Tuesday, October 28, 2008

कुछ लिखा है

महानुभाव /आप पधारे स्वागत /मैंने शारदा ब्लॉग पर कुछ लिखा है =सरसरी नजर डालने की कृपा करें

Saturday, October 25, 2008

मैं आलोचक तो नहीं

मैं आलोचक तो नहीं ,जब से देखीं मैंने कवितां ,मुझको आलोचना आगई / एक २०-२२ साल का लड़का कवितायें ,हुस्न ,इश्क ,इंतज़ार ,याद ,दर्द ,हिज्र में मर जाना ,नींद न आना बगैरा / इतना कहा बेटा ओलिम्पिक ,बीजिंग , .हौकी पर ,क्रिकेट पर लिख /हम इंतज़ार करेंगे कयामत तक ,कयामत हो और तू आए , बात ही बेमानी है ,ऐसे आने से फायदा क्या =का वर्षा जब कृषी सुखाने ==उसने कह दिया आप आलोचना कर रहे हैं /

एक गोष्ठी में शायर अपना शेर सुनाने से पहले कहें लगा ""अपने इन शेरों में मुझे अपना ये शेर ख़ास तौर पर पसंद है ""
मेरे मुह से ये निकल गया ""ये तो हुज़ूर की जर्रा नवाजी है वरना शेर किस काविल है ""उसी दिन से गोष्ठियों से बुलावा बंद /एक कवि सम्मलेन में मैंने एक कविता सुनाई ,दूसरी कविता सुनाते वक्त श्रोताओं ने मुझे हूट कर दिया ,मैं अपनी जगह आ बैठा ,दूसरे कवि ने एक कविता सुनाई श्रोताओं ने सुनी, जैसे ही उसने दूसरी सुनानी चाही, श्रोता फिर मुझे हूट करने लगे /उसी दिन से मैंने कवि सम्मलेन में जाना बंद कर दिया /

बडे साहित्य कार अपनी गोष्ठियों में मुझ जैसों को बुलाते नहीं ,और जिन गोष्ठियों में मुझे बुलाया जाता है तो मैं सोचता हूँ कि जो गोष्ठी मुझ जैसों तक को कविता पाठ हेतु बुला सकती है वह किस स्तर की होगी ,अत में जाता नहीं .यह बात मैंने शरदजोशी जी के लेख में पढी थी /लक्ष्मी बाई और दुर्गावती के देश में जब आजकल के कवि और शायरों की नायकाओं के बदन शरद की शीतल चांदनी में तपन से झुलसते हैं ,दस्यु सुंदरियों के देश में जब नायिकाओं के पैर मखमल के गद्दे पर छिलते हैं तो, मुह से कुछ निकल जाता है और लोग बुरा मान जाते है /मान जाते हैं साब/ लम्बी छुट्टी का लाभ उठा कर मेरे दफ्तर की एक मेडम लौटी, तो मैंने पूछ लिया कहिये मेडम कैसी हैं =बोली अच्छी हूँ = मैंने कहा यही बात मैं कह देता तो आप बुरा मान जातीं /

जो बात मुझे पसंद नहीं होती उसका इजहारे ख्याल हो जाता है / कोई भक्त कवि कृष्ण से ,अपनी खोई हुई गेंद तलाशने की खातिर गोपियों की तलाशी दिलवायेगा ,कोई श्रृंगारशतक में नारी अंगों की तुलना स्वर्ण कलश से करेगा तो हम भी तो कुछ विचार व्यक्त कर सकते हैं /

में प्रेम मोहब्बत का दुश्मन नहीं /लेकिन ऐसा प्रेम में उदास रहा ,परेशान रहा तेरे बगैर नींद न आई /जैसे कोई काम्पोज या अल्प्राजोलम से बात कर रहा हो /प्रेम को तो समझ कर भी प्रेम पर नहीं लिखा जासकता /बिना समझे लिखने का तो प्रश्न ही नहीं हां लिखलो प्रफुल्लित ,प्रमुदित, अश्रु की अजस्र धारा बहुत सुंदर और बहुत प्यारे शब्द मगर ऐसा लगेगा जैसे किसी भिखारी को राजा ने हाथी दान में दे दिया हो किसी ने कहा " माँगा हुआ लिवास पहनने से पेश्तर ,अपना मिजाज़ उसके मुताबिक बनाइये "जो प्रेम के समुद्र में डूब गया उसका तो वह स्वम वर्णन नही कर सकता =मिठास का वर्णन कैसे होगा गोस्वामी जी ने कहा है
कहहु सुपेम प्रगट को करई ,कही छाया कवि मति अनुसरई /
कविही अर्थ आखर बलु साँचा, अनुहरि ताल गतिहि नटु नांचा/

प्रेम ,कितना प्यारा शब्द मगर क्या नाश किया है कि क्या कहें /पार्क की बैंच लड़का -तुम न मिली ,तुमसे शादी न हुई तो अपनी जान देदूंगा /एक मिनट को अलग नहीं रह सकता /लडकी बेंच से उठ कर कोल्ड ड्रिंक लेने चली जाती है लड़का बोर ,लडकी का पर्स पलटने लगता है एक चिठ्ठी 'प्रिय शारदा ,जब तक मेरी नौकरी नहीं लग जाती है तब तक बिरजू [बृजमोहन] को यूं ही बेवकूफ बनाती रहो -आजकल तंगी है इससे बहुत आर्थिक मदद मिल रही है / अपन को मेरी नौकरी लगते ही शादी करना है / कोल्ड ड्रिक हॉट ड्रिंक में तब्दील ,जान देनेवाला जान लेने पर उतारू /

