Monday, April 21, 2008

आपके हाथ से गया

एक दिन श्रीमती जी रोटी बेलते -बेलते अचानक मेरे सामने आकर मेरे लेखन कार्य में व्यवधान उत्पन्न करते हुए कहने लगी "सुनोजी ,मैंने एक रचना लिखी है -मैं हतप्रभ-सा एकटक उनको निहारता रह गया और बगैर मुक़र्रर इरशाद के उन्होंने कहना शुरू कर दिया =अर्ज़ किया है कि -
जो देर रात घर आने लगे , रचनाओं में सर अपना खपाने लगे
पत्र रिश्तेदारों के बदले संपादक को लिखने लगे

दाढी बडा के कवि जैसा दिखने लगे
कभी गीत लिखने लगे ,कभी छंद लिखने लगे
कभी गजल लिखने लगे तो कभी व्यंग्य लिखने लगे
नाम का पती हर काम से गया ,समझ लो वो आपके हाथ से गया

मेरे मुंह से आह या वाह निकले इसके पूर्व ही उन्होंने आदाब अर्ज़ करने की स्टाइल में दो बार अपने सर से हाथ लगाया -मेरा लेखन कार्य उनका प्रेरणा श्रोत भी बन सकता है यह महसूस कर मेरा सर गर्व से ऊंचा हो गया -असल में सर था तो यथा स्थान ही परन्तु मैंने महसूस किया कि वह ऊंचा हो गया है
हो जाता है साहब ,लोगों के कान खडे हो जाते हैं हालांकि वे दिखाई नहीं देते -आदमी खड़ा रहता है और उसका दिल बैठ जाता है -कभी आदमी ऊंचा रहता है और उसकी मूंछ नीची हो जाती है -आदमी तना रहता है और उसकी गर्दन झुक जाती है आदमी लेटा रहता है और उसका दिल बल्लियों उछलने लगता है -कभी १५ दिन से जो आदमी पलंग से हिल नहीं रहा होता है वह चल देता है ""कल तलक सुनते थे वो बिस्तर पे हिल सकते नहीं , आज ये सुनने में आया है कि वो तो चल दिए ""बिना चाकू छुरी के आदमी की नाक कट जाती है -सुर्पनखा की नाक चाकू या छुरी से नहीं काटी गयी थी क्योंकि लक्ष्मण जी तो केवल धनुष बाण लेकर गए थे चाकू छुरी उनके पास थी ही नहीं वो तो शायद यह हुआ होगा कि उस रूपसी का प्रणय निवेदन उन दोनों भ्राताओं ने ठुकरा दिया जिससे उसे मर्मान्तक पीडा हुई और उसकी इन्सल्ट हुई गोया उसकी नाक कट गई -सही भी है यदि किसी को पूर्ण विस्वास हो कि उसकी बात नहीं टाली जायेगी और टाल दी जाती है तो तो उसकी नाक तो कटेगी ही - एक नेताजी ने किसी से कहा फलां अफसर के पास चला जाना तेरा काम हो जाएगा - उस आदमी ने आकर नेताजी को बताया कि उस अफसर ने तो मुझे भगा दिया -नेता ने कहा तूने मेरा नाम नहीं लिया था क्या -तो उस आदमी ने कहा "सर फिर मैंने आपका नाम लिया तो उन्होने मुझे वापस बुलाया और पीट कर भगाया
खैर अपन कहाँ पहुच गए ==हाँ तो एक दिन फिर दुर्घटना घट गई वे कडाही मांजते हुए अचानक पूछ बैठी क्योंजी राजनीतिज्ञों का गावं से कितना ताल्लुक रहता है =मैंने साहित्यिक अंदाज़ में कहा जैसे चंद्र का चकोर से ,मछली का जल से , वे असहमत होकर बोलीं " मगर वे तो वहाँ तभी जाते हैं जब वहाँ कोई घटना घट जाती है "मैंने कहा जाना ही चाहिए उनका कार्यक्षेत्र है - वे बोलीं "कुछ न होगा तो वे वहाँ नहीं जायेंगे "मैंने कहा क्यों जायेंगे तो वे बोली "तो समझ लो वह गाव उनके हाथ से गया " मैंने पूछा क्या मतलब ? तो वे शायराना अंदाज़ में बोलीं =
जो गावं ओलों की बर्बादी से बचा ,जो गावं सूखा ,भुकमरी या बाढ़ से बचा
जिस गावं में कभी न कोई हादसा हुआ ,समझो वह गावं आपके हाथ से गया
इस बार मेरे मुंह से "वाह क्या बात है " निकल ही गया और वे सरिता पत्रिका के "हाय में शर्म से लाल हुई " वाले अंदाज़ में गुलाबी होने लगीं फिर साग्रह बोलीं इसे टाइम्स में छपने भेज दीजिये ना -मैंने रूखे स्वर में कहा "उसमें कविताएँ नहीं छपती " वे बूथ केप्चर करने वाले की तरह बिल्कुल हतोत्साहित नहीं हुई और नारी सुलभ लज्जा से लज्जित होकर बोली तो इसे इंटरनेट पर छपवा दीजिये न -मैंने कहा वह समुद्र है करोडों कविताएँ पडी है किस किस का ई मेल तलाश कर लिखोगी की मेरी कविता पढो नक्कार खाने में तूती की आवाज़ कोई नहीं सुनता है
वे बोलीं तो फिर आप ग्वालियर के प्रसिद्ध साहित्यकार व्यंगकार एवम कवि श्री दीपक भारतदीप जी के "अनंत शब्दकोष " भारतदीप का चिंतन "भारतदीप शब्दजाल पत्रिका " शब्द योग पत्रिका " "या उनकी शब्द्लेख पत्रिका "में ही भिजवा दो -मैंने कहा सोचेंगे -निराश होकर बोलीं तो फिर किसी अखवार में भेज दो वहाँ समाचारों का पिष्ट पेषण ज़्यादा होता है साथ में बहुत विज्ञापन होते है और समय पास करने वाले वर्ग पहेलियाँ भरते रहते हैं उठावना और पप्स उपलब्ध हैं पढ़ते रहते हैं कोई तो मेरी कविता पढ़ ही लेगा "आपके हाथ से गया "शीर्षक से भेज दो –
मैंने कहा भेज तो दूँगा मगर रचना बहुत छोटी है - वे बोलीं बडा दूंगी -चार लाईने वकील के लिए लिख दूंगी
नकलें कहाँ पे मिलती हैं ,तल्वाने कौन लेता है
मन चाही पेशियों के पैसे कौन लेता है
तामील कहाँ पे दबती है ,फाइल कहाँ पे रुकती है

