Thursday, October 16, 2008

papa tum bhee blog banaalo

लगे रहो मुन्नाभाई में जब चार पाँच बुड्ढों ने कहा ""या तो खिट खिट करके मरो या जीने की कोई वजह ढूंढ लो ""तो बेटा बोला पापा जी आप भी लिखने की कोई वजह ढूंढ लो /मैंने कहा लिखने की भी कोई वजह होती है ?बोला क्यों नहीं होती /हर चीज़ की कोई न कोई वजह जरूर होती है /आप बताइये संन्यास लेने की भी कोई वजह होती है ,मैंने कहा बिल्कुल होती है ""नारि मुई ग्रह संपत्ति नासी ,मूड मुड़ाय भये संन्यासी ""बोला वही तो मै कह रहा हूँ /किसी से नजरें लड़ जाएँ ,कोई नजर चुराले ,दोस्ती करले ,धोखा दे दे भाइयों से पिट वादे करने लगो कवितायें /कुछ पत्नी के स्वर्ग वास के बाद कवि हो जाते हैं /मैंने पूछा बेटा तू मुझे अपना समझता है क्या इसकी भी कोई वजह है बोला क्यों नहीं है -अभी मेरी शादी नहीं हुई है ""सुत मानहिं मातु पिता तब लौं ,अबलानन दीख नहीं जब लौं "" आप की तो बात ही क्या मैं तो पूरे कुटुंब से दुश्मनी ले सकता हूँ ""ससुराल पिआरि लगी जब तें ,रिपु रूप कुटुंब भये तब तें "" आप तो लिखने ही लगो /

पुत्र और स्पष्ट करना चाहता था यह कह कर कि ""मै शायर तो नहीं जब से देखा तुमको मुझको शायरी आगई "" और में कहीं कवि न बन जाऊं तेरी याद में ओ कविता ""लेकिन में समझ चुका था ,कुछ बातें मेरी समझ में जल्दी आ ही जाती हैं /बोला आपतो लिखने ही लगो /

बात चिंतनीय थी ,चिंता और चिंतन ,दोनों एक साथ करने की थी ,लेकिन मुझे उलझन ये कि कवि लिखे और न तो उसे कोई सुने न पढ़े तो धिक्कार है बिल्कुल आल्हाखंड की तरह ""जाको बैरी सम्मुख बैठे ताके जीवन को धिक्कार ""/बच्चे एस एम् एस और चेटिंग में व्यस्त ,युवक तोड़ फोड़ में ,प्रौढ़ फेशन चेनल देखने में और बूढे बहुओं की टोकाटाकी करने में =और कुछ लोग इंटरनेट पर ही बैठे रहते हैं /

इंटरनेट की बात सुनते ही बेटा बोला हां पापा आप इंटरनेट पर लिखो /साहित्य को स्वांत सुखाय तक सीमित मत रखो =कवितायें लिखो ,तुकवन्दी लिखो -चाँद पर लिखो ,तारों पर लिखो / मैंने पूछा चाँद पर कैसे लिखूंगा ?बोला आपको चाँद पर बैठ कर उसकी धरती पर कोयला से थोड़े ही लिखना है उनको आधार बनाओ ,शायर इसे जमीन कहते है जैसे लगे रहो मुन्नाभाई में डाक्टर बीमार को "सब्जेक्ट " कह रहा था / आकाश को बस्त्र तारों को डिजाइन जैसे पहले टोपियों पर सलमा सितारे जड दिया जाया करते थी बिल्कुल बोईच /उस बस्त्र को चाँद को पहिनाओ =फिर चन्द्रमुखी उस आकाश के बस्त्र को हटा कर सुखदाई बदन झलकायेगी /मैंने मन में सोचा आज कल कोई बस्त्र पहनता ही कहाँ है -प्रकट में कहा तू मुझसे उस चंद्रमा पर लिखवाना चाहता है जो ""जनम सिन्धु ,पुनि बंधू बिषु ,दिन मलीन ,सकलंक "" है तथा ""घटई ,बढ़ई बिरहन दुःख दाई "" है और "कोक शोक प्रद पंकज द्रोही ""है =उसने ध्यान नहीं दिया और बोला आप तो लिखने ही लगो /