राजस्थान एक जमाने में पानी की कमी के लिए प्रसिद्ध- अब तो बहुत नहरें डेम है /बात पुरानी ,कुछ सखियाँ खड़ी देख रही है कि एक हिरन और एक हिरनी मरे पड़े हैं / एक सखी पूछती है "" खड़ो न दीखे पारधी [शिकारी ] लाग्यो न दीखे बाण /मै तेन्यूं पूंछूं सखी किस विध तज्या प्राण / तो दूसरी सखी जवाब देती है ""जल थोड़ो नेहा घन्यो,लागा रे प्रीत रा बाण /तू पी तू पी कहत ही दोन्यूं तजया प्राण /

Thursday, October 16, 2008

papa tum bhee blog banaalo

लगे रहो मुन्नाभाई में जब चार पाँच बुड्ढों ने कहा ""या तो खिट खिट करके मरो या जीने की कोई वजह ढूंढ लो ""तो बेटा बोला पापा जी आप भी लिखने की कोई वजह ढूंढ लो /मैंने कहा लिखने की भी कोई वजह होती है ?बोला क्यों नहीं होती /हर चीज़ की कोई न कोई वजह जरूर होती है /आप बताइये संन्यास लेने की भी कोई वजह होती है ,मैंने कहा बिल्कुल होती है ""नारि मुई ग्रह संपत्ति नासी ,मूड मुड़ाय भये संन्यासी ""बोला वही तो मै कह रहा हूँ /किसी से नजरें लड़ जाएँ ,कोई नजर चुराले ,दोस्ती करले ,धोखा दे दे भाइयों से पिट वादे करने लगो कवितायें /कुछ पत्नी के स्वर्ग वास के बाद कवि हो जाते हैं /मैंने पूछा बेटा तू मुझे अपना समझता है क्या इसकी भी कोई वजह है बोला क्यों नहीं है -अभी मेरी शादी नहीं हुई है ""सुत मानहिं मातु पिता तब लौं ,अबलानन दीख नहीं जब लौं "" आप की तो बात ही क्या मैं तो पूरे कुटुंब से दुश्मनी ले सकता हूँ ""ससुराल पिआरि लगी जब तें ,रिपु रूप कुटुंब भये तब तें "" आप तो लिखने ही लगो /

पुत्र और स्पष्ट करना चाहता था यह कह कर कि ""मै शायर तो नहीं जब से देखा तुमको मुझको शायरी आगई "" और में कहीं कवि न बन जाऊं तेरी याद में ओ कविता ""लेकिन में समझ चुका था ,कुछ बातें मेरी समझ में जल्दी आ ही जाती हैं /बोला आपतो लिखने ही लगो /

बात चिंतनीय थी ,चिंता और चिंतन ,दोनों एक साथ करने की थी ,लेकिन मुझे उलझन ये कि कवि लिखे और न तो उसे कोई सुने न पढ़े तो धिक्कार है बिल्कुल आल्हाखंड की तरह ""जाको बैरी सम्मुख बैठे ताके जीवन को धिक्कार ""/बच्चे एस एम् एस और चेटिंग में व्यस्त ,युवक तोड़ फोड़ में ,प्रौढ़ फेशन चेनल देखने में और बूढे बहुओं की टोकाटाकी करने में =और कुछ लोग इंटरनेट पर ही बैठे रहते हैं /

इंटरनेट की बात सुनते ही बेटा बोला हां पापा आप इंटरनेट पर लिखो /साहित्य को स्वांत सुखाय तक सीमित मत रखो =कवितायें लिखो ,तुकवन्दी लिखो -चाँद पर लिखो ,तारों पर लिखो / मैंने पूछा चाँद पर कैसे लिखूंगा ?बोला आपको चाँद पर बैठ कर उसकी धरती पर कोयला से थोड़े ही लिखना है उनको आधार बनाओ ,शायर इसे जमीन कहते है जैसे लगे रहो मुन्नाभाई में डाक्टर बीमार को "सब्जेक्ट " कह रहा था / आकाश को बस्त्र तारों को डिजाइन जैसे पहले टोपियों पर सलमा सितारे जड दिया जाया करते थी बिल्कुल बोईच /उस बस्त्र को चाँद को पहिनाओ =फिर चन्द्रमुखी उस आकाश के बस्त्र को हटा कर सुखदाई बदन झलकायेगी /मैंने मन में सोचा आज कल कोई बस्त्र पहनता ही कहाँ है -प्रकट में कहा तू मुझसे उस चंद्रमा पर लिखवाना चाहता है जो ""जनम सिन्धु ,पुनि बंधू बिषु ,दिन मलीन ,सकलंक "" है तथा ""घटई ,बढ़ई बिरहन दुःख दाई "" है और "कोक शोक प्रद पंकज द्रोही ""है =उसने ध्यान नहीं दिया और बोला आप तो लिखने ही लगो /

मैंने कहा बेटा मैंने रचना लिखी और मेरी ख़ुद ही समझ न आई तो इंटरनेट पर मेरी कविता कौन समझेगा =उसने कहा इंटरनेट पर समझने की जरूरत ही कहाँ होती है /और कहीं पत्रिका बगैरा में भेजोगे ,या तो सम्पादक उसमें कांट छाँट करेगा या खेद सहित लौटा देगा /यही ऐसी जगह है जो ""स्वरूचि अभिव्यक्ति " का मध्यम है -स्वरूचि भोज की तरह /

