर मुझे हूट करने लगे /उसी दिन से मैंने कवि सम्मलेन में जाना बंद कर दिया /

बडे साहित्य कार अपनी गोष्ठियों में मुझ जैसों को बुलाते नहीं ,और जिन गोष्ठियों में मुझे बुलाया जाता है तो मैं सोचता हूँ कि जो गोष्ठी मुझ जैसों तक को कविता पाठ हेतु बुला सकती है वह किस स्तर की होगी ,अत में जाता नहीं .यह बात मैंने शरदजोशी जी के लेख में पढी थी /लक्ष्मी बाई और दुर्गावती के देश में जब आजकल के कवि और शायरों की नायकाओं के बदन शरद की शीतल चांदनी में तपन से झुलसते हैं ,दस्यु सुंदरियों के देश में जब नायिकाओं के पैर मखमल के गद्दे पर छिलते हैं तो, मुह से कुछ निकल जाता है और लोग बुरा मान जाते है /मान जाते हैं साब/ लम्बी छुट्टी का लाभ उठा कर मेरे दफ्तर की एक मेडम लौटी, तो मैंने पूछ लिया कहिये मेडम कैसी हैं =बोली अच्छी हूँ = मैंने कहा यही बात मैं कह देता तो आप बुरा मान जातीं /

जो बात मुझे पसंद नहीं होती उसका इजहारे ख्याल हो जाता है / कोई भक्त कवि कृष्ण से ,अपनी खोई हुई गेंद तलाशने की खातिर गोपियों की तलाशी दिलवायेगा ,कोई श्रृंगारशतक में नारी अंगों की तुलना स्वर्ण कलश से करेगा तो हम भी तो कुछ विचार व्यक्त कर सकते हैं /

में प्रेम मोहब्बत का दुश्मन नहीं /लेकिन ऐसा प्रेम में उदास रहा ,परेशान रहा तेरे बगैर नींद न आई /जैसे कोई काम्पोज या अल्प्राजोलम से बात कर रहा हो /प्रेम को तो समझ कर भी प्रेम पर नहीं लिखा जासकता /बिना समझे लिखने का तो प्रश्न ही नहीं हां लिखलो प्रफुल्लित ,प्रमुदित, अश्रु की अजस्र धारा बहुत सुंदर और बहुत प्यारे शब्द मगर ऐसा लगेगा जैसे किसी भिखारी को राजा ने हाथी दान में दे दिया हो किसी ने कहा " माँगा हुआ लिवास पहनने से पेश्तर ,अपना मिजाज़ उसके मुताबिक बनाइये "जो प्रेम के समुद्र में डूब गया उसका तो वह स्वम वर्णन नही कर सकता =मिठास का वर्णन कैसे होगा गोस्वामी जी ने कहा है
कहहु सुपेम प्रगट को करई ,कही छाया कवि मति अनुसरई /
कविही अर्थ आखर बलु साँचा, अनुहरि ताल गतिहि नटु नांचा/

प्रेम ,कितना प्यारा शब्द मगर क्या नाश किया है कि क्या कहें /पार्क की बैंच लड़का -तुम न मिली ,तुमसे शादी न हुई तो अपनी जान देदूंगा /एक मिनट को अलग नहीं रह सकता /लडकी बेंच से उठ कर कोल्ड ड्रिंक लेने चली जाती है लड़का बोर ,लडकी का पर्स पलटने लगता है एक चिठ्ठी 'प्रिय शारदा ,जब तक मेरी नौकरी नहीं लग जाती है तब तक बिरजू [बृजमोहन] को यूं ही बेवकूफ बनाती रहो -आजकल तंगी है इससे बहुत आर्थिक मदद मिल रही है / अपन को मेरी नौकरी लगते ही शादी करना है / कोल्ड ड्रिक हॉट ड्रिंक में तब्दील ,जान देनेवाला जान लेने पर उतारू /

राजस्थान एक जमाने में पानी की कमी के लिए प्रसिद्ध- अब तो बहुत नहरें डेम है /बात पुरानी ,कुछ सखियाँ खड़ी देख रही है कि एक हिरन और एक हिरनी मरे पड़े हैं / एक सखी पूछती है "" खड़ो न दीखे पारधी [शिकारी ] लाग्यो न दीखे बाण /मै तेन्यूं पूंछूं सखी किस विध तज्या प्राण / तो दूसरी सखी जवाब देती है ""जल थोड़ो नेहा घन्यो,लागा रे प्रीत रा बाण /तू पी तू पी कहत ही दोन्यूं तजया प्राण /