मैंने कहा बेटा मैंने रचना लिखी और मेरी ख़ुद ही समझ न आई तो इंटरनेट पर मेरी कविता कौन समझेगा =उसने कहा इंटरनेट पर समझने की जरूरत ही कहाँ होती है /और कहीं पत्रिका बगैरा में भेजोगे ,या तो सम्पादक उसमें कांट छाँट करेगा या खेद सहित लौटा देगा /यही ऐसी जगह है जो ""स्वरूचि अभिव्यक्ति " का मध्यम है -स्वरूचि भोज की तरह /

बेटा पिछले साल शर्मा जी रिटायर हुए थे उन्होंने ब्लॉग बनाया /तुम तो जानते हो वे कितने बड़े साहित्यकार है -अच्छे स्तर की पत्रिकाओं में उनकी कवितायें छपती थी -तीन संकलन भी प्रकाशित हो चुके है , उन्होंने पत्रिकाओं में प्रकाशित दस कवितायें ब्लॉग पर डालदी ,दो माह में एक कविता पर तीन कमेन्ट आए / पापा -आपको लिखने में दिलचस्पी है या कमेन्ट में / बेटा कमेन्ट तो आना ही चाहिए -बडा सुकून मिलता है -और लिखने को प्रेरणा मिलती है -चेहरे पे खुशी छा जाती है ,आंखों में सुरूर आजाता है / देखो पापा आप अपने नाम से ब्लॉग बनाओगे तो कोई नहीं आएगा -आते ही फोटो देखेगा ,उम्र देखेगा ६६ साल ,सोचेगा इस बूढे खूंसठ कोक्या पढ़ना =बहुओं की बुराई करेगा ,रुपया सेर घी की बात करेगा ,आज की जनरेशन को कोसेगा ,फेशन की बुराई करेगा ,संस्कृति और ज्ञान की बातें करेगा /

और फिर आपको टिप्पणी ,कमेन्ट ,बहुत अच्छा, बहुत सुंदर ,हा हा हा हा का इतना ही शौक है तो किसी काल्पनिक नाम से ब्लॉग बनाओ /काल्पनिक नाम कुछ भी हो सकता है आशा ,गाया ,कुमारा ,पाटाल कुछ भी किसी ग्रामीण बाला का चित्र डालदो इतने कमेन्ट आयेंगे कि आपसे पढ़े नहीं जायेंगे /एक शायर के जूते खो गए बोला मेरे जूते खो गए अब घर कैसे जायेंगे /बोले -शायरी शुरू करदो इतने आयेंगे कि गिने नहीं जायेंगे / नहीं बेटा अपने नाम से ही होना चाहिए =हर साहित्यकार की इच्छा होती है कि उसका नाम हो / तो फिर आप फास्ट फ़ूड की तरह फास्ट भाषा में लिखने लगो /अरे जब यू से काम चल रहा है तो वाय ओ यू का क्या मतलब /अभिव्यक्ति की जो सरल ,बाजारू भाषा अस्तित्व में आरही है उसे अपनाओ /गरीब और अविकसित लोगों की भाषा को कब तक छाती से चिपकाए बैठे रहोगे /कब से सोच रहे थे ये अँगरेज़ हमें गुलाम समझते है =न उन जैसा रहने देते है न उन जैसा बोलने देते है / ये देश से चले जाएँ तो हम इनकी तरह रहें और अंग्रेजी बोलें /अब रहने तो लगे अंग्रेजों की तरह ,मगर अंग्रेजों की तरह बोलें कैसे /बोलना है अंग्रेजी मगर दखल नहीं अभ्यास नहीं ,बोल सकते हैं हिन्दी दखल भी है और अभ्यास भी मगर बोल नहीं सकते हीनता ज़ाहिर होती है/

अब हिन्दी बोलना आता है मगर बोलना नहीं है .अब अंग्रेजी बोलना नहीं आता है मगर बोलना है तो क्या करें =ऐसा करें -सुबह को मय पी शाम तो तौबा कर ली ,रिंद के रिंद रहे हाथ से जन्नत न गई /दोनों को मिलादों /एक नई क्रोस भाषा एक वर्णसंकर भाषा उत्पन्न होगी उसे अपनाओ /आप तो लिखने ही लगो /

15 comments:

दिनेशराय द्विवेदी said...