बेटा पिछले साल शर्मा जी रिटायर हुए थे उन्होंने ब्लॉग बनाया /तुम तो जानते हो वे कितने बड़े साहित्यकार है -अच्छे स्तर की पत्रिकाओं में उनकी कवितायें छपती थी -तीन संकलन भी प्रकाशित हो चुके है , उन्होंने पत्रिकाओं में प्रकाशित दस कवितायें ब्लॉग पर डालदी ,दो माह में एक कविता पर तीन कमेन्ट आए / पापा -आपको लिखने में दिलचस्पी है या कमेन्ट में / बेटा कमेन्ट तो आना ही चाहिए -बडा सुकून मिलता है -और लिखने को प्रेरणा मिलती है -चेहरे पे खुशी छा जाती है ,आंखों में सुरूर आजाता है / देखो पापा आप अपने नाम से ब्लॉग बनाओगे तो कोई नहीं आएगा -आते ही फोटो देखेगा ,उम्र देखेगा ६६ साल ,सोचेगा इस बूढे खूंसठ कोक्या पढ़ना =बहुओं की बुराई करेगा ,रुपया सेर घी की बात करेगा ,आज की जनरेशन को कोसेगा ,फेशन की बुराई करेगा ,संस्कृति और ज्ञान की बातें करेगा /

और फिर आपको टिप्पणी ,कमेन्ट ,बहुत अच्छा, बहुत सुंदर ,हा हा हा हा का इतना ही शौक है तो किसी काल्पनिक नाम से ब्लॉग बनाओ /काल्पनिक नाम कुछ भी हो सकता है आशा ,गाया ,कुमारा ,पाटाल कुछ भी किसी ग्रामीण बाला का चित्र डालदो इतने कमेन्ट आयेंगे कि आपसे पढ़े नहीं जायेंगे /एक शायर के जूते खो गए बोला मेरे जूते खो गए अब घर कैसे जायेंगे /बोले -शायरी शुरू करदो इतने आयेंगे कि गिने नहीं जायेंगे / नहीं बेटा अपने नाम से ही होना चाहिए =हर साहित्यकार की इच्छा होती है कि उसका नाम हो / तो फिर आप फास्ट फ़ूड की तरह फास्ट भाषा में लिखने लगो /अरे जब यू से काम चल रहा है तो वाय ओ यू का क्या मतलब /अभिव्यक्ति की जो सरल ,बाजारू भाषा अस्तित्व में आरही है उसे अपनाओ /गरीब और अविकसित लोगों की भाषा को कब तक छाती से चिपकाए बैठे रहोगे /कब से सोच रहे थे ये अँगरेज़ हमें गुलाम समझते है =न उन जैसा रहने देते है न उन जैसा बोलने देते है / ये देश से चले जाएँ तो हम इनकी तरह रहें और अंग्रेजी बोलें /अब रहने तो लगे अंग्रेजों की तरह ,मगर अंग्रेजों की तरह बोलें कैसे /बोलना है अंग्रेजी मगर दखल नहीं अभ्यास नहीं ,बोल सकते हैं हिन्दी दखल भी है और अभ्यास भी मगर बोल नहीं सकते हीनता ज़ाहिर होती है/

अब हिन्दी बोलना आता है मगर बोलना नहीं है .अब अंग्रेजी बोलना नहीं आता है मगर बोलना है तो क्या करें =ऐसा करें -सुबह को मय पी शाम तो तौबा कर ली ,रिंद के रिंद रहे हाथ से जन्नत न गई /दोनों को मिलादों /एक नई क्रोस भाषा एक वर्णसंकर भाषा उत्पन्न होगी उसे अपनाओ /आप तो लिखने ही लगो /

Friday, October 3, 2008

शिक्षा - स्तर - और मेरा भाषण

मैं अचानक भाषण देने लगा , कब आयेगा वो दिन जब प्राथमिक शालाओं की छत नही टपकेगी ,बैठने को टाटपट्टी,शुद्ध पानी ,साफ़ सुथरे बच्चे, प्रोपर ड्रेस में होंगे /

सर ,शिक्षक वावत आपने भाषण में कुछ नहीं कहा / भाषण शुरू होने से पहले ही किसी ने टोक दिया / मैंने फिर भाषण शुरू किया , शिक्षक वहां कहाँ होंगे /वे बोटर लिस्ट और फोटो परिचय पत्र बना रहे होंगे ,मर्दुम शुमारी और पशु गणना कर रहे होंगे /वार्डों में नालियां साफ़ हुई या नही देख रहे होंगे और जनसंपर्क का इन्द्राज कर रहे होंगे /पुनरीक्षित वेतनमान और महगाई भत्ते के लिए आन्दोलन कर रहे होंगे / पदनाम बदलवाने मीटिंग कर रहे होंगे , ,टी ऐ बिल ,मेडिकल बिल ,या जी पी ऍफ़ के लिए हेड क्वाटर के चक्कर लगा रहे होंगे या जिला शिक्षा अधिकारी के कार्यालय में अटेच होंगे -कुछ गाव से बापस तबादले की जुगाड़ में होंगे , भाषण के बीचमें फिर व्यवधान ;

फिर शिक्षा का स्तर कैसे सुधरेगा ? मेरा भाषण फिर शुरू , स्तर से शिक्षक का क्या सम्बन्ध / स्तर के लिए कोचिंग है ,ट्यूशन है ,नक़ल है ,कम्पुटर है ,इन्टरनेट है ,सर्फिंग है,चेटिंग है , और इससे भी स्तर न सुधरा तो एक साइड और है =८० प्रतिशत साइबर कैफे इसी के दम पर चल रहे हैं और इसमें कोई बुराई भी नहीं है , आखिर यही तो उम्र है सीखने की ताकि आगे अन्य घातक बीमारियों से बचे रहें /

