Friday, April 18, 2008

साहित्यिक चोरी की रपट थाने में नहीं होती

एक सम्पादक ने 'एक साहित्यकार की रचना ,इस टीप के साथ वापस कर दी की "चूँकि इसी रचना पूर्व में मुंशी प्रेमचंद लिख चुके हैं इसलिए वे इसे प्रकाशित नहीं कर सकेंगे -इस बात का उन्हें खेद है - वे साहित्यकार अभी तक यह नहीं समझ पाये की सम्पादक के खेद की वजह ==नहीं छाप सकना था =या ==मुंशी जी द्वारा लिखा जाना था
चोरियाँ नाना प्रकार की होती है और चोरी के तरीके भी भिन्न भिन्न प्रकार के होते हैं -रुपया पैसा जेवर आदि की चोरी के नए नए तरीके सिनेमा विभिन्न चेनल और सत्यकथाओं ने प्रचारित व प्रसारित कर दिए हैं -चैन चुराना दिल चुराना आदि पर जबसे फिल्मी दुनिया का एकाधिकार हुआ है -आम आदमी इस प्रकार की चोरियों से महरूम हो गया है
एक कवि ने एक कविता लिखी -उन्होंने प्रकाशनार्थ भेजने के पूर्व अपने मित्र को बतलाया -मित्र ने पूछा छप तो जायेगी -कवि बोले =यदि संपादक ने मेघदूत न पढा होगा तो छप जायेगी और अगर मेरे दुर्भाग्य से उन्होंने पढा होगा तो संपादक को बहुत खेद होगा
सम्पादक का स्वभाव ही होता है खेद करना -दिनभर में के से कम सौ दो सौ बार खेद करना ही पड़ता है -जब किसी बात की पुनराब्रत्ति होती है तो वैसा स्वभाव बन जाता है जैसे हर किसी पर शंका करते करते पुलिस को भे शंका करने दी आदत बन जाती है -किसी बारदात की रिपोर्ट कराने जाओ यही सवाल -तुम्हे किस पर शक है =बात बाद में सुनते है पहले यही पूछते है तुम्हे किस पर शक है
एक दिन एक मित्र मुझसे पूछने लगे -यार इन संपादकों को कैसे मालूम हो जाता है की रचना चोरी की हुई है क्या जरूरी है की सम्पादक ने कालिदास -कीट्स- शेक्सपीयर प्रेमचन्द- शरद आदि सभी को पढा हो हमें कहा =जरूरी तो नही है मगर वे लेख देख कर ताड़ जरूर जाते हैं --रचना का लिखा कोई वाक्यांश चतुरसेन के सोना और खून से है या नहीं यह भलेही संपादक न बता पाएं मगर यह जरूर बतला देंगे की यह वाक्यांश इस लेखक का नही हो सकता -सच है दाई से पेट नही छुप सकता =
किसी जमाने में जब हम विधार्थी हुआ करते थे टीबी हमसे पूछा जाता था की वह कौनसा अपराध है जिसके प्रयास करने पर सजा का प्रब्धान है और घटित कर देने पर कोई सजा नही होती है और हम उत्तर दिया करते थे धारा ३०९ यानी आत्महत्या =साहित्य चोरी का अपराध इसके जस्ट विपरीत है यानी प्रयास करने पर कोई अपराध नही और घटित कर देने पर अपराध बनता है
चोरी के मुकदमे में चोर के वकील अक्सर यह प्रश्न पूछा करते हैं की इस प्रकार के जेवरात ग्रामीण अंचलों में पहने जाते है इससे यह सिद्ध करने का प्रयास किया जाता है की जेवर फरियादी के नहीं वल्कि चोर के है -जेवरात की तरह साहित्यिक विचार एक दूसरे से मेल खा सकते है -बात वही रहती है और अंदाजे बयाँ बदल जाता है -दूसरों के साथ बुरा व्यबहार न करने की बात हजारों साल पहले विदुर जी ने कही अत्म्प्रतिकूलानी ......समाचरेत फ़िर वही बात अंग्रेज़ी में डू नोट डू ......कही गयी बात वही थी भाषा बदल गयी अंदाजे बयाँ बदल गया क्या मुज़्तर खैराबादी और बहादुरशाह जफर के खयालात मिलते जुलते नहीं थे दोनों के कहे हुए शेर पढ़ कर देख लीजिये क्या फैज़ अहमद फैज़ और मजरूह सुल्तानपुरी की रचनाओं में समानता नहीं है आदमी कन्फ्यूज्ड हो जाता है की ये लिखा किसने है
आम तौर पर चोर चोर मौसेरे भाई होते है और दिल के चोर आपस में रकीब होते है क्योंकी दिल एक चुराने वाले दो तो दुश्मनी स्वाभाबिक है -ऐसी बात साहित्य के मामले में नहीं है वे न तो आपस में मौसेरे भाई होते है न दुश्मन होते है वे तो आपस में प्रतिद्वंदी होते है -तूने हजार साल पहले की में से चुराया तो में ईसा पूर्व की में से चुराउगा
इसीलिए कहा गया है ==यदि नहीं कहा गया हो तो अब में कह देता हूँ ==साहित्यिक चोरी चोरी न भवति

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