Saturday, October 25, 2008

मैं आलोचक तो नहीं

मैं आलोचक तो नहीं ,जब से देखीं मैंने कवितां ,मुझको आलोचना आगई / एक २०-२२ साल का लड़का कवितायें ,हुस्न ,इश्क ,इंतज़ार ,याद ,दर्द ,हिज्र में मर जाना ,नींद न आना बगैरा / इतना कहा बेटा ओलिम्पिक ,बीजिंग , .हौकी पर ,क्रिकेट पर लिख /हम इंतज़ार करेंगे कयामत तक ,कयामत हो और तू आए , बात ही बेमानी है ,ऐसे आने से फायदा क्या =का वर्षा जब कृषी सुखाने ==उसने कह दिया आप आलोचना कर रहे हैं /

एक गोष्ठी में शायर अपना शेर सुनाने से पहले कहें लगा ""अपने इन शेरों में मुझे अपना ये शेर ख़ास तौर पर पसंद है ""
मेरे मुह से ये निकल गया ""ये तो हुज़ूर की जर्रा नवाजी है वरना शेर किस काविल है ""उसी दिन से गोष्ठियों से बुलावा बंद /एक कवि सम्मलेन में मैंने एक कविता सुनाई ,दूसरी कविता सुनाते वक्त श्रोताओं ने मुझे हूट कर दिया ,मैं अपनी जगह आ बैठा ,दूसरे कवि ने एक कविता सुनाई श्रोताओं ने सुनी, जैसे ही उसने दूसरी सुनानी चाही, श्रोता फिर मुझे हूट करने लगे /उसी दिन से मैंने कवि सम्मलेन में जाना बंद कर दिया /

बडे साहित्य कार अपनी गोष्ठियों में मुझ जैसों को बुलाते नहीं ,और जिन गोष्ठियों में मुझे बुलाया जाता है तो मैं सोचता हूँ कि जो गोष्ठी मुझ जैसों तक को कविता पाठ हेतु बुला सकती है वह किस स्तर की होगी ,अत में जाता नहीं .यह बात मैंने शरदजोशी जी के लेख में पढी थी /लक्ष्मी बाई और दुर्गावती के देश में जब आजकल के कवि और शायरों की नायकाओं के बदन शरद की शीतल चांदनी में तपन से झुलसते हैं ,दस्यु सुंदरियों के देश में जब नायिकाओं के पैर मखमल के गद्दे पर छिलते हैं तो, मुह से कुछ निकल जाता है और लोग बुरा मान जाते है /मान जाते हैं साब/ लम्बी छुट्टी का लाभ उठा कर मेरे दफ्तर की एक मेडम लौटी, तो मैंने पूछ लिया कहिये मेडम कैसी हैं =बोली अच्छी हूँ = मैंने कहा यही बात मैं कह देता तो आप बुरा मान जातीं /

जो बात मुझे पसंद नहीं होती उसका इजहारे ख्याल हो जाता है / कोई भक्त कवि कृष्ण से ,अपनी खोई हुई गेंद तलाशने की खातिर गोपियों की तलाशी दिलवायेगा ,कोई श्रृंगारशतक में नारी अंगों की तुलना स्वर्ण कलश से करेगा तो हम भी तो कुछ विचार व्यक्त कर सकते हैं /

में प्रेम मोहब्बत का दुश्मन नहीं /लेकिन ऐसा प्रेम में उदास रहा ,परेशान रहा तेरे बगैर नींद न आई /जैसे कोई काम्पोज या अल्प्राजोलम से बात कर रहा हो /प्रेम को तो समझ कर भी प्रेम पर नहीं लिखा जासकता /बिना समझे लिखने का तो प्रश्न ही नहीं हां लिखलो प्रफुल्लित ,प्रमुदित, अश्रु की अजस्र धारा बहुत सुंदर और बहुत प्यारे शब्द मगर ऐसा लगेगा जैसे किसी भिखारी को राजा ने हाथी दान में दे दिया हो किसी ने कहा " माँगा हुआ लिवास पहनने से पेश्तर ,अपना मिजाज़ उसके मुताबिक बनाइये "जो प्रेम के समुद्र में डूब गया उसका तो वह स्वम वर्णन नही कर सकता =मिठास का वर्णन कैसे होगा गोस्वामी जी ने कहा है
कहहु सुपेम प्रगट को करई ,कही छाया कवि मति अनुसरई /
कविही अर्थ आखर बलु साँचा, अनुहरि ताल गतिहि नटु नांचा/