ऐसे ऐसे शार्टकट हैं कि बालक शीघ्र ही अंग्रेजी बोलने मैं आत्म विश्वास से भर जाए /मोबाइल से पढाई के साधन उपलब्ध हैं ,एस एम् एस द्वारा भी पढाई की जा सकती है / शिक्षा का स्तर सुधारने के लिए संगोष्ठियों के अलावा ऐसे ऐसे मन्त्र हैं कि उनका जाप करते रहें तो विद्यार्थी विद्वान् हो जाए /आजकल तो ऐसे यंत्र भी उपलब्ध हैं वह भी मात्र कुछ हजार रुपयों में /साथ ही ऐसे भी यंत्र कि आदमी धन संपन्न हो जाए /कहीं ऐसे भी मन्त्र तंत्र होते हैं क्या साब अगेन रूकावट

देखिये ,भाषण फिर चालू ==कुछ तथा कथित आधुनिक , अविश्वासी ,प्राचीन ग्रंथों की महत्ता से अनभिग्य ,मेरी नजर में नाजानकार, नावाकिफ लोग कह देते हैं कि यंत्रों से कुछ नहीं होता इससे कहीं आदमी धनवान होता है मेरी द्रष्टि में वे अल्पग्य हैं ,उन्हें अपनी भ्रांतिया दूर कर लेना चाहिए मैंने प्राचीन ग्रंथों का गहन अध्ययन किया है /जो लोग यंत्रों की महत्ता से इनकार करते हैं और कहते हैं कि इनसे धन ब्रद्धि नहीं हो सकती उनको में चेलेंज करता हूँ के कंगाल व्यक्ति निश्चित अमीर बन सकता है "रंक चले सर छत्र धराई ""अजमा कर देख लीजिये -आपको बस इतना करना है कि यंत्र बना कर बेचना हैं /

इसके अलावा बाल दिवस है शिक्षक दिवस है उस दिन शिक्षक का सम्मान होना आवश्यक है क्योंकि वह शिक्षक ही तो होता है जो हमें हमारी दिशा और उनकी दशा बतलाते हैं . इसलिए देखना भर ये है कि बच्चों ने टाई बाँध रखी है या नहीं माँ बाप होम वर्क करबाने लायक शिक्षित हैं या नहीं स्कूल फीस ,स्कूल से मिलने वाली ड्रेस और स्कूल से मिलने वाली कापी किताबों का खर्च वहन करने लायक उनकी आर्थिक स्थिति है या नहीं =स्तर सुधरने वाले तो बहुत /हैं

Saturday, September 27, 2008

ज्यों की त्यों धर दीनी

कबीर दास कहकर चले गए :"ज्यों की त्यों धर दीनी चदरिया " अपने ब्लॉग में, डाक्टर आदित्य शुक्ल ने अपनी कविता ""एसा जीना भी कोई जीना हुआ "" लगभग यही बात कही /

ज्यों की त्यों वापस करने में मुझे दिक्कत ये हो रही है की मानलो आपके बच्चा हुआ मैंने एक अच्छा खिलौना आपको भेंट किया आपने उसे सम्हाल कर सहेजकर रख लिया और पाँच साल बाद मेरे लड़का हुआ { वेसे दो साल बाद भी हो सकता है ऐसी कोई बात नहीं है } तो आपने मुझे वही खिलोना वापस कर दिया ,सोचिये मुझे कैसा लगेगा / दूसरी बात हम त्योहारों पर शुभ दिन की बधाई देते हैं {अंग्रेजी मैं } तो सामने वाला कहता है सेम टू यू =अब क्या होता है कि कोई कोई स को श प्रयोग करते है अब वह सेम टू यू में सेम में शीटी वाला श लगाकर बोलेगा तो आपको कैसा लगेगा /

जब चदरिया दी है तो उसका उपयोग करो ,उपभोग करो ,धुलवाओ , दो जने मिला कर ओढो, ठण्ड के मौसम में भी तो दो चादर या दो पतली रजाई मिला लेते है ,उसको मन पसंद रंगवाओ ""ऐसी रंग दे कि रंग नाही छूटे ,धोबिया धोये चाहे सारी उमरिया ,श्याम पिया मोरी रंग दे चुनरिया "" यदि देने वाले की ऐसी इच्छा होती कि मुझे एज ईट इज वापस मिलेगी तो वह देता ही क्यों ,थान के थान अपने पास ही न रखे रहता
एक कवियत्री रश्मि प्रभा ने अपने ब्लॉग में बहुत अच्छी बात कही है आज मेरा नाम सहयात्री है कल मेरा नाम नोनीहाल होगा = यह है आत्मबल जीवन जीने की कला वास्तविक जीवन ,नाते रिश्ते ,मोह माया में तटस्थ ,उत्फुल्लित ,प्रमुदित , न संतों से स्वर्ग का टिकेट कटाना है न ही उनसे लुटना है न जिम्मेदारी से भागना है =कल मेरा नाम नोनीहाल होगा, एक उमंग. एक उत्साह, एक आश्वासन ,एक निश्चितता वरना तो जैसा कहा है तू इसी धुन में रहा मर के मिलेगी जन्नत तुझको ऐ शेख न जीने का सलीका आया "" वरना तो इस उधेड़बुन में फिरते रहो इस शास्त्र से उस शास्त्र तक इस ज्ञानी से उस ज्ञानी तक ""भटकती है प्यास मेरी इस नदी से उस नदी तक ""

