आदि कल से जितने कवि शायर ,गीतकार हुए सभी ने ग्रीष्म और शीत ऋतू पर कम वर्षा ऋतू पर कुछ ज़्यादा ही लिखा है /किसी ने बदल डरावने बताये ,किसी ने उन्हें जुल्फें बताया , किसी ने हरियाली पर ,रिमझिम फुआरों पर मोर पपीहे पर सब पर लिखा /
सम्ब्हब है यह मौसम उन्हें रास आया हो , यह भी सम्ब्हब है उनके पास छाता रहता हो या पड़ोसी से उधार मिल जाता हो /यह भी हो सकता है की उनके बच्चे कापी किताब ,एडमीशन फीस आदि को परेशान नहीं करते होंगे या उनकी पत्नियों की ओर से आचार के लिए कैरी और सरसों के तेल की फरमाइश न की जाती होगी - हो सकता है वे कमरे से निकल बाथरूम तक प्लास्टिक या बोरी ओढ़ कर चले जाते होंगे /हो सकता है उनके मकान में सीलन न रहती हो और यह भी सम्भव है की कमरा उनका इतना बड़ा हो कि कि उसमें डोरी बाँध कर कपडे सुखा सकते होंगे और मकान मालिक डोरी बाँधने कील ठोक लेने देता होगा /यह भी सम्भव है कि उनके चड्डी बनियान सुखाने के लिए उनके घर में बिजली कि प्रेस रहती होगी /
किंतु यह तो सत्य है ही कि लिखने का मौसम तो बरसात का ही होता है / क्योंकि इन्ही दिनों कीडे पतंगे रोशनी के चारों ओर ऐसे चक्कर लगाते हैं जैसे किसी दफ्तर में एकाध पोस्ट निकलने पर शिक्षित बेरोजगार अपने अपने प्रमाण पत्रों का बण्डल लिए हुए चक्कर लगाने लगते हैं /उन बंडलों में मूल निवासी का प्रमाण पत्र भी होता है वह कैसे मिलता है लेने वाला जनता है वैसे देने वाला भी क्या पता जनता होगा या नहीं ,पता नही, क्योंकि वहां तो इकट्ठे दस्तखतों के लिए कागज जाते है -किसने क्या किया उसे कहाँ पता चल पाता है =है दुष्यंत कुमारजी को पता चल गया था तो उनहोंने कह दिया कि ""यहाँ तक आते आते सूख जाती है सभी नदियाँ ,हमें मालूम है पानी कहाँ ठहरा हुआ होगा ""/बरसात के मौसम में जगह जगह पानी गड्ढों में ऐसे एकत्रित हो जाता है जैसे साहित्यकार कर्मचारी के टेबल पर फाइलें जमा हो जाती हैं/ बिजली ऐसे चमक जाती है जैसे किसी शोकसभा में नेताजी मुस्करा रहे हों , बदल ऐसे गरजने लगते है जैसे कोई क्रोधी व्यक्ति पूजा पाठ कर रहा हो / कभी कभी पानी बॉस के गुस्से की तरह बडी बडी बूंदों से गिरता है /धूप के दरसन दुर्लभ हो जाते है जैसे वार्ड मेम्बर के वार्ड में और चिकित्सक के अस्पताल में / कपडे सुखाने लोग ऐसे तरस जाते है जैसे कर्मचारी महगाई भत्ते को / मक्खी मच्छर जनसँख्या की मानिंद बड़ते चले जाते है और छितराए बदल इधर उधर ऐसे भाग ने लगते है जैसे जुए के अड्डे पर पुलिस की रेड पडी हो/
इस मौसम में बरसात की बूंदों के साथ आदमी वैसे ही नाचने लगता है जैसे पड़ोसी का बच्चा फ़ैल हो जाए ,लडकी कहीं चली जाए या मियां बीबी में झगडा होजाए ,देख कर पड़ोसी नाचता है / पक्षियों के साथ वह ऐसे गाने -गुनगुनाने लगता है जैसे शोर पोलुशन के प्रभाव को न जानने वाले किंतु शिक्षित लोग मोहल्ले में माइक लगा कर रात भर कीर्तन करते है / बादलों के साथ वह ऐसे उड़ने लगता है जैसे चुनाव जीत कर लोग हवाई जहाज़ में उड़ते हैं /मोरों के साथ वह ऐसे झूमने लगता है जैसे अपराधी लोग उनके बॉस के वरी होने पर शेम्पेन खोल कर झूमते हैं/
