Tuesday, April 22, 2008

BHANTI BHANTI KE LEKHAK

मैंने एकदिन अपने लेखक मित्र से पूछा "यदि सम्पादक तुम्हारी रचना लौटा दे तो? वे बोले, दूसरी रचना भेजूंगा .मैंने पूछा "वह भी लौटादी तो ?वे सम्हलकर बोले "यथाशक्ति चेष्टापूर्वक दोनों रचनाओं का एकीकरण कर रचना तैयार करूंगा और भेजूँगा -मैंने पूछा मानलो अगर वह भी लौटादी तो ? वे झुंझलाकर बोले यार समझ में नहीं आता तू मेरा दोस्त है या संपादक का ?
लेखक का लेखन और संपादक का खेद इन दोनो तथ्यों को द्रस्तिगत रखते हुए में निसंदेह और द्रढ़ता पूर्वक यह कहने का साहस कर रहा हूँ की इन्द्र ,वायु ,यम ,सूर्य ,अग्नि .वरुण ,चन्द्र ,और कुबेर इन देवताओं के अंश लेकर लेखक धरती पर अवतरित होता है -इन आठों देवताओं के अंश लेखक में होते हैं वह इन्द्र के समान इस बसुधा पर ख्याति प्राप्त करता है ,जैसे वायु सुगंधी को फैलाती है वैसे ही लेखक का यश फैलता है =यमराज को धर्मराज भी कहते हैं जब लेखक नीतिपरक और सुधारक लेख लिखता है तो धर्मराज होता है ,समाज में फैला अज्ञानता रूपी अन्धकार वह सूर्य बनकर दूर करता है अग्नि को अनुकूलता मिले तो वह फैल जाती है
लेखक को भी सम्पादकीय अनुकूलता मिलने पर वह चरमोत्कर्ष पर पहुँच जाता है अन्यथा खेद सहित से उसकी अलमारियां सुसज्जित हो जाती हैं -वरुण जल ब्रष्टि करता है और चन्द्र अपनी छटा से आल्हादित करता है वैसे ही लेखक पाठक को नौ रसों से सराबोर कर देता है -कुछ पलों के लिए अपने लेख के माध्यम से पाठक को संसार की सुधि भुलाकर समाधि की स्थिति में पहुंचा देता है यदि कोई प्रकाशक रायल्टी रूपी द्रष्टि लेखक पर डाल दे तो वह साक्षात् इस धरती का कुबेर है
लेखक कई तरह के होते है -कुछ पत्र के तो कुछ पत्रिका के -कुछ गतिशील होते है तो कुछ प्रगतिशील -कुछ पत्र लेखक होते है तो कुछ गुमनाम पत्र लेखक होते है से वाये हाथ से गुमनाम पत्र लिख कर किसी भी कर्मचारी की शिकायत कर उस पर विभागीय जांच प्रारम्भ करवा सकते है कुछ शीघ्र लेखक होते है तो कुछ आवेदन पत्र लेखक
कुछ इंटरनेट पर ब्लॉग लेखक होते है लोग उन्हें ज़्यादा तादाद में पढ़ते हैं वहाँ विद्वानों का सम्मेलन होता है -दीपक भारतदीप जी का एक आलेख है ""कभी कभी ऐसा भी होता है " उसमें उनका कहना है की ""यह एक मंच है जिस पर हम सब एकत्रित हैं "" यहाँ के लेखक की अपनी भाषा बहुत ही सुसंस्कृत =सभ्य और शिष्टाचार पूर्ण होना चाहिए - दीपक जी ने अपने एक और आलेख ""हित और फ्लॉप का खेल चलने भी दो यारो ""में लिखा है ""अंतर्जाल बहुत व्यापक है और आप यहाँ किसके पास पहुचना चाहते है यह आप तय नहीं कर सकते तय करेंगे आपके "शब्द " =अभी भी इसमें लिखने वालों की संख्या कम ही है =आम तोर पर लेखक पेपर में ही लिखते हैं
लेखक की रचनाएँ छपती नहीं और लौट आती हैं यह बात वह सबसे गुप्त रखना चाहता है -जो कोई उससे पूछे यार -आजकल आप पेपर में बहुत दिन से नजर नहीं आरहे हो तो वह कभी नहीं कहेगा की संपादक रचना लौटा रहा है -वरन चेहरा लटका कर गंभीरता पूर्वक कहेगा "भइया आजकल दीगर कामों में इतने व्यस्त हैं की लिखने को समय ही नही निकाल पाते
आमतोर पर संपादक लेखक की रचना अच्छी बतलाते हुए ही खेद सहित वापस लौटाते हैं -वे यह कभी नहीं लिखते की श्रीमानजी जब आपको कलम पकड़ ने की तमीज़ नहीं है व्यर्थ में क्यों हमारा समय बर्बाद करते हो दूसरा क्षेत्र क्यों नहीं चुनते
एक सज्जन अपने मित्र से कह रहे थे की मैं लिखता भी हूँ और चित्रकारी भी करता हूँ -भविष्य में मुझे दोनों में से एक क्षेत्र मुझे चुनना है मित्र बोले आप चित्रकारी अपना लीजिये -सज्जन ने पूछा आपने मेरे चित्र देखे -मित्र ने कहा चित्र तो नहीं देखे आपकी एक दो रचनाएँ जरूर पढी हैं
लेखक का लेख छपना और किसी की लाटरी निकलना समान रूप से सुखदाई है -जब लेखक का पहला लेख छपता है तो भगवान् को प्रसाद चडाता है मित्रों के घर जा जा कर लेख बतलाता है उस लेख की कटिंग रखता है भलेही उसका लेख "करेले का अचार कैसे डालें ही क्यों न हो - पोस्ट मेन का लिफाफा लेकर घर की तरफ आना प्रेमी -जीव के लिए गंगावतरण है लेकिन लेखक को पोस्टमेन यमदूत नजर आता है क्योंकि वह खेद सहित ही आता है - कुछ लेखक खेद सहित से इतना डरते हैं की वे अपना पता लिखा लिफाफा ही नहीं भेजते -पसंद करो तो छापो नहीं तो फाडो - कुछ लेखक स्वान्त सुखाय लिखते हैं ये वह रचनाएँ होती है जो खेद सहित वापस आती हैं उनका खेद फाड़ दिया जाता है और स्वान्त सुखाय का लेवल चिपका दिया जाता है - कुछ छपने के लिए लिखते है तो कुछ नाम के लिए और कुछ नामा के लिए -कुछ लेखकों का विचार होता है की पारिश्रमिक का क्या वस नाम ही काफी है
लेखक चाहता है की वह कागज़ के दोनों ओर लिखे -संपादक चाहता है वह किसी ओर न लिखे इसलिए एक ओर लिखने का सिलसिला प्रारम्भ हुआ -आम तोर पर लेखक स्वाभिमानी होते है और होना भी चाहिए -कुछ लेखक शादी के पहले स्वाभिमानी होते है और कुछ लेखक तलाक के बाद स्वाभिमानी हो जाते है बीच की अवधी में वे अधबीच में पडे रहते हैं
एक कटु सत्य और =एक ख्याति प्राप्त लेखक द्वारा कही गयी कोई बात महत्त्व पूर्ण है और साधारण लेखक द्वारा कही गई वही बात महत्वहीन है =विषपान शिव का भूषण है और साधारण की म्रत्यु का कारण