एक कवि हैं ,मुंबई के ,हरिवल्लभ श्रीवास्तव उन्होंने अपने गजल संग्रह "पिघलते दर्द "" में लिखा है ""बनाया जो विधाता ने उसे उस काम में ही लो ""बस यहीं तो दिक्कत है ,किस काम के लिए बनाया है ख़ुद जानते नहीं और किसी की मानते नहीं /अरे जब शंकर जी की पत्नी सती ने शंकरजी का उपदेश नहीं माना वह भी बार बार कहने पर भी ""लाग न उर उपदेसू जदपि कहेउ सिब बार बहु "" वहाँ तो एक ही थे यहाँ तो अनेक उपदेश और वे भी परस्पर विरोधी तो ""मति भ्रम तोर प्रकट मैं जाना "वाली स्थिति क्यों नही होगी/

ज्यों की त्यों बिल्कुल सरकारी घोष विक्रय की तरह "" जहाँ है जैसा है नीलाम किया जाना है " बात ही खत्म =चदरिया ज्यों कि त्यों जैसी है वैसी, जरा जीर्ण भी हो सकती है, फटी पुरानी भी हो सकती है, मैली कुचेली भी हो सकती है /यहाँ कृष्ण की बात ठीक लगती है + जैसे व्यक्ति पुराने बस्त्रों को त्याग कर नए वस्त्र धारण करता है /बात एकदम सटीक ,पके बाल ,आंखों से ऊँट भी दिखाई न दे ,दंत नही ,पोपला मुंह ;झुर्रियां , इस वस्त्र के बदले. नए मिलें तो कौन नही लेना चाहेगा /मगर इस बात को सब कहाँ मानते है किसी ने आत्मा को, तो किसी ने ईश्वर को ,तो किसी ने पुनर्जन्म को नकार दिया है. और नकारने वाले भी असाधारण महापुरुष ,भगवान्, तो व्यक्ति का भ्रमित होना स्वाभाबिक है /

आदमी किंकर्तव्यबिमूढ़ हो जाता है क्या सत्य है क्या गलत है /

आदमी बोलने में तो अनिश्चित रहता ही है क्या बोले क्या न बोले / एक महिला कर्मी ने , एक सज्जन का बरसों से उलझा इन्कमटेक्स का निराकरण कर दिया ,लेन-देन की कोई बात नही थी तो शब्दों से ही धन्यबाद देना था / अब वे सोचने लगे क्या कहूं " मैं आपका किसतरह से शुक्रिया अदा करूं ,किस प्रकार अहसान चुकाऊंगा ,किस भांति धन्यवाद दूँ / और सज्जन मैं आपका किस कहकर तरह ,भांति ,प्रकार के सोच में पड़े, इधर महिला देख रही है मेरे सामने खड़ा आदमी मैं आपका किस, कहकर चुपचाप खड़ा हुआ है तो उसने चांटा मार दिया/

तो भ्रमित आदमी डरता है कि कहीं पुराना ले लिया और नया नहीं दिया तो /कुछ बातें छोटी होती हैं मगर भ्रम की स्थिति तो बना देती है, जैसे कबीर ने कहा ,ध्रुब ,प्रहलाद ,सुदामा ने ओढी , अब सुदामा कौन ?,नाम सुनते ही हमें एक दुर्बल ब्रद्ध सिंहासन पर दिखने लगता है जिसके कृष्ण पैर धो रहे हैं "पानी परांत को हाथ छुओ नहीं नैनन के जल सों पग धोये " लेकिन भागवतकार ने तो सुदामा का नाम ही नही लिया , एक गरीब बिप्र कहा है द्वारका जाने से अमीर होकर लौटने तक कहीं सुदामा नाम नहीं आया है तो फ़िर वह बिप्र जिसका जिक्र व्यास जी ने किया है उसका नाम सुदामा किसने रखा / और देखिये हम जानते है कृष्ण ने गोबर्धन उठाया तस्वीर देखिये वाया हाथ और कथा यह कि वाएं हाथ की कनिष्ठा अंगुली से, व्यास जी ने तो वायां दायां हाथ कुछ लिखा ही नही है/

मैं परसाई जी का ब्यंग्य "" अकाल उत्सब "" पढ़ रहा था उन्होंने लिखा "" मैं रामचरितमानस उठा लेता हूँ ,इससे शांती मिलेगी ,यों ही कोई प्रष्ट खोल लेता हूँ , संयोग से लंका काण्ड निकल पड़ता है ,मैं पढता हूँ अशोक वाटिका में त्रिजटा को धीरज बंधाती है ,त्रिजटा को भी मेरी तरह सपना आया था "" अब कोई मुझसे कहे कि सपना तो सुन्दरकाण्ड में आया था , और मैंने रामायण पढी न हो तो मैं तो लंका काण्ड और सुंदर काण्ड में मतिभ्रम हो ही जाउंगा/

फिर प्राचीन ग्रन्थ और आधुनिक साइंस विरोधाभाषी हैं अब शुक्राचार्य शुक्रनीति में कहते है ""एकम्बरा क्र्शादी ...........मह स्त्रयम ""{३६२}एक वस्त्र धारण करे ,कृष और मलिन सी रहकर स्नान अलंकार धारण छोड़ देवे भूमि में सोवे और इसी तरह तीन दिन विता दे -डाक्टर मानेगा इस बात को , पहले के लोग कुछ ज़्यादा ही सोचते थे औरतों के वारे में =भरथरी का श्रंगार देखो वे नारी के अंगों की स्वर्ण कलश से ही तुलना करते रहे ,एक को तो नदी ही लेटी हुई स्त्री दिखाई दे रही है अब दोनों किनारों को ...... क्या बताऊँ अब में आपको =करते भी क्या वेचारे , न फेशन चेनल था ,न रेन टीबी न पी ई एच चेनल तो करते रहते थे कल्पना /खैर /

