Sunday, September 14, 2008

आखिर वो नक़ल क्यों न करें

परीक्षा भवन में विद्यार्थी परीक्षा देते हैं ,उन्हें देना ही चाहिए =शिक्षक पर्यवेक्षक होते हैं / कभी कभी शिक्षकों को भी परीक्षा देना पड़ती है -शिक्षा का स्तर सुधारने के किए ,क्योंकि उनका ज़्यादा वक्त फोटो परिचय पत्र ,मतदाता सूची ,जनगणना ,पशुगणना में चला जाता है तो उन्हें शिक्षा का स्तर सुधारने के लिए पढ़ना और परीक्षा देना पढता है /
मैं एक समाचार पढ़ रहा था कि कुछ शिक्षक परीक्षा देरहे थे और साथ में नक़ल भी कर रहे थे -उनको पकड़ लिया गया और समाचार अख़बार में छप गया /में आश्चर्य चकित हुआ कि यदि नक़ल करने वाले छात्रों को पकड़ने वाले शिक्षकों ने नक़ल करली तो न तो यह दुःख की बात थी न समाचारपत्र में छपवाने लायक बात थी /इसमें कोई अचम्भे की बात नहीं थी /
अचम्भे की बात तो यह है कि वे पकड़े कैसे गए /यह तो निश्चित है कि उन्होंने पहली बार नक़ल नही की होगी /विधार्थी से शिक्षक बनने तक पचासों अवसर उनकी जिंदगी में आए होंगे और इतने अभ्यास के बाद भी कोई अपने प्रयास में सफल न हो पाये तो मन में दुःख जरूर होता है कि आज की पीडी कितनी निष्क्रिय होती जारही है /इतने अभ्यास के बाद तो इतने अभ्यस्त हो जाना चाहिए विदेशों में भी नक़ल कर आते और पर्यवेक्षक तो क्या गुप्तचर संस्था के बडे से बडे अधकारी भी न पकड़ पाते /
अब प्रश्न यह उपस्थित होता है कि वे पकड़े क्यों गए /क्या उस वक्त उनकी टेबल पर खुला हुआ चाकू नहीं रखा था , बाहर उनका कोई दादा मित्र नही खड़ा था ,क्या चिट इतनी बड़ी थी कि खाई नही जा सकती थी , चिट मोजे के अन्दर क्यों नहीं राखी गई , पकड़ने वाले को चांटा क्यों नहीं मारा गया , उसको बाहर देख लेने , उन पर तेजाब फैंक देने , उनके बच्चो के अपहरण की धौंस क्यों नही दी गई / क्या पकड़े जाने वाले लोग आर्थिक रूप से कमजोर थे ,क्या वे किसी पार्टी को विलोंग नहीं करते थे /
हमारा दुर्भाग्य है कि जहाँ प्रश्नपत्र अखवारों में पहले से ही छप जाते हैं या उसकी फोटो कापियां ५-५ सौ रुपयों में परीक्षा के पूव उपलब्ध हो जाती है वहां भी नक़ल करने की आवश्यकता महसूस होती है / जब तक परीक्षा पद्धति में आमूल -चूल परिवर्तन नहीं होगा यह समस्या विकराल रूप धारण करती ही रहेगी /सीधी सी बात है विद्यार्थी को कापी घर के लिए दे दी जाय और कोई भी पाँच प्रश्नों के उत्तर लिख कर विद्यालय में जमा करने की तिथि निश्चित कर दी जाए /विलंब शुल्क के सहित १५ दिन की एक और तारीख दे दी जाय ,एक तारिख अतिरिक्त विलंब के लिए और एक तारिख अत्यधिक विलंब के लिए /शुल्क प्रति विलंब दुगना चौगुना होते चला जाना चाहिए /इससे यह होगा कि प्रश्नपत्र बनबाने . उनको छपवाने का व्यय , उनकी गोपनीयता की सुरक्षा और गोपनीयता भंग होने पर आलोचना का भय और व्यर्थ की पेपर वाजी से बचा जा सकता है / क्या मतलब पहले शिक्षा जगत पेपर छापे , वही पेपर परीक्षा के पूर्व अखवार वाले छापें फिर आलोचनाएँ छपे ,फ़िर समाधान छपें और फिर दुबारा पेपर छापें , जांचें आदि करवाएं सो अलग /
नक़ल करना हमारा जन्मसिद्ध अधिकार है / अंग्रेजों की नक़ल हम आज तक करते चले आरहे हैं -फिल्मी हीरो गन की हेयर स्टाइल उनके कपडों की नक़ल , उनकी आवाज़ की नक़ल हम कर ही रहे है =अभी पिछडे क्षेत्रों में यह गनीमत है कि आयटम गर्ल की नक़ल अर्थात उनके कपडों की नक़ल विटियें नही कर पारही हैं /इस शर्मो- लिहाज ,बुजुर्गों के प्रति आदर सम्मान को आप कोई भी शब्द स्तेमाल कर सकते है मसलन बैकवर्ड -कूप मंडूक , ढोर ,गवांर , इल मेनर्ड आदि इत्यादि ,खैर
मजेदार बात ये है कि देश की न्याय प्रणाली में भी नक़ल का प्राबधान है /न्याय बिभाग - अदालत में खुले आम नक़ल होती है और इसके लिए उनहोंने एक अलग दफ्तर ही खोल रखा है / नक़ल करने वाले बाबू को सरकार भी पैसा देती है और पक्षकार भी / लेकिन एक बात है अदालत की नक़ल में अक्ल की आवश्यकता होती है फैसलों की यथावत नक़ल करना पढ़ती है , मिलान भी करना होता है जैसा शब्द लिखा है वैसा ही नक़ल करना पड़ता है , एक शब्द का उलट फेर भी गज़ब ढा देता है / अब तो खैरफोटोकोपी ,टाइप,कम्पुटर आदि अनेक साधन उपलब्ध हो चुके हैं मैं तो पुराने ज़माने की बात कर रहा हूँ एक जज साहेब ने फैसले पर दस्तखत करने के बाद फाइल बंद की तो उसमें एक मक्खी दब गई , मर गई बेचारे और क्या करती /फाइल कुछ दिनों के बाद नक़ल विभाग में पहुंची /बाबू साहेब नक़ल करते करते उठे -एक मक्खी मार कर लाये नक़ल के कागज़ के उस शब्द की नक़ल पर चिपकाई = इसे कहते है कापी टू कापी ,मक्खी टू मक्खी

2 comments:

Vinay said...

समाज और परीक्षा में नक़ल की तुलना, बढ़िया है। पर सोचो तो दोनों कितने अलग हैं।

प्रदीप मानोरिया said...

लाज़बाब मज़ा आ गया सर ... मेरे ब्लॉग पर सरकारी दोहे पढने के लिए आपको सादर आमंत्रण है