Saturday, September 13, 2008

कवि गोष्ठी

ऐसा लगता है कि कवि गोष्ठीयों में दिलचस्पी रखने वाला साहित्य प्रेमी आज वंचित हो गया है या यह भी कह सकते हैं कि वंचित कर दिया गया है /महत्त्व पूर्ण कवि साथी लगातार ऐसे कार्यक्रमों का आयोजन करते रहते हैं क्यों कि कवि अपनी बात कहना चाहता है वोह उत्सुक है अपनी सुनाने को अपनी छपाने को साथ ही उसकी यह शिकायत कि उसकी रूचि अनुकूल श्रोता नहीं मिल पाते हैं /कवियों के पास विपुल सामग्री है नगर में साहित्यकारों की कमी नहीं फिर भी कवि गोष्ठियों में श्रोता दिखाई नहीं देते /अब या तो वे आते नहीं या बुलाए जाते नहीं "हमसे आया न गया तुमसे बुलाया न गया "

मानवीय मनोब्रत्ति कि सच्चाई छूकर साहित्य सृजन कर कवि उसे अभिव्यक्त करना चाहे और उसे उपयुक्त पात्र न मिले या मिलने पर उसके सराहना न करे तो साहित्यकार को म्रत्यु तुल्य पीड़ा ( वह जैसी भी होती हो ) होना स्वाभाविक है -यही पीड़ा सम्पादकीय अनुकूलता न मिलने पर भी होती है तो ऐसे कवियों या लेखकों को यह कहने पर विवश होना पढता है कि हम तो ""स्वांत सुखाय " लिख रहे हैं /मैं भी पहले लेख लिख कर भेजता था और खेद सहित वापस आजाता था तो उसे स्वांत सुखाय के पेड़ में बाँध दिया करता था /१५ साल पुराने स्वांत सुखाय वाले लेख जब आज पढता हूँ तो लगता है कि सम्पादक सही थे वे लेख पाठक दुखाय ही थे / कमोवेश हर कवि कि इच्छा होती है कि वह अपने यहाँ गोष्ठी आयोजित करे मगर या तो वह किराये के मकान में रहता है या पुराने पुश्तैनी मकान में - जिनमें बड़े हाल का अभाव रहता है = हालाँकि वोह चाय पानी फूल माला सब की व्यवस्था अपनी आर्थिक तंगी के वावजूद करना चाहता है मगर उसके बच्चे बच्चियां इसे व्यर्थ का हुल्लड़ कहकर उसकी इच्छा को दवा देते हैं/
पत्नियाँ तो खैर पतियों से नाराज़ रहती ही हैं क्योंकि वे गोष्ठियों से देर रात घर लौट ते हैं /पत्नी आर्थिक 'मानसिक 'शारीरिक सब कष्ट वर्दाश्त कर सकती है -किंतु पती का देर रात लौटना उसकी वर्दाश्त से बाहर है क्योंकि उधर कवि ज्ञान बघारते रहते है और इधर ये सब्जी बघारती रहती है /
अब कवि को गोष्ठी में बुलाया है और वह दोराहे पर खड़ा है " मैं इधर जाऊं या उधर जाऊं " और कविता का नशा उसे गोष्ठी की ओर खींच ले जाता है / आयोजक समय देता है ८ बजे कवि एकत्रित होते हैं दस बजे तक / कुछ कवि तो इतनी देर से पहुँचते हैं के तब तक आधे से ज़्यादा कवि पढ़ चुके होते हैं /इसमे एक फायदा भी है की उन्हें ज़्यादा देर इंतज़ार नहीं करना पड़ता और जाते ही सुनाने का नंबर लग जाता है /
गोष्ठियों में अब जो अपनी सुना चुके है बे वहाँ से खिसकने के मूड में होते है /सबसे सुगम रास्ता कान पर जनेऊ चढाया और उठ खड़े हुए गोया आते हैं अभी / कुछ लोग जनेऊ पहनते ही इसलिए हैं की वक्त वेवक्त काम आता रहे /अब जो बड़ी बड़ी डायरिया और बही खाते लेकर पहुँचते है उनको खिसकने में दिक्कत होती है अध्यक्ष बेचारा फंस जाता है भाग भी नही सकता और उसे सब से अंत में पढ़वाया जाता है जब तक चार -पाँच लोग ही रह जाते है / मैंने देखा है अखंड रामायण का पाठ -१२ बजे रात तक ढोलक मंजीरे हारमोनियम =दो बजे तक तीन चार लोग रह जाते है एक जो व्यक्ति तीन बजे फंस गया सो फंस गया सुनसान सब सो गए इधर इधर देखता रहता है और पढता रहता है काश कोई दिख जाए तो उससे पञ्च मिनट बैठने का कहकर खिसक जाऊँ -मगर कोई नहीं =न बीडी पी सकता है न तम्बाखू खा सकता है /तीन से पाँच का वक्त बडा कष्ट दाई होता है /सच है भगवान् जिससे प्रेम करते है उसी को कष्ट देते हैं इससे सिद्ध हो जाता है की तीन बजे से पाँच बजे तक पाठ करने वाले और गोष्ठियों के अध्यक्ष से ही भगवान् प्रेम करते हैं /
कवि की कविता पूर्ण होने पर दूसरे कवि तालियाँ बजाते है और बीच बीच में बाह बाह करते रहते है -आह कोई करताइच नई -क्योंकि उन्हें भी सुनना है /वास्तव में तालिया इस बात का द्योतक होती है कि प्रभु माइक छोड़ अपनी सिंहासन पर विराजमान होजाइये मगर जब वह वहीं बैठ कर डायरी के पन्ने पलट कर सुनाने हेतु और कविताये ढूढने लगता है तो शेष कवियों के दिल की धड़कन बढ़ जाती है चेहरे की रोनक विगड़ने लगती है / उधर कवि भी तो कहता है कि एक छोटी सी रचना सुनाता हूँ और फ़िर शुरू होजाता है -शेष कवियों कि भी कोई गलती नही वर्दाश्त कि भी हद होती है /क्योंकि कवि का जब तक नम्बर नही आता सुनाने का तब तक उसे गोष्ठी में बड़ा आनंद मिलता है और ज्यों ही उसने अपनी सुनाई उसे संसार नीरस प्रतीत होने लगता है बोर होने लगता है सोचता है माया मोह के बंधन सब झूंठे है वह स्थित प्रज्ञ सन्यासी की भांति निर्वाक और निस्पंद /
कुछ श्रोता है जो वाकई गोष्टी का आनंद लेना चाहते है उनको तो बेचारों को टीबी पता चलता है जब दूसरे दिन लोकल समाचार पत्र में छपता है कि किसने क्या कहा /पेपर में नहीं छापा तो गोष्ठी का मतलब ही क्या /सबसे पहले कवि उसमें अपना नाम देखता है इत्तेफाकन किसी कवि का नाम छूट जाए तो आयोजक और सचालक की खैर नहीं

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