तो आदमी डरता है कि कही पुराना लेलिया और नया वस्त्र नहीं दिया तो ? कृष्ण ने कहा है, गारंटी तो नही ली यदि यह अस्वासन दिया होता कि जो यह पुराना वस्त्र लिया है उसको फलां शहर के फलां गाँव के पटेल के यहाँ नया देदिया है तो सब भागे जाते वहां और दो परिवारों ,भिन्न जाती, भिन्न सम्प्रदाय ,में प्रेम भाव कितना बढ़ जाता ,सारे दंगे फसाद बंद /

जब मुझे पता है के मेरी बेटी फलां देश में व्याही है वहाँ बेटी के सास ससुर है ,दामाद है ,मेरी बेटी की ननदें है तो मैं कैसे वहां का बुरा सोच सकता हूँ और वहाँ दामाद भी सोचेगा कि यहाँ मेरे सास सुसर ,साले ,ममिया सुसर वगेरा वगेरा है तो यहाँ का अनिष्ट वह क्यों चाहेगा

तो फिर अब कौन बतायेगा कि कबीर का आदेश मान कर ज्यों की त्यों चदरिया कैसे वापस की जाबे/

Sunday, September 21, 2008

व्यंग्य हमारी समझ न आवे

आज से लगभग पचास साल पूर्व जब मैंने कोर्स की पुस्तकों के अतिरिक्त कुछ पढ़ना शुरू किया था तब मेरी समझ में यह नहीं आता था की व्यंग्य क्या है और व्यंग्य कार कौन है ,यह बात आज भी मेरी समझ में नहीं आती है , इतना जरूर समझ में आता है मैंने व्यंग्य पढ़े नहीं , व्यंग्य समझता नहीं और व्यंग्य लिखने की कोशिश करता हूँ यही व्यंग्य है /
लेख में व्यक्तिगत आक्षेप ,द्विअर्थी बात या चुटकुले लेख को व्यंग्य बना देते हैं /चुटकुले और व्यंग्य का अन्तर भी मैं नही समझ पाता, क्या जिस चुटकुले को सुनकर हंसी आजाये वह चुटकुला और जिसे सुन कर हंसी न आए वह व्यंग्य / किसी किसी को चुटकुले देर में समझ में आते है तो क्या जब तक समझ में न आवे तब तक व्यंग्य और समझ में आते ही चुटकुला हो जाता है /
चेनल की बातें हास्य हैं ,व्यंग्य है , हकीकत है , फ़साना है क्या है मसलन ''''कहीं भी मत जाइयेगा , दिल थाम कर बैठिएगा ,आपके दिल दहल जायेंगे, आप देखेंगे एक ऐसी कातिल पिस्टल जो आपने अभी तक नहीं देखी होगी -केवल हम ही पहली बार आपको दिखा रहे हैं -और आप भी पहली बार इसे देखेंगे ,एक ऐसी पिस्तोल जो देखने में तो आम पिस्तोल जैसी है मगर है बहुत मारक, घातक एक ऐसी पिस्तोल जिससे ऐसी गोली निकलती है जो न डाकू को पहिचान्ती है न संत को , बालक को पहिचानती है न ब्रद्ध को, न दोस्त को पहचानती है न दुश्मन को, ऐसी गोली निकलने वाली पिस्तोल आप देखेंगे थोड़े अन्तराल के बाद, कहीं भी मत जाइएगा ,बाथरूम भी नहीं "" और आधा घंटा बाद , डकेती की योजना बनते व्यक्ति से पुलिस द्वारा जप्त पिस्तोल दिखा देंगे, वह भी लाल गोल घेरे में /
"" आप देखेंगे मोबाईल में यमराज ,नाग का पुनर्जन्म , दुनिया नष्ट हो जायेगी ,सब कुछ मिट जाएगा केवल हम बचे रहेंगे आपको बताने के लिए की दुनिया नष्ट हो चुकी है और सब कुछ मिट चुका है ""
वर्तमान समय में में आदमी इतना निराश्रित हो चुका है या यह कहें कि सरकार प्रशासन पर इतना आश्रित हो चुका है कि कुछ मत पूछो ,मिलजुल कर एक दूसरे की मदद करने की वजाय मिलजुल कर सरकार को कोसेंगे / कहीं बरसात में या केले के छिलके से फिसल कर कोई गिर पड़े , तो, वह इस उम्मीद में पड़ा रहेगा कि सरकार उठाने आए / और चेनल "" एक व्यक्ति यहाँ फिसला पड़ा और प्रशासन सोया हुआ है ' पुलिस भी अभी तक मौके पर नहीं आई है ,भीड़ बड़ती चली जारही है और आप देख रहे है लाइव टेलीकास्ट / ग्रतक ( गिरे हुए ) से हमारा संबाददाता बात कर रहा है ग्रतक का कहना है कि मंत्री जी ख़ुद आकर उठाएंगे तो उठूंगा मगर मंत्री जी है कि उन्हें सुरक्षा व्यबस्था की मीटिंग से ही फुर्सत नहीं मिल पारही है, इन्हे इस ग्रतक की बिल्कुल परवाह नहीं है / राष्ट्रीय आपदा प्रबंधन प्रकोष्ठ से भी अभी तक कोई नहीं आया है /जिलाधीश चुनाव की तैयारी और सेना बाढ़ पीडितों की मदद करने में ही लगी हुई है , ग्रतक पर कोई भी बड़ी विपत्ति आ सकती है कोई इसकी चेन छीन सकता है कोई ट्रक इसे कुचल सकता है /