प्रेम ,कितना प्यारा शब्द मगर क्या नाश किया है कि क्या कहें /पार्क की बैंच लड़का -तुम न मिली ,तुमसे शादी न हुई तो अपनी जान देदूंगा /एक मिनट को अलग नहीं रह सकता /लडकी बेंच से उठ कर कोल्ड ड्रिंक लेने चली जाती है लड़का बोर ,लडकी का पर्स पलटने लगता है एक चिठ्ठी 'प्रिय शारदा ,जब तक मेरी नौकरी नहीं लग जाती है तब तक बिरजू [बृजमोहन] को यूं ही बेवकूफ बनाती रहो -आजकल तंगी है इससे बहुत आर्थिक मदद मिल रही है / अपन को मेरी नौकरी लगते ही शादी करना है / कोल्ड ड्रिक हॉट ड्रिंक में तब्दील ,जान देनेवाला जान लेने पर उतारू /

राजस्थान एक जमाने में पानी की कमी के लिए प्रसिद्ध- अब तो बहुत नहरें डेम है /बात पुरानी ,कुछ सखियाँ खड़ी देख रही है कि एक हिरन और एक हिरनी मरे पड़े हैं / एक सखी पूछती है "" खड़ो न दीखे पारधी [शिकारी ] लाग्यो न दीखे बाण /मै तेन्यूं पूंछूं सखी किस विध तज्या प्राण / तो दूसरी सखी जवाब देती है ""जल थोड़ो नेहा घन्यो,लागा रे प्रीत रा बाण /तू पी तू पी कहत ही दोन्यूं तजया प्राण /

28 comments:

Udan Tashtari said...

काहे पर्स तलाशने लगे आप?

आपको एवं आपके परिवार को दीपावली की हार्दिक बधाई एवं शुभकामनाऐं.

Demo Blog said...

हिन्दी - इन्टरनेट
की तरफ से आपको सपरिवार दीपावली व नये वर्ष की हार्दिक शुभकामनाये

Dr. Ravi Srivastava said...

आपको एवं आपके परिवार को दीपावली की हार्दिक बधाई एवं शुभकामनाऐं. बृजमोहन जी, मेरा ब्लॉग 'मेरी पत्रिका' एक स्वतंत्र स्वभाव का ब्लॉग है. यहाँ मई हर तरह की सामग्री लिखता हूँ जो किसी और के काम आ सकती है. इसमे सिर्फ़ कविता ही नही यदि आप गहरायी से देखेंगे तो आप को और भी बहुत कुछ देखने को मिलेगा. इसमे मै कविताओं के अतिरिक्त ज्यादातर राजनीतिक घटनाओं पर अपनी राय, कहानियां, सामान्य ज्ञान और स्वास्थ्य संबन्धी बातें भी लिखता रहता हूँ. लेकिन मेरे कुछ दूसरे ब्लॉग भी हैं जो आप के बताये हुए मानको पर... शायद... खरे उतरते हों. ....आप का वहा स्वागत है. धन्यवाद.

Anonymous said...

brij sahab kamaal kar diya aapne... padhke din bhar ki tension door ho gayee...aise hi kahin se kahin hota hua aapke blog pe aake ruka... bahut khushi huyee ki aapka blog mila... regular aaunga...
cheers!

Satish Saxena said...

बहुत अच्छा लिखा है आपने !

प्रदीप मानोरिया said...

बहुत सुंदर बधाई आपकी सहजता का और उसके अभिव्यक्ति का जवाब नहीं श्रीवास्तव जी

राजीव थेपड़ा ( भूतनाथ ) said...

आप भी अलबत्त लिखते हो कभी-कभी....गोया भानुमती का कुनबा....मगर इसमें भी मज़ा आता है....सच!!

Smart Indian said...

ब्रजमोहन जी आप तो गज़ब के आलोचक हैं. ये साधारण कव्वाल क्या समझेंगे आपकी महिमा को! बधाई!
चलिए लगे हाथ बड़े दिन की शुभ-कामनाएं कबूल करिए!