वारंट कहाँ पे दबता है ,रिकार्ड कहाँ पे गुमता है
गर आपका फरीक बातें ये सब जान गया ,समझो मुवक्किल आपके हाथ से गया
निराशा जब घेरती है तो व्यक्ति डूबता चला जाता है और उत्साह बढ़ता है तो हवा से बातें होने लगती है वे अतिउत्साहित होकर बोली डाक्टर के लिए अर्ज़ किया है की
क्रोसीन में क्या गुन है बुखार क्यों आता है ,नमक न खाओ तो बी पी घट जाता है
योग करने से टेंशन मिट जाता है ,पैदल चलने से पेट घट जाता है
पानी बहुत पीने से पिंडली दर्द जाता है और मसूर के उबटन से चेहरा निखर जाता है
आपका रोगी ये बातें सब जान गया , नकली बीमार आपके हाथ से गया

मैंने उनसे चुनावी वादा किया अच्छा भेज देते हैं ,मगर साथ ही शराबी फ़िल्म की अमिताभी स्टाइल में कहा "या तो प्रसिद्ध लेखक छपे या संपादक जिसको चांस दे ,वरना अखवार में आजकल छप भला सकता है कौन " साथ ही यह मशविरा भी दिया कि =छापने वाले अक्सर नये में नहीं पुराने में विश्वास रखते हैं , सिल्वर में नहीं गोल्ड में विस्वास रखते है "
छापने में कम फाड़ फेकने में विस्वास रखते है ,खेद सहित वापस में विस्वास रखते हैं
यदि यह बात सच है तो समझलो मेडम ,यह लेख भी आपके हाथ से गया

5 comments:

गुस्ताखी माफ said...

वाह बहुत खूब

Anonymous said...

ha ha ha, sahi hai , mast type :-)

PD said...

मस्त.. बोले तो एकदम गर्दा.. :D

Udan Tashtari said...

हा हा!! :)

Abhishek Ojha said...

वाह ! मस्त है जी... !