Thursday, October 16, 2008

papa tum bhee blog banaalo

लगे रहो मुन्नाभाई में जब चार पाँच बुड्ढों ने कहा ""या तो खिट खिट करके मरो या जीने की कोई वजह ढूंढ लो ""तो बेटा बोला पापा जी आप भी लिखने की कोई वजह ढूंढ लो /मैंने कहा लिखने की भी कोई वजह होती है ?बोला क्यों नहीं होती /हर चीज़ की कोई न कोई वजह जरूर होती है /आप बताइये संन्यास लेने की भी कोई वजह होती है ,मैंने कहा बिल्कुल होती है ""नारि मुई ग्रह संपत्ति नासी ,मूड मुड़ाय भये संन्यासी ""बोला वही तो मै कह रहा हूँ /किसी से नजरें लड़ जाएँ ,कोई नजर चुराले ,दोस्ती करले ,धोखा दे दे भाइयों से पिट वादे करने लगो कवितायें /कुछ पत्नी के स्वर्ग वास के बाद कवि हो जाते हैं /मैंने पूछा बेटा तू मुझे अपना समझता है क्या इसकी भी कोई वजह है बोला क्यों नहीं है -अभी मेरी शादी नहीं हुई है ""सुत मानहिं मातु पिता तब लौं ,अबलानन दीख नहीं जब लौं "" आप की तो बात ही क्या मैं तो पूरे कुटुंब से दुश्मनी ले सकता हूँ ""ससुराल पिआरि लगी जब तें ,रिपु रूप कुटुंब भये तब तें "" आप तो लिखने ही लगो /

पुत्र और स्पष्ट करना चाहता था यह कह कर कि ""मै शायर तो नहीं जब से देखा तुमको मुझको शायरी आगई "" और में कहीं कवि न बन जाऊं तेरी याद में ओ कविता ""लेकिन में समझ चुका था ,कुछ बातें मेरी समझ में जल्दी आ ही जाती हैं /बोला आपतो लिखने ही लगो /

बात चिंतनीय थी ,चिंता और चिंतन ,दोनों एक साथ करने की थी ,लेकिन मुझे उलझन ये कि कवि लिखे और न तो उसे कोई सुने न पढ़े तो धिक्कार है बिल्कुल आल्हाखंड की तरह ""जाको बैरी सम्मुख बैठे ताके जीवन को धिक्कार ""/बच्चे एस एम् एस और चेटिंग में व्यस्त ,युवक तोड़ फोड़ में ,प्रौढ़ फेशन चेनल देखने में और बूढे बहुओं की टोकाटाकी करने में =और कुछ लोग इंटरनेट पर ही बैठे रहते हैं /

इंटरनेट की बात सुनते ही बेटा बोला हां पापा आप इंटरनेट पर लिखो /साहित्य को स्वांत सुखाय तक सीमित मत रखो =कवितायें लिखो ,तुकवन्दी लिखो -चाँद पर लिखो ,तारों पर लिखो / मैंने पूछा चाँद पर कैसे लिखूंगा ?बोला आपको चाँद पर बैठ कर उसकी धरती पर कोयला से थोड़े ही लिखना है उनको आधार बनाओ ,शायर इसे जमीन कहते है जैसे लगे रहो मुन्नाभाई में डाक्टर बीमार को "सब्जेक्ट " कह रहा था / आकाश को बस्त्र तारों को डिजाइन जैसे पहले टोपियों पर सलमा सितारे जड दिया जाया करते थी बिल्कुल बोईच /उस बस्त्र को चाँद को पहिनाओ =फिर चन्द्रमुखी उस आकाश के बस्त्र को हटा कर सुखदाई बदन झलकायेगी /मैंने मन में सोचा आज कल कोई बस्त्र पहनता ही कहाँ है -प्रकट में कहा तू मुझसे उस चंद्रमा पर लिखवाना चाहता है जो ""जनम सिन्धु ,पुनि बंधू बिषु ,दिन मलीन ,सकलंक "" है तथा ""घटई ,बढ़ई बिरहन दुःख दाई "" है और "कोक शोक प्रद पंकज द्रोही ""है =उसने ध्यान नहीं दिया और बोला आप तो लिखने ही लगो /