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5 comments:

Dr Parveen Chopra said...

अच्छा लिखा है ....अपनी अपनी राय है..लेकिन कोई लेखक छपे चाहे ना छपे.....अगर अपनी बात को लिख कर वह हल्का हो गया है तो लेखन का उद्देश्य पूरा हुया सा लगता है।
मेरे लिये लेखन एक तरह से तड़प से निजात पाने का माध्यम है। और रही बात अखबारों द्वारा लेखों के चुनाव की, उस के बारे में तो जितना कम कहा जाये, वही ठीक है....हम बोलेगा तो बोलोगे कि बोलता है.....कसौटी फिल्म का गाना याद गया ।

Prabhakar Pandey said...

सुंदर और सटीक लेखन।

दीपक भारतदीप said...

श्रीवास्तव जी
मजा आ गया। आप ब्लाग जगत में जमकर लिखेंगे और पढ़े जायेंगे। आप अपनी सक्रियता बढ़ायें और जा आपके पास कमेट देने आ रहे हैं उन्हें भी पढ़ें इसमे बहुंत अच्छे लेखक है। आपका लिखा पढ़कर लग रहा है कि हमें
लग रहा है। अच्छा है आपका ब्लाग पहले ही लिंक कर लिया। आप यह वर्डवैर्रीिफकेशन सैंटिंग में जाकर हटा लीजिये यह ब्लागर दोस्तों को कष्ट देता है।

दीपक भारतदीप

Abhishek Ojha said...

श्रीवास्तवजी मेरे साधारण से लेखन पर मिले आपके प्रोत्साहन और आशीर्वाद के लिए बहुत-बहुत धन्यवाद.. हम तो बस आप जैसे लोगों से कुछ सीखने की कोशिश कर रहे हैं...

और जैसा कि आपने अपने इसी लेख में लिखा है... मेरे जैसे साधारण की कही गई हर बात महत्वहीन है... बस आप जैसे लोग प्रोत्साहन देते रहे तो शायद कोशिश करता रहूँ मत्वपूर्ण बनाने की...

Manas Path said...

सही बात सटीक.