आप देख रहे है लाईव टेलीकास्ट भीड़ बड़ चुकी है बच्चे तालिया बजा रहे हैं ,महिलायें मुह छुपा कर हंस रही है मगर प्रशासन सोया हुआ है न अभी तक केले के छिलके फैकने वाले को पुलिस पकड़ पाई है न ही केले बेचने वाले को ,सुना है स्केच बनवाया जा रहा है / अब हम भीड़ में खड़े लोगों से पूछते हैं कि उनके क्या विचार है , हाँ आपका नाम .....क्या करना चाहिए "" क्या करना चाहिए इसे उठ कर घर चले जाना चाहिए "" अच्छा अब दूसरे से पूछते हैं ,आपकी राय में क्या करना चाहिए "" देखिये कलेक्टर को आकर इसे मुआवजा देना चाहिए , पुलिस द्वारा छिलके वाले को गिरफ्तार करना चाहिए और किसी मिनिस्टर को आकर इसे उठाना चाहिए
देखिये पचास प्रतिशत लोगों की राय ये है ..... और पचास प्रतिशत के राय ...... है , आप भी अपनी राय हमें एस एम् एस कर सकने हैं "" पुराना साहित्य क्या व्यंग्य था या हकीकत थी मसलन रीति काल - भवरे कमल समझ कर चेहरे पर मंडराया करते थे , अब या तो मुख कमल थे या भवरे वेबकूफ थे / राज कुमार नगर से जारहे हैं ऊपर झरोके में बैठी हुई को देखते हैं और बेहोश होकर गिर पड़ते हैं / आज के आयटम सोंग युग में वे होते तो तो न जाने कितनी बार मरते " सौ बार जनम लेंगे ,सौ बार फ़ना होंगे ऐ जाने वफ़ा फ़िर भी हम आयटम सोंग देखेंगे "
व्यंग्य मेरी समझ में बिल्कुल ही न आते हों ऐसी बात भी नहीं है / मैं मुंशी प्रेमचंद जी की कहानी पढ़ रहा था उसमें एक जगह महात्मा के वारे में पढ़ा "" तेजस्वी मूर्ती थी पीताम्बर गले में , जटा सर पर , पीतल का कमंडल हाथ में ,खडाऊ पैर में ,ऐनक आंखों पर , सम्पूर्ण वेष उन महात्माओं का सा था जो रईसों के प्रासादों में तपस्या , हवा गाड़ियों में देव स्थानों की परिक्रमा और योग सिद्धि प्राप्त करने के लिए रूचिकर भोजन करते हैं ""
यह भी मेरी समझ में आया कि सीता हरण में कंचन म्रग एक कारण था और जब सीता को खोजते राम बन में जाते है और उनसे डर कर हिरन भागने लगते है तो हिरनियाँ हिरनों से कहती है ""तुम आनंद करहु म्रग जाए , कंचन म्रग खोजन ये आए ""
मैं तो केवल यह नहीं समझ पाता हूँ कि पूरी रचना या लेख में केवल एक लाइन का व्यंग्य पूरी रचना को व्यंग्य बना देता है या कि जो लेखक व्यंग्य लेखक के रूप में ख्याति अर्जित कर चुका है उसकी कही गई या लिखी गई हर बात व्यंग्य हो जाती है कुछ लोंगों का विचार है कि राजनीति और राजनेताओं के वगैर व्यंग्य लिखा ही नहीं जासकता इन्हे केन्द्र में रखना ही पड़ता है, तो फ़िर टीका टिप्पणी ,आलोचना ,आक्षेप , उन्हें हास्य का केन्द्र विन्दु बनाना क्या व्यंग्य हो जाता है /
व्यंग्य हमेशा से लिखा जाता रहा है और लिखा जाता रहेगा दुनिया बनी यानी सेवफल खाने इत्यादि से लेकर लाल गेहूं खाने तक , बस इतना चाहता हूँ के मेरी समझ में आता रहे / या तो व्यंग्य इतना बड़ा होता है कि मेरे छोटे दिमाग में घुसता नहीं है या फ़िर दिमाग इतना बड़ा और खोखला है कि "" वदन पैठ पुनि बाहेर आवा, माँगा विदा ताहि सर नावा ""/ व्यंग्य हो तो ऐसा हो जैसे हम बचपन में आतिशीशीशा लेकर सूर्य की किरणों से अपने या अपने मित्र के शरीर पर जलन पैदा किया करते थे /