मैंने कहा बेटा मैंने रचना लिखी और मेरी ख़ुद ही समझ न आई तो इंटरनेट पर मेरी कविता कौन समझेगा =उसने कहा इंटरनेट पर समझने की जरूरत ही कहाँ होती है /और कहीं पत्रिका बगैरा में भेजोगे ,या तो सम्पादक उसमें कांट छाँट करेगा या खेद सहित लौटा देगा /यही ऐसी जगह है जो ""स्वरूचि अभिव्यक्ति " का मध्यम है -स्वरूचि भोज की तरह /

बेटा पिछले साल शर्मा जी रिटायर हुए थे उन्होंने ब्लॉग बनाया /तुम तो जानते हो वे कितने बड़े साहित्यकार है -अच्छे स्तर की पत्रिकाओं में उनकी कवितायें छपती थी -तीन संकलन भी प्रकाशित हो चुके है , उन्होंने पत्रिकाओं में प्रकाशित दस कवितायें ब्लॉग पर डालदी ,दो माह में एक कविता पर तीन कमेन्ट आए / पापा -आपको लिखने में दिलचस्पी है या कमेन्ट में / बेटा कमेन्ट तो आना ही चाहिए -बडा सुकून मिलता है -और लिखने को प्रेरणा मिलती है -चेहरे पे खुशी छा जाती है ,आंखों में सुरूर आजाता है / देखो पापा आप अपने नाम से ब्लॉग बनाओगे तो कोई नहीं आएगा -आते ही फोटो देखेगा ,उम्र देखेगा ६६ साल ,सोचेगा इस बूढे खूंसठ कोक्या पढ़ना =बहुओं की बुराई करेगा ,रुपया सेर घी की बात करेगा ,आज की जनरेशन को कोसेगा ,फेशन की बुराई करेगा ,संस्कृति और ज्ञान की बातें करेगा /

और फिर आपको टिप्पणी ,कमेन्ट ,बहुत अच्छा, बहुत सुंदर ,हा हा हा हा का इतना ही शौक है तो किसी काल्पनिक नाम से ब्लॉग बनाओ /काल्पनिक नाम कुछ भी हो सकता है आशा ,गाया ,कुमारा ,पाटाल कुछ भी किसी ग्रामीण बाला का चित्र डालदो इतने कमेन्ट आयेंगे कि आपसे पढ़े नहीं जायेंगे /एक शायर के जूते खो गए बोला मेरे जूते खो गए अब घर कैसे जायेंगे /बोले -शायरी शुरू करदो इतने आयेंगे कि गिने नहीं जायेंगे / नहीं बेटा अपने नाम से ही होना चाहिए =हर साहित्यकार की इच्छा होती है कि उसका नाम हो / तो फिर आप फास्ट फ़ूड की तरह फास्ट भाषा में लिखने लगो /अरे जब यू से काम चल रहा है तो वाय ओ यू का क्या मतलब /अभिव्यक्ति की जो सरल ,बाजारू भाषा अस्तित्व में आरही है उसे अपनाओ /गरीब और अविकसित लोगों की भाषा को कब तक छाती से चिपकाए बैठे रहोगे /कब से सोच रहे थे ये अँगरेज़ हमें गुलाम समझते है =न उन जैसा रहने देते है न उन जैसा बोलने देते है / ये देश से चले जाएँ तो हम इनकी तरह रहें और अंग्रेजी बोलें /अब रहने तो लगे अंग्रेजों की तरह ,मगर अंग्रेजों की तरह बोलें कैसे /बोलना है अंग्रेजी मगर दखल नहीं अभ्यास नहीं ,बोल सकते हैं हिन्दी दखल भी है और अभ्यास भी मगर बोल नहीं सकते हीनता ज़ाहिर होती है/

अब हिन्दी बोलना आता है मगर बोलना नहीं है .अब अंग्रेजी बोलना नहीं आता है मगर बोलना है तो क्या करें =ऐसा करें -सुबह को मय पी शाम तो तौबा कर ली ,रिंद के रिंद रहे हाथ से जन्नत न गई /दोनों को मिलादों /एक नई क्रोस भाषा एक वर्णसंकर भाषा उत्पन्न होगी उसे अपनाओ /आप तो लिखने ही लगो /

Friday, October 3, 2008

शिक्षा - स्तर - और मेरा भाषण

मैं अचानक भाषण देने लगा , कब आयेगा वो दिन जब प्राथमिक शालाओं की छत नही टपकेगी ,बैठने को टाटपट्टी,शुद्ध पानी ,साफ़ सुथरे बच्चे, प्रोपर ड्रेस में होंगे /