आप भी मौज खूब लेते हैं।

Smart Indian said...

चलिए, अब आप शिकायत नहीं कर सकते, दो कमेन्ट आ गए हैं.

Anil Pusadkar said...

एक और। आप तो लिखने लगे ही हैं,वो भी पहले से बढिया,बस लिखते रहिये,हम पढने आते रहेंगे।

रंजना said...

क्या कहूँ,अद्भुद व्यंग्य है.एकदम मन मुग्ध हो गया.

""नारि मुई ग्रह संपत्ति नासी ,मूड मुड़ाय भये संन्यासी ""....................
किसी से नजरें लड़ जाएँ ,कोई नजर चुराले ,दोस्ती करले ,धोखा दे दे भाइयों से पिट वादे करने लगो कवितायें /कुछ पत्नी के स्वर्ग वास के बाद कवि हो जाते हैं /मैंने पूछा बेटा तू मुझे अपना समझता है क्या इसकी भी कोई वजह है बोला क्यों नहीं है -अभी मेरी शादी नहीं हुई है ""सुत मानहिं मातु पिता तब लौं ,अबलानन दीख नहीं जब लौं "" आप की तो बात ही क्या मैं तो पूरे कुटुंब से दुश्मनी ले सकता हूँ ""ससुराल पिआरि लगी जब तें ,रिपु रूप कुटुंब भये तब तें "" ....................

हास्य व्यंग्य यथार्थ सबकुछ एक साथ...लाजवाब है पूरा आलेख.

मन में एक जिज्ञासा उठी है,हो सके तो कृपया समाधान करें....
आपने तीन अलग अलग ब्लॉग क्यों बनाये हैं ?

Arvind Mishra said...

बढियां लिखा है !

seema gupta said...

"ha ha ha ha ha wonderful expressions , aap kuch likhen na likhen, lakin comment mey analysis bhut sach or achee kerke likthy hain, aapke aapreciation ka ashirwad ka dil se shukriya"

Regards

Vineeta Yashsavi said...

aap ke Vyangya padh ke to bahut der tak hansi aati rahti hai saab.

अभिषेक मिश्र said...

सुबह को मय पी शाम तो तौबा कर ली ,रिंद के रिंद रहे हाथ से जन्नत न गई
Do pidhiyon ki soch ke milan se nikli ek yatharthwadi post. Shubhkaamnayein.

Anita kumar said...

देखो पापा आप अपने नाम से ब्लॉग बनाओगे तो कोई नहीं आएगा -आते ही फोटो देखेगा ,उम्र देखेगा ६६ साल ,सोचेगा इस बूढे खूंसठ कोक्या पढ़ना =बहुओं की बुराई करेगा ,

आप अपनी उम्र बताये, फ़ोटो दिखाए, फ़िर हम सोचें क्या कमैटियाएं …।:)
अदभुद व्यंग

शेरघाटी said...

hasy hi nahin hai janab aapke lekhan mein vyangy ka bharpoor put hai.
bahut khoob!



ज़रूर पढिये,इक अपील!
मुसलमान जज्बाती होना छोडें
http://shahroz-ka-rachna-sansaar.blogspot.com/2008/10/blog-post_18.html
अपनी राय भी दें.

shelley said...

maja aaya.ye jamana hi ulta hai.

Vinay said...

तोप चला रहे हो, वह मारा पापड़वाले को, हा-हा-हा!

Anonymous said...

सर आपकी यह रचना बहुत ही मजेदार लगी| सबसे ज्यादा उम्दा तो इसके दोहे हैं, एक से बढ़कर एक|

ज्योति सिंह said...

maja aa gaya padhkar zindagi ki chhoti -2 baate .umda .

Krishna Tiwari said...

A comment,that too in authentic english, to honour your creativity.
'HAVE A GOOD TIME'