Sunday, September 14, 2008

आखिर वो नक़ल क्यों न करें

परीक्षा भवन में विद्यार्थी परीक्षा देते हैं ,उन्हें देना ही चाहिए =शिक्षक पर्यवेक्षक होते हैं / कभी कभी शिक्षकों को भी परीक्षा देना पड़ती है -शिक्षा का स्तर सुधारने के किए ,क्योंकि उनका ज़्यादा वक्त फोटो परिचय पत्र ,मतदाता सूची ,जनगणना ,पशुगणना में चला जाता है तो उन्हें शिक्षा का स्तर सुधारने के लिए पढ़ना और परीक्षा देना पढता है /
मैं एक समाचार पढ़ रहा था कि कुछ शिक्षक परीक्षा देरहे थे और साथ में नक़ल भी कर रहे थे -उनको पकड़ लिया गया और समाचार अख़बार में छप गया /में आश्चर्य चकित हुआ कि यदि नक़ल करने वाले छात्रों को पकड़ने वाले शिक्षकों ने नक़ल करली तो न तो यह दुःख की बात थी न समाचारपत्र में छपवाने लायक बात थी /इसमें कोई अचम्भे की बात नहीं थी /
अचम्भे की बात तो यह है कि वे पकड़े कैसे गए /यह तो निश्चित है कि उन्होंने पहली बार नक़ल नही की होगी /विधार्थी से शिक्षक बनने तक पचासों अवसर उनकी जिंदगी में आए होंगे और इतने अभ्यास के बाद भी कोई अपने प्रयास में सफल न हो पाये तो मन में दुःख जरूर होता है कि आज की पीडी कितनी निष्क्रिय होती जारही है /इतने अभ्यास के बाद तो इतने अभ्यस्त हो जाना चाहिए विदेशों में भी नक़ल कर आते और पर्यवेक्षक तो क्या गुप्तचर संस्था के बडे से बडे अधकारी भी न पकड़ पाते /
अब प्रश्न यह उपस्थित होता है कि वे पकड़े क्यों गए /क्या उस वक्त उनकी टेबल पर खुला हुआ चाकू नहीं रखा था , बाहर उनका कोई दादा मित्र नही खड़ा था ,क्या चिट इतनी बड़ी थी कि खाई नही जा सकती थी , चिट मोजे के अन्दर क्यों नहीं राखी गई , पकड़ने वाले को चांटा क्यों नहीं मारा गया , उसको बाहर देख लेने , उन पर तेजाब फैंक देने , उनके बच्चो के अपहरण की धौंस क्यों नही दी गई / क्या पकड़े जाने वाले लोग आर्थिक रूप से कमजोर थे ,क्या वे किसी पार्टी को विलोंग नहीं करते थे /
हमारा दुर्भाग्य है कि जहाँ प्रश्नपत्र अखवारों में पहले से ही छप जाते हैं या उसकी फोटो कापियां ५-५ सौ रुपयों में परीक्षा के पूव उपलब्ध हो जाती है वहां भी नक़ल करने की आवश्यकता महसूस होती है / जब तक परीक्षा पद्धति में आमूल -चूल परिवर्तन नहीं होगा यह समस्या विकराल रूप धारण करती ही रहेगी /सीधी सी बात है विद्यार्थी को कापी घर के लिए दे दी जाय और कोई भी पाँच प्रश्नों के उत्तर लिख कर विद्यालय में जमा करने की तिथि निश्चित कर दी जाए /विलंब शुल्क के सहित १५ दिन की एक और तारीख दे दी जाय ,एक तारिख अतिरिक्त विलंब के लिए और एक तारिख अत्यधिक विलंब के लिए /शुल्क प्रति विलंब दुगना चौगुना होते चला जाना चाहिए /इससे यह होगा कि प्रश्नपत्र बनबाने . उनको छपवाने का व्यय , उनकी गोपनीयता की सुरक्षा और गोपनीयता भंग होने पर आलोचना का भय और व्यर्थ की पेपर वाजी से बचा जा सकता है / क्या मतलब पहले शिक्षा जगत पेपर छापे , वही पेपर परीक्षा के पूर्व अखवार वाले छापें फिर आलोचनाएँ छपे ,फ़िर समाधान छपें और फिर दुबारा पेपर छापें , जांचें आदि करवाएं सो अलग /
नक़ल करना हमारा जन्मसिद्ध अधिकार है / अंग्रेजों की नक़ल हम आज तक करते चले आरहे हैं -फिल्मी हीरो गन की हेयर स्टाइल उनके कपडों की नक़ल , उनकी आवाज़ की नक़ल हम कर ही रहे है =अभी पिछडे क्षेत्रों में यह गनीमत है कि आयटम गर्ल की नक़ल अर्थात उनके कपडों की नक़ल विटियें नही कर पारही हैं /इस शर्मो- लिहाज ,बुजुर्गों के प्रति आदर सम्मान को आप कोई भी शब्द स्तेमाल कर सकते है मसलन बैकवर्ड -कूप मंडूक , ढोर ,गवांर , इल मेनर्ड आदि इत्यादि ,खैर
मजेदार बात ये है कि देश की न्याय प्रणाली में भी नक़ल का प्राबधान है /न्याय बिभाग - अदालत में खुले आम नक़ल होती है और इसके लिए उनहोंने एक अलग दफ्तर ही खोल रखा है / नक़ल करने वाले बाबू को सरकार भी पैसा देती है और पक्षकार भी / लेकिन एक बात है अदालत की नक़ल में अक्ल की आवश्यकता होती है फैसलों की यथावत नक़ल करना पढ़ती है , मिलान भी करना होता है जैसा शब्द लिखा है वैसा ही नक़ल करना पड़ता है , एक शब्द का उलट फेर भी गज़ब ढा देता है / अब तो खैरफोटोकोपी ,टाइप,कम्पुटर आदि अनेक साधन उपलब्ध हो चुके हैं मैं तो पुराने ज़माने की बात कर रहा हूँ एक जज साहेब ने फैसले पर दस्तखत करने के बाद फाइल बंद की तो उसमें एक मक्खी दब गई , मर गई बेचारे और क्या करती /फाइल कुछ दिनों के बाद नक़ल विभाग में पहुंची /बाबू साहेब नक़ल करते करते उठे -एक मक्खी मार कर लाये नक़ल के कागज़ के उस शब्द की नक़ल पर चिपकाई = इसे कहते है कापी टू कापी ,मक्खी टू मक्खी