सर ,शिक्षक वावत आपने भाषण में कुछ नहीं कहा / भाषण शुरू होने से पहले ही किसी ने टोक दिया / मैंने फिर भाषण शुरू किया , शिक्षक वहां कहाँ होंगे /वे बोटर लिस्ट और फोटो परिचय पत्र बना रहे होंगे ,मर्दुम शुमारी और पशु गणना कर रहे होंगे /वार्डों में नालियां साफ़ हुई या नही देख रहे होंगे और जनसंपर्क का इन्द्राज कर रहे होंगे /पुनरीक्षित वेतनमान और महगाई भत्ते के लिए आन्दोलन कर रहे होंगे / पदनाम बदलवाने मीटिंग कर रहे होंगे , ,टी ऐ बिल ,मेडिकल बिल ,या जी पी ऍफ़ के लिए हेड क्वाटर के चक्कर लगा रहे होंगे या जिला शिक्षा अधिकारी के कार्यालय में अटेच होंगे -कुछ गाव से बापस तबादले की जुगाड़ में होंगे , भाषण के बीचमें फिर व्यवधान ;

फिर शिक्षा का स्तर कैसे सुधरेगा ? मेरा भाषण फिर शुरू , स्तर से शिक्षक का क्या सम्बन्ध / स्तर के लिए कोचिंग है ,ट्यूशन है ,नक़ल है ,कम्पुटर है ,इन्टरनेट है ,सर्फिंग है,चेटिंग है , और इससे भी स्तर न सुधरा तो एक साइड और है =८० प्रतिशत साइबर कैफे इसी के दम पर चल रहे हैं और इसमें कोई बुराई भी नहीं है , आखिर यही तो उम्र है सीखने की ताकि आगे अन्य घातक बीमारियों से बचे रहें /

ऐसे ऐसे शार्टकट हैं कि बालक शीघ्र ही अंग्रेजी बोलने मैं आत्म विश्वास से भर जाए /मोबाइल से पढाई के साधन उपलब्ध हैं ,एस एम् एस द्वारा भी पढाई की जा सकती है / शिक्षा का स्तर सुधारने के लिए संगोष्ठियों के अलावा ऐसे ऐसे मन्त्र हैं कि उनका जाप करते रहें तो विद्यार्थी विद्वान् हो जाए /आजकल तो ऐसे यंत्र भी उपलब्ध हैं वह भी मात्र कुछ हजार रुपयों में /साथ ही ऐसे भी यंत्र कि आदमी धन संपन्न हो जाए /कहीं ऐसे भी मन्त्र तंत्र होते हैं क्या साब अगेन रूकावट

देखिये ,भाषण फिर चालू ==कुछ तथा कथित आधुनिक , अविश्वासी ,प्राचीन ग्रंथों की महत्ता से अनभिग्य ,मेरी नजर में नाजानकार, नावाकिफ लोग कह देते हैं कि यंत्रों से कुछ नहीं होता इससे कहीं आदमी धनवान होता है मेरी द्रष्टि में वे अल्पग्य हैं ,उन्हें अपनी भ्रांतिया दूर कर लेना चाहिए मैंने प्राचीन ग्रंथों का गहन अध्ययन किया है /जो लोग यंत्रों की महत्ता से इनकार करते हैं और कहते हैं कि इनसे धन ब्रद्धि नहीं हो सकती उनको में चेलेंज करता हूँ के कंगाल व्यक्ति निश्चित अमीर बन सकता है "रंक चले सर छत्र धराई ""अजमा कर देख लीजिये -आपको बस इतना करना है कि यंत्र बना कर बेचना हैं /

इसके अलावा बाल दिवस है शिक्षक दिवस है उस दिन शिक्षक का सम्मान होना आवश्यक है क्योंकि वह शिक्षक ही तो होता है जो हमें हमारी दिशा और उनकी दशा बतलाते हैं . इसलिए देखना भर ये है कि बच्चों ने टाई बाँध रखी है या नहीं माँ बाप होम वर्क करबाने लायक शिक्षित हैं या नहीं स्कूल फीस ,स्कूल से मिलने वाली ड्रेस और स्कूल से मिलने वाली कापी किताबों का खर्च वहन करने लायक उनकी आर्थिक स्थिति है या नहीं =स्तर सुधरने वाले तो बहुत /हैं