प्रिया said...

aapka blog badha, kuch samjh mein aaya, aur kuch ooper se nikal gaya.. aap hamare blog par aaye....... aapne jo kuch bhi kaha .. bes man ko chuu gai aapki baatein. special jo bitiyan kahkar aapka sambodhan....aap apna sneh aur aashirwaad yu hi dete rahiye

Sajal Ehsaas said...

zordaar likha hai...
daftar mein "main achhi hoon" waala bahut mast lagaa... :)

shama said...

Is blog pe pehlee bar aayee...padha...aapne likha hai," prem" kitnaa achha shabd hai..mujhe Gulzaarkee wo rachnaa yaad aayee," Hamne dekhee hai un aankhonkee mehektee khushaboo..."Pyarkaa itnaa behtareen warnan maine naa pehle sunaa naa baadme...aur Latajeeki aawaaz, Hemantjee kaa sangeet, is geetko ajramar banaa gayaa...afsos ke, Waheedake badle ise khalnayikape filmaya gaya!

Aur ab aaki tippanee...maine Jagjeetji kee wo gazal to nahee sunee," hawaaon naa bajaao mera darwazaa", lekin hairan hoon, ki kuchh roz pehle kuchh aisehee alfaaz maine likhe...

Apanatva said...

aapke blog par aakar accha laga .aur accha laga vo lucknow andaz ke anuman kee dastan .(rajasthanee me do saheliyo kee baat cheet )

Yogesh Verma Swapn said...

aapke teenon blog ki rachnayen padhin behad man bha gain , followers ki list men naam darj kar raha hun. dhanyawaad.

dpkraj said...

श्री वास्तव जी
आपको मेरी तरफ से दीपावली की हार्दिक बधाई
दीपक भारतदीप

ZEAL said...

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आपके लिखने का अंदाज बहुत गजब का लगा। जो कवि आपको नहीं समझ सके उनके लिए इतना ही कहूँगी-- " बन्दर क्या जाने अदरक का स्वाद "

.

Amit K Sagar said...

बहुत दिलचस्प और सार्थक. शुक्रिया.
---
कुछ ग़मों के दीये

Vishal Shrivastava said...

Gr8 work chacha jee !

निर्मला कपिला said...

रोचक अन्दाज । शुभकामनायें।

Aruna Kapoor said...

बिलकुल सही कटाक्ष किए है आपने!...अनेको शुभ-कामनाएं और धन्यवाद!

Amrita Tanmay said...

वाह! आनंद से भर दिया ..अच्छा लिखते हैं आप...शुभकामनाऐं.

virendra sharma said...

ब्रज -मोहन जी ,नट खट मोहन से कम नहीं हैं आप ,बहुत कुछ एक साठ लिए चलतें हैं एल्प्राज़ोलम और स्वरण कलश साथ साथ,पहली में दो का दूसरी में असली नशा चार पेग का .हस्त आमलक वत होती हैं आपकी रचनाएं बे -लाग ,दुनिया भर का ज्ञान समेटे ।
आभार .

Asha Joglekar said...

और आप कहते हैं आप आलोचक नही हैं ।

चंद्रमौलेश्वर प्रसाद said...

गेंद खोजने में गोपियों की तलाशी में तो भाई साहब वह चक्कर में पड़ जाएगा....:)
दीपावली की शुभकामनाओं से ही खैर मनाइये॥

Rachana said...

aapbahut sunder tarike se likhte hain aanand aay apdh kr
deepawali ki shubhkamnayen

Asha Joglekar said...

कोल्ड ड्रिक हॉट ड्रिंक में तब्दील ,जान देनेवाला जान लेने पर उतारू ।
प्रेम की क्या छीछालेदर की है । मान गये कि आप आलोचक हो और टॉप के हो ।

mridula pradhan said...

itna saral manoranjan.......bahut khushi hui.

कविता रावत said...

rocham andaaj mein sundar prastuti..

rajesh singh kshatri said...

बहुत सुंदर रचना।

आपकी रचनाएं http://panchayatkimuskan.com/ पर भी प्रकाशित हो सकती है इसके लिए आप अपनी रचनाएं panchayatkimuskan@gmail.com पर ईमेल करें

धन्यवाद!