Wednesday, April 23, 2008

बहुत कुछ होता है

जिन्दगी के जिस मुकाम पर कुछ कुछ होता है की उम्र समाप्त होती है वहाँ से सब कुछ होने की उम्र प्रारम्भ होकर "बहुत कुछ होता है " की अवस्था व्यक्ति प्राप्त कर लेता है / बहुत कुछ होता है में चिंता ,परेशानी , हताशा ,निराशा ,अवसाद ,दर्द ,महगाई ,बीमारी आदि सब शामिल है /
वो भी क्या दिन थे जब सबक याद न होने पर और हेड मास्साब के हाथ में खजूर की संटी देख कर कुछ कुछ होने लगता था / अब तो खैर स्कूल और कालेज विद्या अर्जन के स्थल न होकर मस्ती करने ,मारधाड़ व हिंसा सीखने के स्थान हो चुके हैं / नए नये आए लघु भ्राताओं को स्नेह ,प्यार ,सौहार्द व मार्गदर्शन देने के बदले रेगिंग का उपहार दिया जा रहा है /पितृ तुल्य ,आदरनीय ,इश्वर से ज़्यादा पूजनीय गुरु जनों को परेशान करने की नई नई विधियां पुष्पित और पल्लवित हो रही हैं /
दफ्तर जाने को घर से निकलो तो रस्ते में सब कुछ होने लगता है /आप सोचेंगे ये गड्ढे की बात करेगा / बिल्कुल नहीं करूंगा साहेब क्योंकि मुझे दिखाई देता है /जिस प्रकार विज्ञापनों के बीच -बीच में कहीं फीचर फ़िल्म दिखाई दे जाती है उसी प्रकार गड्ढों के बीच -बीच में मुझे बाकायदा सड़क दिखाई दे जाती है मगर रास्ता दिखलाई नहीं देता / कभी नहीं से देर भली को ध्यान में रखते हुए जब ,सम्हलकर धीरे धीरे चलता हूँ तो मोपेड पर बैठी हुई पीछे से ये कहतीं हैं इस तरह से तो पहुँच लिए / लोगों का ध्यान मत रखो वे स्वयम अपना ध्यान रखेंगे / ये रास्ता न छोडेंगे इन्हे छोड़ आगे बढ़ चलो "" सागर ख़ुद अपनी राह बना कर निकल चलो ,वरना यहाँ पे किसने किसे रास्ता दिया "" रास्ता देने वालों को स्वयम पता नहीं कि वे कहाँ चल रहे हैं / कब दायें मुड़ जाएं ,कब बाएँ मुड़ जाएं कब चलते चलते रुक जाएं ,किसी पहिचान वाले को आवाज़ लगादें .कभी दार्शनिक की तरह खडे खडे सोचने लग जाएं " में इधर जाऊ या उधर जाऊं " इतना गुस्सा ,झुंझलाहट व चिडचिडाहट होती है की क्या कहें /अत इस बात से इनकार नहीं कि सड़क पर बहुत कुछ होता है /
कार्यालयों में तो बहुत कुछ होता ही है /वहाँ कुछ मालिक होते हैं जिन्हें पब्लिक सर्वेंट कहा जाता है / कार्य बिभाजन सूची की द्रष्टि से एक तो उनके हिस्से में पहले से ही कम काम होता है , दोयम वे काम की अपेक्षा बातों में ज्यादा विस्वास रखते हैं /मैच का मौसम चल रहा हो तो कहना ही क्या है / फिर भी उनका सोच बडा विचित्र होता है कि सारा दफ्तर उनके ही दम पर चल रहा है , वे न होंगे तो क्या होगा / उनका यह भी विचार रहता है कि जब तक हम पुराने लोग हैं तव तक ही ठीक है आज की जनरेशन तो कार्यालय का बेडा गर्क कर देगी क्योंकि इनमें न काम करने की लगन है , न इच्छा है ,न मैनर्स है न जिम्मेदारी /काम तो सीखना ही नहीं चाहते /
दफ्तर से घर लौटे तो यहाँ सब कुछ होने लगता है /सस्ती सब्जी घर वालों को पसंद नहीं और महगी खरीदने की औकात नहीं / कहते हैं कि ज़्यादा कुंठा ग्रस्त रहने से ,सहन करने से , मस्तिष्क पर दवाब देने से शारीरिक रोग घेर लेते हैं , तो चिकित्सालय जाना पड़ता है , मगर यहाँ भी बहुत कुछ होता है सीट पर मिलते नहीं .वार्ड में है नहीं ,इमरजेंसी वार्ड में है नहीं - घर दिखाने लायक आर्थिक स्थिति नहीं / समाचार पत्र ,विज्ञापन , ताजातरीन रिपोर्ट्स आगाह करती हैं कि पचास के बाद नियमित बी पी ,सुगर , बगैरा के साथ छोटी -मोटी शिकायतों की भी नियमित जांच जरूरी है / मगर इनके टेबल पर रक्तचाप का यन्त्र व थर्मामीटर तक होता नहीं