कभी कभी बदल इतने नीचे आजाते है जैसे एयर कंडीशन कार से उतर कर कोई मोहल्ले मोहल्ले वोट मांग रहा हो /बादलों के कारण निस्तेज तारे -बादलों को हटाने हेतु हवा से गटबंधन करते है ताकि हवा बादलों को उड़ा लेजाये और फिर वे अपनी छवि जनता को दिखा सकें और डरते भी है कि कहीं ऐसा न हो जाए कि बदल और हवा का ही कहीं गठबंधन न हो जाए /
जैसे कारण ,कर्ता और कर्म इन तीनो चीजों से ही कर्म पूर्ण माना जाता है वैसे ही एडमीशन फीस .कापी किताबों और छाता रेन कोट से मानसून सत्र पूर्ण होता है /जैसे ज्ञान ज्ञेय और परिजाता से कर्म की प्रेरणा होती है वैसे ही फीस किताबें छाता आदि से प्रोविडेंट फंड से एडवांस लेने की प्रेरणा होती है / कोई अपने बच्चे का मुंडन , तो कोई कर्णछेदन कराता है तो कोई अपनी पत्नी को ही बीमार कर देता है / वे कह रहे थे कि पत्नी का वास्तविक उपयोग यही है कि कर्मचारी वक्तन फ वक्तन पत्नी को बीमार करता रहे और प्रोविडेंट फंड से कभी टेम्परेरी ,कभी पार्ट फाईनल निकलता रहे /
इस मौसम में सबसे बड़ी परेशानी का सवव होता है छाता /क्योंकि भीगते तो छाता में भी है मगर शराफत से / अब आप बताइये जब छाता एक आदमी को भी नहीं बचा पाता बरसात से, तो ऐसे में यह गाने की क्या जरूरत है कि ""मेरी छतरी के नीचे आजा क्यों भीगे .......खड़ी खड़ी /एक तो दिक्कत यह है कि छाते खोते बहुत है /दफ्तर ले गए ,खोला ,सूखने रख दिया ,शाम को पानी बंद हो गया भूल आए /असल में कर्मचारी साडे पाँच बजते ही ऐसे भागते है कि दस मिनट भी रुक गए तो अनर्थ हो जाएगा / अगर बॉस छुट्टी पर हो तो पाँच बजने का भी क्या मतलब / दूसरे दिन तलाशेंगे -फिर मिलता है क्या / एक दिन वे छाते पर अपना नाम लिखवा रहे थे = बोले खोयेगा नहीं /मैंने कहा जब कोई तेरा छाता उठा कर ले जाएगा तो तेरा नाम,चिल्लाएगा क्या कि यह मुझे ले जा रहा है /मगर नहीं माने नाम लिखवा ही लिया /
सच है बरसात किसी के लिए मुसीवत है ,किसी के लिए मसर्रत है ,किसी के लिए हकीकत है तो कवियों और लेखकों को प्रेरणा प्रदान करने वाली है
पूज्य माँ
11 years ago
2 comments:
आप कह रहे हो लिखने का मौसम होता है। जब उमस होती है तब लिखना मुश्किल होता है। कई बार तो कंप्यूटर पर बैठने से ही बीमारी हो जाता है आदमी।
हां आप यूसर नेम पर अपना ईमेल का पता और अपना पासवर्ड लिखकर कमेंट लिख सकते हैं।
आप अपने ब्लाग की सैटिंग में जाकर वर्ड वेरीफिकेशन को हटा लीजिये क्योंकि कई ब्लाग लेखक इससे टिप्पणी लिखने में दिक्कत अनुभव करते हैं। आपका लेख बहुत मजेदार है।
दीपक भारतदीप
सार्थक और सत्य को उजागर करता बढिया आलेख श्रीवास्तव जी आपका आगमन मेरा सौभाग्य है हार्दिक धन्यबाद आपका आगमन नियमित बनाए रखें मेरी नई रचना पढ़े
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