अंग्रेज़ी दबा के साईड इफेक्ट को ध्यान में रख कर होमोपेथिक के पास जाओ तो वे पर्चा नहीं देते क्योंकि अगर बीमार को मालूम पड़ गया कि क्या दबा है तो वह ख़ुद ही खरीद कर खाने लगेगा वैसे आजकल हर घर में होमेओपेथिक तथा वायोकेमिक की हिन्दी में लिखी किताबें रहती ही हैं थोडा दर्द हुआ रसटोक्स खाली , जी घबराया कालीफास खाली -असर नहीं हुआ तो सरकारी अस्पताल चले गए ,भईया पहले ही तो चले जाते -पार तो वही पड़ना है -कुछ लोग जुकाम होने पर आठ दस दिन जुकाम झड़ने का इंतज़ार करते हैं और पानी सर के ऊपर आजाता है तो भागते है डाक्टर के पास /
सब कुछ होने के इस पडाव पर बच्चे भी शादी लायक हो जाते हैं यहाँ भी बहुत कुछ होता है लडकी तेज़ स्वभाव की न आजाये वरना धारा ४९८ बडी खतरनाक होती है जमानत भी नहीं होती और लडकी के वाबत यह कि यहाँ तो प्याज़ लहसन तक नहीं चलता वहाँ मुर्गा न पकता हो , जो तय हो गया उससे ज़्यादा न मांगने लगें , छोड़ जाएं लिवाने न आयें , मारने जलाने की धौंस न दें
अरे बडा मजा आता है जरा इनकी बातें सुनो -तो साब लडकी पसंद आगई कुंडली मिल गई - अब आप शादी किस स्तर की चाहते है ? अरे स्तर काहे का साहब -हम तो अपनी बहू थोड़े ही ,बेटी ले जा रहे है / मगर फिर भी / आपने भी तो कुछ संकल्प किया होगा / हमारा तो पाँच तक का इरादा है / अरे साब पाँच में तो किलार्क -बाबू तक नहीं मिलते - अब क्या बताएं साहब दो और धरी हैं इसके बाद / खैर पाँच और सब सामान / सामान तो अलग रहता ही है / तो फिर आप ऐसा करो दस और सब सामान करदो - ठीक है साहब जैसी आपकी मर्जी / हां एक बात और हम बरात लेकर आयेंगे आपको मेह्गा पडेगा बस का किराया स्वागत _बरात ठहराना आप एक काम करो लडकी को लेकर यही आजाओ अपन मैरिज हाल बुक बुक कर लेंगे एक डेड के आस पास खर्च आएगा वह आप वहन कर लेना और जो रिसेप्शन देंगे वह आधा आधा हो जाएगा /मगर सर आपके तो हजार पांच सौ आदमी होंगे हमारे तो दस बारह लोग ही आएंगे - क्या करे भाई आज कल ऐसा ही होता है
एक खास क्षेत्र और है उसमें भी बहुत कुछ होता है लेकिन मैं नहीं लिखूंगा /कभी लिखा भी नहीं / यह मेरा विषय भी नहीं है /हालांकि लोग कहते हैं कि इसके विना हर बात अधूरी लगती है इसके विना न लेख लिखा जा सकता है न व्यंग्य और न हास्य /मगर में लिखता नहीं क्योंकि ""फुर्सत कहाँ कि बात करें आसमा से हम ,लिपटे पडे हैं लज्ज्तो दर्दे निहां से हम "" इसलिए में इन्हे दूर से ही करता हूँ परनाम क्योंकि ये हैं बडे महान , ये धरती माता जैसे सहनशील हैं -पीडितों और शोषितों के लिए ,,ये सागर की तरह गहरे हैं जिसका पानी खारा होता है ,, इनका दिल दरिया है जो वक्त के साथ सूखता रहता है ,,ये वो फलदार ब्रक्ष हैं जिनके फल अपनों को ही मिलते हैं ,,ये वो बादल है जो बरसते हैं अपनों पर और गरजते हैं गैरों पर ,,ये वो बिजली हैं जो ख़ास घरों में उजाला करके आम घरों को झुलसाती है / ये वो भागीरथ हैं जो प्रयास करके गंगा तो लाते हैं मगर सपरिवार स्वयम ही नहाते हैं और दूसरों को भगाते हैं / इनके वारे में गलत कहो तो मान हानि का दावा करदे और सच इन्हे बर्दाश्त न हो / तो इस क्षेत्र में क्या कुछ होता है ये कहने के वजाय केवल समझा जाए
इसलिए कुछ कुछ होता है , बहुत कुछ्होता है , सब कुछ होता है यह सब देश ,काल , परिस्थितियों पर निर्भर करता है बस साक्षी भाव से देखते चलो

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